Saturday, April 28, 2012

गरीब दर्जी के बेटे ने हासिल किया आईआईटी में सातवां रैंक



हावड़ा, 28 अप्रैल (जनस त्ता)।आईआईटी की एमसीसी में दाखिले के लिए ली गई ज्वायंट इंट्रेंस की परीक्षा में हावड़ा के एक गरीब परिवार के लड़के ने सातवां स्थान हासिल करने रिकार्ड कायम किया है। श्यामपुर के गाजीपुकुरिया गांव का रहने वाला इंद्रजीत पाल का पिता प्रशांत पाल गरीब दर्जी है। लोगों के कपड़े सिल कर वह परिवार का गुजारा कर रहा है।
इंद्रजीत ने बताया कि परिवार की दयनीय आर्थिक हालत के कारण क•ाी वह पिता के साथ कपड़ों की सिलाई करता था। क•ाी बड़Þे •ााई के साथ  मजदूर के तौर पर दिहाड़ी •ाी किया करता था। लेकिन साथ ही पढ़ाई को क•ाी पीछे छुटने नहीं दिया। वह उलबेड़िया कालेज में बीएससी (रसायन) वि•ााग का तीसरे साल का छात्र है। पार्ट टू की परीक्षा में उसने 81 फीसद अंक हासिल किए थे। किसी तरह की कोचिंग लिए बगैर कठिन मेहनत के बल पर उसने आईआईटी की परीक्षा में शानदार कामयाबी हासिल की है। उसकी कामयाबी से इलाके ही नहीं सारे जिले में खुशी की लहर दौर गई है। इंद्रजीत का कहना है कि वह पढ़ाई की शिखर छुना चाहता है, इसके लिए वह किसी •ाी तरह की मेहनत से पीछे नहीं हटेगा।

Wednesday, April 25, 2012

जेलों में 170 रुपये में बिकता है ब्लेड

 कोलकाता पहले जेलों में चोरी-छिपे बंदूक और चाकू की सप्लाई की खबरें सुनने को मिलती थीं, लेकिन अब उनकी जगह एक नए और छोटे हथियार ने ले ली है, जिसे हम सभी ब्लेड के नाम से जानते हैं। राज्य की विभिन्न जेलों में इन दिनों ब्लेड की धड़ल्ले से सप्लाई हो रही है। बाजार में दो-तीन रुपए में मिलने वाली यह चीज जेलों में 150 से 170 रुपए तक में बिक रही है। ब्लेड ही क्यों? ब्लेड छोटी मगर खतरनाक चीज है। बंदूक व चाकू की अपेक्षा इसकी आसानी से सप्लाई की जा सकती है, इसलिए यह कैदियों की पहली पसंद बनता जा रहा है। आकार में छोटा होने के कारण इसे सलाखों के पीछे कहीं भी आसानी से छिपाकर रखा जा सकता है। क्यों खरीदते हैं कैदी? अलग-अलग कैदी इसे अलग-अलग मकसद से खरीदते हैं। सजायाफ्ता कैदी दूसरे कैदियों को डराने-धमकाकर उनपर अपना दबदबा बनाने के लिए अपने पास ब्लेड रखते हैं। विभिन्न जेलों में एक कैदी द्वारा दूसरे कैदी को ब्लेड से घायल करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। वहीं विचाराधीन कैदी अदालती कार्यवाही में विलंब का विरोध जताने के लिए खुद को घायल करने के लिए ब्लेड का सहारा लेते हैं। गत बुधवार को बारासात अदालत परिसर में तीन कैदियों ने फैसला आने में हो रही देरी के विरोध में अपने जिस्म पर ब्लेड से वार करके जख्मी कर लिया था। इसके पहले अलीपुर कोर्ट में भी कई कैदियों ने विरोध का यह तरीका अपनाया है। उदाहरण इतना ही नहीं कई बार जेलों के अंदर कई बार कैदी आपस में ब्लेड से वार कर दूसरे कैदियों को जख्मी भी कर चुके है। कैसे पहुंचता है जेलों में? महानगर की जेलों में कड़ी सुरक्षा के बावजूद आसानी से ब्लेड की सप्लाई हो जाती है। इसके पीछे एक गिरोह काम करता है। अलीपुर, प्रेसीडेंसी और सेंट्रल जेल के आसपास गिरोह के सदस्यों की चौबीसों घंटे गिद्धदृष्टि रहती है, जो कैदियों से मिलने आने वाले लोगों पर नजर रखते हैं। जरुरतमंद लोग देखते ही वे उनसे संपर्क करते हैं। जेल प्रशासन की तरफ से जितना भी कड़ा पहरा और स्कैनिंग मशीन क्यों न लगा दी गई हो, पर उनलोगों की पहुंच इतनी ऊंची है कि वे हर सुरक्षा कवच को भेद लेते हैं। वे मुख्यतया कैदियों को भोजन देने एवं अदालत में पेशी के दौरान उन्हें ब्लेड थमाते हैं। दमदम प्रेसीडेंसी जेल के गेट के बाहर सक्रिय मुन्ना सरकार उर्फ बबलू नामक दलाल ने बताया कि ब्लेड की कीमत लेने के बाद कैदी का नाम और सेल नंबर पूछा जाता है और उसके बाद उसे भोजन देने या अदालत में पेशी के समय अपने स्रोतों के हाथ से ब्लेड थमा दिया जाता है। एक ब्लेड के लिए 150 से 170 रुपए लिया जाता है, जिसमें 50 से 70 रुपए ब्लेड की कीमत होती है जबकि उसे अंदर पहुंचाने के लिए प्रोसेसिंग चार्ज के लिए 100 रुपए लिए जाते हैं। जेल के निचले स्तर के कुछ कर्मी इस काम में शामिल हैं। क्या कहना है जेल प्रशासन का? राज्य के आईजी (कारागार) रणवीर कुमार ने बताया कि अपनी मांगें मनवाने के लिए कैदियों द्वारा अदालत परिसर में खुद को ब्लेड से जख्मी करने की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। समय-समय पर छापामारी के दौरान कैदियों के पास से ब्लेड, मोबाइल फोन और नशे का सामान बरामद होता है। जिन गिरोहों के जरिए यह सामान जेलों में पहुंचाया जा रहा है, उनका पता लगाया जा रहा है।     (साभार )

Sunday, April 22, 2012

पुलिस की मदद से 12 साल की लड़की ने अपनी शादी रुकवाई


 पुरुलिया जिले की रेखा कालिंदी, वीणा कालिंदी की ही तरह दक्षिण चौबीस परगना जिले के काशीपुर की हबीबा खातून ने परिवार वालों की ओर से जबरन विवाह किए जाने का विरोध ही नहीं किया उसे रुकवाने में भी सफलता प्राप्त की।
मालूम हो कि सोमवार को मुर्शिदाबाद जिले के मोइदुल शेख के साथ काशीपुर थाना इलाके के पोलेरहाट दो नंबर पंचायत के स्वरुपनगर की रहने वाली हबीबा (12) की शादी होने वाली थी। किशोरी कच्ची उम्र में शादी करने के बजाए पढ़ना चाहती है। उसने इस बारे में परिवार वालों को बताया भी। लेकिन किसी ने उसकी कोई बात नहीं सुनी। इसके बाद वह नजदीक के पुलिस थाने जा पहुंची शादी रुकवाने के लिए।
थाना प्रभारी ध्रुवज्योति बनर्जी को मामले का पता चला तो उसने होने वाले पति मोइदुल और हबीबा के परिवार वालों को थाने बुलाया। उन्हें समझाने के बाद होने वाली शादी टाल दी गई। हबीबा इससे खुश है। उसका कहना है कि उसकी उम्र अभी शादी करने की नहीं है। वह शादी करने के बजाए पढ़ना चाहती है। मां को इस बारे में बहुत समझाया लेकिन वह समझ ही नहीं रही थी। इसके बाद पुलिस अंकल कोजाकर घटना की जानकारी दी कि मेरे साथ क्या होने जा रहा है।
जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) केपी बारुई का कहना है कि किशोरी ने जिस तरह बाल विवाह का विरोध किया है वह प्रशंसनीय है। उसकी पढ़ाई पूरी हो सके इसक लिए किसी स्वयंसेवी संस्था से संपर्क किया जाएगा।
मालूम हो कि बाल विवाह की तैयारी को देखते हुए साल भर पहले पुरुलिया जिले की रेखा ने स्कूल के शिक्षकों की मदद से अपना विवाह रुकवा दिया था। इसी तरह जिले की वीणा ने भी हिम्मत दिखाई थी। लेकिन इसके बाद भी बाल विवाह किए जाने की घटनाएं बंद नहीं हुई हैं हबीबा की घटना से इसका पता चलता है।
गौरतलब है कि जयनगर हाई मदरसा में हबीबा छठवीं कक्षा में पढ़ती है। पिता जुल्फिकार मुल्ला मानसिक तौर पर बीमार है। मां मर्जिना बीबी सिलाई का काम करके परिवार का गुजारा करती है। पांच भाई-बहनों में हबीबा दूसरे नंबर की है। जिससे उसकी शादी तय की गई थी वह गांव में मिस्त्री का काम करता है। कुछ दिन पहले ही उनकी शादी तय की गई थी। पुलिस के मुताबिक मोइदुल शेख का कहना है कि लड़की की मां ने ही उसे अपनी बेटी से शादी करने का प्रस्ताव दिया था। जबकि महिला का कहना है कि आर्थिक तंगी के दौर में युवक ने शादी की बात की तो मैं इंकार नहीं कर सकी। पुलिस ने लड़की की पढ़ाई का आश्वासन दिया है, इससे मां खुश है। उसका कहना है कि मेरी बेटी की पढ़ाई पूरी हो सकेगी इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है। इसलिए अब उसकी शादी नहीं करनी है।

Friday, April 20, 2012

ममता के फैसले से होगा 200 करोड़ का घाटा



  मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी  ने एक बार फिर अपने तेवर दिखाए हैं हालांकि इसका नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में
 सेट टॉप बाक्स नहीं लगाए जाने से  कुल मिलाकर यह घाटा लगभग 200 करोड़ रुपए हो सकता है। केबल टीवी व्यापार से जुड़े मल्टीपल सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) से केंद्र सरकार की ओर से सेवा कर वसूली शुरू की गई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने मनोरंजन कर लेने की बात की गई थी। लेकिन कर वसूली के नियम कानून और वसूली में ढांचागत समस्या के कारण राजस्व वसूली विज्ञप्ति जारी करने के बाद आगे नहीं बढ़ सकी ।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से आगामी एक जुलाई से चार महानगरों में एमएसओ को डिजीटल करने के एलान के बाद राज्य में राजस्व वृद्धि का मौका मिला है। इससे एक ओर सेट टॉप बाक्स की बिक्री से बिक्री कर हासिल होगा दूसरे बाक्सकी तकनी के माध्यम सेपता चल सकता है कि कुल मिलाकर कितने लोग केबल देख रहे हैं। इस तरह कुल मिलाकर राज्य सरकार को लगभग 200 करोड़ रुपए की कमाई हो सकती है।
लेकिन राज्य सरकार की ओर से सेट टाप बाक्स लागू करने का विरोध किया जा रहा है। राज्य के नगर विकास मंत्री फिरहाद हाकिम ने दिल्ली में केंद्रीय सूचना- प्रसारण मंत्री से मुलाकात करके कहा है कि फिलहाल यह व्यवस्था लागू करने के पक्ष में नहीं हैं। इसका कारण यह बताया गया है कि केबल सेवा को विकसित (डिजीटलाइजेशन) करनेके लिए जितने सेट टॉप बाक्स की जरुरत है, उतने बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि केबल आपरेटर व्यापार से जुड़े कुछ लोग नहीं चाहते कि नई व्यवस्था लागू हो, इसलिए विरोध किया जा रहा है। इसके साथ ही सरकार का मानना है कि कुछ ग्राहक भी नाराज हो सकते हैं इसलिए विरोध किया जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद कें द्र सरकार ने 1995 के केबल टेलीविजन नेटवर्क कानून की सात नंबर धारा के तहत 2003 में केबल सेवा कंडीशनल एक्सेस सिस्टम (कैस) लागू करने का निर्देश दिया था। इसे मुंबई-दिल्ली-कोलकाता में लागू किया जाना था। इसके तहत कोलकाता को चार जोन में बांटा गया। इसके बाद केबल आपरेटरों के भारी विरोध के कारण वाममोर्चा सरकार इस मामले में पीछे हट गया। एक बार फिर वही होने जा रहा है।
नई व्यवस्था के तहत ग्राहक अपनी पसंद का चैनल देख सकते हैं, उन्हें केबल आपरेटरों की मर्जी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। क्योंकि अभी तो आपरेटर अपनी इच्छा के मुताबिक चैनलों में उलट-फेर करते रहते हैं। दूसरे केबल कारोबार पर सरकार का शिकंजा कुछ हद तक काम हो सकता था। अभी राज्य के पास यह जानने का साधन नहीं है कि कितने लोग केबल टीवी देखते हैं। लेकिन सेट टाप बाक्स चालू होने से इसका पता चल सकता। इससे मनोरंजन कर वसूली में भी आसानी होती।
मालूम हो कि कोलकाता में केबल आपरेटर एक ग्राहक के लिए महीने में 10 रुपए और जिले में पांच रुपए मनोरंजन कर देते हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि ग्राहक जितने मर्जी हों, नगर निगम में साल में एक बार 3500 रुपए जमा करने से ही छुट््टी हो जाती है। आरोप है कि केबल ग्राहकों की संख्या की जानकारी हासिल करने का कोई तरीका नहीं होने से राज्य सरकार को घाटा उठाना पड़ रहा है। वित्त विभाग के पास कोलकाता के 1300 और जिले के 1400 आपरेटरों की सूची है।
सूत्रों के मुताबिक किसी आपरेटर के 400 ग्राहकहोते हैं तो वह महज 50-60 लोगों के बारे में बताया है, यहां तीन-चार हजार ग्राहकों वाले आपरेटर भी हैं लेकिन कोई भी सही संख्या की जानकारी सरकार को नहीं देता।

Wednesday, April 18, 2012

हंगामा करने वाले छात्रों को बेसू ने विश्वविद्यालय से निकाला



 शराब पीकर हंगामा करने और पुलिस कर्मचारियों के साथ मारपीट करने के आरोप में बंगाल इंजीनियरिंग एंड साइंस यूनिवर्सिटी( बेसू) ने सख्त सजा देने का फैसला किया है। इसके तहत 18 छात्रों के खिलाफ सजा सुनाई गई है। इसमें हंगामा करने के मुख्य आरोपी छात्र को सदा के लिए विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया है। जबकि उसकी मदद करने के मामले में दो छात्रों को दो साल के लिए निकाला गया है। इसके अलावा छह छात्रों को आखरी सेमेस्टर के तीन पश्नपत्र की परीक्षा देने से रोक दिया गया है। जबकि नौ छात्रों के अभिभावकों को बुलाकर चेतावनी देने और मुचलका लिखवाने का फैसला किया गया है जिससे वे लोग दोबारा ऐसी घटना में शामिल न हों।
बेसू के उपकुलपति अजय कुमार राय के मुताबिक कुछ लोगों की गलती के कारण सालों से प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान का नाम खराब नहीं किया जा सकता है। 12 अप्रैल को हुए हंगामे की जांच करने के लिए प्रबंधन की ओर से एक जांच कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी ने मामले की जांच में बाद सोमवार को पेश रिपोर्ट में 18 छात्रों को दोषी पाया। इसके बाद उनकी गलती के मुताबिक ही सजा तय की गई है। अनुशासन कमेटी ने रिपोर्ट के आधार पर सजा देने की सिफारिश की थी। हालांकि प्रबंधन में विश्वविद्यालय में सुरक्षा व्यवस्था में खामी की बात स्वीकार की है।
उन्होंने बताया कि शराब पीकर हंगामा करने के आरोप में मुख्य आरोपी मंटू प्रसाद को विश्वविद्यालय से हमेशा के लिए निकाल दिया गया है। वह मेकेनिकल विभाग का चतुर्थ साल का छात्र था। उसकी मदद करने के आरोप में उसके साथ पढ़ने वाले सूचना और प्रोद्योगिकी विभाग के राहुल तिवारी और मेकेनिकल विभाग के दीपक कुमार को दो साल से निकाल दिया गया है। इसके साथ ही उन्हें संबंधित होस्टल व हाल से सदा के लिए बहिष्कृत किया गया है। इतना ही नहीं उनके अभिभावकों को भी बुलाया गया है। इसके अलावा कुछ दिन में शुरू होने वाले अंतिम सेमीस्टर के तीन प्रश्नपत्र की परीक्षा में छह छात्रों को नहीं बैठने दिया जाएगा। इनमें मेकनिकल विभाग का राजज्योति मंडल व अभय कुमार गुप्ता, माइनिंग विभाग का अविनाश बड़ुआ, सफीकुल आलम, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग का अंबुज त्रिपाठी और कंप्यूटर विज्ञान का छात्र नीरज असपा शामिल है।
उन्होंने बताया कि रात दस बजे के बाद विश्वविद्यालय से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाई हुई है। लेकिन इसके बाद भी बाहर निकल कर हंगामा करने वालों में शामिल नौ विद्यार्थियों के अभिभावकों को बुलाया गया है। उन्हें मुचलका लिख कर देना होगा कि दोबारा उनके लड़के ऐसी गलती नहीं करेंगे। ऐसा फिर किया तो उन्हें सख्त सजा मिलेगी। इसके साथ ही पुलिस प्रशासन से कहा जाएगा कि विश्वविद्यालय के 300 मीटर के दायरे में शराब और नशीले पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाई जाए।

Thursday, April 12, 2012

कटेगा 50 हजार शिक्षकों का एक दिन का वेतन


 राज्य के प्राइमरी, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में बीते 28 फरवरी को हड़ताल के दिन गैर हाजिर रहने वाले लगभग 50 हजार शिक्षकों का एक दिन का वेतन काटा जाएगा। हालांकि उनकी नौकरी की मियाद नहीं घटाई जाएगी। इस मामले में शिक्षक-शिक्षिकाएं अदालत में मामला कर सकते हैं। इसमें सरकार को कोई आपत्ति नहीं है।
स्कूल शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव विक्रम सेन के मुताबिक स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी के निर्देशानुसार हड़ताल के दिन स्कूल नहीं पहुंचने वाले शिक्षकों की सूची बनाई गई है। राज्य के वित्त सचिव हरिकृ ष्ण द्विवेदी के निर्देश के बाद जो अध्यापक गैर हाजिर रहने का कारण नहीं बता सकेंगे, सिर्फ  ऐसे लोगों का ही  एक दिन का वेतन काटा जाएगा।
उन्होंने बताया कि यह वेतन अप्रैल महीने की तनख्वाह से काटा जाएगा। कुल मिलाकर एक लाख 75 हजार स्कूलों में और उच्च प्राइमरी, माध्यमिक  व उच्च माध्यमिक स्कूलों में डेढ़ लाख शिक्षक काम करते हैं।  इस तरह कुल मिलाकर दो लाख 75 हजार शिक्षक-शिक्षिकाएं राज्य में काम करते हैं। हड़ताल के दिन 50 हजार से ज्यादा शिक्षक-शिक्षिकाएं गैर हाजिर थे।
मालूम हो कि 22 फरवरी को मुख्य सचिव समर घोष ने एक सर्कुलर जारी करके कहा था कि हड़ताल के दिन सभी लोगों को उपस्थित होना होगा। किसी तरह की छुट््टी उस दिन मंजूर नहीं की जा सकेगी। इसके साथ ही दफ्तर खोलने के साथ ही वाहनों को चलाने का भी निर्देश दिया गया था। इसके साथ ही कहा गया है कि शिक्षक चाहें तो अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। सभी शिक्षकों की नियुक्ति सरकारी नियमानुसार ही हुई थी।
हालांकि सरकारी निर्देश का वामपंथी और गैर वामपंथी शिक्षक संगठनों की ओरसे भारी विरोध किया जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार सीधे सहायता प्राप्त स्कूलों के कर्मचारियों का वेतन नहीं काट सकती। सरकारी फैसले के खिलाफ अदालत में मामला दायर किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद 27 फरवरी को एलान किया था कि हड़ताल के दिन सभी सरकारी कर्मचारियों को हाजिर रहना होगा। इसके बाद वित्त सचिव की ओर से तीन मार्च को सभी विभागों में सर्कुलर भेज कर कहा था कि गाड़ियां बंद रहने और सामान्य बीमारी का बहाना बनाने वालों की छुट््टी मंजूर नहीं की जाएगी। हालांकि किसी बीमारी के कारण कर्मचारी अस्पताल में भर्ती हुआ हो या परिवार के किसी सदस्य की मौत हो गई हो तब छुट््टी मंजूर की जा सकती है।
मालूम हो कि शिक्षा मंत्री ब्रात्या बसु ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए चार मार्च को कहा था कि हड़ताल के दिन किसी कर्मचारी का हाजिर रहने का अधिकार है वैसे ही गैर हाजिर रहने का भी अधिकार है। हालांकि उनके बयान का भारी विरोध हुआ था।
स्कूल शिक्षा अधिकारी डी मुखर्जी के मुताबिक प्राइमरी और माध्यमिक स्कूलों में पर्यवेक्षकों ने गैर हाजिर लोगों की सूची तैयार की है। 31 मार्च तक इसे जमा करने के लिए कहा गया था। लेकिन गैर हाजिर नहीं रहने वालों को इसके लिए कारण बताने थे। ऐसे लोगों की सूची इकट्ठा करने में देरी होने के कारण वेतन काटने में देरी हुई है।