Thursday, November 27, 2014

चार साहिबजादे

चार साहिबजादों की बहादुरी को देख कर छलके हजारों आंखों में आंसू
रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 16 नवंबर। एक साथ दो हजार से ज्यादा आंखों में आंसू छलकते रहे और यह एक बार नहीं तकरीबन दो घंटे  के दौरान बार-बार हुआ, आंसू बहाने वाली आंखों में पुरुष, महिला, बच्चे, जवान सभी शामिल थे। यह मौका रविवार की सुबह डनलप के सोनाली सिनेमा हाल में देखा गया जहां सुबह नौ बजे वाले शो में 1200 सीटों वाले प्रेक्षागृह में छह महीने से लेकर सात साल के बच्चों को मिलाकर फिल्म देखने वाले दर्शकों की संख्या ज्यादा नहीं तो कम से कम 1500 तो जरुर रही होगी। गुरुद्वारा सिख संगत, डनलप ब्रिज और नौजवान सभा की ओर से निर्माता पम्मी बवेजा, निर्देशक हैरी बवेजा की सिखों के दसवें गुरू गुरू गोविंद सिंह जी के चार साहिबजादों (पुत्रों) पर आधुनिक थ्री डी तकनीक से बनाई गई 129 मिनट की फिल्म ‘चार साहिबजादे’ के मुफ्त प्रदर्शन का था।
पश्चिम बंगाल में पहली बार पंजाबी भाषा की कोई फिल्म इतने व्यापक स्तर पर प्रदर्शित की गई है। आइनाक्स, अवनि पीवीआर, सोनाली, मेनका समेत राज्य के विभिन्न मल्टीप्लेक्स और साधारण सिनेमा घरों में हिंदी, पंजाबी भाषा के थ्री डी और टू डी के लगभग 20 शो प्रतिदिन हो रहे हैं। मालूम हो कि तकरीबन 26 करोड़ की लागत से बनी फिल्म पहले ही देश-विदेश में सुपरहिट हो चुकी है। पहले चार दिनों में 7.90 करोड़ के कारोबार के साथ पहले नौ दिनों में फिल्म 20 करोड़ रुपए का कारोबार कर चुकी है। इतना ही नहीं विदेशों में भी फिल्म ने शानदार कारोबार करते हुए शाहरुख खान की हैप्पी न्यू ईयर को कड़ी टक्कर दी है। तीसरे हफ्ते बंगाल के ब्रांड अंबेसडर की फिल्म ने जहां 178 प्रिंटों पर 2.20 करोड़ रुपए की कमाई की वहीं सिख इतिहास पर अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी तीन भाषाओं में  बनी फिल्म ने पहले हफ्ते उसके मुकाबले 60 प्रिंटों पर 2.27 करोड़ रुपए की कमाई करके रिकार्ड बनाते हुए इंगलैंड, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में पहला स्थान हासिल किया।
‘चार साहिबजादे’ देखकर भाव विभोर हुए दर्शकों का मानना है कि निर्देशक ने बहुत ही साहस और चतुराई के साथ संवेदनशील विषय पर बहुत ही सफलता से फिल्म का निर्माण किया है। मालूम हो कि इससे पहले दारा सिंह की  ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं’ (1976) से लेकर मंगल ढिल्लों की  ‘खालसा’ (1999) तक कई फिल्मकारों ने सिख धर्म पर फिल्म बनाने का साहस किया है लेकिन उन्हें भारी मुसीबतों और विरोध का सामना करना पड़ा। खालसा पंथ के  300 साला स्थापना दिवस के मौके पर आनंदपुर साहिब में अपनी फिल्म का प्रदर्शन करने पहुंचे ढिल्लो ने बताया था कि वे तो सिख होने के नाते धर्म का प्रचार करना चाहते हैं लेकिन उन्हें फिल्म प्रदर्शित करने की मंजूरी नहीं दी गई। इस तरह कई लोगों ने प्रयास किए लेकिन विफल हो गए।
फिल्म देखने वालों का कहना है कि हैरी बवेजा ने संवेदनशील विषय पर बेहद चतुराई से फिल्म का निर्माण किया है। खालसा पंथ की स्थापना करने वाले कवि, योद्धा, इतिहासकार , रणनीतिकार से लेकर कुशल श्रृद्धालु गुरू गोविंद सिंह (आपे गुरू-आपे चेला) के चार साहिबजादों के माध्यम से जहां सिखों के साहस, वीरता, चतुराई, नेतृत्व क्षमता  का ओम पुरी की दमदार आवाज में शानदार बखान कियागया है वहीं यह सीख भी दी गई है कि नेता वह होता है जो आगे बढ़कर दुश्मनों का मुकाबला करता है, जरुरत पड़ने पर अपने बेटों को भी शहीद होने के लिए भेजता है। 42 सिखों का 10 लाख मुगल सैनिकों से मुकाबला करने वाली जंग का बखूबी चित्रण करते हुए निर्देशक ने इस बात का भी ख्याल रखा है कि सिख गुरू को नहीं चित्रित किया जा सकता,  इसलिए चित्रों के माध्यम से दसवें गुरू की उपस्थित हर जगह प्रदर्शित की गई है।
कई लोगों के मुताबिक युवा पीढ़ी स्पाइडरमैन, सुपर मैन के काल्पनिक चरित्र देखती है उन्हें ‘चार साहिबजादे’ देखनी चाहिए, जिससे असली नायकों से परिचय हो सके और देश के सभी गैर सिखों के यह फिल्म इसलिए देखनी चाहिए कि सिखों के इतिहास के बारे में महज दो घंटों में जानकारी हासिल कर सकें। मालूम हो कि फिल्म के घटनास्थल से लेकर युद्ध में गुरू की ओर से चलाए गए शस्त्र काल्पनिक नहीं बल्कि असली शस्त्रों की तर्ज पर ही बनाए गए हैं।