Tuesday, October 30, 2012

सेट टाप बाक्स के मुद्दे पर ममता ने दी आंदोलन की धमकी


 मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कहा कि 31 अक्तूबर के बाद  टेलीविजन ट्रांसमिशन को डिजीटाइजेशन के कारण बंद किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। इस  मुद्दे पर उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र राज्यों के साथ टकराव के रास्ते पर जा रहा है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब सेट टाप बाक्स पास में नहीं हैं, तब केबल टीवी वाला एनालाग सिस्टम जारी रखा जाना चाहिए। केंद्र सरकार को इसका अधिकार नहीं है कि वह टीवी ब्लैक आउट कर दे। हम केंद्र के इस फैसले को आसानी से स्वीकार नहीं कर सकते।
उन्होंने जून महीने में केंद्र सरकार को टीवी डिजीटाइजेशन की अवधि बढ़ाने के लिए लिखा था। लेकिन इस बारे में किसी तरह का जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने खेद जाहिर किया। उन्होंने कहा कि अगर जरुरत हुई तो हमलोग राज्य स्तर पर आंदोलन करेंगे और बाद में देश भर में आंदोलन किया जाएगा। उन्होेंने इस मौके पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहाकि टीवी के डिजीटाइजेशन के मुद्दे पर केंद्र राज्यों के साथ टकराव के मूड में है।
इस बीच नगर विकास मंत्री फिरहाद हाकिम ने आज एमएसओ के साथ सेट टाप बाक्स की स्थित और 31 अक्तूबर के बाद की स्थित पर विचार-विमर्श किया। मालूम हो कि राज्य के सचिव और नगर विकास मंत्री ने केंद्र सरकार को अलग-अलग पत्र लिख कर मांग की थी कि फिलहाल एनालाग सिस्टम चलने दिया जाए। लेनिक केंद्र की ओर से किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया गया। इस बीच नगर विकास मंत्री ने एमएसओ से अपील की है कि 31 अक्तूबर के बाद केबल टीवी का प्रसारण बंद नहीं किया जाए। लेकिन सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार के मौजूदा रवैये को देख कर नहीं लगता कि टीवी के पर्दे पर अंधेरा नहीं छाएगा।
इधर जैसे-जैसे अंतिम तिथि नजदीक आती जा रही है, लोग ज्यादा से ज्यादा सेट टाप बाक्स लगा रहे हैं। बीते कुछ दिनों में रिकार्ड संख्या में डीटीएच और सेट टाप बाक्स लगाए गए हैं। मंगलवार को महानगर कोलकाता और हावड़ा में ज्यादातर लोगों में टीवी स्क्रीन पर अंधेरा छाने और डीटीएच व्यवस्था लगवाने के लिए दुकानों में भीड़ सुबह से ही देखी जा रही थी। आंदुल रोड पर ऐसे ही एक विक्रेता ने बताया कि पिछले छह महीनों में जितने डीटीएच कनेक्शन नहीं लगे उतने बीतेएक हफ्ते में लग गए हैं। बुधवार आखरी दिन उम्मीद है कि सारे रिकार्ड टूट जाएंगे।
कें द्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर लोग डीटीएच या सेट टाप बाक्स लगवा चुके हैं जबकि एक एमएसओ के मुताबिक सोमवार तक मुश्किल से 50 फीसद लोगों के घरों में सेट टाप बाक्स ही लग सकें हैं।


Monday, October 29, 2012

घटिया दर्जे की फिल्मों ने मणि को निर्देशन के लिए प्रेरित किया


    रोजा, बांबे और दिलसे जैसी   फिल्में बनाने वाले प्रसिद्ध  फिल्मकार मणि रत्नम का कहना है कि फिल्मों में आना महज एक हादसा है। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान  कहा  कि करीब 35 साल पहले एक प्रमुख  बिजनेस स्कूल से एमबीए करने के बाद वह प्रबंधन सहालकार के रूप में अच्छा धन कमा  रहे थे और बेहतर जीवन गुजार रहे थे और यह संयोग ही था कि वे अचानक फिल्म उद्योग से जुड़ गए ।
 फिल्म जगत से जुड़ने के दिनों को याद करते हुए मणि बताते हैं कि वह महज एक हादसा था। मुझे फिल्मों से एक दर्शक से ज्यादा कुछ लगाव नहीं था। कभी भी यह नहीं सोचा था कि इसे कैरियर के तौर पर अपनाना है। यह भी नहीं सोचा था कि बैठ कर लिखुगां और वास्तव में फिल्म निर्देशन करूंगा। दूसरे दर्जे की तामिल फिल्में देख-देख कर व्यथित हुए मणि ने ठान लिया कि घटिया फिल्मों का दौर बदलना जरुरी है।
कमर्शियल तौर पर सफल और आलोचकों की प्रशंसा बटोरने वाले मणि आज भी मानते हैं कि तामिल में अच्छी फिल्मों का निर्माण किया जाता तो वे आज एक फिल्मकार नहीं बनते। उन दिनों की याद करते हुए वे कहते हैं कि बालाचंदर और महेंद्रन को छोड़ कर ज्यादातर लोगों से बनाई जाने वाली फिल्में अच्छी नहीं थी। तामिल सिनेमा जगत का रवैया स्थिरता वाला था। आम तौर पर साधारण स्तर की फिल्मों का निर्माण किया जा रहा था। फिल्मों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखने वालों को भी लगता था कि इससे बेहतर कुछ किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि जब उनके मित्र रवि शंकर ने 1979 में कन्नड़ भाषा में एक फिल्म बनाने की तैयारी शुरू की तो पहली बार उन्होंने फिल्मों के लिए कलम थामी और उस फिल्म की पटकथा लिखी। हालांकि तब तक लिखने से मात्र इतना संबंध था कि होटल से पिता को पत्र लिखता था रुपए मांगने के लिए, इसके अलावा कभी कुछ नहीं लिखा था। पटकथा लेखन से कैरियर बदलने का सोचा और फिल्म निर्देशन करने का फैसला किया। यह फैसला तब किया गया जब यह पता चल गया कि मैं पटकथा लिख कर निर्देशक को बेच सकता हूं। इस बारे में सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद ही फिल्म जगत में जाने के बारे में सोचा गया।
उनकी पहली फिल्म कन्नड़ भाषा में पल्लवी अनुपल्लवी (1983) थी, इसके नायक अनिल कपूर थे। इसके बाद उन्होंने कला और वाणिज्य में तालमेल रखते हुए फिल्में बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने कई दक्षिण भारतीय भाषाओं में फिल्म निर्माण किया। कमल हासन के अभिनय से सजी उनकी नायकन को टाईम पत्रिका ने सौ सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में शामिल किया था। हालांकि फिरोज खान ने जब इसे हिंदी में दयावान के नाम से बनाया तो फिल्म फ्लाप हो गई।
मणि निर्देशित युवा और बांबे को समाज के कई वर्ग की ओर से खास तौर पर सराहा गया। हालांकि उनका मानना है कि फिल्में संदेश देने के लिए नहीं बनाता। फिल्में अपने अनुभव को दूसरे से बांटने या किसी विषय पर अपने विचार प्रकट करना है। एक समय पर एक ही फिल्म निर्देशित करने वाले मणि ने एक पुस्तक में अपने विचार प्रकट किये हैं। उनका मानना है कि यहां आने वाला व्यक्ति यहीं का होकर रह जाता है।

Monday, October 15, 2012

पत्रकार रंजीत सिंह लुधियानवी



पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद सुल्तान अहमद ने महालया के दिन एक भव्य समारोह में पत्रकार रंजीत सिंह लुधियानवी को सम्मानित किया गया। ऋषि अरविंद चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से राज्य के वरिष्ठ पत्रकारों को पत्रकारिताके क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया गया। जनसत्ता, अजीत समाचार, अजीत और उनके पंजाबी मासिक पत्रिका के माध्यम से समाज को रोशनी देने की खासतौर पर प्रशंसा की गई। इस मौके पर आल इंडिया रेडियो के पत्रकार मोहम्मद मोहिसन, एबीपी आनंद के सुनीत हालदार, टेलीग्राफ की मीता मुखर्जी, पंचायत वार्ता के फटिक साव को सम्मानित किया गया।
इस मौके पर ट्रस्ट की ओर से साप्ताहिक बांग्ला ग्रीन लैंड समाचार पत्र का अहमद ने लोकार्पण किया। समाचार पत्र के कार्यवाहक संपादक बंकिम चक्रवर्ती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कारोबार की होड़ में यह समाचार पत्र शामिल नहीं होगा और पत्रकारिता के मानदंड की पहरेदारी करते हुए युवा पत्रकारों को बढ़ावा देने का काम करेगा। कार्यक्रम का संचालन शेख सोफियर रहमान और धन्यवाद ज्ञापन संजय पात्र ने किया।

दस रुपए में डाक्टर बाबू


  कोलकाता, 15 अक्तूबर (जनसत्ता)। साठ साल की उम्र में अवकाश ग्रहण करने के बाद ज्यादातर लोगों को आगे क्या करना है, इस बारे में सोचते ही रहते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन्हें अवकाश ग्रहण करने के बाद की जिंदगी योजनाबद्ध तरीके से प्लान कर ली हो। ऐसे ही लोगों में एक नाम डाक्टर कृष्णचंद्र बारुई का है। पूर्व स्वास्थ्य अधिकारी ने अवकाश प्राप्त करने के बाद लोगों को सस्ती डाक्टरी इलाज देने की ठान ली । इसके तहत वे लोगों का इलाज कर रहे हैं। एयरपोर्ट, श्यामबाजार और बारासात के बिसरपाड़ा में उनके तीन चेंबर हैं। एक जगह उनकी फीस 10 रुपए, दूसरी जगह 20 रुपए और तीसरी जगह 40 रुपए फीस है। पहला चेंबर उनका अपना है, इसलिए दस रुपए उनकी जेब में जाते हैं जबकि दूसरी जगह 10 रुपए किराये के तौर पर और तीसरी जगह पांच रुपए किराये के तौर पर मकान मालिक को देते हैं।
पहली बार 1973 में सरकारी नौकरी मिली और 2006 में स्वास्थ्य अधिकारी बने। अवकाश प्राप्त करने के बाद पांच साल तक स्वास्थ्य विभाग के सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गए लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया । इसके बाद ‘गरीबों के लिए डाक्टरखाना’ 2011 में शुरू किया। महानगर में कहीं 300, 500, एक हजार रुपए तो कहीं इससे भी ज्यादा डाक्टरों की विजिटिंग फीस है। इतना ही नहीं कई प्रसिद्ध डाक्टरों ने तो अपनी पीआर एजेंसी को ठेकादे रखा है। एजेंसी का काम डाक्टरों का प्रचार-प्रसार करना होता है।
डाक्टर बारुई अपना प्रचार तो कर रहे हैं लेकिन इसके लिए किसी एजेंसी का सहारा नहीं लिया गया है। हैंडबिल और टेबुल कैलेंडर छाप कर लोगों में बांटा जा रहा है। उनका कहनाहै कि 10 रुपए में गुजारा तो मुश्किल है लेकिन आम लोगों की भलाई के लिए यह काम किया जा रहा है।

Wednesday, October 10, 2012

एक से ज्यादा रसोई गैस के लिए कई लोग तलाक लेने को तैयार !



 रसोई गैस के लिए लोग तलाक तक लेने की सोचने लगे हैं। केंद्र सरकार की ओर से एक परिवार के लिए सबसिडी वाले रसोई गैस सिलिंडर के मामले में नया फरमान जारी करने से लोगों में दहशत, गुस्सा और नाराजगी देखी जा रही है क्योंकि चार सौ रुपए में मिलने वाला सातवां  सिलिंडर नौ रुपए से भी ज्यादा कीमत चुकाने के बाद ही मिल सकेगा। हालात ऐसे हो गए हैं लोग बढ़ी हुई कीमत का मुकाबला करने के लिए नए से नए तरीके सोच रहे हैं। कई लोग इंडक्शन कुकर खरीदने के बारे में सोच रहे हैं लेकिन कुछ लोग तो परिवार तोड़ने के बारे में ही सोचने लगे हैं।
सरकारी ऐलान के बाद रसोई गैस डीलरों से उपभोक्तायों की मानसिक हालात का पता चलता है कि अस्वाभाविक तौर पर बढ़ाई गई कीमत पर लोग कहां तक सोच सकते हैं। कई महिलाओं ने अपने ग्राहक के बारे में जानकारी देने वाले केवाईसी फार्म भरने से पहले डीलरों से पूछा कि हमारे घर में दो लोगों के नाम पर दो गैस कनेक्शन लिये गए हैं। फार्म में यह भरकर देने पर कि पति-पत्नी अलग हैं और एक साथ खाना नहीं पकता है तो क्या दो कनेक्शन रखे जा सकते हैं? जबकि कुछ लोगों का सवाल है कि क्या वकील से तलाक की चिट्ठी का इंतजाम करने के बाद अतिरिक्त सिलिंडर मिल सकेगा या नहीं। दक्षिण कोलकाता के एक डीलर का कहना है कि कई घरों में देखा जा रहा है कि मकान के नीचे सीढ़ी के आसपास साफ-सफाई की जा रही है। जिससे शादी के 30-32 साल बाद लोगों को यह दिखाया जा सके कि हम अलग-अलग हैं।
इसी तरह कई लोगों का कहना है कि हमारे ससुर शाकाहारी भोजन खाते हैं, इसलिए उन्होंने तय किया है कि अपना खाना खुद पका कर खाएंगे। बूढ़े ससुर को इसके लिए तो अतिरिक्त सिलिंडर मिलना ही चाहिए। रसोई गैस की कीमत में वृद्धि के एलान के बाद जहां कुछ लोग इंडक्शन कूकर खरीद रहे हैं वहीं यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि बिजली की लगातार बढ़ रही कीमत से इसका कोई फायदा भी होगा या नहीं। हालांकि दुकानदारों का कहना है कि पहले लोग इसके बारे में नहीं पूछते थे लेकिन अब खरीदने और इंडक्शन कूकर के बारे में पूछने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।
हालांकि इंडक्शन कूकर विक्रेताओं का दावा है कि इससे गैस के मुकाबले बहुत जल्दी खाना पकाया जा सकता है। यहां खाना जल्दी गर्म किया जा सकता है और बिजली का खर्च भी बहुत कम होगा। इसकी कीमत भी एक मध्यमवर्ग परिवार की क्रय शक्ति के भीतर  ही है। साधारण कूकर की कीमत तीन हजार रुपए से लेकर पांच हजार रुपए के बीच है। इसके साथ ही मुफ्त में तवा-प्रेशर कूकर भी मिल रहा है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि खामोश बैठने से कुछ होने वाला नहीं है। महंगाई का मुकाबला करने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा। इसलिए सभी परिवारों की ओर से कुछ न कुछ सोचा जा रहा है जिससे रसोई गैस की बढ़ी कीमतों को घटाया जा सके हालांकि लगातार बढ़ रही बिजली की दर लोगों को ज्यादा चिंतित कर रही है।
  गैस सिलिंडर वालों के लिए कुछ जरुरी तथ्य: रसोई गैस डीलरों की ओर से सबसिडी वाले छङ सिलिंडरों की सीमा निर्धारित किये जाने के बाद ग्राहकों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए केवाईसी फार्म भरे जा रहे हैं लेकिन इसमें गलत जानकारी देने वाले ग्राहकों के सभी कनेक्शन बंद हो सकते हैं। तेल कंपनियों और डीलरों से मिले आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल एक ही परिवार या एक ही ठिकाने पर एक से ज्यादा कनेक्शन लेने वालों को यह फार्म भरकर देना होगा। इतना ही नहीं एक व्यक्ति के दो अलग-अलग ठिकानों पर कनेक्शन हों, अलग कंपनियों के कई कनेक्शन हों प्राथमिक चरण में उन्हें ही यह फार्म भरना होगा। हालांकि बाद में सभी ग्राहकों को फार्म भरकर देना होगा।
केवाईसी फार्म ग्राहकों को मुफ्त में रसोई गैस वितरकों से मिल सकेगा। इसके लिए किसी भी तरह का मूल्य नहीं लिया जा सकता। कीमत लेना अपराध की श्रेणी में शामिल है। केवाईसी फार्म की जांच पहले पेट्रोलियम मंत्रालय का पोर्टल करेगा। इसके बाद वितरक की ओर से जांच की जाएगी। बाद में किसी तीसरे पक्ष से रैंडम तरीके से जांच करवाई जा सकती है। आगामी 31 अक्तूबर तक फार्म जमा देने की अंतिम तिथि है और पति-पत्नी और बच्चों के जितने भी रसोई घर हों, उसे एक ही परिवार माना जाएगा।
हाल तक सबसिडी वाले छह सिलिंडल लेने वाले ग्राहकों को भी 14 सितंबर के बाद सबसिडी वाले सिलिंडर मिल सकेंगे। बगैर सबसिडी वाले सिलिंडर की कीमत हर महीने की पहली तारीख को ग्राहकों को पता चल जाएगी। अभी तक अगर ग्राहकों के पास गैस की कापी या ब्लू बुक नहीं है तो ऐसे सभी ग्राहकों को  जल्दी से जल्दी प्राप्त करनी होगी। ग्राहक को मिलने वाली रसीद पर ही आगामी मार्च तक सबसिडी वाले तीन सिलेंडरों को ब्योरा दर्ज किया जाएगा।

Monday, October 8, 2012

सभी लोगों को केवाईसी फार्म भरने की आवश्यकता नहीं


 केंद्र सरकार की ओर से इस बीच घोषणा की गई है कि 14 सितंबर के बाद से आगामी 31 अक्तूबर तक सभी रसोई गैस के ग्राहकों को सबसिडी वाले ज्यादा से ज्यादा तीन सिलिंडर मिल सकेंगे। इसके बाद चौथा सिलिंडर बगैर सबसिडी के खरीदना होगा। इसकी कीमत बाजार दर से तय होगी। लेकिन बगैर सबसिडी वाले सिलिंडर क्या ज्यादा से ज्यादा खरीदे जा सकेंगे? तेल संस्था के अधिकारियों का कहना है कि नहीं ग्राहकों को इस तरह की छूट नहीं दी जाएगी। किसी ग्राहक की ओर से अस्वाभाविक संख्या में गैस सिलिंडर के लिए आर्डर मिला तो, ऐसे ग्राहकों पर नजर रखी जाएगी और जरुरत हुई तो कार्रवाई भी की जाएगी। इधर सिलिंडर पर एलपीजी डीलरों का कमिशन बढ़ा दिया है, इससे वे लोग खुश नहीं हैं और ज्यादा कमीशन की मांग कर रहे हैं।
हालांकि ग्राहकों का कहना है कि चार सौ रुपए का सिलिंडर सबसिडी के बगैर  दुगनी से भी ज्यादा कीमत पर मिलेगा, उस पर क्या निगरानी की जाएगी? ऐसे सिलिंडर तो जितनी जरुरत हो उतने मिलने ही चाहिए। इस बारे में आधिकारिक तौर पर गैस कंपनियों की ओर से कुछ नहीं कहा जा रहा है। लेकिन डीलरों का कहना है कि मनमर्जी के सिलिंडर नहीं मिल सकेंगे। इसका कारण पूछने पर एक डीलर ने बताया कि सबसिडी के बगैर दिया जाना वाला सिलिंडर पूरी तरह से सबसिडी मुक्त नहीं है। उनका कहना है कि फिलहाल कोलकाता में कमर्शियल गैस सिलिंडर की कीमत 1598 रुपए है। जबकि डीलर का कमीशन मिलाकर बगैर सबसिडी वाले सिलिंडर की कीमत लगभग 925 रुपए है। इस तरह 14.2 किलोग्राम बगैर सबसिडी वाले सिलिंडर की कीमत कमर्शियल मामले में लगभग 1200 रुपए होती है। इसका मतलब यह है कि केंद्र सरकार की ओर से अभी भी टैक्स छूट के मामले में तकरीबन 275 रुपए की छूट दी जा रही है। इस तरह घरेलू और कमर्शियल सिलिंडर की कीमत में अभी भी खासा फर्क देखा जा रहा है। इसलिए माना जा रहा है कि घरेलू सिलिंडर का दुरुपयोग हो सकता है। जिससे ऐसे आर्डर पर निगरानी की जरुरत महसूस की जा रही है।
सूत्रों ने बताया कि पेट्रोलियम मंत्रालय का पोर्टल बनने के बाद इस बात का पता आसानी से चल जाएगा कि कौन कितने सिलिंडर का प्रयोग कर रहा है। साल में किसी परिवार के 12 सिलिंडर लगते हों और वह किसी साल 12 से लेकर 15 सिलिंडर की मांग करे तो इसे स्वाभाविक ही माना जाएगा। लेकिन ऐसे परिवार की ओर से 30 या इससे ज्यादा सिलिंडर की मांग की गई तो इसे अस्वाभाविक माना जाएगा।
इस बीच ग्राहकों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए कें द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से केवाईसी फार्म भरने के लिए कहा है। इस बारे में भी एक निर्देशिका दी गई है। आमतौर पर माना जा रहा है कि सभी लोगों को यह फार्म भर कर देना होगा। लेकिन मंत्रालय का कहना है कि एक ही परिवार या एक ही ठिकाने में एक से ज्यादा कनेक्शन लेने वाले ग्राहकों को ही इस बात की जानकारी देनी होगी। कई लोगों के पास सिलिंडर का हिसाब रखने के लिए खाता (ब्लू बुकलेट) नहीं है। मंत्रालय का कहना है कि इसके लिए ग्राहकों को जल्दी से जल्दी अपने डीलर से संपर्क करना होगा। इसके साथ ही कंजुमर्स नंबर भी लिख कर देना होगा। आगामी 31 मार्च तक ग्राहकों को बगैर सबसिडी वाले तीन सिलिंडर मिलेंगे, उसका विवरण रसीद पर लिखा होगा। इसके तहत एक बाई तीन, दो बाई तीन या अंतिम सिलिंडर पर तीन बाई तीन लिखा होगा। केवाईसी फार्म भरने की अंतिम तिथि 31 अक्तूबर है।
इधर एलपीजी गैस डीलरों की ओर से बढ़ाए गए कमीशन को लेकर भारी नाराजगी जताई जा रही है। बगैर सबसिडी वाले सिलिंडर की कीमत कोलकाता में 913 रुपए और सबसिडी वाले सिलिंडर की कीमत अभी भी 401 रुपए ही है। पहले डीलरों को 25 रुपए 83 पैसे कमीशन मिलता था अब सबसिडी वाले सिलिंडर के लिए 37 रुपए 25 पैसे और दूसरे सिलिंडर के लिए 38 रुपए किया गया है। हालांकि डीलरों का कहना है कि उनका खर्च बहुत बढ़ गया है। बगैर सबसिडी वाला सिलिंडर 375 रुपए 25 पैसे में खरीदा जाता है। एक ट्रक में 306 सिलिंडर आते हैं। एक ट्रक का भाड़ा लगभग एक लाख 15 हजार रुपएदेना पड़ता है। अब बगैर सबसिडी वाला सिलिंडर 887 रुपए में मिलेगा तो इसके लिए  ट्रक का किराया दो लाख 72 हजार रुपए की राशि खर्च करनी होगी। इसके साथ ही अस्पताल, एनडीओ को दिये जाने वाले विशेष सिलिंडर भी शामिल हैं, जिनकी कीमत ज्यादा है। इस तरह हमारा खर्च तो कई गुना बढ़ गया है लेकिन आमदनी उस तरह नहीं बढ़ी है।

Sunday, October 7, 2012

पूजा की भीड़ में जेब बचाने के लिए सुंदरियों से रहें सावधान !


  न्यू मार्केट और लिंडसे स्ट्रीट में दुर्गापूजा के मौके पर प्रतिदिन भारी भीड़ उमड़ रही है। मौका का फायदा उठाते हुए चोर, लुटेरे और पाकेटमार भी सक्रिय हो गए हैं। इसमें महिलाएं भी शामिल हैं। हाथ की सफाई करने वाली एक महिला तो कार लेकर शान से लोगों के बीच उतरती है कि लोग देखते ही रह जाते हैं।
बागुईहाटी के इलाके में रहने वाली एक महिला खासी पैसे वाली है और उसका पति भी महानगर का प्रतिष्ठित व्यापारी है। लेकिन पत्नी को हाथ की सफाई करने का शौक है। कोलकाता पुलिस ने लोगों को सतर्क करते हुए कहा है कि महिला से सावधान रहें वह पर्स, वैनिटी बैग से लेकर मोबाइल तक कुछ भी उड़ा सकती है।
पुलिस के मुताबिक भीड़ में शापिंग कर रही किसी सुंदरी से बातचीत हो जाए और अचानक पता चले कि पर्स गायब है तो समझें कि गलती हो गई। पुलिस ने महिला को गिरफ्तार भी किया था लेकिन बीमारी का झांसा देकर वह अदालतसे छूट गई। पुलिस की मानें तो ऐसे 40 से 50 पाकेटमार पूजा की भीड़ में महानगर में सक्रिय रहते हैं। इनका मुख्  काम  मोबाइल,पर्स, महिलाओं के बैग गायब करना ही है।
पुलिस का कहना है कि कोलकाता के अलावा झाड़खंड, गुजरात और मध्य प्रदेश से ही पाकेटमारों का दल हर साल की तरह यहां पहुंच गया है। मगरा, बंडेल, कांचरापाड़ा, बारुईपुर जैसे इलाके में ऐसे लोग किराए के मकान में रहते हैं  और अपना काम करने के बाद आसानी से निकल जाते हैं। हालांकि कोलकाता पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा भी है लेकिन इसमें खुश होने जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या अनगिनत है।
इस बीच पुलिस ने चौकसी के लिए सादा वर्दी में पुलिस कर्मचारी विभिन्न इलाकों में तैनात किये हैं। दोपहर 12 बजे से लेकर रात नौ बजे तक इनकी ओर से खास इलाकों पर नजर रखी जाएगी। कोलकाता पुलिस के खुफिया प्रमुख पल्लव कांति घोष के मुताबिक कोलकाता की सड़कों को 19 और मार्केट और शापिंग माल को 15 जोन में बांटा गया है। सीआईडी के 3 लोगों की टीम सभी इलाकों पर नजर रखेगी। सभी मार्केट के सामने सीसीटीवी कैमरे लगाए जा चुके हैं यह सुरक्षा व्यवस्था आगामी 18 अक्तूबर तक जारी रहेगी। हालांकि महानगर के 65 पुलिस थानों में कर्मचारियों की कमी का संकट बरकरार है। खुफिया विभाग के वाच दल की ओर से पाकेटमारों और छिनताईबाजों पर नजर रखी जाती है। लेकिन इस टीम में कुल मिलाकर दो इंस्पेक्टर, 12 सब इंस्पेक्टर और 21 कांस्टेबल हैं।


वंदे मातरम से लेकर विश्व शांति की कामना के साथ मां दुर्गा का आगमन



रंजीत लुधियानवी
 मां दुर्गा के आगमन का भव्य स्वागत करने के लिए जोश-खरोश के साथ तैयारियां की जा रही हैं। एक ओर आम लोग जहां नए-नए कपड़े, टीवी, फ्रीज से लेकर दूसरा सामान खरीदने में व्यस्त हैं वहीं पूजा कमेटियों के आयोजकों की ओर से भी अपने-अपने पंडालों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। हावड़ा ही नहीं हुगली और उत्तर चौबीस परगना जिलेसे हरसाल लोग बाली-बेलूड़-लिलुआ में पूजा देखने के लिए आते हैं। वंदेमातरम से लेकर विश्वशांति की थीम लेकर बाली नगर पालिका इलाके में बाली और बेलूड़ के पूजा आयोजक व्यस्त हैं।
बाली के सापुईपाड़ा इलाके में षष्ठीतला पूजा समिति की ओर से वंदे मातरम की थीम को लेकर तैयारी की जा रही है। दर्शनार्थियों को देश की आजादी के लिए लड़ने वालों की जानकारी देने के लिए पूजा कमेटी के आयोजकों की ओर से खासी मेहनत की गई है। जिससे यहां पहुंचने वाले एक बार तो सोचने के लिए मजबूर हो जाएं कि क्या यह वही देश है जिसके लिए इतने लोगों ने निस्वार्थ भाव से लड़ाई लड़ी और हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान कर दी। क्या आजादी के परवानों को सपने में भी इस बात की भनक थी कि देश आजाद होने के बाद घोटालों का गुलाम हो जाएगा? यहां बिचाली के घर में पंडाल के चारोंओर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले 35 महापुरुषों की छवि लगाई जा रही है आजादी के इतिहास की स्मृतियों से पंडालका चौतरफा सजाया जाएगा। चार मंजिला मूल पंडाल में भारत माता के तौर पर मां दुर्गा दिखाई देंगी।
शांतिनगर सेवा समिति कीओर से मानवता की भलाई के लिए विश्वशांति की थीम लेकर तैयारी की जा रही है। गेरुआ कपड़े से रंगा किसी काल्पनिक मंदिर की आकृति का पंडाल देख कर लोग आकर्षित हुए बिना नहीं रहेंगे। देवी की मूर्ति पारंपरिक ही रहेगी।
नेताजी संघ ने इस बार लोगों को ओमाईगाड की तर्ज पर लोगों को स्वर्ग की सैर कराने की ठानी है। इसलिए यहां आने वालों को हिंसा के इस तौर में शांति का आनंद मिल सकेगा। देवी भी लोगों को शाति का संदेश ही देते दिखेंगी।  स्वर्ग राज्य की थीम को लेकर सिंह द्वार पार करने के बाद बादलों से गुजरते हुए यहां आने वालों को लगभग 20 फीट की चढ़ाई चढ़नी होगी। वहां देवराज इंद्र के दरबार में परियां और अप्सराएं दर्शनार्थियों का स्वागत करेंगी। यहां अप्सराओं का नृत्य देखने के बाद ही आप बगैर शस्त्र की देवी के दर्शन कर सकेंगे। देवी के दसों हाथों मेंं ही शांति का संदेश देते फूल रहेंगे।  आयोजकों का मानना है कि शांति का संदेश लेकर जाने वाले हिंसा से दूर होंगे और राज्य में हिंसा, बलात्कार जैसी घटनाओं पर रोक लगेगी।
बाली उ त्तरपल्ली सार्वजनिन (नव युवा संघ) ने 64 वें साल में पद्म फूल को अपनी थीम में पिरोते हुए पर्यावरण के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए फाईबर से 108 फूल बनाए जा रहे हैं। बाली देशबंधु क्लब सार्वजनिक दुर्गोत्सव कमेटी ने विधानसभा भवन को यहा लाने की अंतिम तैयारी कर दी है। सुरक्षा के ताम­ााम से गुजरने के बाद ही कहीं आप विधानसभा में प्रवेश कर सकेंगे। बरामदे में महान लोगों के चित्र और अंदर-बाहर लोगों को निहारते हुए सीसीटीवी कैमरें होंगे।
बाली बदामतलासार्वजनिक दुर्गा पूजा कमेटी में राजस्थान की शिल्प कला दिखाई देगी। बाली-बैरकपुर सार्वजनिक दुर्गापूजा के पंडाल में इंद्र देव का राज दरबार पेश किया जा रहा है। बेलूड़ पालघाट लेन के इस पंडाल में प्लास्टर आफ पैरिस से बनाए दूसरे देवता भी मौजूद रहेंगे। मूर्ति कृष्णनगर से यहां लाई जाएगी, नवमी के दिन 51 किलोग्राम चावल से अन्न कूट का आयोजन होगा।
बेलूड़ निस्को हाउसिंग पूजा कमेटी की ओर से 35 फीट ऊंचा बांस का किला बनाया जा रहा है। यहां पहुंचने के लिए गहरे नाले को पार करना होगा। इस नाले में मगरमच्छ भी रहेंगे। कुमिल्लापाड़ा पल्लीमंगल समिति जयपुर के चंद्र महल की आकृति का पंडाल बना रही है। सापुईपाड़ा बालक संघ 12 नंबर पोल के नजदीक इस बार ब्हाईट हाउस की आकृति का पंडाल बना रहा है। निश्चिंदा बारोवारी पूजा कमेटी की ओर से राजबाड़ी के नाट्यमंदिर की आकृति का पूजा पंडाल बनाया जा रहा है। रजवाड़ों की याद दिलाता पंडाल, भीतर पारंपरिक मां दुर्गा देखते ही बनेगी।
दूसरी ओर लिलुआ मिताली संघ के आयोजकों की कल्पना ही अलग है। आधुनिकीकरण के दौर में जहां जमीन घटती जा रही । किसी जमाने में डाक्टर लोगों को सलाह देते थे कि सुबह घास पर चलना चाहिए, इससे तन-मन तो स्वस्थ रहता ही है आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। लेकिन जमीन नहीं रहने से महानगर के लोगों को घास के बारे में जानकारी ही नहीं है। नई पीढ़ी के लिए तो कंप्यूटर और इंटरनेट ही रह गया है। इसलिए पूजा कमेटी के आयोजकों ने लोगों को घास के बारे में बताने के लिए पूजा पंडाल ही घास से बनाने की ठान ली है।
घोषपाड़ा सार्वजनिक दुर्गापूजा  पहुंचने वालों को ऐसा महसूस होगा कि वे तिरुपति के मंदिर में पहुंच गए हैं। पंडाल के बाहर देव-देवताओं की तकरीबन 200 छोटी-बड़ी मूर्तियों के दर्शन होंगे जबकि भीतर लकड़ी की कारीगरी देखने लायक होगी। डानबास्को विवेकानंद सम्मेलनी ने   हिमाचल प्रदेश को थीम बनाया है। यहां पत्थरों के आठ मंदिरों के बाद असली मंदिर में आठ हाथों वाली मां शेरावाली के दिव्य  दर्शन होंगे।

दक्षिण हावड़ा में मंदिर, मशरुम और एंबुलेस



रंजीत लुधियानवी
 दक्षिण हावड़ा में भी पूजा की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। कभी-कभार होने वाली बारिश से भले ही लोग आशंकित हैं। लेकि न इसके बावजूद हर साल की तरह इस साल भी पूजा कमेटी के आयोजक जोर-शोर से ज्यादा से ज्यादा लोगों को पंडालों की ओर आकर्षित करने के लिए जी-जान से जुटे हैं। इस दौरान कोई भव्य मंदिर बना रहा है तो कोई मरीजों के इलाज के लिए फालतू के खर्च में कटौती करते एंबुलेंस खरीद रहा है। इतना ही नहीं मशरुम की खेती के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए भी पूजा आयोजक जुटे हुए हैं। राजनीतिक दलों ने तो पहले ही पूजा के दौरान प्रचार-प्रसार की तैयारियां कर रखी हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया जा सके। सभी दलों का मानना है कि पंचायत चुनाव में ज्यादा देरी नहीं है। ऐसे में मतदान से पहले दुर्गापूजा ही सबसे बड़ा प्लेटफार्म है जहां हजारों  लोगों को एक साथ बगैर ज्यादा मेहनत किये अपनी ओर खींचा जा सकता है।
हांसखाली पुल बकुलतला इलाके में चांदमारी रोड मंदिर पूजा कमेटी मंदिर की आकृति के पंडाल को जूट से सजाने में व्यस्त है। रास्ते के किनारे जिले के विभिन्न इलाके से लोग यहां पू जा देखने पहुंचते है। शिवपुर नवारुण संघ ने बाउल गीत के सहारे जीवन-यापन करने वालों की पीड़ा दर्शाने के लिए गांव का माहौल बनाने की ठान ली है। नृत्य करती मां दुर्गा प्राचीन संगीत से जुड़े लोगों की जीवन शैली में बदलाव कर सकती हैं ऐसा पूजा कमेटी के आयोजको का मानना है।
काजीबगान लेन सोशल वेलफेयर एसोसिएशन के आयोजकों का मानना है कि पूजा के दौरान लोगों को ऐसी बातों की जानकारी देनी चाहिए जिससे समाज का कुछ भला हो सके। इसके लिए इस बार मशरुम के गुणों की जानकारी देने की ठानी गई है। सेहत के लिए फायदेमंद मशरुम की खेती में भी ज्यादा मेहनत नहीं लेकिन दिनों-दिन इसकी उपज घटती जा रही है। रोशनी, बिचाली, मिट््टी का प्रयोग करके पत्थर की मूर्ति पर्यावरण के साथ ही मशरुम को केंद्र में रखकर लोगों को ज्ञान की रोशनी प्रदान कर सकेगी, ऐसा पूजा कमेटी के आयोजकों का मानना है।
शिवपुर षष्ठीतला बारोवारी पूजा कमेटी ने इस बार फालतू का खर्च नहीं करने का फैसला किया है। इसके तहत लोगों के चंदे से मिलने वाली भारी रकम लोगों की भलाई के लिए ही खर्च की जाएगी। इसके तहत एक एंबुलेंस, एक शव लेकर जाने वाली गाड़ी खरीदने के साथ ही दंत चिकित्सा केंद्र खोला जा रहा है। इसी इलाके के निमतला बारोवारी कमेटी के आयोजकों ने बोटानिकल गार्डेन में डेढ़ सौ साल पुराने बरगद के पेड़ की रक्षा कैसे की जाए,इस बारे में यहां आने वालों को जानकारी देने की योजना बनाई है। इसलिए प्राचीन पेड़ की आकृति का पंडाल बनाया जा रहा है।
पानी गिरता है तो प त्ते हिलते हैं यह थीम लेकर 2012 में सांतरागाछी कल्पतरु स्पोर्टिंग क्लब तैयारी कर रहीहै। लोहे की रड पर टीन की छत से तार, जाली, पाइप और कांच का व्यवहार किया जा रहा है। स्क्रैप लोहे और दूसरी वस्तुओं को लेकर ऐसा नजारा पेश किया जा रहा है जिससे यहां आने वाले को लगे कि प त्ते के उपर पानी पड़ा हुआ है। देवी की मूर्ति देखकर लोगों को लगेगा कि पीतल की मूर्ति है।
शिवपुर नीलरतन मुखर्जी रोड सम्मिलित नागरिक वृंदकी ओर से दुर्गापूजा में पर्यावरण की सुरक्षा पर खास जोर दिया जा रहा है। लगातार काटे जा रहे पेड़ और जलाशय के भरने से वातावरण प्रभावित हो रहा है। वाहनों और कारखानों के कारण ज्यादा से ज्यादा प्रदूषण फैल रहा है।
ग्रामीण हावड़ा में रहने वालों के लिए दुर्गापूजा के मौके पर पहला पड़ाव रामराजातला रेलवे स्टेशन रहता है। यहां उतर कर शंकरमठ की पूजा देखने के बाद ही लोग कहीं और जाने की सोचते हैं। हर साल की तरह इस साल भी पूजा पंडाल के आसपास भारी मेला लगेगा। सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां तो होंगी ही पहली बार पश्चिम बंगाल से प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बने हैं इसलिए पूजा पंडाल राष्ट्रपति भवन की आकृति का बनाया जा रहा है।

Monday, October 1, 2012

सेट टॉप बाक्स लगाएं या टीवी भूल जाएं!


 




रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 1 अक्तूबर (जनसत्ता)। इस महीने की 31 तारीख तक सेट टॉप बाक्स या किसी कंपनी की डिश नहीं लगाई गई तो टीवी देखना भूल जाएं क्योंकि आपका टीवी स्क्रीन काला हो जाएगा। इस तरह के विज्ञापन धड़ाधड़ टीवी पर दिखाये जा रहे हैं। किसी लोकप्रिय कार्यक्रम के बीच अचानक टीवी के पर्दे पर अंधेरा छा जाता है जिससे लोगों को पता चल सके कि महीने की अंतिम तारीख के बाद क्या हो सकता है। हालांकि महानगर कोलकाता, हावड़ा में अभी भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जिनका मानना है कि एक बार फिर परियोजना आगे बढ़ सकती है। इसलिए कई लोगों ने अभी तक सेट टाप बाक्स नहीं लगाया है तो कुछ लोग बाक्स को घर तो ले गए हैं लेकिन अभी तक लगाया नहीं है। जबकि कुछ लोग बाक्स लगाने के बावजूद अभी तक पुराने केबल पर ही कार्यक्रम देख रहे हैं।
सेट टॉप बाक्स की कीमत से लेकर मासिक भुगतान तक के बारे में अभी तक कुछ तय नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक महानगर कोलकाता में लगभग 67 फीसद लोगों ने टीवी का डिजीटाइजेशन करवा लिया है। देश में कुल मिलाकर 146 मिलियन लोगों के घरों में टीवी है। इसमें 51 फीसद लोग केबल टीवी देखते हैं, जबकि 25 फीसद लोग डीटीएस (डायरेक्ट टू होम) के माध्यम सेटीवी देखते हैं। बाकी बचे लोग दूरदर्शन के पुराने एंटीने या डीटीएच का प्रयोग करते हैं।
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथारिटी आफ इंडिया (ट्राई) के मुताबिक टीवी देखने वाले दर्शकों को एक सौ रुपए में कम से कम 100 फ्री टू एयर चैनल दिखाई देंगे। इसमें दूरदर्शन के 18 चैनल शामिल हैं। इसमें लोकसभा और राज्यसभा टीवी चैनल शामिल हैं। इसके अलावा कम से कम पांच-पांच  समाचार और करेंट एफेयर्स, सूचनात्मक, खेल, बच्चों के चैनल, संगीत और क्षेत्रीय चैनल होने चाहिए। हालांकि दर्शक अभी तक दुविधा में फसे हुए हैं। ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं चल रहा है कि कितने रुपए प्रति माह देने होंगे।
इस बीच कुछ आपरेटरों की ओर से सेट टॉप बाक्स के चैनलों के  बारे में सूचना दी गई है। डिजीकेबल के मुताबिक 145 चैनल के लिए 180 रुपए, 151 चैनल के लिए 200 रुपए, 165 चैनल के लिए 250 रुपए देने होंगे।  सिटी केबल के मुताबिक 118 चैनल के लिए एक सौ रुपए,151 चैनल के लिए 150 रुपए प्रति माह देने होंगे जबकि मंथन के मुताबिक  200 चैनल के लिए 180 रुपए और 300 चैनलों के लिए 270 रुपए लिये जाएंगे। हालांकि इस चार्ज में 12.3 फीसद सर्विस टैक्स ( सेवा कर) के अलावा दूसरे कर  शामिल नहीं किये गए हैं।  चैनलों की कीमत में फेरबदल भी हो सकता है।
इधर दर्शक परेशान हैं कि करे तो क्या करें जिससे उन्हें अपने मनपसंद सीरियल बगैर किसी रुकावट देखने में परेशानी न हो। कई लोगोंं से ात करने पर कुछ ही लोग हैं जिन्होंने नई व्यवस्था पर खुशी जाहिरकी है जबकि ज्यादातर लोग तो परेशान ही हैं। खास करके हावड़ा जिले के लोगों में सरकारी घोषणा को लेकर भ्रम बना हुआ है। अध्यापिका मनजीत कौर डिजीटाइजेशन से खुश हैं। उनका कहना है कि खाना खजाना जैसा चैनल पहली बार देखने को मिल रहा है। इसके अलावा कई पंजाबी चैनल भी दिख रहे हैं, इसके पहले केबल पर इस तरह के चैनल नहीं दिखते थे। तस्वीर भी साफ-सुथरी है। दूसरी ओर इस बारे में पूछने पर पत्रकार परबंत मैहरी ने बताया कि शिवपुर के चौड़ा इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग अभी तक सेट टॉप बाक्स के बजाए केबल पर ही टीवी देख रहे हैं। कई लोगों ने सेट टाप बाक्स लिए थे लेकिन उसमें तस्वीर ठीक नहीं आ रही थी। कई बार चैनल हैंग हो जाता है। इसलिए लोग केबल पर ही टीवी देख रहे हैं। क्या आप इस बारे में सोच रहे हैं तो उनका कहना है कि स्क्रीन काला हो गया तो केबल ही कटवा देंगे। क्या जरुरत है केबल देखने की। इसके बजाए सीडी और डीवीडी घर ले आएंगे और फिल्में और दूसरे कार्यक्रम आसानी से देख सकेंगे।
इसी तरह स्कूल शिक्षिका कावेरी चटर्जी का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि हावड़ा में ऐसा कुछ होने जा रहा है। इसलिए अभी हमलोगों ने सेट टाप बाक्स लगाने के बारे में सोचा ही नहीं है। जब टीवी बंद हो जाएगी तो देखेंगे कि क्या करना है। किताबों की दुकान चलाने वाले गोविंद रावत का कहना है कि केबल वाले से पूछा था लेकिन उसका कहना है कि हावड़ा में सेट टॉप बाक्स की कोई जरुरत नहीं है। जब तक चलता है आप लोग आराम से टीवी का मजा लें, बाद में हम लोग तो हैं ही।