Wednesday, December 28, 2011

राज्य में बढ़ रही हैं आत्महत्या करने वालों की तादाद

कोलकाता, 28 दिसंबर (रंजीत लुधियानवी)- राज्य में आत्महत्या करने वालों की तादात में लगातार इजाफा हो रहा है। बीते एक साल में इसमें और भी वृद्धि हुई है। यादवपुर, कसबा, नाकतला, हरिदेवपुर, टिकियापाड़ा के बाद कांकुड़गाछी में मानसिक तनाव से ग्रस्त होकर लोग अपने परिवार वालों की हत्या करने के बाद मौत को गले लगा रहे हैं। पारिवारिक मुश्किलों को ­ोलने में नाकाम रहने वाले और बीमारी के सामने हार मानने वाले ही ज्यादातर लोग आत्महत्या कर रहे हैं। मरने का सबसे आसान रास्ता जहर पीना और दूसरा गले में फंदा लगाना है। तामिलनाडू के बाद आत्महत्या करनेके मामले में राज्य दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। इससे पुलिस, प्रशासन ही नहीं मनोचिकित्सक भी चिंतित हैं।
मालूम हो कि सोमवार को कांकुड़गाछी में पत्नी और दो बच्चों की हत्या करनेके बाद पति ने आत्महत्या कर ली थी। मंगलवार दसवीं कक्षा की एक छात्रा ने आत्महत्या की। महीने भर पहले राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने देश भर में 2010 में हुए अपराध के आंकड़े जारी किए थे। इससे कई तरह से खुलासे हुए हैं। एक तो यह कि हालात के सामने लोग पारिवारिक मुश्किलों और बीमारी केकारण घुटने टेकते हैं। 23.7 फीसद लोग पारिवारिक समस्याओं और 21.1 फीसदलोग बीमारी के कारण मौत को गलेलगाने पर बीते साल मजबूर हुए थे। इतना ही नहीं मरने वालों में मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लोग ही ज्यादा हैं जबकि गरीब और अमीर तो हालात का हर हालतमें मुकाबला कर लेते हौं। इससे यह भी पता चलता है कि आत्महत्या के मामले में बीते कुछ सालों में पश्चिम बंगाल ने राष्ट्रीय औसत में दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि दूसरे राज्यों में भी आत्महत्या का रु­ाान बढ़ा है और देश में होने वाली आत्महत्या की घटनाओं में आधी पांच राज्यों में हो रही हैं। राज्यों की इस सूची में महाराष्ट्र, तामिलनाडू, कर्नाटक और आंध्रप्रदेशके साथ पश्चिम बंगाल भी शामिल है।
क्राइम ब्यूरों के आंकड़ों के मुताबिक देश में आत्महत्या करने वाले राज्यों में तामिलनाडू के बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है। बीते साल देश में कुल मिलाकर एक लाख 34 हजार 599 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह आबादी का 11.4 फीसद है। इन आंकड़ों में यह भी खुलासा किया गया है कि 2006 से 2010 तक ऐसे मरने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। तामिलनाडू में 12.3 फीसद और राज्य में 11.9 फीसद लोगों ने आत्महत्या की। पांच राज्यों में ही 57.2 फीसद लोगों ने आत्महत्या की।
केंद्रीय सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि पारिवारिक कारणों से मानसिक तनाव ग्रस्त होकर लोगआत्महत्या कर रहे हैं। 2010 में 23.7 फीसद लोग पारिवारिक मुश्किलों को नहीं ­ोल पानेके कारण मौत के आगोश में चले गए थे। जबकि आर्थिक हालत और दूसरे कारणों से बीमारी का इलाज नहीं करवाने केकारण मौत को गले लगाने वाले भी कम नहीं थे। 21.1 फीसद लोग बीमारी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हुए थे। इनमें 33.1 फीसद ने जहरखाकर और 31.4 फीसद ने गले में फंदा डाल कर आत्महत्या की।
मनोचिकित्सक व आरजीकर मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डाक्टर गौतम बनर्जी का कहना है कि मानसिक बीमारी के कई कारण होते हैं। आमतौर पर देखाजाता है कि सबसे पहले परिवारके किसी सदस्य के बारे में शक उतपन्न होता है। जैसे पति-पत्नी के किसी दूसरे के साथ नाजायज संबंध हैं, बच्चे उनका कहना नहीं मान रहे हैं। कई बार आर्थिक संकट से परेशान होकर व्यक्ति सोचता है कि सारी मुश्किलों से छूटने का यह आसान रास्ता है। ज्यादातर लोग बीमारी का पता चलनेसे पहले ही जान दे देते हैं लेकिन उनका मानना है कि मनोचिकित्सक के पास जाने पर शत प्रतिशत लोगों की जान बच सकती है। आत्महत्या किसी भी मसले का हल नहीं बल्कि परिवार को ज्यादा मुश्किलों में डालने वाला अपराध है।

Sunday, December 25, 2011

ममता की ताजपोशी से यादगार बना साल 2011

पश्चिम बंगाल के लिए साल 2011 में ऐसी कई बातें हुई जिसके लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा विशेष तौर पर उल्लेख किया जाएगा। इसमें सबसे बड़ी घटना रही तृणमूल कांग्रेस की नेता अग्नि कन्या ममता बनर्जी की ओर से लगातार सात बार विधानसभा चुनाव जीत कर राज्य को अपनी जागीर सम­ाने वाली वाममोर्चा को सत्ता से बदखल करना। कम्युनिस्टों ने मतगणना के पहले भी एलान कियाथा कि आठवीं बार भी उनकी ही सरकार बनेगी लेकिन जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो सभी भौचक्क रह गए। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य से लेकर कई बड़े माकपा नेताओं को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा।
साल की एक और बड़ी घटना माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी का मारा जाना रहा है। सालों तक राज्य में संगठन की बागडोर संभालने वाले कुख्यात नेता की मौतके बाद माओवादियों की रीढ़ की हड्डी जैसे टूट गई है। यह ममता सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के तौर पर ममताबनर्जी की सक्रियता में विरोधी अग्निकन्या जैसी ही तीव्रता देखी जा रही है। सालों पुरानी दार्जिलिंग में गोरखालैंड की समस्या सुल­झाने के लिए किया गया जीटीए सम­झौता हो या सिंगुर में किसानों की 400 एकड़ जमीन वापस करने की दिशा में पहल उन्होंने प्रयास किया है।
साल की सबसे दुखद घटना के तौर पर कोलकाता के महंगे अस्पताल एएमआरआइ (आमरी) में आग लगने की घटना को याद किया जा सकता है। जब अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती 90 सेज्यादा मरीज अपनी जान गवां बैठे। लेकिन हैरत की बात यह है कि मरने वाले आग से जल कर नहीं मरे, बल्कि धुंए से दम घुटने के कारण मौत का शिकार हुए। इससे लाखों रुपए लेकर लोगों की जान से खिलवाड़ करने वालों की कलई लोगों के सामने खुल गई है। राज्य सरकार से सांठगांठ करके सस्ती जमीन हथिया कर लगभग डेढ़ करोड़ रुपए के बजाए 10 लाख रुपए से भी कम किराया देकर कारोबार करने वाले साल भर में दो करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च रहे थे। ऐसी बातों से लोगों की नाराजगी व्यवस्था के प्रति बढ़ी ही है।
इसके बाद देशी शराब, जिससे बंगाल में चुल्लू कहा जाता है पीकर 170 से ज्यादा लोगों की मौत ने राजनेताओं , पुलिस से सांठगांठ करके हाकर से करोड़पति बनने वाले लोगों की कलई खोल कर सामने रख दी है।
मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी की सात महीने की कारगुजारी का आंकलन करना सम­झदारी नहीं होगा। लेकिन जिस तरह सभी विभागों की देख-रेख से लेकर जिलों के सफर के दौरान कामकाजकी समीक्षा काकाम शुरू हुआ है, उससे लोगों को आस बंध रही है कि प्रयास जरूर हो रहे हैं।
आमरी में आग लगने की घटना के बाद दिन भर लोगों के बीच रहकर नाराज परिवार केलोगों को शांत करती, अस्पताल में मुर्दाघरके बाहर लोगों को पोस्टमार्टम के दौरान सांत्वना दे रही ममता अब भी पहले की तरह सुती साड़ी, सफेद चप्पल पहने कर लोगों के बीच पहुंच जाती हैं। तिलजला में हवाई चप्पल के कारखाने में आग लगने की खबर मिलने पर रात डेढ़ बजे घटनास्थल पर पहुंच गई थी।
यह साल राज्य के लोग मुख्यमंत्री की मां गायत्री बनर्जी (81) के निधन की घटना भी नहीं भूल सकते। शायद ममता बनर्जी देश की पहली मुख्यमंत्री होंगी जिनकी मां का इलाज एक सरकारी अस्पताल एसएसकेएम में चल रहा था। उन्होंने सरकारी अस्पताल की चिकित्सा-व्यवस्था पर भरोसा जताया और उसी अस्पताल में उनका निधन हुआ। मां की मौत के बाद सदमें से उबरने में उन्हें दो दिन लगे, तब तक वे अपने कमरे में ही बंद रही। राज्य की जर्जर आर्थिक हालत को देखते हुए मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने कोष में एक करोड़ रुपए जमा करवाए, जो पेंटिंग की बिक्री से हासिल किए थे।

Thursday, December 22, 2011

अमीरों का केक अब हर दिल अजीज

हावड़ा जिले के शिवपुर थाना इलाके के तहत बंगाल जूट मिल हिंदी हाई स्कूल में पढ़ने वाले धनंजय मिश्रा को केक खाने के चाहत के बावजूद मायूस रहना पड़ा था। भले ही उसके पिता प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक थे लेकिन पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले बेटे की ख्वाहिश पूरी करना उनके बस में नहीं था। ऐसा नहीं है कि उनके पास रुपए नहीं थे । बालक ने स्कूल में एक धनाढ्य के बेटे को केक खाते देख कर केक खाने की जिद की थी जिसे पिता ने पूरा करना चाहा था। लेकिन जेब में रुपए रहने के बावजूद बाजार में नहीं मिलता था केक। यह फिल्म शोले के प्रदर्शन के दौरान की बातें हैं।
जी हां, यह कोई कथा-कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है कि कभी केक सिर्फ अमीरों के शौक की वस्तु हुआ करता था। सामान्य लोग तो बस ललचाते हुए दूसरों को केक खाते देखा करते थे। इसका कारण यह था कि जिले में केक बनाए नहीं जाते थे, कुछ खास इलाके की गिनी-चुनी दुकानें में ही केक रखा जाता था, वह भी कोलकाता से यहां लाया जाता था। हालांकि तब तक हावड़ा जिले में न्यू हावड़ा बेकरी (बापुजी) ने केक बनाने शुरू कर दिए थे। यह 1973 का साल था, तब बहुत सीमित मात्रा में केक बनाए जाते थे। एक कीक की कीमत 20 पैसे हुआ करती थी, हालांकि तब बस का न्यूनतम भाड़ा इससे कम था और 18 पैसे का टिकट कटा कर लोग 18-20 किलोमीटर का सफर आसानी से करते थे। केक महंगा था और लोगों की जेब में उतने पैसे नहीं थे।
अब ऐसा नहीं है, एक तो बेकरी की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है दूसरे सभी केक बनाने में जुटे हुए हैं। गरीब और सामान्य लोगों के लिए नाश्ते के लिए सबसे अच्छा और सस्ता केक ही रह गया है। तीन रुपए का केक और डेढ़-दो रुपए की चाय के साथ पांच रुपए में नाश्ता हो जाता है। जिले के बने हुए केक स्कूलों में दोपहर के भोजन में भी छात्र-छात्राओं को दिए जाते हैं। इसके साथ ही 37 साल पहले शुरू हुई बापुजी कंपनी अब भी केक बनाने के काम में जुटी हुई है और 20 पैसे से शुरू हुआ केक महंगा होकर चार रुपए तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद बड़ी कंपनियों के मुकाबले में टिका हुआ है। सालों पहले की पैकेजिंग में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। पुराने दिनों की याद करते हुए गोविंद मिश्रा कहते हैं कि उन दिनों जिले के मुस्लिम बहुल इलाके में ही बेकरी हुआ करती थी। लेकिन सिर्फ पावरोटी और बिस्कुट बनाए जाते थे। बेकरियां भी बेलिलियस रोड, पीलखाना, लीचू बगान, आंदुल, ट्रामडिपो इलाके में हुआ करती थी। लेकिन उनका अपना-अपना इलाका था। बापुजी ने केक बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं, केक हर घर की चाहत ही नहीं लोगों के पसंद की चीज बन गया है। कोई किसी भी समुदाय का हो, स्कूल-कालेज की छुट्टयां होते ही सर्द मौसम में केक के साथ चाय या कॉफी का आनंद उठाने से नहीं चूकते। क्रिसमस के मौके पर महानगर कोलकाता समेत सभी जिलों में दुकानों अलग तरह से सजी हुई हैं।
मौड़ीग्राम स्टेशन के नजदीक एक दुकानदार रानू ने बताया कि क्रिसमस के मौके पर लोग केक के अलावा कुछ नहीं मांगते। इसलिए दस दिन पहले से ही केक की बिक्री शुरू हो गई थी, जैसे-जैसे 25 दिसंबर करीब आती जा रही है वैसे -वैसे बिक्री बढ़ती जा रही है। इसी तरह के विचार चूनाभाटी इलाके के दूसरे दुकानदार के हैं। दक्षिण हावड़ा हो या मध्य और उत्तर हावड़ा, ज्यादातर इलाकों में सांताक्लाज पांच रुपए से लेकर 50 रुपए तक बिक रहे हैं। चमकदार सितारे भी आठ रुपए से बीस रुपए तक बिक रहे हैं। जबकि बड़े तारे 50-60 रुपए कीमत के हैं। सबसे बड़ा सांताक्लाज 450 रुपए का है। बड़े दिन के मौके पर बिकने वाले केक में भी ज्यादा ग्राहक 40 रुपए से लेकर 70 रुपए तक की कीमत के हैं। हालांकि 170-250 रुपए तक के केक भी बिक रहे हैं लेकिन उनकी तादाद बहुत कम है। बड़े दिन की पूर्व संध्या पर केक दुकानों के घेरे से निकल कर बाहर सज गए हैं लेकिन कई लोगों को अब भी बचपन की याद सता रही है, जब केक एक सपना हुआ करता था।

Tuesday, December 20, 2011

नागरिक अधिकार पत्र

सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया जिसके कानून का रूप लेने के बाद हर प्राधिकरण और विभाग के लिए सिटीजन चार्टर (नागरिक अधिकार पत्र) का प्रकाशन और शिकायतों का 30 दिन के भीतर निपटारा अनिवार्य होगा। इसमें नाकाम रहने पर संबंधित अधिकारी को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। नागरिक माल और सेवाओं का समयबद्ध परिदान और शिकायत निवारण अधिकार विधेयक 2011 कार्मिक राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सदन में पेश किया। प्रत्येक विभाग के एक सिटीजन चार्टर का प्रकाशन अण्णा हजारे की एक प्रमुख मांग है। हालांकि वे इसे लोकपाल विधेयक के ही हिस्से के रूप में चाहते थे।
सरकार ने विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अलग से विधेयक पेश किया है और यह विधेयक इसका हिस्सा है। चार्टर में सरकारी अधिकारियों के लिए यह भी अनिवार्य किया गया है कि वे जनता से शिकायत मिलने के दो दिन के भीतर उसका संज्ञान लेंगे। विधेयक में प्रशासन में निचले स्तर के रिश्वत संबंधी मामलों को निपटाने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान किया गया है। यह कदम टीम अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की पृष्ठभूमि में उठाया गया है। यह विधेयक सभी योजनाओं और केंद्र सरकार के सभी विभागों को कवर करेगा और राज्यों को अपने यहां भी इसी प्रकार की प्रणाली को स्थापित करने के लिए एक मंच देगा। विधेयक में सभी मंत्रालयों के लिए 30 दिनों में लोगों की शिकायतों पर कार्रवाई करना जरूरी किया गया है। ऐसा करने में नाकाम रहने पर उच्च प्राधिकार के समक्ष शिकायत की जा सकती है। इस प्राधिकार को 30 दिनों के भीतर अपील पर सुनवाई करके इसका निपटारा करना होगा।
अगर समयसीमा के भीतर शिकायतों का निपटारा नहीं किया जाता है तब शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी पर जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित कानून के तहत हर सार्वजनिक प्राधिकार को केंद्र स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतकार्ता को इस बारे में की गई कारर्वाई की लिखित में जानकारी दिया जाए। अगर अधिकारी दोषी पाया जाता है तब उसे नागरिक को मुआवजा देना होगा। अगर शिकायतकर्ता फैसले से असंतुष्ट हो तब वह केंद्र और राज्य स्तर पर स्थापित लोक शिकायत निपटारा आयोग के समक्ष जा सकता है।

Sunday, December 18, 2011

हुगली नदी में कूद कर जान देने की प्रवृति बढ़ रही है

राज्य में आत्महत्या करने वालों की तादाद में लगातार बढ़ो त्तरी हो रही है। मानसिक तौर पर परेशान होकर लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं। हावड़ा पुल से हुगली नदी में कूद कर जान देने की प्रवृति बढ़ रही है। आत्महत्या करने वालों ने मेट्रो रेलवे के सामने कूद कर जान देने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसी तरह हावड़ा पुल आत्महत्या करने वालों का पसंद स्थल बनता जा रहा है। बीते तीन साल में कम से कम दस लोगों ने नदी में कूद कर आत्महत्या की है। इसमें ज्यादातर लोगों ने हावड़ा पुल से कूद कर जान दी है।
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक एक दिसंबर को हावड़ा मैदान की रहने वाली पूजा सिंह (22) ने हावड़ा पुल के चार नंबर खंबे के नजदीक से हुगली नदी में छलांग लगाई थी। रिवर ट्रैफिक पुलिस ने देर रात पुल से एक किलोमीटर दूर युवती की लाश बरामद की थी। मामले की जांच के बाद पुलिस को पता चला कि पति के साथ कलह के बाद उसने जाने देने का फैसला किया था।
हुगली नदी में कूद कर जान देने वालों में प्रसिद्ध गीतकार पुलक बंदोपाध्याय शामिल हैं। कर्ज दबे होनेके कारण अगस्त महीने में एक व्यापारी ने आत्महत्या का प्रयास किया था। 18 अगस्त को हावड़ा पुल पर अपनी कार खड़ी करने के बाद व्यापारी ने नदी में छलांग लगा दी थी। हालांकि बाद में पुलिस ने उन्हें जीवित पानी से निकाल लिया था। इससे तीन महीने पहले घुसुड़ी में एक महिला ने अपनी बच्ची को नदी में फेंक दिया था। मालूम हो कि मनोवैज्ञानिक आत्महत्या के कई कारण मानते हैं। इनमें मानसिक तौर पर परेशान, अकेलेपन से दुखी, प्रेम में असफल रहने वाले, शादी नहीं होने के कारण, नौकरी नहीं मिलने के गम में तो लोग आत्महत्या करते ही हैं लेकिनकुछ लोग महज इसलिए अपनी जान दे देते हैं कि उनकी ख्वाहिशें अधूरी रह गई थी।
हावड़ा पुल पर पर्याप्त संख्या में सुरक्षा कर्मचारियों का नहीं रहना, रेलिंग का नीचे रहना आत्महत्या करने वालों के लिए जान देने का आसान रास्ता बनता जा रहा है। हालांकि मानसिक तौर पर परेशान लोग ही ऐसा करते हैं, जिनका मनोबल टूट चुका होता है। दो साल पहले बाबूघाट से हावड़ा आते हुए लांच से कूद कर एक दैनिक पत्रिका के संपादक चंदन चक्रवर्ती ने आत्महत्या की थी। उनकी मौत काकारण तो पता नहीं चल सका लेकिन माना जाता है कि अकेलेपन के कारण मानसिक परेशानी में उनका मनोबल रसातल में चला गया था, जिससे उन्होंने आत्महत्या कर ली। उन्होंने शादी नहीं की थी। माना जा रहा है कि इससे ही वे परेशान रहने लगे थे। हालांकि मनोचिकित्सक मानते हैं कि अविवाहित रहना ही उनकी मौत का कारण था जबकि धार्मिक लोगों का मानना है कि गंगा मां ने उन्हें अपनी शरण में ले लिया।
पुलिस वालों का मानना है कि असावधानी में हर साल कई लोग पानी में डूब जाते हैं। तैरना नहीं जानने के कारण ज्यादातर लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं। इसी साल 28 अक्तूबर को हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट में प्रतिमा विसर्जन के दौरान ज्वार में एक युवक डूब गया था। बाली, घुसुड़ी, शिवपुर, नाजिरगंज में नदी की गहराई ज्यादा होने के कारण इस तरह से लोगों के डूबने की घटनाएं होती रहती हैं। पुलिस सूत्रों का कहना है कि विद्यासागर सेतु (दूसरे हुगली पुल) पर फुटपाथ पर लोगों के चलने पर पाबंदी लगाई हुई है, इसलिए ज्यादातर हावड़ा पुल और बाली पुल को आत्महत्या का जरिया बना लिया जाता है। पिछले साल अहिरीटोला से बांधाघाट जाते समय एक व्यक्ति ने आधे रास्ते जाकरलांच से छलांग लगा दी थी। लांच के कर्मचारियों ने साथ-साथ कूद कर उसे बचा लिया था। हालांकि लांच कर्मचारियों का कहना है कि हुगली नदी का बहाव इतना ज्यादा होता है कि किसी के कूदने पर उसे बचा पाना ज्यादातर मामलों में सं•ाव नहीं होता।
हावड़ा पुल से लोगों के कूदने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नित्ययात्रियों का कहना है कि पुल की रेलिंग लांघ कर नीचे कूदना बहुत ही आसान है। हावड़ा के बंकिम सेतु की तरह रेलिंग के दोनों ओर ऊंची तार का जाल बिछा दिया जाए तो लोगों लोगों को जान देने से रोका जा सकता है। इसके साथ ही पुल पर पुलिस की चौकसी बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
मालूम हो कि हावड़ा पुुल के दोनों ओर कई तरह की दुकाने लगती हैं। जहां सब्जी-तरकारी से लेकर बहुत कुछ बेचा-खरीदा जाता है। पुलिस का कहना है कि हजारों लोगों में कोई अचानक रेलिंग लांघ कर पानी में कूद जाए तो उस पर नजर रखना सं•ाव नहीं है। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी व्यक्ति के पानी में कूदने पर वहतुरंत लोगों की नजरों में चढ़ जाता है। कुछ ही पल में इस बारे में पुलिस को सूचित किया जाता है। लेकिन पुलिस वाले अपनी कार्रवाई करने में इतनी देरी कर देते हैं कि तब तक व्यक्ति की मौत हो जाती है। रिवर पुलिस के मुताबिक सूरज डूबने के मौके पर ही इस तरह कीघटनाएं होती हैं। अंधेरे के कारण खोज-बीन में समस्या होती है।
मनोवैज्ञानिक कनिका मित्र का कहना है कि हावड़ा पुल तक लोग आसानी से पहुंच जाते हैं, इसलिए वहां से कूद कर आत्महत्या का प्रयास करते हैं। देवाशीष राय का कहना है कि सानफ्रांसिस्को का गोल्डेन गेट ब्रीज आत्महत्याओं के लिए बदनाम है। दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं वहां होती हैं।

Thursday, December 15, 2011

आठ महीनों में 77 करोड़ से ज्यादा लोगों ने रेलवे में सफर किया

पूर्व रेलवे में बीते आठ महीने में 77 करोड़ से ज्यादा लोगों ने रेलवे में सफर किया है। बीते साल के मुकाबले इस साल लगभग चार करोड़ ज्यादा लोगों ने रेलवे में सफर किया। रेलवे की ओर से गुरुवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि अप्रैल से नवंबर 2011 के बीच कुल मिलाकर 77.69 करोड़ लोगों ने रेलवे में सफर किया है। जबकि बीते साल के इन महीनों में 73.75 करोड़ लोगों ने यातायात किया था। इसमें उपनगरीय रेलगाड़ियों के यात्रियों की संख्या 65.60 करोड़ और लंबी दूरी के यात्रियों की संख्या 12.09 करोड़ थी।
पूर्व रेलवे सूत्रों ने बताया कि इससे रेलवे की आमदनी में भी वृद्धि हुई है। इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान 1030.18 करोड़ रुपए की आय हुई। बीते साल के आठ महीनों के मुकाबले यह आठ फीसद से ज्यादा है।
रेलवे में माल ढुलाई में भी बीते साल के पहले आठ महीनों के मुकाबले वृद्धि हुई है। 35.671 मिलियन टन माल की ढुलाई की गई। पिछले सालों की तरह इस साल भी सबसे ज्यादा कोयले की ढुलाई की गई। इस दौरान 23.145 मिलियन टन कोयले की ढुलाईकी गई।
पहले आठ महीनों में यात्रियों और माल की ढुलाई से पूर्व रेलवेको 3478.90 करोड़ रुपए की आय हुई है, बीते साल इस दौरान 3160.67 करोड़ रुपए की आय हुई थी।

Sunday, December 11, 2011

जब एक डाक्टर ने किया 83 लोगों का पोस्टमार्टम


एक डाक्टर ने भूख-प्यास तजकर लगातार 13 घंटे 20 मिनट की अनथक मेहनत करके 83 लोगों को पोस्टमार्टम किया। यह घटना नौ दिसंबर की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एसएसकेएम के शवगृह के बाहर आमरी अग्निकांड में दम घुटने से मरे लोगों के परिवार वालों से माइक हाथ में थामे नाराज लोगों को शांत करने के साथ ही कह रही थी कि चिंता मत करें , आपके रिश्तेदारों का शव जल्द ही आपको सौंपा जा रहा है।
दूसरी ओर डाक्टर विश्वनाथ काहली भीतर पोस्टमार्टम करने में व्यस्त थे। उस दिन को याद करते हुए वे बताते हैं कि सुबह सवा छह बजे सुबह की सैर (मार्निंग वाक) के दौरान अचानक फोन मिला कि इमरजंसी है। तकरीबन छह बजे एसएसकेएम अस्पताल पहुंचने पर देखा कि चार टेबल पर चार लाशें पड़ी हैं। अपने चार सहायकों के साथ पोस्टमार्टम करने में जुट गए। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ और एक के बाद दूसरी लाश वहां पहुंचने लगी और वे बगैर कुछ खाए -पिए अपने काम में जी-जान से जुटे रहे। सुबह नौ बजकर 40 मिनट से शुरू हुआ काम आखिर रात ग्यारह बजे थमा तो उन्होंने राहत की सांस ली कि आखिर अपने काम में सफल रहे ।
दुखद शुक्रवार को याद करते हुए वे कहते हैं कि लाशों के तौर पर मेज पर पड़े सभी लोगों को देख कर ऐसे लग रहा था कि वे लोग सो रहे हैं। किसी के चेहरे पर भी शिकन नहीं थी। ज्यादातर लोगों की मौत दम घुटने के कारण हुई थी। उनके चेहरे पर कार्बन के धुँए के कारण जरुर कालिख सी लगी हुई थी। मरने वाली लगभग सभी मरीज थे। उनके हाथ-पैर में प्लास्टर लगा हुआ था। कई लोगों के सलाईन के पाइप भी लगे थे। आग के बाद फैले धुंए से बचने में नाकाम रहने के कारण ही उनकी मौत हुई थी। दो किशोर नर्स लड़कियों की लाश भी 83 लोगों में शामिल थी। उन्होंने अस्पताल की वर्दी पहनी हुई थी।
हालांकि उनका कहना है कि एक साथ इतने लोगों का पोस्टमार्टम करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इससे पहले 1988 में उत्तर चौबीस परगना जिले के बैरकपुर शवगृह में इससे भी बड़े हादसे में मरने वालों के शव का पोस्टमार्टम किया गया था। दो बसों एक साथ जलाशय में जा गिरी थी और 130 लोगों की मौत हो गई थी, उन सभी लोगों का पोस्टमार्टम काहली ने ही किया था। डाक्टरी की पढ़ाई के दौरान मास डिजास्टर की शिक्षा से यह फायदा मिला कि शव देखकर मन ज्यादा व्यथित नहीं होता। शुक्रवार भी रात दो बजे घर पहुंचने के बाद दो बार स्नान किया और फिर पहले की तरह तरोताजा होकर सो गया।

Friday, December 9, 2011

ममता भी लगी अल्पसंख्यकों को लुभाने के खेल में

ममता बनर्जी सरकार और अधिक 32 समुदाय ओबीसी श्रेणी में शामिल करने जा रही है। इनमें 29 संगठन मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं। हालांकि चुनाव से पहले ममता बनर्जी की ओर से इसका विरोध किया गया था।
इसके साथ ही राज्य ओबीसी संगठन की ओर से 12 संगठनों को ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश की गई है। यह सभी मुस्लिम संगठन हैं। वाममोर्चा सरकार ने ओबीसी सूची में पिछड़े और अधिक पिछड़े दो भागों में बांटा था। इसके तहत पिछड़ों के लिएसात और अधिक पिछड़ों के लिए दस फीसद आरक्षण का एलान किया गया था। आर्थिक, सामाजिक और शिक्षण के तौर पर पीछे रहने वाले अल्पसंख्यकों और ओबीसी सूची के लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण देने का फैसला किया गया था। यह सितंबर 2010 से लागू हुआ था। मुख्यमंत्री ने इस बारे में नया बिल लाने का एलान किया था लेकिन पुराने बिल के मुताबिक ही ओबीसी सूची में शामिल किए जाने का काम चल रहा है।
राज्य के अल्पसंख्यक विभाग के सूत्रों ने बताया कि फरवरी 2010 के फरवरी महीने में ओबीसी सूची में कुल मिलाकर 66 संप्रदाय शामिल थे। इनमें 12 मुस्लिम संप्रदाय थे। 2001 की जनगणना के मुताबिक राज्य में मुसलमान समुदाय की कुल आबादी दो करोड़ दो लाख थी। अब 86 फीसद लोग ही पिछड़े लोगों की सूची में शामिल हैं। राज्य की ओबीसी सूची में 108 संप्रदाय के तीन करोड़ 15 लाख से ज्यादा लोग शामिल हैं। इनमें 53 मुस्लिम संगठन हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में 7.2 फीसदी मुसलमान सरकारी नौकरी में हैं जबकि रेलवे में यह संख्या 4.5 फीसद है। दूसरी ओर राज्य में सरकारी नौकरी में 4.7 फीसद मुसलमान काम कर रहे थे।

Thursday, December 8, 2011

ममता सरकार के निर्देश से पुलिस वाले परेशान

ममता सरकार के निर्देश से राज्य के पुलिस वाले पुलिस वाले परेशान हैं। पुलिस फायरिंग में मगराहाट में एक छात्रा समेत तो महिलाओं की मौत के बाद राज्य सरकार ने पुलिस पर अंकुश लगाने का फैसला किया है। इसके तहत पुलिस वाले बंदूक के बजाए लाठी लेकर चलेंगे और गोलियां चलाने की जरुरत हो तो रबड़ की गोलियां चलाएंगे।
गुस्साए लोगों को संभालने के लिए पुलिस वालों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस बारे में पुलिस महानिदेशक(डीजी) का निर्देश सभी जिलों में पहुंच गया है। लेकिन स्टैंडर्ड आपरेटिव प्रोसीड्यूर (एसओपी) से समस्या घटने के बजाए बढ़ गई है। मालूम हो कि निर्देश में कहा गया है कि गुस्साए लोगों की समूह को पहले समझाएं बात नहीं बने तो लाठीचार्ज करें। इससे भी फायदा नहीं हो तो अश्रू गैस के गोले छोड़ने के बाद भी फायदा नहीं हो तो उच्चाधिकारियों से मंजूरी लेकर फायरिंग करें। लेकिन गोलियां प्लास्टिक या रबड़ की चलानी होगी। समस्या यह है कि किसी जगह बंदूक है तो गोली नहीं, गोली है तो बंदूक नहीं। कई जगह दोनों नहीं है। इसके साथ ही प्रशिक्षित पुलिस कर्मचारी भी नहीं है।
राज्य पुलिस के महानिदेशक नपराजित मुखर्जी का निर्देश खास तौर पर पुलिस वालों के लिए है। इसके तहत पुलिस वाले जन आक्रोश दबाने के लिए गोलियां तो चलाएं लेकिन इसमें किसीव्यक्ति की जान नहीं जाए, इस पर जोर दिया गया है। इसलिए निर्देश में कहा गया है कि कानून व्यवस्था संभालनी हो या बिजली की चोरी करने वालों के खिलाफ कुछ करना हो, पुलिस वाले रबड़ की गोलियां, प्लास्टिक की गोलियां अभियान के दौरान साथ रखें। हालांकि राज्य के ज्यादातर पुलिस थाने में काम करने वालों ने ऐसी गोलियों के बारे में कम ही सुना है। यह गोलियां किस बंदूक में डाल कर चलाईजाती हैं, इसका भी लोगों को कम ही पता है। इसलिए यह निर्देश कहां तक सफल होगा, कहा नहीं जा सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि पुलिस थाने दो दूर की बात है कई जगह जिला पुलिस मुख्यालय में भी रबड़ या प्लास्टिक की गोलियों का इंतजाम नहीं है। मालूम हो कि रबड़ की गोलियां अश्रु गैस के गोले छोड़ने वाली बंदूक गैस गन से चलाई जाती हैं। जबकि प्लास्टिक की गोलियां 303 राईफल से चलती हैं। कई थाना कर्मचारियों का कहना है कि बंदूक तो है लेकिन गोलियां नहीं हैं। जबकि प्लास्टिक प्लेट चलाने वाली बंदूक तो ज्यादातर पुलिस वालों ने शायद ही कभी देखी हो।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि मुर्शिदाबाद जिले के शमशेरगंज, हरिहरपाड़ा और भगवानगोला में कुल मिलाकर एक-एक गैस गन और रबड़ की पांच-पांच गोलियां हैं। पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम और खेजुरी थाने में रबड़ की गोलियां मौजूद हैं लेकिन जिले के दूसरे थानों में गोलियां नहीं दी गई हैं। वीरभूम जिला पुलिस के पास गिनी चुनी बंदूके और गोलियां हैं। हावड़ा जिले के ग्रामीण इलाके में ग्यारह पुलिस थानों में डोमजूड़, बागनान और उलबेड़िया में ही एक-एकगैस गन हैं जबकि दूसरे सभी आठ थानों में दो गैस गन ही हैंं। उत्तर बंगाल के ज्यादातर थानों में रबड़ की गोलियां नहीं हैं। जहां 25-50 गोलियां हैं वहां इसे चलानेके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं। जिले में कुल मिलाकर 100 से भी कम गोलियां हैं। इसलिए कई जगह कानून तोड़ो अभियान चलने पर पुलिस के लिए भारी मुश्किल होगी।
हालांकि इस बीच पुलिस महानिदेशक के निर्देश के बाद आटोमैटिक हथियार पुलिस कंट्रोल रुम में जमा करवाए जा रहे हैं। कांस्टेबलों को राइफल के बजाए लाठी थमा कर ड्यूटी पर भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं दक्षिण बंगाल के एक जिले के पुलिस अधिकारी का कहना है कि बैंक से रुपए लाने के लिए जाने वाले पुलिस कर्मचारी भी बंदूक के बजाए लाठी लेकर जा रहे हैं।
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि आग्नेयास्त्र का व्यवहार कम से कम किया जाए। लेकिन पुलिस वाले गुस्साए लोगों के सामने खाली हाथ जाएंगे तो मार खाकर लौटना पड़ेगा। पुलिस वाले बंदूक हाथ में लेकर गोलियां ही नहीं चलाते कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए लोगों को डराना भी आवश्यक है।

Wednesday, December 7, 2011

बस में बेटिकट सफर करने वालों को देना होगा जुर्माना

रेलवे की तरह सरकारी बस में बेटिकट सफर करने वाले यात्रियों को अब जुर्माना देना होगा। मां,माटी, मानुष की नई राज्य सरकार इस नियम को सख्ती से लागू करने जा रही है। हावड़ा से धर्मतला के बीच चलने वाली रूट नंबर 24 बस को चलाने में एक किलोमीटर कुल मिलाकर 26 रुपए से ज्यादा का खर्च होता है। जबकि आय महज 19 रुपए होती है। ऐसा नहीं है कि कलक त्ता ट्रांसपोर्ट परिवहन निगम (सीएसटीस) के बस रूट घाटे में चलते हैं। हावड़ा से सियालदह के बीच रुट नंबर ग्यारह का खर्च 20 रुपए से ज्यादा है तो आमदन 34 रुपए से ज्यादा है। हावड़ा व यादवपुर के बीच चलने वाले ईचार नंबर रूट का खर्च 25 रुपए से कुछ ज्यादा तो आय 43 रुपए से ज्यादा है। इसी तरह हावड़ा-पर्णश्री रूट में चलने वाली एस 37ए का खर्च 30 रुपए तो आय 36 रुपए से ज्यादा है। इसमें पैसे कुछ इधर-उधर हैं । लेकिन यह सही तस्वीर नहीं है।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सीएसटीसी के 65 रुट में 48 रुट घाटे पर चलते हैं। इनमें 31 रुट ऐसे हैं कि खर्च की तुलना में आय सामान्य ज्यादा है। लेकिन लाbhजनक रुट महज ग्यारह ही हैं। छह रुट ऐसे हैं जहां न फायदा न नुकसान हो रहा है। बाघबाजार -गरिया के बीच रुट नंबर 21 चलानेके लिए राज्य सरकार को प्रति किलोमीटर 26 रुपए 28 पैसे खर्च करने पड़ते हैं जबकि वापस सिर्फ 16 रुपए 75 पैसे ही आते हैं। जबकि विमानबंदर-गरिया के एक रूट में 30 रुपए खर्च के बदले महज 15 रुपए चार पैसे ही मिलते हैं।
सूत्रों से पता चला है कि कुल मिलाकर प्रतिदिन सीएसटीसी की 450 बसें चलती हैं इनमें महानगर और आसपास के रुट में 360 बसें चलती हैं। इनमें इतना खर्च हो रहा है कि राज्य परिवहन वि•ााग सकते में है। मालूम हो कि लग•ाग 13 करोड़ रुपए तो कर्मचारियों को वेतन देनेके लिए निकल जाते हैं। साढ़े तीन करोड़ रुपए डीजल खरीदने में खर्च होते हैं। जबकि टिकट बिक्री से लग•ाग पांच करोड़ रुपए की आमदनी होती है। सूत्रों का कहना है कि किसी बस के खराब होने पर उसकी मरम्मत करवाना एक समस्या हो जाता है।
सीएसटीसी के अध्यक्ष maante हैं कि बस रुट में घाटा हो रहा है। लेकिन उनका कहना है कि एक बार में ऐसे रुट से बसें बंद करना संbhव नहीं है क्योंकि सरकार की लोगों के प्रति जिम्मेवारी है। हालांकि उनका कहना है कि घाटे वाले रुट की बसे कुछ कम करने फायदे वाले रुट में चलाने की योजना जरुर है। सूत्रों से पता चला है कि निगम घाटे से उबरने के लिए कई प्रयास कर रहाहै। इसके तहत सबसे ज्यादा जोर टिकट बेच कर आय बढ़ाने पर दिया जा रहा है। इसके तहत बस स्टैंड से बस चलने से पहले ही यात्रियों से टिकट लेने पर सहमति प्रकट की गई है। जिससे चलती बस में टिकट काटने की ज्यादा समस्या नहीं हो।
इसके अलावा बस स्टाप पर बस से उतरने वाले यात्रियों से टिकट मांगने के लिए पर्यवेक्षकों को और ज्यादा सक्रिय किया जाएगा। हावड़ा बस स्टैंड पर ऐसी व्यवस्था है लेकिन कितने बेटिकट लोगों को पकड़ा गया होगा, इसका हिसाब नहीं है। सीएसटीसी की ओर से अब रेलवेकी तरह ही बेटिकट यात्रियों से जुर्माना वसूलने का काम शुरू किया जाएगा। एक अधिकारी के मुताबिक हाल तक जुर्माना वसूलनेकी व्यवस्था होने के बावजूद ऐसा नहीं किया जाता था। लेकिन अब जुर्माना वसूल किया जाएगा। मालूम हो कि जहां कुछ कंडक्टर बस यात्री से तय किराए से कम पैसे लेकर टिकट नहीं देते तो कुछ कंडक्टर पचास-सौ रुपए का खुदरा देने से बचने के लिए टिकट ही नहीं काटते। इससे निगम को घाटा होता है लेकिन कंडक्टर की सेहत पर असर नहीं पड़ता, जबकि प्राइवेट बस कंडक्टर चार रुपए के टिकट के लिए एक सौ रुपए का खुदरा आसानी से कर देता है।
इसके साथ ही ओवरटाइम और इंसेटिव पर अंकुश लगाने पर विचार किया जा रहा है। इन दोनो खातों में हर महीने निगम को 65 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हं। इसे आगामी कुछ महीनों में 40 लाख रुपए कम करके 25 लाख करने की योजना है। इसके लिए बस रुट में परिवर्तन किया जाएगा, जिससे कोलकाता-दीघा जैसे रुट में कर्मचारियों से आठ घंटे से कम काम लिया जा सके और ओवरटाइम नहीं देना पड़े। इसके साथ ही कई रुटों पर तय मात्रा से ज्यादा टिकटों की बिक्री पर दिए जाने वाले इंसेंटिव पर कांट-छांट किए जाने की योजना है।

शराब बेच कर कमाई की योजना नाकाम

तृणमूल कांग्रेस सरकार की ओर से शराब की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि करके राजस्व वसूली का रिकार्ड कायम करने की योजना बनाई थी जिससे विधायकों और मंत्रियों की वेतन वृद्धि आसानी से की जा सके। हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि इससे सरकार को कोई खास फायदा होने वाला है। इसके साथ ही दूध की कीमतों में भी भारी वृद्धि की गई है। शराब की बिक्री घटने के साथ ही सरकारी दूध की बिक्री भी पहले की तुलना में बढ़ नहीं रही है। इससे सरकारी योजना अधर में दिख रही है।
गौरतलब है कि राज्य में सबसे ज्यादा देशी-विदेशी शराब की बिक्री दुर्गापूजा के महीने में होती है। बीते साल अक्तूबर महीने में देशी शराब की 67 लाख पांच हजार लीटर शराब की बिक्री हुई थी। जबकि अक्तूबर 2011 में बिक्री बढ़ने के बजाए 0.7 फीसद घट गई है। इस साल 66 लाख 55 हजार लीटर देशी शराब ही बिक सकी। आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी शराब बीते साल पूजा के महीने में 87 लाख 70 हजार लीटर बिकी थी, लेकिन इस साल महज 72 लाख छह हजार लीटर शराब ही बिक सकी है। इस तरह 17.8 फीसद बिक्री घट गई है। हालांकि कीमतों में भारी वृद्धि के कारण राजस्व 155 करोड़ 25 लाख रुपए से बढ़कर 162 करोड़ 54 लाख रुपए हुआ है। यह वृद्धि 4.7 फीसद है जबकि सरकार की ओर से 32 फीसद आय बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। नवंबर महीने में तो बिक्री की हालत और भी खराब रही है। माना जा रहा है कि इससे राजस्व में घाटा होगा, जिससे सरकारी लक्ष्य हासिल करना टेढ़ी खीर हो सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि छह महीने पुरानी सरकार खर्चो से परेशान है इसलिए राजस्व बढ़ाने के मद्देनजर पूजा से पहले राज्य सरकार ने कीमतें बढ़ाने का एलान किया था। बीते कुछ महीने के दौरान 750 मिली लीटर की बोतल पर लगभग एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे राजस्व की कमी महानगर कोलकाता ही नहीं दूसरे जिलों में भी दर्ज की गई है। आबकारी विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक अक्तूबर महीने में जलपाईगुड़ी में विदेशी शराब की बिक्री 1.4 फीसद बढ़ी। इससे लोगों ने विदेशी शराब पीना छोड़ कर देशी शराब पीना शुरू कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हुगली में 22.7 फीसद, हावड़ा में 39 फीसद, नदिया में 71 फीसद, पूर्व मेदिनीपुर में 80.8 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले में 29.1 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ी है।
हालांकि आबकारी विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि सरकार कीमतों में वृद्धि करके राजस्व बढ़ाने के बजाय लोगों को शराब से दूर करना चाहती है। सरकार की नीति का नतीजा देखा जा रहा कि शराब की बिक्री घट रही है। लेकिन दूध की कीमतें बढ़ाने के पीछे क्या उद््देश्य है, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं। लेकिन सरकार इस मोर्चे में भी नाकाम रही है, इसका पता इससे चलता है कि महंगी शराब की बिक्री घटने के साथ ही देशी और अवैध शराब (चुल्लू) की बिक्री में भारी वृद्धि देखी गई है। पूर्व मेदिनीपुर जिले में लगभग 81 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ने से यह बात पता चलती है कि अवैध शराब का प्रचलन बढ़ने से कभी भी कोई बढ़ा हादसा हो सकता है।

शराब बेच कर कमाई की योजना नाकाम

तृणमूल कांग्रेस सरकार की ओर से शराब की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि करके राजस्व वसूली का रिकार्ड कायम करने की योजना बनाई थी जिससे विधायकों और मंत्रियों की वेतन वृद्धि आसानी से की जा सके। हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि इससे सरकार को कोई खास फायदा होने वाला है। इसके साथ ही दूध की कीमतों में भी भारी वृद्धि की गई है। शराब की बिक्री घटने के साथ ही सरकारी दूध की बिक्री भी पहले की तुलना में बढ़ नहीं रही है। इससे सरकारी योजना अधर में दिख रही है।
गौरतलब है कि राज्य में सबसे ज्यादा देशी-विदेशी शराब की बिक्री दुर्गापूजा के महीने में होती है। बीते साल अक्तूबर महीने में देशी शराब की 67 लाख पांच हजार लीटर शराब की बिक्री हुई थी। जबकि अक्तूबर 2011 में बिक्री बढ़ने के बजाए 0.7 फीसद घट गई है। इस साल 66 लाख 55 हजार लीटर देशी शराब ही बिक सकी। आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी शराब बीते साल पूजा के महीने में 87 लाख 70 हजार लीटर बिकी थी, लेकिन इस साल महज 72 लाख छह हजार लीटर शराब ही बिक सकी है। इस तरह 17.8 फीसद बिक्री घट गई है। हालांकि कीमतों में भारी वृद्धि के कारण राजस्व 155 करोड़ 25 लाख रुपए से बढ़कर 162 करोड़ 54 लाख रुपए हुआ है। यह वृद्धि 4.7 फीसद है जबकि सरकार की ओर से 32 फीसद आय बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। नवंबर महीने में तो बिक्री की हालत और भी खराब रही है। माना जा रहा है कि इससे राजस्व में घाटा होगा, जिससे सरकारी लक्ष्य हासिल करना टेढ़ी खीर हो सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि छह महीने पुरानी सरकार खर्चो से परेशान है इसलिए राजस्व बढ़ाने के मद्देनजर पूजा से पहले राज्य सरकार ने कीमतें बढ़ाने का एलान किया था। बीते कुछ महीने के दौरान 750 मिली लीटर की बोतल पर लगभग एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे राजस्व की कमी महानगर कोलकाता ही नहीं दूसरे जिलों में भी दर्ज की गई है। आबकारी विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक अक्तूबर महीने में जलपाईगुड़ी में विदेशी शराब की बिक्री 1.4 फीसद बढ़ी। इससे लोगों ने विदेशी शराब पीना छोड़ कर देशी शराब पीना शुरू कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हुगली में 22.7 फीसद, हावड़ा में 39 फीसद, नदिया में 71 फीसद, पूर्व मेदिनीपुर में 80.8 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले में 29.1 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ी है।
हालांकि आबकारी विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि सरकार कीमतों में वृद्धि करके राजस्व बढ़ाने के बजाय लोगों को शराब से दूर करना चाहती है। सरकार की नीति का नतीजा देखा जा रहा कि शराब की बिक्री घट रही है। लेकिन दूध की कीमतें बढ़ाने के पीछे क्या उद््देश्य है, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं। लेकिन सरकार इस मोर्चे में भी नाकाम रही है, इसका पता इससे चलता है कि महंगी शराब की बिक्री घटने के साथ ही देशी और अवैध शराब (चुल्लू) की बिक्री में भारी वृद्धि देखी गई है। पूर्व मेदिनीपुर जिले में लगभग 81 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ने से यह बात पता चलती है कि अवैध शराब का प्रचलन बढ़ने से कभी भी कोई बढ़ा हादसा हो सकता है।

Monday, December 5, 2011

मजबूरी में भी लोग करते हैं बिजली चोरी

सबसे पहले तो बिजली का कनेक्शन लेना ही आसान नहीं है, उसके बाद अनियंत्रित तरीके से बगैर किसी मुकाबले के राज्य में बिजली दरों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। भले ही केंद्र की ओर से सभी घरों में बिजली पहुंचाने की बात सालों पहले की गई थी लेकिन आज भी पचास फीसद लोगों को बिजली नहीं मिल सकी है। इसलिए कहीं लोग मजबूरी में बिजली की चोरी कर रहे हैं तो कहीं राजनीतिक दलों की मदद से यह काम किया जा रहा है। हुकिंग करके कितने ही घरों में ब त्ती, पंखे और टीवी चल रहे हैं ।
मकान के 100 गज के दायरे में बिजली का खंबा है, मकान के पक्के बरामदे से छूकर अल्यूमिनीयम की तार गुजरती दिखाईदेती है लेकिन इसके बावजूद घर में लालटेन जलाकर बच्चे पढ़ रहे हैं। हालांकि बिजली विभाग के कार्यालय में पर्याप्त रकम भी जमा की गई है। लेकिन उपभोक्ता का आवेदन सालों से फाइलों में दबा पड़ा है। बिजली विभाग की ओर से खंबे से लेकर घर तक बिजली पहुचाने में आनाकानी की मिसाले कोलकाता से कुछ दूरी पर मौजूद मगराहाट से लेकर जलपाईगुड़ी के मदारीहाट तक देखी जासकती हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना शुरू की गई थी, इसके मुताबिक न्यूनतम 50 परिवारों या 100 लोगों के वर्जिन मौजा में सभी लोगों को बिजली देने का इंतजाम किया जाएगा। गरीबी सीमारेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को मुफ्त और दूसरे लोगों को रुपए देकर बिजली मिलेगी। राज्य के 14 जिलों में यह काम वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन की ओर से किया जा रहा है। कोलकाता के अलावा दूसरे जिलों में केंद्र सरकार के तहत चार संस्थाएं यह काम कर रही हैं। एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के दौरान दो हजार करोड़ रुपए की रकम खर्च हो गई है। लेकिन अभी तक राज्य के आधे लोग बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगराहाट के नैनान गांव के लोगों ने 2007 में बिजली के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक बिजली नहीं मिली है, इसलिए वहां लोग बिजली चोरी करने के लिए मजबूर थे।
आंकड़ों की बात करें तो सरकार खुद यह बात मानती है कि राज्य के आधे से ज्यादा 55 फीसदी लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। जबकि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के चार राज्यों में लगभग 100 फीसद बिजली पहुंच चुकी है। बिजली विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक कूचबिहार के 70 फीसद, उ त्तर दिनाजपुर के 70 फीसद, मालदा जिले के 64 फीसद, पुरुलिया के 65 फीसद, मुर्शिदाबाद जिलेके 60 फीसद, जलपाईगुड़ी के 62 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले के 55 फीसद, वीरभूम के 53 फीसद, बांकुड़ा के 52 फीसद, पूर्व औरपश्चिमी मेदिनीपुर जिले के 51 फीसद, बर्दवान के 47 फीसद, नदिया के 44 फीसद, उ त्तर चौबीस परगना जिले के 38 फीसद, दार्जिलिंग के 23 फीसद, हुगली के 24 फीसद और हावड़ा जिले के 10 फीसद परिवारों के घर में अभी तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। उनका कहना है कि राज्य में ग्रामीण परिवार एक करोड़ 20 लाख है, इसमें 67 लाख परिवारों के घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
राज्य के बिजली मंत्री ने विधानसभा में एलान किया था कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना के तहत 2041 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किए गए हैं और 3933 मौजा में से 3929 मौजा में बिजली पहुंचाने काकाम पूरा हो गया है। हालांकि केंद्रीय सरकार की परियोजना के मुताबिक एक मौजा में 10 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन पहुंचने से ही वह इलाका बिजली वितरण का काम पूरा करने में सफल माना जाएगा। इस तरह सरकारी खाते में एक सौ फीसद लोगों को बिजली मिलने का रिकार्ड दर्ज होजाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महज 10 फीसद लोगों के घरों में बिजली पहुंचने के बाद भी 90 फीसद परिवार अंधेरे में रहते हैं। बिजली विभाग के एक अधिकारी मानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत ऐसी है कि लोग महीने में 50 रुपएका बिल भारने में भी असमर्थ हैं, ऐसे में बिजली की लाइन लेने से पहले उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है।
ऐसे हालत में लोग बिजलीकी चोरी करते हैं। महानगर कोलकाता में भी बिजलीकी चोरी जारी है। इलाके के राजनीतिक दलों और दादाओं की मदद से यहकाम हो रहा है। शहर के 18 फीसद इलाके में चोरी ज्यादा हो रही है। इसमें मेटियाबुर्ज, गार्डेनरीच, तिलजला, नारकुलडांगा, रिपन स्ट्रीट, मेंहदीबगान, इलियट रोड, तपसिया, टेंगरा, लेक गार्डेन, उ त्तर पंचान्न ग्राम, बेहाला के कई इलाके शामिल बताए जाते हैं। सीईएससी के तहत टीटागढ़, हावड़ा, बानतला, कमरहट््टी के वि•िासबसे पहले तो बिजली का कनेक्शन लेना ही आसान नहीं है, उसके बाद अनियंत्रित तरीके से बगैर किसी मुकाबले के राज्य में बिजली दरों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। भले ही केंद्र की ओर से सभी घरों में बिजली पहुंचाने की बात सालों पहले की गई थी लेकिन आज भी पचास फीसद लोगों को बिजली नहीं मिल सकी है। इसलिए कहीं लोग मजबूरी में बिजली की चोरी कर रहे हैं तो कहीं राजनीतिक दलों की मदद से यह काम किया जा रहा है। हुकिंग करके कितने ही घरों में ब त्ती, पंखे और टीवी चल रहे हैं ।
मकान के 100 गज के दायरे में बिजली का खंबा है, मकान के पक्के बरामदे से छूकर अल्यूमिनीयम की तार गुजरती दिखाईदेती है लेकिन इसके बावजूद घर में लालटेन जलाकर बच्चे पढ़ रहे हैं। हालांकि बिजली विभाग के कार्यालय में पर्याप्त रकम भी जमा की गई है। लेकिन उपभोक्ता का आवेदन सालों से फाइलों में दबा पड़ा है। बिजली विभाग की ओर से खंबे से लेकर घर तक बिजली पहुचाने में आनाकानी की मिसाले कोलकाता से कुछ दूरी पर मौजूद मगराहाट से लेकर जलपाईगुड़ी के मदारीहाट तक देखी जासकती हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना शुरू की गई थी, इसके मुताबिक न्यूनतम 50 परिवारों या 100 लोगों के वर्जिन मौजा में सभी लोगों को बिजली देने का इंतजाम किया जाएगा। गरीबी सीमारेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को मुफ्त और दूसरे लोगों को रुपए देकर बिजली मिलेगी। राज्य के 14 जिलों में यह काम वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन की ओर से किया जा रहा है। कोलकाता के अलावा दूसरे जिलों में केंद्र सरकार के तहत चार संस्थाएं यह काम कर रही हैं। एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के दौरान दो हजार करोड़ रुपए की रकम खर्च हो गई है। लेकिन अभी तक राज्य के आधे लोग बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगराहाट के नैनान गांव के लोगों ने 2007 में बिजली के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक बिजली नहीं मिली है, इसलिए वहां लोग बिजली चोरी करने के लिए मजबूर थे।
आंकड़ों की बात करें तो सरकार खुद यह बात मानती है कि राज्य के आधे से ज्यादा 55 फीसदी लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। जबकि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के चार राज्यों में लगभग 100 फीसद बिजली पहुंच चुकी है। बिजली विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक कूचबिहार के 70 फीसद, उ त्तर दिनाजपुर के 70 फीसद, मालदा जिले के 64 फीसद, पुरुलिया के 65 फीसद, मुर्शिदाबाद जिलेके 60 फीसद, जलपाईगुड़ी के 62 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले के 55 फीसद, वीरभूम के 53 फीसद, बांकुड़ा के 52 फीसद, पूर्व औरपश्चिमी मेदिनीपुर जिले के 51 फीसद, बर्दवान के 47 फीसद, नदिया के 44 फीसद, उ त्तर चौबीस परगना जिले के 38 फीसद, दार्जिलिंग के 23 फीसद, हुगली के 24 फीसद और हावड़ा जिले के 10 फीसद परिवारों के घर में अभी तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। उनका कहना है कि राज्य में ग्रामीण परिवार एक करोड़ 20 लाख है, इसमें 67 लाख परिवारों के घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
राज्य के बिजली मंत्री ने विधानसभा में एलान किया था कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना के तहत 2041 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किए गए हैं और 3933 मौजा में से 3929 मौजा में बिजली पहुंचाने काकाम पूरा हो गया है। हालांकि केंद्रीय सरकार की परियोजना के मुताबिक एक मौजा में 10 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन पहुंचने से ही वह इलाका बिजली वितरण का काम पूरा करने में सफल माना जाएगा। इस तरह सरकारी खाते में एक सौ फीसद लोगों को बिजली मिलने का रिकार्ड दर्ज होजाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महज 10 फीसद लोगों के घरों में बिजली पहुंचने के बाद भी 90 फीसद परिवार अंधेरे में रहते हैं। बिजली विभाग के एक अधिकारी मानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत ऐसी है कि लोग महीने में 50 रुपएका बिल भारने में भी असमर्थ हैं, ऐसे में बिजली की लाइन लेने से पहले उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है।
ऐसे हालत में लोग बिजलीकी चोरी करते हैं। महानगर कोलकाता में भी बिजलीकी चोरी जारी है। इलाके के राजनीतिक दलों और दादाओं की मदद से यहकाम हो रहा है। शहर के 18 फीसद इलाके में चोरी ज्यादा हो रही है। इसमें मेटियाबुर्ज, गार्डेनरीच, तिलजला, नारकुलडांगा, रिपन स्ट्रीट, मेंहदीबगान, इलियट रोड, तपसिया, टेंगरा, लेक गार्डेन, उ त्तर पंचान्न ग्राम, बेहाला के कई इलाके शामिल बताए जाते हैं। सीईएससी के तहत टीटागढ़, हावड़ा, बानतला, कमरहट्टी के विसबसे पहले तो बिजली का कनेक्शन लेना ही आसान नहीं है, उसके बाद अनियंत्रित तरीके से बगैर किसी मुकाबले के राज्य में बिजली दरों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। भले ही केंद्र की ओर से सभी घरों में बिजली पहुंचाने की बात सालों पहले की गई थी लेकिन आज भी पचास फीसद लोगों को बिजली नहीं मिल सकी है। इसलिए कहीं लोग मजबूरी में बिजली की चोरी कर रहे हैं तो कहीं राजनीतिक दलों की मदद से यह काम किया जा रहा है। हुकिंग करके कितने ही घरों में ब त्ती, पंखे और टीवी चल रहे हैं ।
मकान के 100 गज के दायरे में बिजली का खंबा है, मकान के पक्के बरामदे से छूकर अल्यूमिनीयम की तार गुजरती दिखाईदेती है लेकिन इसके बावजूद घर में लालटेन जलाकर बच्चे पढ़ रहे हैं। हालांकि बिजली विभाग के कार्यालय में पर्याप्त रकम भी जमा की गई है। लेकिन उपभोक्ता का आवेदन सालों से फाइलों में दबा पड़ा है। बिजली विभाग की ओर से खंबे से लेकर घर तक बिजली पहुचाने में आनाकानी की मिसाले कोलकाता से कुछ दूरी पर मौजूद मगराहाट से लेकर जलपाईगुड़ी के मदारीहाट तक देखी जासकती हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना शुरू की गई थी, इसके मुताबिक न्यूनतम 50 परिवारों या 100 लोगों के वर्जिन मौजा में सभी लोगों को बिजली देने का इंतजाम किया जाएगा। गरीबी सीमारेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को मुफ्त और दूसरे लोगों को रुपए देकर बिजली मिलेगी। राज्य के 14 जिलों में यह काम वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन की ओर से किया जा रहा है। कोलकाता के अलावा दूसरे जिलों में केंद्र सरकार के तहत चार संस्थाएं यह काम कर रही हैं। एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के दौरान दो हजार करोड़ रुपए की रकम खर्च हो गई है। लेकिन अभी तक राज्य के आधे लोग बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगराहाट के नैनान गांव के लोगों ने 2007 में बिजली के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक बिजली नहीं मिली है, इसलिए वहां लोग बिजली चोरी करने के लिए मजबूर थे।
आंकड़ों की बात करें तो सरकार खुद यह बात मानती है कि राज्य के आधे से ज्यादा 55 फीसदी लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। जबकि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के चार राज्यों में लगभग 100 फीसद बिजली पहुंच चुकी है। बिजली विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक कूचबिहार के 70 फीसद, उ त्तर दिनाजपुर के 70 फीसद, मालदा जिले के 64 फीसद, पुरुलिया के 65 फीसद, मुर्शिदाबाद जिलेके 60 फीसद, जलपाईगुड़ी के 62 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले के 55 फीसद, वीरभूम के 53 फीसद, बांकुड़ा के 52 फीसद, पूर्व औरपश्चिमी मेदिनीपुर जिले के 51 फीसद, बर्दवान के 47 फीसद, नदिया के 44 फीसद, उ त्तर चौबीस परगना जिले के 38 फीसद, दार्जिलिंग के 23 फीसद, हुगली के 24 फीसद और हावड़ा जिले के 10 फीसद परिवारों के घर में अभी तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। उनका कहना है कि राज्य में ग्रामीण परिवार एक करोड़ 20 लाख है, इसमें 67 लाख परिवारों के घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
राज्य के बिजली मंत्री ने विधानसभा में एलान किया था कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना के तहत 2041 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किए गए हैं और 3933 मौजा में से 3929 मौजा में बिजली पहुंचाने काकाम पूरा हो गया है। हालांकि केंद्रीय सरकार की परियोजना के मुताबिक एक मौजा में 10 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन पहुंचने से ही वह इलाका बिजली वितरण का काम पूरा करने में सफल माना जाएगा। इस तरह सरकारी खाते में एक सौ फीसद लोगों को बिजली मिलने का रिकार्ड दर्ज होजाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महज 10 फीसद लोगों के घरों में बिजली पहुंचने के बाद भी 90 फीसद परिवार अंधेरे में रहते हैं। बिजली विभाग के एक अधिकारी मानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत ऐसी है कि लोग महीने में 50 रुपएका बिल भारने में भी असमर्थ हैं, ऐसे में बिजली की लाइन लेने से पहले उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है।
ऐसे हालत में लोग बिजलीकी चोरी करते हैं। महानगर कोलकाता में भी बिजलीकी चोरी जारी है। इलाके के राजनीतिक दलों और दादाओं की मदद से यहकाम हो रहा है। शहर के 18 फीसद इलाके में चोरी ज्यादा हो रही है। इसमें मेटियाबुर्ज, गार्डेनरीच, तिलजला, नारकुलडांगा, रिपन स्ट्रीट, मेंहदीबगान, इलियट रोड, तपसिया, टेंगरा, लेक गार्डेन, उ त्तर पंचान्न ग्राम, बेहाला के कई इलाके शामिल बताए जाते हैं। सीईएससी के तहत टीटागढ़, हावड़ा, बानतला, कमरहट्टी के वि•िान्न इलाकों में बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी आम तौर पर तीन तरह से की जाती है। इसके तहत जमीन के नीचे से, खंबे की तार से तार जोड़ कर व मीटर से की जाती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सरकार की ओर से एक संस्था को बिजली आपूर्ति का ठेका दिया गया है, इससे ही समस्याएं हो रही हैं।
हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर इलाके में अभी भी कई परिवार बगैर बिजली के रह रहे हैं। नए जमाने में पंखा, बल्ब, टीवी कंप्यूटर के साथ सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल फोन चार्ज करना हो गया है। इसके लिए बिजली की जरूरत है। यहां के गढ़ भवानीपुर गांव में पंचायत के उ त्तर चांदचक गांव के नजदीक से बिजली की तार गुजरती है। लेकिन लोगों के घरों में अंधेरा है, इसलिए लोग अभी भी लालटेन के सहारे अंधेरा दूर करने में लगे हैं। यही हालत सांकराईल थाना इलाके के नीमतला इलाके के कई घरों की भी है। महानगर से सटे राज्य से किसी जमाने के शेफिल्ड का जब यह हाल है तो दूसरे इलाकों की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।•िान्न इलाकों में बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी आम तौर पर तीन तरह से की जाती है। इसके तहत जमीन के नीचे से, खंबे की तार से तार जोड़ कर व मीटर से की जाती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सरकार की ओर से एक संस्था को बिजली आपूर्ति का ठेका दिया गया है, इससे ही समस्याएं हो रही हैं।
हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर इलाके में अभी भी कई परिवार बगैर बिजली के रह रहे हैं। नए जमाने में पंखा, बल्ब, टीवी कंप्यूटर के साथ सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल फोन चार्ज करना हो गया है। इसके लिए बिजली की जरूरत है। यहां के गढ़ भवानीपुर गांव में पंचायत के उ त्तर चांदचक गांव के नजदीक से बिजली की तार गुजरती है। लेकिन लोगों के घरों में अंधेरा है, इसलिए लोग अभी भी लालटेन के सहारे अंधेरा दूर करने में लगे हैं। यही हालत सांकराईल थाना इलाके के नीमतला इलाके के कई घरों की भी है। महानगर से सटे राज्य से किसी जमाने के शेफिल्ड का जब यह हाल है तो दूसरे इलाकों की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।न्न इलाकों में बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी आम तौर पर तीन तरह से की जाती है। इसके तहत जमीन के नीचे से, खंबे की तार से तार जोड़ कर व मीटर से की जाती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सरकार की ओर से एक संस्था को बिजली आपूर्ति का ठेका दिया गया है, इससे ही समस्याएं हो रही हैं।
हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर इलाके में अभी भी कई परिवार बगैर बिजली के रह रहे हैं। नए जमाने में पंखा, बल्ब, टीवी कंप्यूटर के साथ सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल फोन चार्ज करना हो गया है। इसके लिए बिजली की जरूरत है। यहां के गढ़ भवानीपुर गांव में पंचायत के उ त्तर चांदचक गांव के नजदीक से बिजली की तार गुजरती है। लेकिन लोगों के घरों में अंधेरा है, इसलिए लोग अभी भी लालटेन के सहारे अंधेरा दूर करने में लगे हैं। यही हालत सांकराईल थाना इलाके के नीमतला इलाके के कई घरों की भी है। महानगर से सटे राज्य से किसी जमाने के शेफिल्ड का जब यह हाल है तो दूसरे इलाकों की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।

माओवादी हमले की आशंका के बावजूद वाममोर्चा नेताओं की सुरक्षा घटाई गई


किशनजीकी मौत के बाद माओवादियों की ओर से हिंसक वारदात की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस बीच माओवादी नेताओं की ओर से धमकियां दी जा रही है लेकिन राज्य सरकार ने वाममोर्चा के कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों की सुरक्षा व्यवस्था पहले की तुलना में घटा दी है, जबकि कई लोगों की सुरक्षा व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। इससे कई लोगों की जान खतरे में पड़ गई है। राज्य सरकारकी ओर से कुल मिलाकर 194 लोगों को विशेष सुरक्षा प्रदान की जा रही है। इसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को सर्वाधिक जेड प्लस सुरक्षा श्रेणी में रखा गया है। इसके बाद वाई श्रेणी में 89 और एक्स श्रेणी में 99 लोगों को रखा गया है। इसमें खतरे की श्रेणी में 29 लोगों को वाई श्रेणी में शामिल किया गया है।
कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माकपा) की ओर से वाममोर्चा के नेताओं की सुरक्षा के बारे में तैयार एक रिपोर्ट से इस बात का खुलासा होता है। यह रिपोर्ट साल में दो बार पेश की जाती है। इसमें सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया जाता है। इससे पता चलता है कि माओवादियों की धमकी के बाद अधिकतम सुरक्षा पाने वाले नेताओं की सुरक्षा या तो खत्म कर दी गई है या इसमें कमी की गई है।
सूत्रों से पता चला है कि राज्य के पूर्व मंत्री जोगेश चंद्र बर्मन को वाममोर्चा सरकार के दौरान वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई थी। लेकिन अब इसे घटा कर एक्स श्रेणी में कर दिया गया है। दूसरी ओर विधानस•ाा के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल हासिम हलीम और उपाध्यक्ष •ाक्ति पदघोष की सुरक्षा हटा ली गई है। इसी तरह राज्य के पूर्व वि त्त मंत्री असीम दासगुप्ता के अलावा विवादग्रस्त मंत्री गौतम देव की सुरक्षा एक्स श्रेणी में परिवर्तित कर दी गई है। यही हालत पूर्व पीडब्लूडी मंत्री क्षिती गोस्वामी की है। सुभ•ााष नस्कर को इसी श्रेणी में रखा गया है। जबकि विश्वनाथ चौधरी, नारायण विश्वास और तपन राय की सुरक्षा व्यवस्था हटानेके बारे में एक प्रस्ताव पारित हो गया है। इसके साथ ही दूसरे कई पूर्व मंत्रियों के बारे में चेतावनी के नहीं मिलने से उनकी सुरक्षा व्यवस्था घटा या समाप्त की जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक बांकुड़ा, पुरुलिया और मिदनापुर के जंगल महल इलाके में पूर्व मंत्रियों को एक्स श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही इन इलाकों के नव निर्वाचित 14 विधायकों को इसी तरह की सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही देवलीना हेमब्रग, सुकुमार हांसदा, शांतिराम महतो अधिकतम सुरक्षा पाने वाले नेताओं की सूची में शामिल हैं। राज्य में सबसे ज्यादा सुरक्षा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव और केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को प्रदान की जा रही है। इन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा में रखा गया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री की मां गायत्री देवी को अधिकतम सुरक्षा प्रदान करने के तहत वाई श्रेणी में सुरक्षा प्रदान की जा रही है।

Friday, December 2, 2011


 किशनजी की हत्या की गई-सीडीआरओ
  कोलकाता, कोआर्डीनेशन आफ डेमोक्रेटिक राइट्स आर्गेनाइजेशन (सीडीआरओ) का कहना है कि माओवादी नेता किशनजी के बारे में राज्य सरकार का दावा जांच-पड़ताल के बाद किसी भी तरह सेसही नहीं ठहरता है। शुक्रवार को कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में संगठन के महासचिव देव प्रसाद रायचौधरी, एपीसीएलसी के महासचिव सीएच चंद्रशेखर के अलावा भानू शंकर, गौतम नवलाखा ने यह जानकारी दी। इसके साथ ही संगठन की ओर से मांग की गई है कि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश या अवकाश प्राप्त न्यायधीश से मामले की स्वतंत्र तौर पर न्यायिक जांच करवाई जाए। इसके साथ ही भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया जाए।
उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से दावा किया गया है कि 24 नवंबर को बुड़ीशोल के जंगल में पुलिस मुकाबले में किशनजी की मौत हो गई है। कहा गया था कि तीन दिन से पुलिस और साझा सुरक्षा बलों ने इलाके को घेरे में ले लिया था और मुकाबला चल रहा था। किशनजी समेत दूसरे लोगों को आत्मसमर्पण करने के लिए माइक पर घोषणा की गई थी। लेकिन जांच पड़ताल से पता चलता है कि यह दावा ठीक नहीं है।
इस दौरान 25 लोगों का एक दल अलग-अलग ग्रूप बनाकर घटनास्थल के आसपास के पांच गांव के 300 लोगों से मिला और पूछताछ की। इसमें सात साल की उम्र के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग पुरुष-महिलाएं शामिल थे। लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा कि तीन दिन पहले पुलिस ने इलाके की घेराबंदी की थी और वहां किसीतरह का मुकाबला चल रहा था। ज्यादातर लोगों का कहना था कि पुलिस और साझा सुरक्षा बल के जवान 24 नवंबर को गांव में पहुंचे और लोगों को घर से नहीं निकलने की चेतावनी देकर चले गए। इसके बाद विभिन्न लोगों के मुताबिक साढ़े चार बजे से साढ़े पांच बजे के बीच 15 से लेकर 20 मिनट तक गोलियां चलने की आवाज सुनी गई। लेकिन किसी भी गांव वाले ने माइक की आवाज नहीं सुनी जिससे माना जा सके कि किशनजी को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया हो। इतना ही नहीं घटनास्थल के आसपास के इलाकों में पेड़ों की जांच के दौरान कहीं भी गोलियों के निशान नहीं मिले, जबकि मुकाबले के दौरान चलाई गई गोलियों से पेड़ों पर निशान होने चाहिए थे। इससे साफतौर पर यह लगता है कि सिर्फ 24 अक्तूबर को ही पुलिस वाले वहां पहुंचे थे और 15-30 मिनट तक फायरिंग की गई। यह इच्छाकृत की गई हत्या है इसलिए स्वतंत्र जांच करवाने के साथ ही धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया जाए।