पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित सिंगूर जमीन मामले में कोलकाता हाईकोर्ट की दो सदस्यीय
बेंच ने सिंगूर भूमि पुनर्वास और विकास विधेयक को असंवैधानिक करार दिया है।
टाटा ने इस मामले में कलकत्ता
हाईकोर्ट के ही एक सदस्यीय बेंच के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसने पिछले
साल इस विधेयक को सही ठहराया था।
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में
मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद पिछले साल जून में ये विधेयक पारित किया था। इस
विधेयक के तहत सिंगूर में टाटा के साथ हुए समझौते को रद्द करते हुए ज़मीन किसानों
को वापस दी जानी थी।
कलकत्ता हाईकोर्ट के इस फैसले के
खिलाफ ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। पश्चिम बंगाल में पिछली
वाममोर्चा सरकार के कार्यकाल में टाटा समूह के साथ समझौता हुआ था, जिसके तहत
टाटा को सिंगूर में अपना संयंत्र लगाना था और उसके लिए उसे भूमि आवंटित की गई थी।
पश्चिम बंगाल सरकार ने एक हज़ार
एकड़ जमीन का अधिग्रहण करके उसे टाटा मोर्टस को सौंप था जहाँ वो टाटा नैनो बनाने
वाली थी। सिंगूर में टाटा मोटर्स का काम जनवरी 2007 में शुरु
हुआ था। लेकिन भूमि आबंटन को लेकर टाटा समूह को लोगों का ज़बरदस्त विरोध झेलना
पड़ा था।
योजना का विरोध करने वालों का कहना
था कि सिंगूर में चावल की बहुत अच्छी खेती होती है और वहाँ के किसानों को इस
परियोजना की वजह से विस्थापित होना पड़ा है। इसे लेकर हिंसक प्रदर्शन भी हुए थे।
आख़िरकर 2008 में टाटा
समूह ने सिंगूर स्थित अपने संयंत्र को पश्चिम बंगाल से हटाने का फ़ैसला किया था।
ममता बनर्जी ने 2011 में
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सिंगूर को एक बड़ा मुद्दा बनाया था।
कोर्ट ने यह फैसला टाटा मोटर्स के
हक में दिया है। हालांकि इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील
कर सकती है और इसके लिए सरकार को कोर्ट ने दो महीने का वक्त भी दिया है।
मामले की सुनवाई कर रही
न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति एम के चौधरी की खंडपीठ ने अपने फैसले
में कहा कि सिंगूर एक्ट असंवैधानिक है।
टाटा मोटर्स ने कलकत्ता हाईकोर्ट
की एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी जिसने इस अधिनियम को बरकरार रखा था। इस
अधिनियम के तहत पश्चिम बंगाल सरकार ने सिंगूर में कंपनी को दी जमीन का अधिकार का
वापस ले लिया था।
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