सब्जी बाजार में कीमतें कम होने से लोगों ने राहत की सांस ली है लेकिन हमलोग जो साग-सब्जी खरीद रहे हैं वह सुरक्षित है? हम जिसे स्वास्थ्यवर्द्धक और अच्छी सब्जी मानते हैं , उसे खाने से कई घातक बीमारियां हो सकती हैं। इससे कैंसर तक हो सकता है। जिगर खराब हो सकता है। सरकारी रिपोर्ट भी मानती है कि ग्राहकों को लुभाने के लिए महानगर में सब्जियों में जहरीला रसायन मिलाया जा रहा है। आलू, प्याज, परवल, मछली, सरसों का तेल, काली मिर्च, चाय, काफी, बूंदी और लड््डू जैसे आम लोगों के खाने वाली वस्तुओं में ऐसा रसायन मिलाया जा रहा है लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है। इतना ही नहीं हजारों लोगों की मनपसंद बिरियानी भी अब सुरक्षित नहीं रही है। नासमझी के कारण लोग यह सारा खाना खाने को मजबूर हैं। कोलकाता नगर निगम के अधिकारियों को इसके खतरे का आभास है लेकिन ढांचागत सहूलतें और कुछ करने की आदत नहीं होने के कारण ऐसा करने वाले व्यापारियों पर अंकुशनहीं लगाया जा रहा है।
नगर निगम सूत्रों का कहना है कि खाद्य पदार्थ में मिलावट का पता लगानेके लिए 2010-2011 में कोलकाता के विभिन्न इलाकों से फूड एनाल्सिट विभाग की ओर से कुल मिलाकर 250 नमूने संग्रह किए गए थे। इनकी जांच करने के बाद पता चला कि कम से कम 50 पदार्थो में जहरीला रसायन मिलाया गया था। नमूना परीक्षा में देखा गया कि महानगर में बिकने वाले फास्ट फूड और कच्ची सब्जी के मामले में कई जगह खतरे की सीमा तक रसायन मिला है। इसका नतीजा पता चलने पर ज्यादातर लोग आतंकित हो जाएंगे।
गौरतलब है कि सब्जी बाजार में जाकर सभी लोग ताजा सब्जी की तलाश करते हैं। आम तौर पर माना जाता है कि ज्यादा हरी दिखने वाली सब्जी ही ताजा होती है। इसलिए बाजार में ज्यादा हरे रंग की सब्जियों की मांग ज्यादा रहती है। ऐसी सब्जी की कीमत भी आम तौर पर ज्यादा रहती है। नगर निगम के विशेषज्ञों का कहना है कि परवल, झींगा, साग समेत हरे रंग की सब्जियों में हरियालापन ज्यादा करने के लिए कापर सल्फेट या डायमंड ग्रीन रसायन का प्रयोग किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि ऐसा रसायन लगातार पेट के भीतर जाने से लीवर खराब हो सकता है। इससे लीवर कैंसर तक हो सकता है। इससे अंतड़ियां भी खराब हो सकती हैं। यह रंग पानी में धोने से जल्दी साफ नहीं होता है। इसलिए डाक्टरों की सलाह मान कर हरी सब्जियां खाना खतरनाक भी हो सकता है।
इसी तरह लाल आलू को रंगीन करनेके लिए कंगोरेड व रोडामिन रसायन मिलाया जाता है। यह भी जिगर के लिए घातक है। इससे आंखे भी खराब हो सकती हैं। आम तौर पर माना जाता है कि काली मिर्च सेहत के लिए अच्छी होती है लेकिन ज्यादातर लोग इसे पसंद करते हैं। कीड़े मिर्च को नष्ट न कर दें, इसलिए कई व्यापारी किरासन तेल या इससे मिलता-जुलता रसायन डाल कर इसे रखते हैं। इससे खतरनाक कार्बन लोगों के भीतर प्रवेश करता है। सब्जीकी तरह की मछली खाना भी सुरक्षित नहीं है। माना जाता है कि मछली का कान का हिस्सा जितना लाल होता है वह उतनी ही ताजा होती है। इसके लिए मछली व्यापारी लाल रंग के रसायन का प्रयोग करते हैं। इसी तरह टमाटर में भी रंग का व्यवहार किया जाता है। दानादार, बूंदी और लड््डू में मेटानिल येलो या केसरी रंग का व्यवहार किया जाता है। कटलेट, वेजिटेबल चाप में भी केसरी रंग का व्यवहार होता है। इससे भी कैंसर हो सकता है। बिरियानी को रंगीन बनानेके लिए अरामिन टारटाजिन मिलाया जाता है। अरहर की दाल में भी रसायन मिलाया जाता है।
कोलकाता नगर निगम में विभागीय मेयर परिषद के सदस्य डाक्टर पार्थ हजारी का कहना है कि भोज्य पदार्थ में मिलावट का पता चलने पर अदालत में मामला दायर कियाजाता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में निगम अदालत का फैसला खिलाफ होने पर अभियुक्त उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में चले जाते हैं। वहां जाकर निगम उनका मुकाबला नहीं सकता। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारे पास मिलावट का पता लगाने के लिए आधुनिकतम प्रयोगशाला नहीं है।
नगर निगम सूत्रों का कहना है कि खाद्य पदार्थ में मिलावट का पता लगानेके लिए 2010-2011 में कोलकाता के विभिन्न इलाकों से फूड एनाल्सिट विभाग की ओर से कुल मिलाकर 250 नमूने संग्रह किए गए थे। इनकी जांच करने के बाद पता चला कि कम से कम 50 पदार्थो में जहरीला रसायन मिलाया गया था। नमूना परीक्षा में देखा गया कि महानगर में बिकने वाले फास्ट फूड और कच्ची सब्जी के मामले में कई जगह खतरे की सीमा तक रसायन मिला है। इसका नतीजा पता चलने पर ज्यादातर लोग आतंकित हो जाएंगे।
गौरतलब है कि सब्जी बाजार में जाकर सभी लोग ताजा सब्जी की तलाश करते हैं। आम तौर पर माना जाता है कि ज्यादा हरी दिखने वाली सब्जी ही ताजा होती है। इसलिए बाजार में ज्यादा हरे रंग की सब्जियों की मांग ज्यादा रहती है। ऐसी सब्जी की कीमत भी आम तौर पर ज्यादा रहती है। नगर निगम के विशेषज्ञों का कहना है कि परवल, झींगा, साग समेत हरे रंग की सब्जियों में हरियालापन ज्यादा करने के लिए कापर सल्फेट या डायमंड ग्रीन रसायन का प्रयोग किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि ऐसा रसायन लगातार पेट के भीतर जाने से लीवर खराब हो सकता है। इससे लीवर कैंसर तक हो सकता है। इससे अंतड़ियां भी खराब हो सकती हैं। यह रंग पानी में धोने से जल्दी साफ नहीं होता है। इसलिए डाक्टरों की सलाह मान कर हरी सब्जियां खाना खतरनाक भी हो सकता है।
इसी तरह लाल आलू को रंगीन करनेके लिए कंगोरेड व रोडामिन रसायन मिलाया जाता है। यह भी जिगर के लिए घातक है। इससे आंखे भी खराब हो सकती हैं। आम तौर पर माना जाता है कि काली मिर्च सेहत के लिए अच्छी होती है लेकिन ज्यादातर लोग इसे पसंद करते हैं। कीड़े मिर्च को नष्ट न कर दें, इसलिए कई व्यापारी किरासन तेल या इससे मिलता-जुलता रसायन डाल कर इसे रखते हैं। इससे खतरनाक कार्बन लोगों के भीतर प्रवेश करता है। सब्जीकी तरह की मछली खाना भी सुरक्षित नहीं है। माना जाता है कि मछली का कान का हिस्सा जितना लाल होता है वह उतनी ही ताजा होती है। इसके लिए मछली व्यापारी लाल रंग के रसायन का प्रयोग करते हैं। इसी तरह टमाटर में भी रंग का व्यवहार किया जाता है। दानादार, बूंदी और लड््डू में मेटानिल येलो या केसरी रंग का व्यवहार किया जाता है। कटलेट, वेजिटेबल चाप में भी केसरी रंग का व्यवहार होता है। इससे भी कैंसर हो सकता है। बिरियानी को रंगीन बनानेके लिए अरामिन टारटाजिन मिलाया जाता है। अरहर की दाल में भी रसायन मिलाया जाता है।
कोलकाता नगर निगम में विभागीय मेयर परिषद के सदस्य डाक्टर पार्थ हजारी का कहना है कि भोज्य पदार्थ में मिलावट का पता चलने पर अदालत में मामला दायर कियाजाता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में निगम अदालत का फैसला खिलाफ होने पर अभियुक्त उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में चले जाते हैं। वहां जाकर निगम उनका मुकाबला नहीं सकता। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारे पास मिलावट का पता लगाने के लिए आधुनिकतम प्रयोगशाला नहीं है।
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