Tuesday, January 29, 2013

तीन बेटियों की हत्या, मां को मिली उम्र कैद की सजा


 एक के बाद दूसरी और तीसरी लड़की की अस्वाभिक तरीके से मौत हुई थी। इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की। बेटी होने के अपराध में जन्म ग्रहण करने के बाद उनकी हत्या के आरोप में मां को गिरफ्तार किया गया था। बेटियों की हत्या के आरोप में बारासात अदालत ने मां सुमन अग्रवाल को उम्र कैद की सजा सुनाई है। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जहां सरकारी और गैर सरकारी प्रचार करके दावा किया जाता है कि लोग जागरुक हो रहे हैं वैसी हालत में पश्चिम बंगाल जैसे राज्य के किसी गांव नहीं कोलकाता शहर के नजदीक ही ऐसी हत्या की दर्दनाक घटना से लोग दहल गए हैं। इससे समाज में लड़कियों की हालत के बारे में भी जानकारी मिलती है। पुलिस सूत्रों का मानना है कि महिला शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमार नहीं थी, स्वस्थ थी। सरकारी वकील के मुताबिक महज बेटी होने के अपराध में ही उनकी हत्या की गई है, सबूतों से इसका ही पता चलता है।
हालांकि अदालत में सुनवाई के दौरान हत्या के आरोप में गिरफ्तार सुमन (25) इसके ज्यादा कुछ नहीं कह रही थी कि ‘मैं निर्दोष हंू’। बारासात अदालत में सातवें अतिरिक्त जिला व दायरा न्यायधीश शब्बार रशीदी ने जब हत्या के मामले में उम्र कैद का फैसला सुनाया तो उसने इतना कहा कि मुझे जेल नहीं घर जाना है।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि कुछ साल पहले अग्रवाल दंपति बड़ाबाजार के रुपचंद स्ट्रीट इलाके से बागुईहाटी थाना इलाके के जंगरा स्थित मंडपपाड़ा में किराए के मकान में रहने के लिए आए थे। सितंबर 2010 में पवन और सुमन की ढाई साल की बेटी राधिका की मौत हो गई थी। पुलिस की  ओर से मामले में पेश की गई चार्जशीट में कहा गया है कि दूसरी बेटी तुलसी की मौत भी उसी साल सितंबर महीने में हुई। महिला ने पति को फोन किया कि बेटी बीमार हो गई है, पति दफ्तर से घर लौटा और अस्पताल लेकर जाने पर पता चला कि पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई है। अस्पताल से मामले की जानकारी मिलने के बाद बागुईहाटी थाना पुलिस ने अस्वाभाविक मौत का मामला दर्ज किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि तुलसी को गला घोंट कर मारा गया है। इसके बाद पुलिस ने खुद ही (सुओमोटो )हत्या का मामला दर्ज किया। इसके बाद जब जांच शुरू की गई तो पुलिस को पता चला कि राधिका की मौत भी इसी तरीके से हुई थी। लेकिन जिस डाक्टर से मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल किया गया था उसने अस्वाभाविक मौत का जिक्र नहीं किया था। पुलिस जांच से पता चला कि अग्रवाल दंपति की तीन बेटियां थी। सबसे पहले 2009 में उनकी एक बेटी की मौत हो गई थी। तीन बच्चियों की मौत के समय घर में सुमन अकेली थी , इसका पता चलने के बाद पुलिस ने उसे अप्रैल 2011 में  गिरफ्तार कर लिया।
सरकारी वकील के मुताबिक तीन लड़कियों की हत्या के मामले में पति, डाक्टर और पड़ोसियों समेत कुल मिलाकर ग्यारह लोगों की गवाही ली गई। पति ने अदालत में बताया कि लड़कियों पर कुछ हद तक अत्याचार होता है, इसका उसे संदेह तो था लेकिन इसका नतीजा इतना भयंकर होगा कभी कल्पना नहीं की थी। गवाही के दौरान कई पड़ोसियों ने भी अदालत को बताया कि परेशान होकर सुमन कई बार बेटियों की पिटाई करती थी। हालांकि सुमन के पिता का मानना है कि मेरी बेटी निर्दोष है और उनका कहना है कि बड़ी अदालत में फैसले के खिलाफ अपील करेंगे।
इस घटना से दोनों परिवार ही नहीं आसपास के लोग भी सकते में हैं। कई लोगों को अदालत के फैसले के बाद भी यह बात अजीब सी लगती है कि एक मां एक नहीं तीन-तीन बेटियों का भविष्य बनाने के बजाए उनकी हत्या भी कर सकती है।

Thursday, January 24, 2013

बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश- वर्मा समिति

नई दिल्ली। न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने बलात्कार के लिए सजा बढ़ाकर 20 साल तक के कारावास और सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश की है लेकिन मौत की सजा का सुझाव देने से समिति बची है। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने बुधवार को सरकार को अपनी 630 पृष्ठ की रपट सौंप दी। इसमें बलात्कारियोंके लिए अधिक कडेÞ दंडात्मक प्रावधान के लिए आपराधिक कानून में संशोधन का सुझाव दिया गया है।
दिल्ली में 23 साल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के सप्ताह भर बाद 23 दिसंबर को तीन सदस्यीय समिति का गठन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने किया था। सामूहिक बलात्कार की इस घटना की पूरे देश में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और नाराज लोग सड़कों पर उतर आए। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध रोकने के लिए कानूनों में बदलाव की मांग तेज हुई।
समिति में हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ और पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम भी शामिल थे। समिति ने सिफारिश की है कि किसी व्यक्ति को जानबूझ कर छूना और अगर वह छूना यौन प्रकृति का हो और जिसे छुआ जा रहा है, उसकी सहमति के विरुद्ध हो तो कानून में उसे यौन हिंसा माना जाना चाहिए। समिति ने किसी के लिए धमकी भरे शब्द या भाव भंगिमा, किसी लड़की का पीछा करना, मानव तस्करी और यौन इच्छा के चलते घूरने सहित कई नए तरह के आपराधिक कृत्यों को लेकर सजा का प्रस्ताव किया है। किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से उस पर हमला करने की स्थिति में तीन से सात साल की सजा का प्रस्ताव समिति ने किया है।
समिति ने उन पुलिस अधिकारियों के लिए कडेÞ दंड का प्रावधान करने की सिफारिश की है जो शिकायत के बाद बलात्कार या यौन उत्पीड़न का मामला पंजीकृत नहीं करते। वर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन में समिति के निष्कर्षांे को बताते हुए कहा कि समिति का कार्य भारत में महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानपूर्ण माहौल मुहैया कराने में सरकार की विफलता का समाधान पेश करना था। सरकार ने अभी स्पष्ट नहीं किया है कि वह रपट पर कब तक कार्रवाई करेगी लेकिन वर्मा ने सरकार से जरूर कहा है कि समिति ने महीने भर में अपना काम पूरा किया है और उम्मीद करती है कि सरकार भी तेजी से कार्रवाई करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि सरकार समिति की रपट को पढेÞगी। सिफारिशों पर कब तक कार्रवाई की जाएगी, इसकी कोई समयसीमा अभी नहीं तय की गई है। वर्मा ने कहा कि समिति के कुछ प्रस्ताव देश की अपराध संहिता में संशोधन के लिए संसद में लंबित विधेयक में शामिल किए जा सकते हैं।
राजधानी में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद हजारों प्रदर्शनकारी दिल्ली के इंडिया गेट पर एकत्र हो गए और कई दिन जमकर प्रदर्शन किया। देश भर में गुस्सा फूटा। दोषियों को मौत की सजा या उन्हें नपुंसक बनाने की मांगें उठीं। वर्मा समिति ने हालांकि इस तरह की कोई सिफारिश नहीं की है। मौजूदा कानून के तहत बलात्कारी को सात साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। 16 दिसंबर वाली घटना के दोषियों को मौत की सजा इसलिए हो सकती है क्योंकि उन पर हत्या का आरोप भी है।
करीब महीने भर काम करने वाली वर्मा समिति को 80 हजार सुझाव मिले। इनमें महिला कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद और विदेश के कई प्रोफेसर और विद्वान शामिल थे। बलात्कार करने वाले मातहतों को नियंत्रित करने में विफल रहने वाले सैन्य या पुलिस अधिकारियों के लिए दस साल की सजा का प्रस्ताव समिति ने किया है।
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तैयार रपट का उल्लेख करते हुए वर्मा ने महात्मा गांधी और अरस्तू का उल्लेख किया। उन्होंने शिक्षा और सामाजिक बरताव में बदलाव की वकालत की। साथ ही कहा कि कानूनों का अनुपालन नहीं कर पाने के लिए शीर्ष पुलिस अधिकारयिों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। वर्मा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की मूल वजह शासन की विफलता है। सामूहिक बलात्कार घटना के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह बात और शर्ममाक है कि हर उस व्यक्ति ने उदासीनता दिखाई, जिसे अपनी ड्यूटी निभानी थी। 
जन प्रतिनिधित्व कानून में सुधार की आवश्यकता बताते हुए वर्मा समिति ने सुझाव दिया कि चुनावी उम्मीदवारों की ओर से उनकी संपत्ति के बारे में दिए गए ब्योरे की जांच नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (कैग) से कराई जा सकती है। वर्मा ने कहा कि यदि उम्मीदवार की ओर से सौंपा गया ब्योरा गलत पाया जाए तो उस स्थिति में उसे अयोग्य करार दिया जाए। वर्मा की रपट में कहा गया कि गलत ब्योरा दिया जाना जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत उम्मीदवार को अयोग्य करार दिए जाने का आधार बनना चाहिए।
‘राजनीति के अपराधीकरण’ और ‘अपराध के राजनीतिकरण’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन होना चाहिए ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखा जा सके और जनता का सच्चा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
वर्मा ने कहा कि किसी उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है या नहीं, इसकी पुष्टि होनी चाहिए और नामांकन पत्र की वैधता के लिए हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार का प्रमाणपत्र आवश्यक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई उम्मीदवार यदि अपने खिलाफ चल रहे मामले का खुलासा नहीं करता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। वर्मा ने कहा कि संसद और विधानसभा में जो लोग चुनकर पहुंचे हैं और अगर उनमें से किसी के खिलाफ जघन्य अपराध को लेकर आपराधिक मामला लंबित है तो उन्हें संसद और संविधान का सम्मान करते हुए अपना पद छोड़ देना चाहिए। 
खाप पंचायतों को आडेÞ हाथ लेते हुए वर्मा समिति ने कहा कि जो रुख खाप पंचायतें अपनाती हैं, वह तर्कहीन स्तर पर पहुंच गया है। समिति ने सरकार से कहा कि वह सुनिश्चित करे कि शादी के मामले में लोगों के फैसलों में इस तरह की संस्थाएं हस्तक्षेप नहीं करें। समिति ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के परिप्रेक्ष्य में खाप पंचायतों के रुख पर विचार करना प्रासंगिक था।
वर्मा ने कहा कि खाप पंचायतों का जाति व्यवस्था बनाए रखने का तर्क किसी व्यक्ति की स्वतंत्र रूप से अपना साथी चुनने की आजादी छीनता है। उन्होंने कहा कि किसी महिला को उसकी पसंद से शादी नहीं करने देने के गंभीर सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम हैं। ऐसा नहीं होने देने के लिए महिलाओं की स्वतंत्र रूप से आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाता है और उसकी शिक्षा, रोजगार व मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है।
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि भले ही यह रपट उनके नाम से जानी जा सकती है लेकिन यह भारत और विदेश की जनता से आए सुझावों का नतीजा है। उन्होंने कहा कि हमें 80 हजार सुझाव मिले और सभी को पढ़ा गया और रपट को अंतिम रूप देने से पहले उन पर विचार किया गया। परिपक्व प्रतिक्रिया के लिए उन्होंने युवाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि युवाओं ने हमें सिखाया, वह सब कुछ जिसकी जानकारी वरिष्ठ पीढ़ी को नहीं थी। उन्होंने कितने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाली दिल्ली पुलिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं होने का जिक्र भी वर्मा समिति की रपट में है। रपट में कहा गया कि इस अस्पष्टता को दूर करना चाहिए ताकि दिल्ली में कानून व्यवस्था की स्थिति कायम करने में अलग अलग जिम्मेदारियां न हों।
भारत में लापता बच्चों के सही आंकडेÞ उपलब्ध नहीं होने पर चिंता जताते हुए वर्मा ने कहा कि इन बच्चों को जबरन बाल श्रम के लिए ढकेला जाता है और उनका यौन उत्पीड़न भी होता है। वर्मा ने कहा कि हर जिलाधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह अपने जिले में लापता बच्चों की संख्या रखे। जिलाधिकारियों और पुलिस की ओर से लापता बच्चों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता का इसी बात से पता चलता है कि गृह मंत्रालय ने 30 जनवरी 2012 को राज्यों को भेजी एडवाइजरी (परामर्श) में कहा है कि इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
बलात्कारी को मौत की सजा का सुझाव नहींमहिला सुरक्षा के लिए कानूनों में व्यापक बदलाव की सिफारिश

महिला अपराध पर जस्टिस वर्मा ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट
नई दिल्ली । महिलाओं के विरूद्ध अपराध से निबटने के लिये कानून के क्रियान्वयन के लिए जो बात जरूरी है वह यह है कि इन्हें लागू करने वालों में संवेदनशीलता हो। न्यायमूर्ति जे एस वर्मा ने कहा कि राज्यों के पुलिस प्रमुखों ने बमुश्किल ही कोई जवाब दिया।
दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड पर वर्मा ने कहा : जिन्हें काम करना चाहिए, उनमें से हरेक में पूरी तरह से बेरूखी रही ।
वर्मा समिति को मिले थे 80 हजार सुझाव
यौन अपराधों से निपटने के लिए कानूनों में सुधार के उपाय सुझाने के लिए गठित न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति को लगभग 80 हजार सुझाव मिले और समिति ने अपना काम 29 दिन में संपन्न किया ।
तीन सदस्यीय समिति के अध्यक्ष वर्मा थे । उनके अलावा हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ और पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम बतौर सदस्य समिति में थे । केन््रद सरकार ने समिति को 23 दिसंबर 2012 को सिफारिशें देने का काम सौंपा था ।
वर्मा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की मूल वजह शासन की विफलता है । 16 दिसंबर को हुई सामूहिक बलात्कार घटना के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह बात और शर्ममाक है कि हर उस व्यक्ति ने उदासीनता दिखायी, जिसे अपनी ड्यूटी निभानी थी ।
गृह मंत्रालय को 631 पृष्ठ की भारी भरकम रपट सौंपने के बाद वर्मा ने यहां संवाददाताओं से  कहा, ‘‘ हमने 29 दिन में रपट सौंप दी है । जब मैंने 30 दिन में काम पूरा करने की पेशकश की थी तो मुझे अहसास नहीं था कि काम कितना बडा है । ’’
उन्होंने कहा कि भले ही यह रपट उनके नाम से जानी जा सकती है लेकिन यह भारत और विदेश की जनता से आये सुझावों का नतीजा है ।
उन्होंने कहा कि हमें 80 हजार सुझाव मिले और सभी को पढा गया और रपट को अंतिम रूप देने से पहले उन पर विचार किया गया ।
रपट को अंतिम रूप देने के लिए समयसीमा कैसे तय की गयी, इस सवाल पर वर्मा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने उनसे संपर्क किया तो ‘‘ मैंने उनसे पूछा कि संसद का अगला सत्र कब है । ’’
वर्मा के मुताबिक मंत्री ने कहा कि अगला : बजट : सत्र 21 फरवरी को शुरू होगा । दो महीने बाकी थे इसलिए ‘‘ मैंने तय किया कि इस काम को 30 दिन में पूरा करूंगा । यदि हम इसे दो महीने की बजाय आधे वक्त यानी एक महीने में रपट तैयार कर सकते हैं तो सरकार को अपने संसाधनों की मदद से तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए । ’’ परिपक्व प्रतिक्रिया के लिए उन्होंने युवाओं की प्रशंसा की ।
उन्होंने कहा कि युवाओं ने हमें सिखाया, वह सब कुछ जिसकी जानकारी वरिष्ठ पीढी को नहीं थी । उन्होंने कितने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया ।

हैरत है कि गृह सचिव ने पुलिस आयुक्त की तारीफ की : वर्मा
सामूहिक बलात्कार घटना के बाद दिल्ली के पुलिस आयुक्त नीरज कुमार की तारीफ करने वाले केन््रदीय गृह सचिव आर के सिंह को आडे हाथ लेते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस वर्मा ने आज कहा कि जब माफी मांगे जाने की उम्मीद थी, उस समय यह : आयुक्त की पीठ थपथपाना : सुनकर काफी हैरत हुई ।
महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में कानूनों में सुधार के उपाय सुझाने वाली रपट सौंपने के बाद वर्मा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि पुलिस आयुक्त की पीठ थपथपायी गयी । वह भी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो गृह सचिव के पद पर हो । ‘‘ मुझे यह देखकर काफी हैरत हुई । ’’
उन्होंने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा की ड्यूटी में विफलता के लिए कम से कम उन्हें माफी मांगनी चाहिए थी ।
दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की सामूहिक बलात्कार घटना के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में आर के सिंह ने दिल्ली पुलिस की सराहना की थी । चलती बस में सामूहिक बर्बर बलात्कार की शिकार बनी 23 वर्षीय युवती ने 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड दिया था ।

Tuesday, January 22, 2013

रेलवे किराया 40 फीसद तक बढ़ने से लोग परेशान


   रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, रेलवे का किराया बढ़ गया है लेकिन इससे मंगलवार दिन भर लोग परेशान रहे। रेलवे स्टेशनों और लोकल रेलगाड़ियों में बढ़े हुए किराए को लेकर ही लोग चर्चा में व्यस्त रहे। मालूम हो कि आज से ही केंद्र सरकार की ओर से किराया वृद्धि की गई है। हावड़ा, सियालदह, मौड़ीग्राम, बाली समेत सभी जगह दिन भर लोग किराए को लेकर ही परेशान दिखाए दे रहे थे। हालांकि ज्यादातर नित्ययात्रियों ने पहले से मासिक टिकट ले रखा है, इसलिए उन्हें नए किराए का स्वाद बाद में चखने को मिलेगा जबकि जिन लोगों ने आज मासिक टिकट लिया उनमें से कई लोग अलग-अलग बातें करते दिखे। जबकि लोकल ट्रेन का टिकट लेने वाले कई यात्री बढ़े किराए को लेकर हैरत और नाराज भी दिखे। कई लोगों का कहना था कि दस साल बाद किराया बढ़ा है तो इसके लिए साधारण लोग नहीं कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी ही जिम्मेवार हैं। जब रसोई गैस से लेकर डीजल की कीमतों में वृद्धि करने की बात हो या खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश को हरी झंडी दिखानी हो तो यूपीए सरकार में शामिल लोगों की नहीं सुनी जाती। जबकि रेलमंत्री रहने के दौरान लालू प्रसाद यादव ने किराए में एक रुपए की कमी की थी लेकिन कें द्र सरकार ने इसके खिलाफ मौन धारण कर रखा।
रेलवे किराया बढ़ने के बाद शुन्य किलोमीटर से लेकर 25 किलोमीटर तक का यातायात करने वालों को भले ही राहत मिली है लेकिन ज्यादा दूर का सफर करने वालों की परेशानी बढ़ गई है। इसके साथ ही कुछ ही दूरी वाले यात्रियों का मासिक किराया भी  अस्वाभाविक तौर पर बढ़ गया है। प्रणव बनर्जी नामक एक यात्री के मुताबिक कहा गया था कि प्रति किलोमीटर दो पैसे किराया वृद्धि की जाएगी लेकिन कई मामलों में यह 30 से लेकर 40 फीसद तक बढ़ गया है। यात्रियों का आरोप है कि दो पैसे का एलान करके चार रुपए वाला किराया पांच रुपए, छह रुपए का किराया दस रुपए, ग्यारह रुपए का किराया 15 रुपए हो गया है। हालांकि कई मामलों में छह रुपए का किराया घट कर पांच रुपए भी हुआ है।
सौभिक घोष नामक एक यात्री ने बताया कि उसका मासिक किराया (एसएमटी)175 रुपए था अब वह 245 रुपए हो गया है। इसी तरह सात रुपए का टिकट दस रुपए हो गया है। डानकुनी से सियालदह का किराया पहले सात रुपए था अब 10 रुपए हो गया है। जबकि डानकुनी-हावड़ा का किराया पहले की तरह पांच रुपए ही है।
कविता गांगुली ने बताया कि हावड़ा-बर्दवान (मेन लाइन) का किराया सुबह 25 रुपए लगा, यह पहले 21 रुपए था जबकि लौटते हुई उसी दूरी का कार्डलाइन का टिकट लिया तो 20 रुपए लगे पहले किराया 18 रुपए था। उनका कहना है कि एक ही दूरी पर कहीं किराया घट गया तो कहीं बढ़ गया। यह वृद्धि 10 फीसद से लेकर 40 फीसद तक हुई है।
सलीम नामक एक यात्री के मुताबिक उनका मासिक किराया पहले की तुलना में घट गया है जबकि उनके एक साथी ने बताया कि उसका किराया बढ़ गया है। इस तरह दिन भर लोग किराए को लेकर चर्चा करते रहे कि बागनान से हावड़ा का कितना किराया है तो उलबेड़िया से हावड़ा का क्या किराया हो गया है।
एक यात्री ने गुस्से से कहा कि रेलवे का कहना है कि 10 साल बाद किराए बढ़ाए जा रहे हैं तो इसके लिए क्या हम रेल यात्री जिम्मेवार हैं या केंद्र सरकार जिम्मेवार है। सरकार कौन चला रहा है, यह सभी लोगों को पता है। दूसरे एक यात्री का कहना था कि किराया तो अब बढ़ ही गया है रेलवे बजट का क्या औचित्य है। बजट पेश करने से लेकर चर्चा करने तक जहां कागज की बरबादी होगी वहीं संसद चलने पर करोड़ों रुपए का खर्च होगा। इसका बोझ भी आम लोगों पर ही पड़ना तय है।

Thursday, January 17, 2013

उषा गांगुली निर्देशित रंगकर्मी का नया नाटक ‘हम मुख्तारा’



प्रसिद्ध  नाट्य निर्देशिका उषा गांगुली के निर्देेशन में तैयार रंगकर्मी के नए हिंदी नाटक ‘हम मुख्तारा’ का मंचन आगामी 23 जनवरी को रवींद्र सदन प्रेक्षागृह में शाम सात बजे होगा। यह नाटक पाकिस्तान की एक महिला मुख्तारा माई के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और इंसाफ के लिए लड़ी जा रही उसके संघर्ष पर केंद्रित है। रंगकर्मी के इस नए नाटक में कुल 31 कलाकार हैं। जिनमें 17 महिलाएं हैं। उषा गांगुली ने एक प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को  बताया कि भारत की तरह पाकिस्तान में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर महिलाओं के साथ जो हो रहा है उसे ही इस नाटक में केंद्रित किया गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में भी इस नाटक का मंचन किया जाएगा।

Monday, January 14, 2013

बरफी और पान सिंह तोमर की बल्ले -बल्ले


    19वें सालाना कलर्स स्क्रीन अवार्ड में पैनी, प्रयोगधर्मी और लीक से हटकर फिल्मों को तरजीह देने की  पुरस्कारों की परंपरा इस बार भी कायम रही और ज्यादातर शीर्ष पुरस्कार पान सिंह तोमर, बर्फी और कहानी की झोली में गए। पान सिंह तोमर सर्वश्रेष्ठ फिल्म आंकी गई जबकि सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार बर्फी के अनुराग बसु को मिला।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पान सिंह तोमर में अपनी भूमिका के लिए इरफान और बर्फी में शानदार अभिनय के लिए रणबीर को साझा तौर पर दिया गया। विद्या बालन का दबदबा कायम रहा और उन्हें लगातार चौथी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया। इस बार यह पुरस्कार उन्हें कहानी में अपने लापता पति की तलाश कर रही एक गर्भवती महिला के किरदार के लिए दिया गया।

सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का पुरस्कार तलाश में अपनी भूमिका के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी को दिया गया जबकि डाली अहलूवालिया को विकी डोनर में उनके किरदार के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया। नकारात्मक किरदार के लिए गैंग्स आफ वासेपुर के तिगमांसु धूलिया को सर्वश्रेष्ठ कलाकार के पुरस्कार से नवाजा गया। अन्नू कपूर (विकी डोनर) और अभिषेक बच्चन (बोल बचन) को संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Sunday, January 13, 2013

हजारों लोग गुलाबी मौसम में ठिठुरने के लिए मजबूर


  रंजीत लुधियानवी
कोलकाता,  महानगर कोलकाता,हावड़ा समेत पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में बीते कुछ दिनों से तापमान पांच डिग्री से लेकर 10 डिग्री सेल्सीयस के बीच घुम रहा है। कहीं पारा गिर कर 10 साल पुराने रिकार्ड तोड़ रहा है तो कहीं 22 साल पुराने रिकार्ड टूट रहे हैं। कभी-कभार तापमान में कुछ वृद्धि होती है तो गुलाबी मौसम में लोग पिकनिक के लिए निकल पड़ते हैं। मौज-मस्ती करने वाले स्वेटर, मफलर समेत तमाम गर्म कपड़ों और सूट-बूट में लैस होते हैं। वहीं महानगर में कुछ लोग ऐसे भी हैं कि पारा गिरते ही उनकी हालत बिगड़ जाती है। आनंद मनाने वालों का गुलाबी मौसम उनके लिए काली अंधेरी और ठिठुरती हुई रात में बदल जाता है। अकसर तन ढकने में नाकाम लोग किसी तरह कड़ाके की सर्दी में जीवन यापन करते हैं।
मौसम की मार झेलने वाले ऐसे गरीब और बेसहारा लोगों  में कोई कागज बिनता है तो कोई ठेला-रिक्शा  चलाता है। जबकि कुछ लोग महज भीख मांग कर ही गुजारा करते हैं। ऐसे  ज्यादातर लोगों को मतदान का भी अधिकार नहीं है। उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है। तापमान में गिरावट की खबर सूनकर जहां लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाती है वहीं इनके लिए बोरे में ठिठुरन भरी सर्दी में रात गुजारने की सोच कर रगों में सिहरन दौड़ जाती है। इसके बावजूद आम लोग जहां सर्दी-खांसी बुखार में छुट््टी लेकर कंबल में दुबके रहते हैं वहीं ये लोग बीमारी में भी काम पर निकलते हैं। भले ही शरीर साथ न तो कहीं फुटपाथ का सहारा लेकर सुस्ता लेते हैं।
महानगर कोलकाता मेंफुटपाथ पर रहने वाले  लोगों को  दूसरे दर्जे का नागरिक कहा जा सकता है क्योंकि इनके पास सुख-सुविधा का कोई सामान मौजूद नहीं है। यहां  के नागरिकों में  90 फीसद लोगों  को सर्दी में महज राज्य सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं का ही सहारा रहता है। इसका कारण यह है वहां से उन्हें कुछ राहत की सामग्री मिल जाती है। कई सभा-संगठनों की ओर से हर साल कंबल और गर्म कपड़ा वितरण समारोह का आयोजन किया जाता है। इसमें स्वेटर से लेकर चादर तक बांटी जाती है।
हावड़ा स्टेशन, सियालदह स्टेशन, बड़ाबाजार, पोद्दार कोर्ट, बीबी गांगुली स्ट्रीट, धर्मतला ट्राम डिपो समेत महानगर के विभिन्न इलाकों में फुटपाथ पर ऐसे लोगों को देखा जा सकता है। कुहासे ढंके रास्तों पर सड़क के किनारे दोनों ओर काले फटे बोरे या प्लास्टिक की आड़ में ऐसे परिवार निवास करते हैं। राज्य में सबसे ज्यादा फुटपाथ पर रहने वाले कोलकाता की सड़कों पर ही रहते हैं। गैर सकारी सूत्रों से मिले आंकड़ों के मुताबिक यहां 10-12 हजार लोग फुटपाथ पर गुजर-बसर करते हैं। हर साल दर्जनों संगठनों की ओर से कंबल, स्वेटर और गर्म कपड़े गरीब और जरुरतमंद लोगों में बांटे जाते हैं। लेकिन फुटपाथ पर रहने वाले ज्यादातर लोगों के पास फ टे कंबल और बोरे ही जीवन यापन का सहारा होते हैं। स्ट्रैंड रोड पर एक महिला अपने शराबी पति से झगड़ रही थी क्योंकि उसने नए गर्म कपड़े कुछ रुपयों के लालच में बेच दिए थे और रुपयों की शराब लाकर पी गया था। ऐसे कपड़े ज्यादातर नशे की लत में बेच दिए जाते हैं। रविवार धर्मतला ट्राम डिपो में एक महिला और दामाद की इसी लिए जमकर झड़प हुई।
बीबी गांगुली स्ट्रीट पर हाथ रिक्शा चालक अजीम भाई ने बताया कि पहले तो किसी तरह जाड़ा आसानी से कट जाता था। लेकिन इस साल हद हो गई है। शनिवार तो कुछ हद तक राहत थी। इसी तरह शबीना का भी कहना था कि इस साल तो सर्दी गुजर ही नहीं रही है। पता नहीं ऐसा माहौल कब तक रहेगा। हाल तक कोलकाता में सर्दी से ज्यादा परेशानी नहीं होती थी।
फुटपाथ वालों के लिए प्रशासन की ओर से भी राहत प्रदान की जाती है। लेकिन प्रशासनिक नियमों के मुताबिक किसी बीमार और असहाय व्यक्ति को पहले कोलकाता पुलिस की एनफोर्समेंट ब्रांच के तहत शाखा में भेजा जाता है। उनका प्राथमिक इलाज करने के बाद सरकारी नियमानुसार न्यायधीश के सामने पेश करना पड़ता है। अदालत के निर्देश के बाद ही बीमार फुटपाथी को सरकारी होम या आश्रयस्थल में भेजा जाता है। हालांकि कई जगह पुलिस ने शार्टकट रास्ता भी अपना रखा और थाने के साथ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ तालमेल कायम है। थानों से सीधे मरीज को उनके होम में भेज दियाजाता है। संलाप, नवदिशा समेत कई इस तरह की संस्थाएं पुलिस के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
राज्य की समाज कल्याण विभाग की मंत्री सावित्री मित्र का कहना है कि फुटपाथ पर रहने वाले और गरीब लोगों के लिए राज्य में कुल मिलाकर 27 होम बनाए गए हैं। यहां रास्ते के किनारे रहने वालों के इलाज और रहने की व्यवस्था की गई है।

बिग बॉस-6 की विजेता बनीं उर्वशी ढोलकिया




 टीवी अभिनेत्री उर्वशी ढोलकिया रियलिटी शो बिग बॉस के छठे संस्करण की विजेता बन गयीं. उन्होंने अपने नजदीकी प्रतियोगी इमाम सिद्दीकी को हराकर शो के विजेता का खिताब जीत लिया.
उर्वशी के जीतने के साथ बिग बॉस में लगातार यह तीसरा मौका है जब टीवी की एक ‘बहू’ ने यह शो जीता. छोटे पर्दे की ‘वैंप’ के रुप में पहचानी जाने वाली उर्वशी ने कम अंतर से ही शो का खिताब जीता.
इससे पहले श्वेता तिवारी और जूही परमार ने भी बिग बॉस के विजेता का खिताब जीता था. उर्वशी को विजेता के रुप में 50 लाख रुपये की पुरस्कार राशि मिली है. हालांकि कलर्स चैनल ने दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए इमाम सिद्दीकी को भी दस लाख रुपये का इनाम दिया. इमाम को शो के दौरान भी पांच लाख रुपये दिये गये थे.
इस रियलिटी शो में 19 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिन्हें 97 दिनों तक कैमरों से घिरे एक घर में साथ रहना था.

Friday, January 11, 2013

रेल किराया तो बढ़ा दिया यात्रियों की सुध कौन लेगा?


 

रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 10 जनवरी । रेल मंत्री पवन बंसल ने रेल किराए में वृद्धि का एलान कर दिया है। लगभग 20 फीसद की  किराया वृद्धि के बाद कहा जा रहा है कि 10 साल बाद यह किराया बढ़ा है, इसके लिए रेलवे मजबूर था। किराया वृद्धि किए जाने पर लोगों में एक राय नहीं है कुछ लोगों का कहना है कि एक साथ इतना अधिक किराया बढ़ाया जाना किसी भी तरीके से उचित नहीं कहा जा सकता। दस साल तक किराया नहीं बढ़ा तो इसके लिए आम लोग नहीं केंद्र सरकार ही जिम्मेवार है जिसने राजनीतिक कारणों से ऐसा होने दिया। जबकि दूसरे कुछ लोगों का कहना है कि जब चावल से लेकर डीजल और रसोई गैस से लेकर बस किराया तो बढ़ता जा रहा है। ऐसे में रेलवे ने कुछ गलत नहीं किया है। हालांकि एक बात पर सारे लोग सहमत हैं कि  माल भाड़े, खान-पान के बाद किराए में भी रेलवे ने वृद्धि कर दी है लेकिन क्या यात्रियों की समस्याओं के बारे में भी रेल प्रबंधन कभी गंभीर होगा? आजादी के 150 साल बाद भी रेलगाड़ियां समय पर बहुत कम ही चलती हैं। दिसंबर में तो 34 घंटे देरी से चलकर एक ट्रेन ने रिकार्ड कायम किया है, जबकि तीन- चार घंटे से लेकर चौबीस घंटे देरी से चलना तो एक सामान्य बात हो गई है।
रेल किराया बढ़ने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक गृहिणी मंजू सिंह ने कहा कि हावड़ा- अमृतसर मेल (3005 अप-3006 डाउन) शायद ही कभी समय पर चलती हो। जबकि जाड़े के दिनों मे तो यह ट्रेन 12 से लेकर 24 घंटे देरी से चलती है। इसके अलावा कालका मेल, हिमगिरी एक्सप्रेस की हालत भी कम खराब नहीं है। अचानक रेलगाड़ी रद्द कर दी जाती है। इसके बाद फरमान जारी किया जाता है कि यात्रियों को पूरा किराया वापस मिल जाएगा लेकिन चार महीने पहले टिकट आरक्षित कराने वाले यात्रियों को न तो चार महीने का ब्याज मिलता है और न ही वैकल्पिक ट्रेन में आरक्षण की व्यवस्था की जाती है। जबकि होना तो यह चाहिए कि ट्रेन रद्द किए जाने पर उस हफ्ते किसी भी ट्रेन में यात्री अपना टिकट रिजर्व कर सके।
इससे पहले ही रेलवे स्टेशन पर या ट्रेन के भीतर यात्रियों को मिलने वाला नाश्ता व भोजन महंगा कर दिया गया था। अमृतसर मेल में 65 रुपए में मिलने वाला भोजन 90 रुपए और पांच रुपए में मिलने वाली चाय सात रुपए की कर दी गई। कीमत बढ़ने के बाद तीन रुपए में मिलने वाली रोटी पांच रुपए, 20 रुपए में मिलने वाला दाल-चावल 23 रुपए और 70 रुपए में मिलने वाली चिकन बिरयानी 84 रुपए की हो गई है। गोविंद रावत के मुताबिक रेलवे ने पैंट्री कार में मिलने वाले खाने के दाम तो बढ़ा दिए लेकिन गुणवत्ता के मामले में अभी भी कुछ सुधार नहीं हुआ है।
कई यात्रियों का कहना है कि सुरक्षा के मामले में देश भर में अभी तक रूट रिले इंटरलाकिंग सिस्टम चालू नहीं हो सका है। दुर्घटना रोकने के लिए एंटी कालिजन डिवाइस नहीं हैं। ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम की बातें सालों से चल रही हैं लेकिन कुछ नहीं हुआ है। रेलवे के विकास का जिक्र करते हुए एक यात्री ने बताया कि 1969 में देश में पहली राजधानी एक्सप्रेस नई दिल्ली से हावड़ा के बीच चली थी। उस समय रोलिंग स्टाक पुराने थे, इंजन भी कम शक्तिशाली थे। उस समय 1450 किलोमीटर की दूरी तय करने में इस गाड़ी को 17 घंटे 10 मिनट लगते थे। अब इस गाड़ी में जर्मन तकनीक वाले डिब्बे हैं जो 150 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं। पांच हजार हार्स पावर वाले शक्तिशाली बिजली के इंजन इसे खींचते हैं तब भी इसे यह दूरी तय करने में 16 घंटे 55 मिनट लगते हैं। सालों बाद इतने तामझाम के बाद  महज 15 मिनट की बचत हुई है।
रेल मंत्री के एलान पर नाराजगी प्रकट करते हुए मंजीत कौर ने कहा कि मंत्री ने अचानक किराया वृद्धि का एलान कर दिया जबकि रेलवे बजट आने वाला है। पहले किसी भी तरह का एलान बजट में किया जाता था। अब केंद्रीय बजट की तरह की रेलवे बजट भी अप्रासंगिक हो गया है। ऐसे में बजट पेश करने का क्या औचित्य है? गठजोड़ की सरकार ने किसी सहयोगी से किराया बढ़ाने के बारे में विचार-विमर्श किया,देशके  लोगों को विश्वास में लिया? एक अल्पमत की सरकार मनमाने फैसले कैसे कर सकती है? इसी तरह रेणू वर्मा ने कहा कि रेलवे में चोरी-लूट और डकैती आमतौर पर होती रहती है, इसलिए जब तक गंतव्य स्थल पर नहीं पहुंच जाते खुद और घर वाले दहशत में ही रहते हैं। क्या रेलवे इस बारे में कुछ करेगा कि लोग सुरक्षित अपने स्टेशन तक पहुंच सकें।
हावड़ा रेलवे स्टेशन के गोदाम में बीते दो दिनों से अपना सामान तलाशते एक व्यक्ति ने बताया कि यहां कुछ पता ही नहीं चल रहा है कि सामान कब पहुंचेगा। एक कर्मचारी ने बताया कि रेलगाड़ियां देरी सेचल रही हैं इसलिए हो सकता है कि आपका सामान दूसरे दिन वाली ट्रेन में चढ़ा दिया गया हो। इसलिए एक दिन और यहां देख लें , फिलहाल कुछ बताना संभव नहीं है। इसी तरह कई लोग सामान की तलाश में परेशान रहते हैं। लेकिन यहां किसी के पास सटीक जानकारी नहीं मिलती कि आपका सामान कब पहुंचने वाला है।

Monday, January 7, 2013

महिलाओं पर बढ़ा पतियों का अत्याचार


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राष्ट्रीय राजधानी में महिलाएं केवल घर के बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी असुरिक्षत हैं। वर्ष 2011 में पतियों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार के करीब डेढ़ हजार मामले दर्ज किए गए।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा हिंसा के मामलों में बढोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2011 में राजधानी में इस तरह के 1498 मामले दर्ज हुए जबकि 2010 और 2009 में यह आंकड़ा क्रमश: 1273 और 1177 रहा था।

महानगरों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों के आंकड़े से यह खुलासा हुआ कि जनवरी से दिसंबर 2011 तक हैदराबाद में इस तरह के 1355,कोलकाता में 557, बेंगलुरू में 458, मुंबई में 393 और चेन्नई में 229 मामले दर्ज किए गए।

वर्ष 2010 में पति या किसी रिश्तेदार द्वारा अत्याचार के संबंध में हैदराबाद में 1420, कोलकाता में 400, बेंगलुरू में 398, मुंबई में 312 और चेन्नई में 125 मामले दर्ज हुए।

गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध आंकड़े ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2009 में इस तरह के अपराध के हैदराबाद में 1363, मुंबई में 434, कोलकाता में 411, बेंगलुरू में 367 और चेन्नई में 154 मामले दर्ज हुए।

इसके अलावा वर्ष 2011 में छेड़छाड़ के दिल्ली में 556 मामले, मुंबई में 553 और कोलकाता में 254 मामले दर्ज हुए, वहीं बेंगलुरू में इस तरह के 250 मामले, हैदराबाद में 157 और चेन्नई में 73 मामले दर्ज किए गए।

जनवरी से दिसंबर 2011 तक यौन उत्पीड़न के चेन्नई में 162, दिल्ली में 149, कोलकाता में 144, चेन्नई 121, हैदराबाद में 93 और बेंगलुरू में 40 मामले दर्ज किए गए। (भाषा)

Thursday, January 3, 2013

राज्य की 63 फास्ट ट्रैक अदालतें बंद होंगी?


  पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की घटनाएं लगातार जारी हैं और एक लाख 32 हजार 824 मामले अदालतों में चल रहे हैं, ऐसे में जल्दी फैसला सुनाने वाली फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या घटाई जा रही है। मौजूदा 2013 साल में राज्य में कम से कम 63 फास्ट ट्रैक अदालतों का काम बंद होने जा रहा है। अभी यहां कुल मिलाकर त्वरित फैसला लेने के लिए 151 अदालतें मौजूद हैं। राज्य सरकार की ओर से मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला किया गया है कि 88 फास्ट ट्रैक अदालतों को स्थायी किया जाएगा। जबकि बाकी बची 63 अदालतों का भविष्य अधर में लटक गया है।
मालूम हो कि इस बारे में राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने पत्रकारों को बताया कि केंद्र सरकार फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के बारे में उदासीन रवैया अपना रही है, ऐसे में राज्य सरकार की ओर से 88 फास्ट ट्रैक अदालतों कोे स्थायी करने का फैसला किया गया है।
इधर राज्य सरकार के फैसले का भारी विरोध किया जा रहा है। वेस्ट बंगाल जूडिसियल सर्विस एसोसिएशन की ओर से राज्य सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा गया है कि मंत्रिमंडल की बैठक में 151 अदालतों में सिर्फ 88 फास्ट ट्रैक  अदालतों को स्थायी करने का फैसला किया गया है। इससे न्याय की गुहार लगाकर बैठे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न, बलात्कार जैसी घटनाओं का फैसला फास्ट ट्रैक अदालतों में किया जाता रहा है। सरकार के फैसले के कारण न्याय प्रक्रिया और ज्यादा शिथिल हो जाएगी।
मालूम हो कि दिल्ली में एक युवती के साथ बस में हुई बलात्कार की सनसनीखेज घटना के बाद देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सजा देने की मांग जोरदार तरीके से उठाई जा रही है। इसके लिए तेजी से फैसला करने वाले फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन की मांग की जा रही है। ऐसे हालात में राज्य सरकार की ओर से फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या घटाए जाने पर लोग हैरान हैं।
गौरतलब है कि 13 वें वित्त आयोग और केंद्र सरकार की आर्थिक मदद से राज्य में अस्थायी तौर पर चलने वाली 151 फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया था। देश की अदालतों में चल रहे मामलों को जल्द निपटाने के लिए इस तरह की अस्थायी अदालतों का गठन किया गया था। इसके लिए 31 मार्च 2011 तक केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक मदद दी गई थी। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से दो चरणों में अदालतों के लिए रकम आबंटित करने सभी 151 अस्थायी फास्ट ट्रैक अदालतों का काम चालू रखा गया। इस तरह आगामी 31 मार्च 2013 तक यह अदालतें अपना काम करती रहेंगी। मंत्रिमंडल के ताजा फैसले के बाद आगामी वित्त वर्ष में राज्य में 88 फास्ट ट्रैक अदालतें ही काम करेंगी। इस मामले में एक मंत्री का कहना है कि फास्ट ट्रैक अदालतों के लिए 94 न्यायधीशों के पद बनाए जा रहे हैं, हालांकि उन्होंने 63 अदालतों के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा।
दूसरी ओर वेस्ट बंगाल जूडिसियल सर्विस एसोसिएशन के सूत्रों का कहना है कि 2011 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि कोई भी राज्य सरकार अस्थायी तौर पर फास्ट ट्रैक अदालत नहीं चला सकती। इसका मतलब यह है कि सभी अस्थायी अदालतों को स्थायी करना होगा।

Wednesday, January 2, 2013

 महिलाओं के खिलाफ  अपराध के मामलों में हावड़ा भी पीछे नहीं 

   कोलकाता और उत्तर चौबीस परगना जिले के बारासात इलाके में महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। बीते सालों के दौरान हावड़ा और हुगली भी इ स मामले में पीछे नहीं हैं। ऐसे मामलों में ज्यादातर दोषी पुलिस के शिकंजे में ही नहीं फंसते। जबकि कई मामलों में पकड़े जाने के बाद भी सबूत नहीं मिलने के कारण अभियुक्तों को अदालत से जमानत मिल गई। ऐसे भी मामले हुए हैं जब पुलिस वाले बलात्कार की शिकायत ही दर्ज करने के लिए तैयार नहीं हुए। कई मामलों में राजनीतिक और समाजिक दबाव केकारण पुलिस ने शिकायत दर्ज की लेकिन दोषी गिरफ्तार नहीं हुए। इससे हावड़ा और हुगली जिले में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और उत्पीड़न के मामलों में भारी वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध के मामलों में इसलिए राज्य के शीर्ष जिलों में हावड़ा का नाम शामिल है। 
मालूम हो कि 2007 में हावड़ा शहर के आठ पुलिस थाना इलाके में महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध की 257 घटनाएं हुई थी। इसमें बलात्कार की छह घटनाएं शामिल हैं। जबकि 2011 में अपराध की घटनाएं बढ़ कर 614 हो गई। इसमें बलात्कार की 24 घटनाएं हुई। पुलिस कमिशनरेट बनाने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि हावड़ा शहर में अपराध की घटनाओं में कमी होगी। लेकिन इस दौरान घटनाएं बढ़कर 1029 हो गई। गत जनवरी से नवंबर तक महिलाओं के खिलाफ अपराध की 1029 घटनाओं में बलात्कार की 31 घटनाएं शामिल हैं। 
दूसरी ओर हुगली जिले के गोघाट, खानाकूल, पुरशुड़ा, आरामबाग, धानखाली, जंगीपाड़ा समेत कई इलाकों में महिलाओं  के खिलाफ अपराध की घटनाएं हुई है। एक राजनीतिक दल की ओर से आरोप लगाया गया कि दूसरे दल कीओरसे इलाके में हिंसा फैलाई, जिससे उनके दल के समर्थक इलाका छोड़कर पलायन कर गए। इसके बाद उनकी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार की कई घटनाएं हुई। आरोप है कि 2001 में इस तरह की घटनाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई थी। इस दौरान गोघाट में तृममूल समर्थक की हत्या के बाद बलात्कार किया गया। पुलिस ने दोषियों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की। कांग्रेस अध्यक्ष तपन दास ने आरोप लगाया है कि 2001 से लेकर 2009 तक आरामबाग महकमे में सौ से ज्यादा बलात्कार की घटनाएं हुई। 
हावड़ा शहर के सांतरागाछी में 25 जुलाई तड़के एक नौकरानी के साथ बलात्कार की घटना हुई थी। इसके विरोध में जिले में कई जगह प्रदर्शन किए गए। गोलाबाड़ी थाना इलाके में कल इस घटना के खिलाफ मौन जुलूस निकाला गया। उस महिला की बहन ने कुछ दिन पहले एक मंच पर खड़े होकर आरोप लगाया था कि पहले जगाछा थाने में किसी तरह की शिकायत दर्ज नहीं की गई। उसे अस्पताल भेजने के बजाए घर भेज  कर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की गई। उसकी खराब हालत देख कर हमलोग अस्पताल लेकर गए तो  अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। बाद में मीडिया के दबाव में उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। पुलिस ने बलात्कार का मामला तो दर्ज किया लेकिन लगभग छह महीने बाद भी किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। 
इसी तरह 15 अप्रैल उलबेड़िया थाना इलाके में एक विकलांग युवती से बलात्कार किया गया था। तीन दिन बाद दबाव के कारण पुलिस ने इसका केस तो दर्ज किया। मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार का प्रमाण नहीं मिला इसलिए तीन दिन में पकड़े गए युवक की जमानत हो गई। गत सात सितंबर को उलबेड़िया में पांच साल की एक बच्ची से बलात्कार किया गया था। बच्ची की मां ने दोषी को पकड़ कर पुलिस से सुपुर्द कर दिया था। बलात्कार का सबूत नहीं मिलने के कारण वह जमानत पर छूट गया। इसके बाद पांच नवंबर आमता थाना इलाके में कक्षा नौ  की एक छात्रा के साथ बलात्कार के बाद हत्या  की घटना हुई थी। इस मामले में बलात्कार के बजाए पुलिस ने सिर्फ हत्या का मामला दर्ज किया। दो युवकों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया और दोनों जेल में कैद हैं।