Wednesday, March 19, 2014

रचनाकार समाज को जोड़ने की दिशा में काम करें


 रचनाकारों को चाहिए कि वे समाज में मौजूदा बिखराव को देखते हुए अपनी जिम्मेवारी संभाले और लोगों को जोड़ने का काम करें। यह कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और प्रोफेसर डाक्टर जगबीर सिंह का। नेशनल बुक ट्रस्ट और पंजाबी साहित्य सभा, कोलकाता की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने यह विचार व्यक्त किए। पंजाबी के जाने-माने उपन्यासकार मोहन काहलों के प्रसिद्ध उपन्यास बेड़ी ते बरेता के हिंदी अनुवाद कश्ती और बरेता के लोकार्पण के मौके पर उन्होंने यह विचार व्यक्त किए। नीलम शर्मा अंशु की ओर से अनुवादित उपन्यास का लोकार्पण कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट गेस्ट हाउस में किया गया। इस मौके पर खालसा कालेज माहलपुर के प्रिंसीपल सरदार सुरजीत सिंह रंधावा, वरिष्ठ पत्रकार विश्वंभर नेवर, गीतेश शर्मा, नेशनल बुक ट्रस्ट के हिंदी संपादक डाक्टर ललित मंडोरा, पंजाबी साहित्य सभा के अध्यक्ष सरदार हरदेव सिंह ग्रेवाल समेत हिंदी-पंजाबी के विभिन्न विद्वान उपस्थित थे।
डाक्टर जगबीर सिंह ने कहा कि भले ही हिंदी में उपन्यास परंपरा पश्चिमी की देन है लेकिन उपनिषदों में, कथा सागर में, महाभारत और रामायण में कथा कहने की जो परंपरा कायम रही है उसे भारतीय उपन्यासकारों ने जीवन दर्शन के माध्यम से लोगों के बीच पेश करने का काम किया है। इसमें अनुभव, विद्वता और भाषा का ज्ञान मिलकर पाठकों को उपन्यासकार की रचना के संसार में पहुंच जाता है।
उपन्यास में गुर्जर और मल्लाहों के कबीलाई जीवन दर्शन में साठ साल पहले के लोगों का रहन-सहन पेश किया गया है। जिससे तत्कालीन इतिहास के बारे में भी रोचक जानकारी मिलती है, जिसे लेखक ने नेशनल लाइब्रेरी में घंटों अनुसंधान करके जुटाया है।
उन्होंने कहा कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब को भले ही सिखों का धर्म ग्रंथ माना जाता है लेकिन उसमें सिर्फ छह  सिख गुरूओं की रचना दर्ज है, जबकि दूसरे 26 लोगों की रचना का संचलन किया गया है। इसमें कबीर भी हैं और जैदेव भी हैं। समूचे ग्रंथ में लोगों में प्यार, सद्भाव के साथ जीवन यापन का दर्शन पेश किया गया है। ऐसा ही आज के रचनाकारों को भी करना चाहिए।
कोलकाता में पुस्तक के लोकार्पण के बारे में ललित मंडोरा ने कहा कि लेखक सालों से महानगर में रहते हैं और सभी लेखक चाहते हैं कि उनके लोगों के बीच रचना पहुंचे,इसलिए यहां आयोजन किया गया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को बांग्ला समेत दूसरी भाषाओं में भी अनुवादित किया जाएगा।
उपन्यास के बारे में बाद में परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस मौके पर पत्रकार गीतेश शर्मा ने कहा कि रचनाकार का काम समाज में घटित को लोगों के सामने पेश करना भर है, यह लेखक का काम नहीं है कि नंगे को कपड़े पहनाकर पेश किया जाए। हिंदी पुस्तकों की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए उन्होेंने कहा कि सरकारी खरीद बंद हो जाए तो हिंदी में पुस्तकें छपनी बंद हो जाएं। क्योंकि कोई भी पुस्तक 500 से लेकर एक हजार से ज्यादा नहीं छपती। जब हिंदी का यह हाल है तो पंजाबी और दूसरी भाषाओं का हाल तो जगजाहिर है। हालांकि बांग्ला इसका अपवाद है क्योंकि वहां लोग अभी भी पुस्तकें खरीदते हैं।
कार्यक्रम का संचालन पंजाबी साहित्य सभा के महासचिव सरदार जगमोहन सिंह गिल ने  किया। जबकि परिचर्चा का संचालन नीलम शर्मा अंशु ने किया। पत्रकार रावेल पुष्प, कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट में हिंदी अधिकारी सुमन सेठ के अलावा कई लोगों ने परिचर्चा में हिस्सा लिया और हाशिये के वर्ग पर पंजाबी उपन्यास के हिंदी में अनुवाद का स्वागत किया। 

Tuesday, March 4, 2014

इंटरनेट पर भी लड़ा जाएगा चुनाव

  चुनाव प्रचार करने के लिए जैसे खर्च की सीमा बढ़ गई है वहीं लोगों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की इकलौती स्टार प्रचारक थी, इसलिए हेलीकाप्टर लेकर जगह-जगह प्रचार किया था। दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के बाद युवाओं में भड़के आक्रोश और आम आदमी पार्टी की विधानसभा चुनाव में शानदार सफलता के लिए सोशल मीडिया को प्रमुख कारक माना जाता है। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव सड़क और दीवारों के साथ ही इंटरनेट पर भी लड़ा जाएगा। इस मामले में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, भाजपा, माकपा, कांग्रेस सभी सक्रिय हैं। हालांकि उनके चाहने वालों की संख्या में फर्क हो सकता है।आंकड़ों की बात करें तो ममता बनर्जी को फेसबुक पर लाइक करने वालों की संख्या छह लाख 25 हजार है तो उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के चाहने वाले डेढ़ लाख, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा नेता विमल गुरुंग के लगभग 15 हजार लोग हैं। भाजपा के हजारों चाहने वाले लगातार मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अभियान छेड़े हुए हैं। इसमें नेता, कार्यकर्ता से लेकर दूसरे लोग भी शामिल हैं।  टविटर पर तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन के दो लाख से ज्यादा, शुभेंदु अधिकारी के 12 हजार से ज्यादा,माकपा के सांसद  ऋतव्रत बनर्जी के ग्यारह हजार से ज्यादा, भाजपा के तथागत राय के चार हजार से ज्यादा, तृणमूल के केडी सिंह और दिनेश त्रिवेदी के दो हजार से ज्यादा चाहने वाले हैं।मालूम हो कि हाल तक चुनाव प्रचार के तहत सोशल मीडिया में प्रचार पारंपरिक तरीका नही रहा है लेकिन अब हालात बदल गए हैं। राज्य के नेता और दल अब इस डिजीटल टेक्नोलॉजी पर अधिक ही भरोसा करते दिख रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस की ओर से एक डेडिकेटेड वेबसाइट लॉन्च की गयी है। वहीं ट्वीटर और फेसबुक पर उसका प्रचार अभियान जारी है। पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जोर शोर से प्रोजेक्ट किया जा रहा है।  इसके तहत बीते दिनों ‘ममता 4 मीडिया’  वेबसाइट लांच की गई है। इसकी टैगलाइन में दिया गया है कि ममता बनर्जी अब राष्ट्रीय बनी।वेबसाइट के अलावा पार्टी की ओर से यू-टयूूब पर आधिकारिक एकाउंट भी लांच किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर लोगों तक पहुंचने के लिए दल की ओर से यह प्रयास किए  जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि दल के राष्ट्रीय अभियान के तहत  सोशल मीडिया के जरिए  लोगों की यह जानकारी में लाया जा रहा है कि देश के लिए तृणमूल कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है। अन्ना हजारे की ओर से  समाने लाए गए विकास के 17 सूत्रीय एजेंडे पर तृणमूल कांग्रेस जोर दे रही है।दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस के  राजनीतिक विरोधी भी खामोश नहीं बैठे हैं। तृणमूल के इस प्रचार को आड़े हाथों लेते हुए भी वह पीछे नहीं हैं।  भाजपा नेता तथागत राय भी सोशल मीडिया में मौजूद हैं और राज्य में छपे एक सर्वे पर कुछ दिन पहले टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि भले ही यहां भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलती दिख रही लेकिन देश भर में मोदी की लहर और भाजपा के गठबंधन की शानदार बढ़त अच्छी है।इधर वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोमेन मित्र ने पारंपरिक तौर तरीके से हटते हुए सोशल मीडिया के क्षेत्र में कदम रख दिया है।  हाल ही में वह तृणमूल कांग्रेस  छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं और कोलकाता प्रेस क्लब में अपनी वेब साइट जारी की। उनका मानना है कि युवाओं के संपर्क में आने का यह बहुत अच्छा साधन है। उनकी तरह ही वाममोर्चा नेता भी पीछे नहीं है। माकपा नेता निरुपम सेन, राज्यसभा सांसद ऋतव्रत बनर्जी व रोबिन देव भी फेसबुक पर काफी सक्रिय हैं।हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सोशल मीडिया प्रचार के लिए प्रभावी साधन नहीं हो सकता। भले ही  इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है और लोग आनलाइन अभियान से प्रभावित भी होते हैं लेकिन यह केवल शहरी आबादी को अपना लक्ष्य बनाती है। इनमें से कई ऐसे हैं जिनका राजनीति से मोहभंग हो गया है और कई तो वोट करने भी नहीं जाते।  उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर तृणमूल कांग्रेस का प्रयास उन्हें अधिक लाभ नहीं प्रदान करने वाला है। हालांकि दूसरी ओर कुछ लोगों का कहना है कि समाचार पत्रों में विज्ञापन और खबरों के लिए जितने पैसे लगते हैं, यहां मुफ्त में ज्यादा लोगों तक सीधे संपर्क हो जाता है।इस बारे में एक दल के नेता का कहना है कि लोकसभा चुनाव में युवा मतदाताओं की अहम भूमिका होगी। गांव-देहात में भी इंटरनेट का व्यवहार करने वाले समचार पत्र पढ़ने वालों से कम नहीं हैं। इसका पता इसके चलता है कि दिन प्रतिदिन इंटरनेट की कीमतें कंपनियां घटाती जा रही हैं जबकि समाचार पत्रों के दाम बढ़ते जा रहे हैं। महंगाई के दौर में लोग सस्ता और अच्छा तलाशते हैं और सोशल मीडिया इसका सबसे बड़ा साधन है। अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता प्रेस कांफ्रेंस करने के बजाए फेसबुक पर सीधे लाखों लोगों तक पहुंचने को पहल देते हैं। 

रेलवे यात्रियों को देना होगा हलफनामf

 रेलवे में नित्य यात्रा करने वालों को आंदोलन से दूर रखने के लिए रेलवे की ओर से विशेष योजना तैयार की गई है। इसके तहत ट्रेनों के देरी से आने या दूसरी किसी वजह से रेल रोको आंदोलन में शामिल होने और इसके बाद रेलवे की संपति तोड़ने-फोड़ने वालों को अब कम किराए में सफर करने की सुविधा हासिल नहीं होगी। ऐसा करने के बाद पकड़े जाने पर उन्हें मासिक टिकट या पास नहीं दिया जाएगा, पुराना तो जब्त हो जाएगा। रेलवे के नए नियमों के मुताबिक  मासिक या त्रैमासिक टिकट लेकर प्रतिदिन रेलवे में सफर करने वालों को हलफनामा देना होगा कि वे किसी भीतरह की हिंसक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे और इसके बाद पकड़े जाने पर उन्हें मासिक टिकट नहीं मिलेगा।मालूम हो कि 13 फरवरी की रात नौ बजे सियालदह स्टेशन जंग के मैदान में तब्दील हो गया था। प्रतिदिन रेलगाड़ियांदेरी से आने के विरोध में यात्रियों का गुस्सा फूट पड़ा। इसके बाद नाराज लोगों ने सियालदह   मेन शाखा में जमकर उत्पात मचाया। ट्रेनों में तोड़फोड़ करके ही उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ आरोप है कि रेलवे कर्मचारियों की भी यात्रियों ने पिटाई की थी।इसके अलावा रानाघाट लोकल से पहले लालगोला पैसेंजर को पास करा दिया गया था। सियादलह मेन शाखा में एक घंटे से भी ज्यादा समय तक रेलगाड़ियां रोक डाली। इसके बाद उन्होंने ट्रेन के गार्ड और चालक को भी पीट दिया। ऐसी घटनाएं पूर्व रेलवे के सियालदह शाखा में कोई नई बात नहीं है। लेकिन नई बात यह है कि अगर ऐसी किसी घटना के दौरान रेलवे पुलिस या आरपीएफ  आपको गिरफ्तार करती है तो जिंदगी में कभी भी दोबारा मासिक टिकट नहीं हासिल कर सकेंगे। ऐसे लोगों को प्रतिदिन रेलवे का टिकट कटा कर ही यातायात करना होगा।सूत्रों के मुताबिक रेलवेबोर्ड की ओर से इस तरह का फैसला किया गया है। सियालदह और हावड़ा समेत राज्य के कई स्टेशनों पर इस बारे में सूचना लगा दी गई है। इसमें कहा गया है कि मासिक टिकट लेने वालों को रेलवे की ओर से जारी किए गए एक फार्म के मुताबिक हलफनामा भर कर देना होगा। इसमें यात्रियों को हलफनामा दायर करके बताना होगा कि वे ट्रेन या प्लेटफार्म पर किसी भी तरह के समाजविरोधी काम में शामिल नहीं होगे। लेकिन अगर रेलवे की संपति तोड़फोड़ करते हुए, रेलवे कर्मचारी से मारपीट करने जैसे किसी आपराधिक काम में शामिल पाया गया तो उनका मासिक टिकट तो रद्द होगा ही, वह यात्री सारी जिंदगी ट्रेन में मासिक टिकट पर सफर नहीं कर सकेगा।सूत्रों का कहना है कि कई स्टेशनों पर यह व्यवस्था शुरू भी हो गई है। वहां मासिक टिकट लेने वाले यात्रियों को एक फार्म थमा दिया जाता है। फार्म भरने के बाद रेलवे क्लर्क को जमा देने के बाद ही मासिक टिकट दिया जा रहा है। हालांकि रेलवे की ओर से जारी किए गए आदेश से यात्री परेशान हैं। कुछ लोगों का कहना है कि रेलवे का फैसला सही है वहीं कुछ लोग मानते हैं कि इसका कोई फायदा नहीं होगा।कई नित्ययात्रियों का कहना है कि रेलवे के इस फैसले से ऐसा लगता है कि रेलवे यात्रियों की आवाज बंद करना चाहता है। वह  मर्जी के मुताबिक रेलगाड़ियां चलाए लेकिन कोई इसका विरोध नहीं करे कि ट्रेन देरी से चल रही है या रद्द कर दी गई है। किसीतरह की सुनवाई नहीं होगी। दक्षिण पूर्व रेलवे की लोकल ट्रेनों के यात्री परेशान रहते हैं क्योंकि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं आती। सालों से यह चल रहा है क्योंकि विरोध नहीं होता। मौड़ीग्राम के एक यात्री के मुताबिक सुबह 7.44 के बाद लगभग एक घंटे बाद हावड़ा के लिए ट्रेन आती है। इसके बीच एक ट्रेन चलती है लेकिन वह सिर्फ सांतरागाछी तक जाती है। रेलवे लोगों की जुबान बंद करने के फरमान तो जारी करता रहता है, किराया वृद्धि करता रहता है लेकिन यात्री सुविधाओं-समस्याओं की सुध लेने की फिक्र नहीं दिखती है।  

होली से सरकारी कर्मचारियों की छुट््िटयों की सौगात शुरू

 होली से सरकारी कर्मचारियों की छुट््िटयों की सौगात शुरू होने जा रही है। डीए में वृद्धि के बाद जहां पहले से तय छुट््िटयों की सूची तो है ही इसके साथ ही लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ढेर सारी छुट््िटयां मिलने जा रही हैं। हालांकि सरकारी दफ्तर को खुले रहेंगे, लेकिन सभी की नजरें चुनाव पर ही रहेंगी।
मालूम हो कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रविवार होली होने के कारण सोमवार को सरकारी छुट््टी का एलान कर दिया है। इस तरह होली के लिए 15 से लेकर 17 मार्च तक लगातार तीन दिन तक सरकारी कर्मचारियों की छुट््टी रहेगी। इसके बाद अप्रैल में 12 से लेकर 15 और 18 से लेकर 20 अप्रैल तक छुट््टी है। मई में एक और तीन-चार छुट््टी है। सितंबर-अक्तूबर में 30 सितंबर से लेकर आठ अक्तूबर तक छुट््टी के बाद दो दिन के अंतराल बाद ग्यारह और 12 अक्तूबर को छुट््टी है। अक्तूबर महीने में 18-19 के बाद 23 से लेकर 26 अक्तूबर तक छुट््टी रहेगी। नवंबर महीने में एक, दो, चार, छह, आठ और नौ नवंबर छुट््टी है। दिसंबर में 25, 27-28 छुट््टी है।
लोकसभा चुनाव के पहले काम करने के लिए राज्य सरकार ने कैलेंडर जारी किया है। लेकिन छुट््िटयों के कारण काम कैसे पूरा हो पाएगा? चिंता इसे लेकर है। मार्च में जहां होली के कारण लगातार तीन दिन की छुट््टी मिल रही है। वहीं अप्रैल में 16-17 अप्रैल छुट््टी लेने पर एक साथ शनिवार-रविवार समेत छुट््टी के नौ दिन मिल जाएंगे। इसी तरह मई में एक दिन दो मई को छुट््टी ले ली तो चार दिन तक लगातार छुट््टी रहेगी। दुर्गापूजा और कालीपूजा में तो छुट््िटयों की बहार है। इसके बाद साल के अंत में नवंबर -दिसंबर के महीने में तो वैसे भी नए साल के आगमन को लेकर सरकारी कर्मचारी व्यस्त रहते हैं। इसलिए काम कौन करेगा यह सोचना की बात है। सवाल यह  है कि इतनी ज्यादा और लगातार छुट््िटयां होने के कारण क्या सरकार तय समय पर कैलेंडर के मुताबिक काम कर सकेगी या नहीं?