Saturday, November 26, 2011

पंजाबी फिल्मों का बीते सालों में •ाारी विकास हुआ- ओम पुरी

बीते कुछ सालों में पंजाबी फिल्म उद्योग का •ाारी विकास हुआ है और ज्यादातर लोग वहां की फिल्मों में काम करने के इच्छुक हैं। ओमपुरी •ाी पंजाबी ल्म उद्योग का •ाारी विकास हुआ है और ज्यादातर लोग वहां की फिल्मों में काम करने के इच्छुक हैं। ओमपुरी •ाी पंजाबी •ााषा की फिल्मों में काम करना चाहते हैं लेकिन फिलहाल इस तरह का कोई प्रस्ताव उनके पास नहीं है। उद्योग जगत की ओर से फिल्मों में पूंजी निवेश के बारे में कोलकाता में आयोजित एक संगोष्ठी में उन्होंने यह विचार व्यक्त किए। पहले व्यापार और वहां के बारे में समुचित जानकारी हासिल की जानी चाहिए। कलकत्ता चेंबर आफ कामर्स की ओर से एक संगोष्ठी में उन्होंने यह विचार पेश किए। इस मौके पर निर्देशक गौतम घोष, केन घोष, फिल्म अ•िानेत्री ऋतुपर्णा सेनगुप्ता ने •ाी अप ने विचार प्रकट करते हुए माना कि उद्योग और फिल्म जगत में नजदीकियां बढ़ी हैं।
ओम पुरी ने इस मौके पर कहा कि हिंदी फिल्म जगत ही अमरीकी उद्योग का मुकाबला कर सकता है। लेकिन फिल्मों की संख्या और बाजार में वृद्धि के बावजूद फिल्मों का स्तर नहीं बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्मों का निर्माण किया जाना चाहिए । लेकिन अच्छी फिल्मों का मतलब यह नहीं कि बोर फिल्म बनाई जाए । समाचार पत्र में •ाले ही संपादकीय पन्ना और संपादकीय बोर होते हैं लेकिन कुछ लोग तो उसे पढ़ते ही हैं। ठीक इसी तरह हर तरह की फिल्म के दर्शक होते हैं।
उन्होंने उद्योगपतियों से कहा कि हम लोग नहीं चाहते कि निवेश करें और घाटा नहीं सह पाने के कारण दूसरी फिल्म नहीं बना सके। इसके लिए फिल्म के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए। जैसे किसी कारोबार को शुरू करने के बारे में जानकारी हासिल की जाती है उसी तरह फिल्मों के बारे में •ाी जानकारी हा सिल की जानी चाहिए। अमिता•ा, शाहरुख, सलमान कोई •ाी ऐसा कलाकार नहीं है जो फिल्म को हिट साबित कर सके। रा-वन की असफलता से एक बार फिर यह साफ हो गया कि बड़े कलाकार, तकनीकी दक्षता ब गैर कहानी के नाकाम हो जाती है। विदेश में पटकथा पर ज्य ादा जोर दिया जाता है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्मों में कैरियर शुरू करने वालों को मै यह सलाह देता हूं कि पहले शिक्षा पूरी करो और बा द में •ाविष्य में दूसरा विकल्प तैयार रखकर इस पेशे में प्रवेश करो। इसी तरह उद्योग जगत •ाी अगली फिल्म की तैयारी के साथ उतरे। राज कपूर जैसे निर्माता की ए क फिल्म फलाप होती थी तो दूसरी से•ारपाई कर देते थे। लेकिन आज निर्माता, वितरक एक फिल्म के बा द दिखाई नहीं देता। व्यापार में •ा रोसा उठ गया है। लोगों को आकर्षित करने के लिए नए सिनेमाघर •ाी बनाए जाने चाहिए। पांच तारा होटल के अलावा दूसरे होटल •ाी बनाए जाते हैं, इसी तरह स•ाी तरह के हाल का निर्माण जरूरी है।
इस मौके पर गौतम घोष ने कहा कि कार्पोरेट जगत का स्वागत है लेकिन पहले फिल्म उद्योग के बारे में जानकारी हासिल करें। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के पास बीमा और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। पायरेसी ने फिल्म जगत का नुकसान किया है लेकिन मिलबैठ कर इसका सामना किया जा सकता है। उद्योग जगत के लोग फिल्म बनाने लगते हैं लेकिन उन्हें फिल्मों के बारे में कु छ पता नहीं होता। पहले यह पता लगाया जाना चाहिए कि कोलकाता में कितने हाल चल रहे है, कितने हाल की स्थिति खराब है, इसके बाद आगे बढ़ना चाहि ए। उन्होंने कहा कि राइस सिनेमा (इटली) की ओ र से उनसे बा तचीत के दौरान कहा गया कि विदेशी फिल्मों में •ाारतीय अ•िानेताओं को •ाी लें क्योकि उनकी विदेशों में खासे दर्शक हैं।
निर्देशक केन घोष ने कहा कि बी ते दो साल में आठ हिं दी फिल्मों ने 100 करोड़ रुपए से ज् यादा का कारोबार किया है। इससे पता चलता है कि लोगों की दिलचस्पी हिं दी फिल्मों के प्रति बढ़ी है। हालांकि मल्टीप्लेकस की इसमें खासी •ाूमिका है। चेंबर की अध्यक्ष अलका बांगड़ा ने स्वागत •ााषण में कहा कि हर साल 52 •ााषाओं में एक हजार फिल्मों का निर्माण किया जाता है। 32 कार्पोरेट हाउ स समेत 400 निर्माण धीन संस्थाएं फिल्में बना रही हैं और इससे हर साल 40 लाख टिकटों की बिक्री होती है। उन्होंने कहा कि फिल्म उद्योग ने लग•ाग 60 लाख लोगों को रोजगार दिया है औ र इसका व्यापार 12 हजार करोड़ रुपए से बढ़ गया है।

Thursday, November 24, 2011

टॉप माओवादी नेता किशनजी के मारे जाने की खबर

टॉप माओवादी नेता किशनजी के मारे जाने की खबर
पश्चिम बंगाल के जंगमहल में प्रमुख माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के एक एनकाउंटर में मारे जाने की खबर है।

जानकारी के मुताबिक उग्रवाद निरोधक बल के जवानों ने करीब तीस मिनट तक चली मुठभेड़ में उसे मार गिराया गया। उसके साथ 4 अन्य माओवादी नेताओं के भी मारे जाने की खबर है।

हालांकि गृह मंत्रालय ने अभी तक इस खबर की पुष्टि नहीं की है। इससे पहले बुधवार को किशनजी जंगलमहल में संयुक्त बलों को चकमा देकर अपनी एक महिला साथी के साथ पश्चिमी मेदिनीपुर जिले से झारखंड भाग गया था।

छापेमार विरोधी दस्ते के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कल बताया था कि ' इस बात की संभावना है कि किशनजी अपने कुछ साथियों के साथ झाड़ग्राम के नलबानी, लालबानी और खुशबानी के घने जंगल में छिपा हुआ है।'

Wednesday, November 23, 2011

मातृभाषा विकास में रोड़ा नहीं तरक्की की सीढ़ी


मातृभाषा विकास में रोड़ा नहीं बल्कि तरक्की की सीढ़ी बन सकती है। ताजा शोध से इस बात का पता चला है कि अपनी भाषामें पारंगत व्यक्ति दूसरी भाषाको ज्यादा अच्छी तरह और गहराई से सीख सकता है। एक दिवसीय पंजाबी सम्मेलन में वक्ताओं की बातों में यह विचार उ•ार कर सामने आया। पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की ओर से यह आयोजन किया गया था। दूसरी पूर्वी
भारतीय पंजाबी कांफ्रेंस नेशनल लाइब्रेरी के भाषा भवन आडीरोटियम में आयोजित की गई। इस मौके पर पूर्वी भारत के सात राज्यों से लगभग 200 प्रतिनिधि शामिल हए। राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह समरोह में मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा विश्वविद्यालस के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह, डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। मालूम हो कि पहला पूर्वी भरत सम्मेलन धनबाद में पिछले साल आयोजित किया गया था।
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि मातृ भाषा दूसरी
भाषा सीखने में रुकावट बन सकती है। बीते दिनों यूनेस्को की ओर से किए गए शोध से इस बात का पता चलता है कि अपनी
भाषा में समृद्ध व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है। इसलिए अपने बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह से अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो पहले उसे अपनी
भाषा के बारे में ज्ञान दें।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच, जजबात को मातृ•ााषा में जितनी अच्छी तरह से प्रकट कर सकता है, उसे वह दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता। कुछ लोग अपनी मातृ
भाषा से कट जाते हैं लेकिन ऐसा करके वह जैसे खो जाते हैं, गुम हो जाते हैं।
उन्होेंने कहा कि प्रसिद्धा पंजाबी फिल्म अ•ि भनेता बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे अपनी एक पुस्तक लेकर कवि गुरू रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए गए थे। टैगोर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी माृत•ााषा क्या है तो जवाब मिला कि पंजाबी, तब उन्होंने कहा कि अपनी •
भाषा में क्यों नहीं लिखते? जो व्यक्ति अपनी
भाषा में अच्छी तरह से मन के विचार प्रकट कर सकता है किसी दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता है। स्वंय टैगोर ने •ाी सारा काम अपनी मातृ•
भाषा में ही किया है। इसके बाद साहनी ने पंजाबी में लिखना शुरू किया। उनके
भाई
भीष्म साहनी ने
भी पंजाबी के बारे में लिखा है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी का विरसा (संस्कृति) बहुत अमीर है लेकिन हम गरीब हो जाते हैं। अपने इतिहास, परंपरा से कटते जा रहे हैं। हमारा गुरू गुरू नानक हर मामले में अमीर है, पर हम उनके बताए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। पंजाबियों का सबसे बड़ा गुण उनका चरित्र है। खुश मिजाज और दिल खोल कर व्यवहार करने वाला पंजाबी होता है, तंग दिल पंजाबी नहीं हो सकता । किसी मेहमान से जो यह पूछे कि चाय पिएंगे या नहीं , वह पंजाबी नहीं हो सकता। पंजाबी तो वह है जो चाय, बिस्कुट और दो चार मिठाईयां परोस कर पूछे कि बताएं और क्या खाना है?
महानगर कोलकाता में पंजाबियों के बारे में लोगों के विचार के बारे में उन्होंने कहा कि वायसराय की बेटी कोलकाता आई थी तो उसे कहा गया था कि जब
भी किसी टैक्सी में सवार होना पगड़ी वाले पंजाबी की टैक्सी में सवार होना। इस तरह लोगों की नजर में पंजाबियों की पहचान रक्षक के तौर पर है, यह कायम रहनी चाहिए। यूपी में सुना कि वहां पंजाबी की गवाही को दो लोगों की गवाही के बराबर माना जाता था क्योंकि लोग मानते थे कि सरदार
भूठ नहीं बोल सकता।
विश्वविद्यालय के डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने की नोट (कुंजीगत)
भाषण में कहा कि व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास जरुरी है लेकिन यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। स•
भयता-संस्कृति के साथ राजनीतिक जगह की
भी जरूरत है।
भाषा के विकास के लिए शिक्षा में सहायक होना चाहिए, वह रोजगार के साधन मुहैया करवा सके और सरकारी
भाषा बने जिससे उसके फलने-फूलने में मदद मिले।
उन्होंने कहा कि
भाषा रीढ़ की हड््डी की तरह है। शब्दों के बगैर सारा कुछ बेरंग है। लेकिन आने वाली पीढ़ी
भाषा से जुड़े इसके लिए जरुरी है कि लिपि का विकास निरंतर जारी रहे। लोग
भाषा लिखना नहीं जानते तो दूसरी पीढ़ी उसे सीख नहीं सकेगी। वह सिमटती जाएगी और एकदिन समाप्त हो जाएगी। किसी जमाने में फ्रांसीसी
भाषा पहले स्थान पर थी लेकिन अब अंग्रेजी आगे आ गई है।
उन्होेंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुलीन वर्ग
भाषा और धर्म के मामले में हीनता बोध से ग्रस्त है। वे लोग धन के मामले में तो आगे हैं लेकिन
भाषा के प्रति जागरुक नहीं है। इसलिए दूसरी
भाषा के प्रति मोह दिखाते हैं। बच्चों को मम्मी, डैडी तो बोलना सिखाते हैं लेकिन अपनी
भाषा के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं। अ•ाी कनाडा में प्रवासियों के बारे में
भाषा के बारे में गणना हुई तो उसमेंं 100 में 34 फीसद बच्चों ने पंजाबी को अपनी मातृ
भाषा बताया , उनका जन्म वहीं हुआ जबकि जर्मन के छह और पूर्तगाल के तीन फीसद बच्चों ने अपनी मातृ भाषा को बताया।
राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पद संभालते ही उन्होंने पंजाबी को भाषायी मान्यता प्रदान की। रेल मंत्री के तौर पर सिखों के धार्मिक स्थल हुजूर साहिब (महाराष्ट्र), आनंदपुर साहिब (पंजाब), स्वर्णमंदिर(अमृतसर) समेत स•ाी स्थानों के लिए रेलगाड़ियां चलाई हैं । अब वे राज्य में पंजाबियों के लिए कोई स्मारक स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने गुरू नानक जयंती पर मु­ासे कहा था कि नानक की मूर्ति स्थापित करनी है तो बताएं लेकिन मैने बताया कि सिख धर्म में मूर्ति पूजा की मनाही है। इस मौके पर वि•िभान्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम
भी पेश किए गए।
भाषा विकास में रोड़ा नहीं बल्कि तरक्की की सीढ़ी बन सकती है। ताजा शोध से इस बात का पता चला है कि अपनी
भाषा में पारंगत व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह और गहराई से सीख सकता है। एक दिवसीय पंजाबी सम्मेलन में वक्ताओं की बातों में यह विचार उभर कर सामने आया। पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की ओर से यह आयोजन किया गया था। दूसरी पूर्वी
भारतीय पंजाबी कांफ्रेंस नेशनल लाइब्रेरी के
भाषा
भवन आडीरोटियम में आयोजित की गई। इस मौके पर पूर्वी
भारत के सात राज्यों से लग
भग 200 प्रतिनिधि शामिल हए। राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह समरोह में मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा विश्वविद्यालस के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह, डाक्टर जसविंदर सिंह ने
भी अपने विचार व्यक्त किए। मालूम हो कि पहला पूर्वी
भारत सम्मेलन धनबाद में पिछले साल आयोजित किया गया था।
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि मातृ
भाषा दूसरी
भाषा सीखने में रुकावट बन सकती है। बीते दिनों यूनेस्को की ओर से किए गए शोध से इस बात का पता चलता है कि अपनी
भाषा में समृद्ध व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है। इसलिए अपने बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह से अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो पहले उसे अपनी
भाषा के बारे में ज्ञान दें।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच, जजबात को मातृ
भाषा में जितनी अच्छी तरह से प्रकट कर सकता है, उसे वह दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता। कुछ लोग अपनी मातृ
भाषा से कट जाते हैं लेकिन ऐसा करके वह जैसे खो जाते हैं, गुम हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रसिद्धा पंजाबी फिल्म अ•िभनेता बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे अपनी एक पुस्तक लेकर कवि गुरू रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए गए थे। टैगोर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी मात
भाषा क्या है तो जवाब मिला कि पंजाबी, तब उन्होंने कहा कि अपनी
भाषा में क्यों नहीं लिखते? जो व्यक्ति अपनी
भाषा में अच्छी तरह से मन के विचार प्रकट कर सकता है किसी दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता है। स्वंय टैगोर ने
भी सारा काम अपनी मातृ•ााषा में ही किया है। इसके बाद साहनी ने पंजाबी में लिखना शुरू किया। उनके
भाई
भीष्म साहनी ने
भी पंजाबी के बारे में लिखा है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी का विरसा (संस्कृति) बहुत अमीर है लेकिन हम गरीब हो जाते हैं। अपने इतिहास, परंपरा से कटते जा रहे हैं। हमारा गुरू गुरू नानक हर मामले में अमीर है, पर हम उनके बताए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। पंजाबियों का सबसे बड़ा गुण उनका चरित्र है। खुश मिजाज और दिल खोल कर व्यवहार करने वाला पंजाबी होता है, तंग दिल पंजाबी नहीं हो सकता । किसी मेहमान से जो यह पूछे कि चाय पिएंगे या नहीं , वह पंजाबी नहीं हो सकता। पंजाबी तो वह है जो चाय, बिस्कुट और दो चार मिठाईयां परोस कर पूछे कि बताएं और क्या खाना है?
महानगर कोलकाता में पंजाबियों के बारे में लोगों के विचार के बारे में उन्होंने कहा कि वायसराय की बेटी कोलकाता आई थी तो उसे कहा गया था कि जब
भी किसी टैक्सी में सवार होना पगड़ी वाले पंजाबी की टैक्सी में सवार होना। इस तरह लोगों की नजर में पंजाबियों की पहचान रक्षक के तौर पर है, यह कायम रहनी चाहिए। यूपी में सुना कि वहां पंजाबी की गवाही को दो लोगों की गवाही के बराबर माना जाता था क्योंकि लोग मानते थे कि सरदार ­
भूठ नहीं बोल सकता।
विश्वविद्यालय के डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने की नोट (कुंजीगत)
भाषण में कहा कि व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास जरुरी है लेकिन यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। स
भयता-संस्कृति के साथ राजनीतिक जगह की
भी जरूरत है।
भाषा के विकास के लिए शिक्षा में सहायक होना चाहिए, वह रोजगार के साधन मुहैया करवा सके और सरकारी
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भाषा रीढ़ की हड््डी की तरह है। शब्दों के बगैर सारा कुछ बेरंग है। लेकिन आने वाली पीढ़ी
भाषा से जुड़े इसके लिए जरुरी है कि लिपि का विकास निरंतर जारी रहे। लोग
भाषा लिखना नहीं जानते तो दूसरी पीढ़ी उसे सीख नहीं सकेगी। वह सिमटती जाएगी और एकदिन समाप्त हो जाएगी। किसी जमाने में फ्रांसीसी
भाषा पहले स्थान पर थी लेकिन अब अंग्रेजी आगे आ गई है।
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुलीन वर्ग
भाषा और धर्म के मामले में हीनता बोध से ग्रस्त है। वे लोग धन के मामले में तो आगे हैं लेकिन
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भाषा के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं। अ
भी कनाडा में प्रवासियों के बारे में
भाषा के बारे में गणना हुई तो उसमें 100 में 34 फीसद बच्चों ने पंजाबी को अपनी मातृ
भाषा बताया , उनका जन्म वहीं हुआ जबकि जर्मन के छह और पूर्तगाल के तीन फीसद बच्चों ने अपनी मातृ
भाषा को बताया।
राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पद सं
भालते ही उन्होंने पंजाबी को
भाषायी मान्यता प्रदान की। रेल मंत्री के तौर पर सिखों के धार्मिक स्थल हुजूर साहिब (महाराष्ट्र), आनंदपुर साहिब (पंजाब), स्वर्णमंदिर(अमृतसर) समेत स
भी स्थानों के लिए रेलगाड़ियां चलाई हैं । अब वे राज्य में पंजाबियों के लिए कोई स्मारक स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने गुरू नानक जयंती पर मु­ासे कहा था कि नानक की मूर्ति स्थापित करनी है तो बताएं लेकिन मैने बताया कि सिख धर्म में मूर्ति पूजा की मनाही है। इस मौके पर वि
भान्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम
भी पेश किए गए।

Tuesday, November 22, 2011

क्या है फासीवादी

फासीवाद या फ़ासिस्टवाद (फ़ासिज़्म) इटली में बेनितो मुसोलिनी द्वारा संगठित "फ़ासिओ डि कंबैटिमेंटो" का राजनीतिक आंदोलन था जो मार्च,1919 में प्रारंभ हुआ। इसकी प्रेरणा और नाम सिसिली के 19वीं शताब्दी के क्रांतिकारियों-"फासेज़"-से ग्रहण किए गए। मूल रूप में यह आंदोलन समाजवाद या साम्यवाद के विरुद्ध नहीं, अपितु उदारतावाद के विरुद्ध था।



मोटे तौर पर फासीवादी व्यवस्था में शासक द्वारा किया गया हर कार्य और आदेश जनता पर लागू होता है। इसमें लिखित संविधान जैसी कोई बात नहीं होती है। शासक के हर अच्छे और बुरे कार्यों को जनता पर थोप दिया जाता है।




डा.लॉरेंस ब्रिट नामक एक राजनीतिक विज्ञानी ने फासीवादी शासनों जैसे हिटलर (जर्मनी), मुसोलिनी (इटली ) फ्रेंको (स्पेन), सुहार्तो (इंडोनेशिया), और पिनोचेट (चिली) का अध्ययन किया और निम्नलिखित 14 लक्षणों की पहचान की है;



1. शक्तिशाली और सतत राष्ट्रवाद — फासिस्ट शासन देश भक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, नारों , प्रतीकों और अन्य सामग्री का निरंतर उपयोग करते हैं। हर जगह झंडे दिखाई देते हैं जैसे वस्त्रों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजानिक स्थानों पर झंडों की भरमार।


2. मानव अधिकारों के मान्यता प्रति तिरस्कार — क्योंकि दुश्मनों से डर है इसलिए फासिस्ट शासनों द्वारा लोगो को लुभाया जाता है कि यह सब सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वक्त की ज़रुरत है।शासकों के दृष्टिकोण से लोग घटनाक्रम को देखना शुरू कर देते हैं और यहाँ तक कि वे अत्याचार, हत्याओं, और आनन-फानन में सुनाई गयी कैदियों को लम्बी सजाओं का अनुमोदन करना भी शुरू कर देते हैं।


3. दुश्मन या गद्दार की पहचान एक एकीकृत कार्य बन जाता है — लोग कथित आम खतरे और दुश्मन – उदारवादी; कम्युनिस्टों, समाजवादियों, आतंकवादियों, आदि के खात्मे की ज़रुरत प्रति उन्मांद की हद तक एकीकृत किए जाते हैं।


4. मिलिट्री का वर्चस्व — बेशक व्यापक घरेलू समस्याएं होती हैं पर सरकार सेना का विषम फंडिंग पोषण करती है। घरेलू एजेंडे की उपेक्षा की जाती है ताकि मिलट्री और सैनिकों का हौंसला बुलंद और ग्लैमरपूर्ण बना रहे।



5. उग्र लिंग-विभेदीकरण — फासिस्ट राष्ट्रों की सरकारें लगभग पुरुष प्रभुत्व वाली होती हैं।फासीवादी शासनों के अधीन, पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को और अधिक कठोर बना दिया जाता है। गर्भपात का सख्त विरोध होता है और कानून और राष्ट्रीय नीति होमोफोबिया और गे विरोधी होती है।


6. नियंत्रित मास मीडिया – कभी कभी तो मीडिया सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, लेकिन अन्य मामलों में, परोक्ष सरकार विनियमन, या प्रवक्ताओं और अधिकारियों द्वारा पैदा की गयी सहानुभूति द्वारा मीडिया को नियंत्रित किया जाता है। सामान्य युद्धकालीन सेंसरशिप विशेष रूप से होती है।


7. राष्ट्रीय सुरक्षा का जुनून – एक प्रेरक उपकरण के रूप में सरकार द्वारा इस डर का जनता पर प्रयोग किया जाता है।


8.धर्म और सरकार का अपवित्र गठबंधन —फासिस्ट देशों में सरकारें एक उपकरण के रूप में सबसे आम धर्म को आम राय में हेरफेर करने के लिए प्रयोग करती हैं। सरकारी नेताओं द्वारा धार्मिक शब्दाडंबर और शब्दावली का प्रयोग सरेआम होता है बेशक धर्म के प्रमुख सिद्धांत सरकार और सरकारी कार्रवाईयों के विरुद्ध होते हैं।


9. कारपोरेट पावर संरक्षित होती है – फासीवादी राष्ट्र में औद्योगिक और व्यवसायिक शिष्टजन सरकारी नेताओं को शक्ति से नवाजते हैं जिससे अभिजात वर्ग और सरकार में एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्ते की स्थापना होती है।


10. श्रम शक्ति को दबाया जाता है – श्रम-संगठनों का पूर्ण रूप से उन्मूलन कर दिया जाता है या कठोरता से दबा दिया जाता है क्योंकि फासिस्ट सरकार के लिए एक संगठित श्रम-शक्ति ही वास्तविक खतरा होती है।


11. बुद्धिजीवियों और कला प्रति तिरस्कार – फासीवादी राष्ट्र उच्च शिक्षा और अकादमिया के प्रति दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं. अकादमिया और प्रोफेसरों को सेंसर करना और यहाँ तक कि गिरफ्तार करना असामान्य नहीं होता. कला में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति पर खुले आक्रमण किए जाते हैं और सरकार कला की फंडिंग करने से प्राय: इंकार कर देती है।


12. अपराध और सजा प्रति जुनून – फासिस्ट सरकारों के अधीन कानून लागू करने के लिए पुलिस को लगभग असीमित अधिकार दिए जाते हैं. पुलिस ज्यादितियों के प्रति लोग प्राय: निरपेक्ष होते हैं यहाँ तक कि वे सिविल आज़ादी तक को देशभक्ति के नाम पर कुर्बान कर देते हैं। फासिस्ट राष्ट्रों में अक्सर असीमित शक्ति वाले विशेष पुलिस बल होते हैं।


13. उग्र भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार — फासिस्ट राष्ट्रों का राज्य संचालन मित्रों के समूह द्वारा किया जाता है जो अक्सर एक दूसरे को सरकारी ओहदों पर नियुक्त करते हैं और एक दूसरे को जवाबदेही से बचाने के लिए सरकारी शक्ति और प्राधिकार का प्रयोग किया जाता है। सरकारी नेताओं द्वारा राष्ट्रीय संसाधनों और खजाने को लूटना असामान्य बात नहीं होती।


14.चुनाव महज धोखाधड़ी होते हैं — कभी-कभी होने वाले चुनाव महज दिखावा होते हैं। विरोधियों के विरुद्ध लाँछनात्मक अभियान चलाए जाते है और कई बार हत्या तक कर दी जाती है,विधानपालिका के अधिकारक्षेत्र का प्रयोग वोटिंग संख्या या राजनीतिक जिला सीमाओं को नियंत्रण करने के लिए और मीडिया का दुरूपयोग करने के लिए किया जाता है