Sunday, June 21, 2015

गोद लेने वाले हजारों लेकिन घट रही है संख्या
कोलकाता, 21 जून
खगेंद्र राउत बीते 20 साल से कोलकाता के एक स्कूल में दरवान का काम कर रहा है। सालों पहले शादी हुई थी लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं है। बच्चे के लिए बाबाओं से लेकर डाक्टरों तक खासी भागदौड़ करने के बाद किसी ने बच्चा गोद लेने के बारे में सुझाया। इस बारे में भी काफी प्रयास किए गए, सफलता नहीं मिली। एक बांग्ला टीवी चैनल में पत्रकारिता करने वाली एक युवती भी बीते 10 साल से बच्चे को तरस रही है,डाक्टरों से लेकर ओझाओं तक दौड़ने के बाद कई बच्चा गोद देने वाले एजेंसियों से भी संपर्क किया  लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। महानगर और आसपास ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बच्चों के लिए तरस रहे हैं।  दूसरी ओर सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि देश में गोद लेने की दर में 50 फीसदी गिरावट आई है।
मालूम हो कि देश में अलग अलग कारणों से मां नहीं बन पाने वाली महिलाओं की तादाद लगातार बढ़ रही है। आंकड़ों के मुताबिक देश में  लगभग 15 फीसदी महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं। महिलाओं में 1960 में प्रजनन क्षमता 6.1 थी, यह 2013 में घटकर 2.4 रह गई। जबकि 2012 में  बंगाल में यह आंकड़ा 1.7 पर पहुंच गया। पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर को छोड़कर जहां सभी जिलों में प्रजनन की दर कम हुई थी वहीं कोलकाता में यह निगेटिव 1.67 दर्ज की गई। एक ओर महिलाओं में बच्चा पैदा करने की दर घट रही है, दूसरी ओर बच्चों के लिए अस्पतालों से बच्चा चोरी, गरीबी के कारण बच्चा बेचने की खबरें भी छपती रहती हैं। इसके लिए कई वजहें जिम्मेदार मानी जाती हैं। कहीं देर से शादी हो रही है तो कहीं करियर के चक्कर में संतान प्रथामिकता सूची में नीचे पहुंच जाती है। बदलती जीवन शैली भी इसका एक कारण है। इलाज की समुचित और सस्ती सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने और गोद लेने की प्रक्रिया लोगों की पहुंच से दूर होने के कारण कई लोग आजीवन संतान के लिए तरसते रह जाते हैं।
इधर, आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले पांच सालों में गोद लेने में 50 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। सेंट्रल एडाप्सन रिसोर्स एजेंसी (सीएआरए) के मुताबिक 2010 में 6321 बच्चों को गोद लिया गया था। जबकि 2013 में यह आंकड़ा घटकर 4354 पर आ गया था। अप्रैल-सितंबर 2014 में यह संख्या सिर्फ 1622 थी। आंकड़े बताते हैं कि पांच साल में देश में 21,736 बच्चे गोद लिए गए, जबकि विदेशी नागरिकों की ओर से गोद लिए जाने वाले बच्चों की संख्या 2156 रही। पश्चिम बंगाल में 2010 में 656 बच्चों को गोद लिया गया था। इसके बाद 2011 में 598, 2012 में 388, 2013 मेंं 399 और सितंबर 2014 में यह संख्या घटकर 86 रह गई।
कई लोगों का मानना है कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया सरल हो जाए तो राज्य में 86 बच्चा गोद लेने का आंकड़ा एक-एक  जिले में ही कई गुना बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं इससे बच्चा चोरी होने की घटनाओं में भी कमी आ सकती है। इसके साथ ही गरीबी में लोगों को बच्चा बेचने की नौबत नहीं आए, इस बारे में सरकार को सोचना चाहिए। एक व्यक्ति के मुताबिक कई जगह कोशिश करने के बच्चा गोद लेना संभव नहीं हुआ।
एक व्यक्ति ने बताया कि अगर आपके पास पैसे हों तो देश में किसी तरह की समस्या नहीं है। फिल्म स्टार से लेकर दूसरी अमीर हस्तियां जितने मर्जी बच्चे गोद लें, उन्हें कोई परेशानी नहीं होती। उनके लिए तो गर्भ धारण करने से लेकर टेस्ट ट्यूब बेबी जैसे कई तरीके हैं। जबकि आम व्यक्ति प्रतिदिन 100-200 रुपए की कमाई करता है,उसके लिए इस तरह से संतान हासिल करना संभव ही नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए एक ड्राफ्ट गाइडलाइन बनाई गई है। इसके मुताबिक पति-पत्नी भारतीय हों, उनकी उम्र 35 साल से ज्यादा हो, मानसिक,शारीरिक तौर पर स्वस्थ हों, बच्चे की देखभाल के लिए पर्याप्त संसाधन हों, उनके खिलाफ किसी तरह का आपराधिक मामला दर्ज नहीं हो। बताया जाता है कि इसका मकसद बच्चे को पारिवारिक माहौल प्रदान करना है। हालांकि यह मसौदा अंतिम नहीं है, इसमें संसोधन हो सकते हैं।
एक व्यक्ति ने इस बारे में कहा कि राज्य सरकारों को चाहिए कि बच्चा गोद देने वाली एजेंसियों और आवेदन करने वालों पर निगरानी की व्यवस्था की जाए। जिससे सालाना कितने बच्चे वहां आते-जाते हैं, इसका ब्योरा रखने के साथ ही संतानहीन परिवारों की व्यथा भी कम हो सके। फिलहाल तो यह कहा जा सकता है कि गोद लेने वालों के आंकड़ों में तो भारी गिरावट हुई है लेकिन कोई सर्वे कराया जाए तो पता चलेगा कि संतान की चाहत में परेशान दंपत्ति की संख्या में कितनी वृद्धि हुई है।