Wednesday, September 26, 2012

मां ने 3 लड़कियां 155 रुपए में बेच दी


 गरीबी के कारण एक महिला ने महज 150 रुपए में अपनी तीन बच्चियों को बेच दिया। यह घटना दक्षिण चौबीस परगना जिले के डायमंडहार्बर इलाके में हुई है। पुलिस सूत्रों से पता चला है कि एक बच्ची एक सौ रुपए, दूसरी 30 रुपए और तीसरी 25 रुपए में बेची गई। इस घटना का पता चलते ही प्रशासन सक्रिय हो गया औरतीनों लड़कियों को बरामद किया। हालांकि इससेपहले पत्नी से मारपीट करने के आरोप में पुलिस ने महिला के पति को गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से इलाके के लोगों में भारी गुस्सा है।
सूत्रों से पता चला है कि गरीबी और परिवार की खराब हालत के कारण शराबी पति प्रतिदिन शराब पीकर पत्नी को पीटता था। इससे परेशान होकर महिला ने सोचा कि एक तो बच्चे दयनीय हालत से बच जाएंगे और उनका जीवन सुधर जाएगा,इसलिएतीनों को बेच दिया। नेतरा ग्राम पंचायत के नेतरा गांव की पूर्णिमा हालदर 10-12 दिन पहले घर से अपनी लड़कियों के साथ डायमंडहार्बर स्टेशन पहुंच गई थी। वहां नजदीक के एक आश्रम में भोजन करती थी। इस दौरान 24 अगस्त को नोटरी के कागज पर मझली लड़की सुप्रिया को 100 रुपए में बेच दिया। इसके बाद बड़ी लड़की प्रिया और छोटी लड़की रमा को भी 55 रुपए में बेच दिया।
हालांकि तीन लड़कियों को बेचने के बाद महिला की हालत देखने लायक थी। इसलिए स्टेशन पर बैठकर रो रही थी। वहां मौजूद लोगों ने जब सच्चाई के बारे में पता लगाया तो उनकी लड़कियों को बरामद किया गया। बाद में पारिवारिक हालत का पता लगने के बाद पुलिस ने पति को गिरफ्तार किया है। हालांकि परिवार के सामने यह संकट बना हुआ है कि उनका क्या होगा और लड़कियों का भविष्य क्या होगा।

Monday, September 24, 2012

ममता की बेरोजगार बैंक में नहीं पहुंचे बेरोजगार


  राज्य में बेरोजगारों की संख्या 75 लाख से भी ज्यादा है। तृणमूल कांग्रेस सरकार ने राज्य में बेरोजगारी दूर करने के लिए 27 जुलाई को इंप्लाएमेंट बैंक शुरू की थी। लेकिन दो महीने गुजरनेके बाद भी महज 40 हजारलोगों ने बेवसाइट पर पंजीकरण कराया है। इसके साथ ही वेबसाइट पर पंजीकरण करवानेके बाद एक महीने के भीतर  राज्य के किसी भी रोजगार कार्यालय में जाकर शैक्षणिक प्रमाणपत्र की जांच करवानी पड़ती है। यह काम कुल मिलाकर 19 हजार बेरोजगार युवक-युवतियों ने किया है।
राज्य सरकार के सूत्रों के मुताबिक इस बैंक में पंजीकरण करवाने वालों को सरकारी और गैरसरकारी नौकरी हासिल करने में सहूलत होगी। इस परियोजना के लिए 75 प्राइवेट संस्थाओं के साथ बातचीत करने के बाद भी अभी तक किसी भी संस्था ने अपना नाम दर्ज नहीं कराया है। इसके कारण इंप्लाएमेंट बैंक का भविष्य अंधकार में दिखता है।
राज्य सरकार ने परियोजना के लिए एक करोड़ रुपए की राशि मंजूर की है। वेबेल नामक संस्था को इस परियोजना पूरा करने की जिम्मेवारी दी गई है। लेकिन दो महीने बाद भी इस बारे में कुछ खास प्रगति नहीं दिख रही है। इस बारे में श्रम विभाग के विशेष सचिव एके रायचौधरी का कहना है कि परियोजना का काम जोर-शोर से चल रहा है। इस बीच कई प्राइवेट संस्थाओं और प्लेसमेंट संस्थाओं के साथ बातचीत की गई है। जब नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होगी तो सबसे ज्यादा फायदे में गांव के लड़के-लड़कियां ही रहेंगे। इसका कारण यह है कि बैंक में पंजीकरण करवाने वालों को एसएमएस भेजकर नौकरी के बारे में सूचित किया जाएगी। बेरोजगार व्यक्ति की ओर से भेजे गए प्रोफाइल को देख कर ही साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा।
गौरतलब है कि हाल तक इंप्लाएमेंट बैंक में माध्यमिक पास उम्मीदवारों में 1565, उ च्च माध्यमिक (कला) विभाग में 968, विज्ञान में 514, वाणिज्य में 321, आईटीआई में 163, आईटीआई के सर्टीफिकेट पाठ्यक्रम में 440, डिप्लोमा पोलिटेकनिक 245, दूसरे मामले में डिप्लोमा वाले 360, स्नातक (आनर्स) में 969, स्नातक (इंजीनियरिंग) में 250,कानून में तीन, आईसीडब्लूए में चार लोगों समेत कुल मिलाकर 40 हजार लोगों ने पंजीकरण करवाया है।
हालांकि जहां राज्य में बेरोजगारों की संख्या 75 लाख है वहां पंजीकरण करवाने लोगों की संख्या इतनी कम होने पर हैरत जताई जा रही है। इस बारे में पूछे जाने पर श्रम विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि गांव के लोगों को इंटरनेट के बारे में कम जानकारी है। इसके साथ ही बैंक का काम तो चालू हो गया है लेकिन प्रचार -प्रसार नहीं किया गया जिससे लोगों को इसके फायदे के बारे में जानकारी मिल सके। इसी तरह दूसरे एकअधिकारी का कहना है कि लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा है कि पंजीकरण कैसे करवाया जाए। कई लोगों ने प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। मालूम हो कि पंजीकरण करने के लिए डब्लूडब्लूडब्लू डाट इंप्लाएमेंटबैंकडब्लूबी डाट जीओवी डाट इन पर उम्मीदवार को नाम, उम्र, फोटो, शैक्षणिक योग्यता या कारीगारी योग्यता के बारे में ब्योरा दर्ज करके पंजीकरण करवाना पड़ता है। इसके बाद पंजीकरण नंबर मिलेगा। इसकी प्रति का प्रिंट निकाल कर रोजगार कार्यालय में शैक्षणिक योग्यता को प्रमाणित करवाना होगा। यहां योग्यता परीक्षा की जांच करके यूजर आईडी और पासवर्ड प्रदान किया जाएगा। यह सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद साक्षात्कार के लिए एसएमएस पर संदेश सीधे घर पहुंच जाएगा।

Tuesday, September 18, 2012

ममता -सरकार -धमकी



 
    मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने विदेशी किराना, डीजल और गैस सिलेंडर के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चो खोला हुआ है. उन्होंने  कई बार  सरकार को धमकी दी है. एक नजर ममता की अब तक की धमकी और उसके नतीजे पर.

14 सितंबर 2012: विदेशी किराना और डीजल-रसोई गैस के मुद्दे पर विरोध
ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि वो विदेशी किराना और डीजल की बढ़ी कीमत के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेंगी, जबकि गैस सिलेंडर के मामले में वो चाहती हैं कि सरकार प्रति परिवार एक साल में 24 सिलेंडर का कोटा फिक्स करे.

23 अगस्त 2012: इंश्योरेंस बिल का विरोध
ममता पेंशन और इंश्योरेंस के क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई का विरोध कर रही हैं. उन्हीं के विरोध की वजह से ये बिल लटका हुआ है.

13 जून 2012: राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार का विरोध
राष्ट्रपति चुनाव में ममता ने प्रणब मुखर्जी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला था. हालांकि बाद में मुलायम सिंह के पाला बदलने के बाद उन्होंने प्रणब मखर्जी का समर्थन किया था.

7 जून 2012: पेंशन बिल का विरोध
यूपीए सरकार नए पेंशन बिल के तहत इस क्षेत्र को निजी और विदेशी क्षेत्र के लिए खोलने के मूड में है, लेकिन ममता के विरोध को देखते हुए सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए.

24 मई 2012: पेट्रोल की बढ़ी कीमत का विरोध
इस दिन सरकार ने एक झटके में पेट्रोल की कीमत में प्रति लीटर 7.50 पैसे का इजाफा कर दिया था, जिसके बाद ममता ने सरकार से बाहर होने की बात तक कह डाली थी.

5 मई 2012: NCTC का विरोध
राष्‍ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र यानी एनसीटीसी के मुद्दे पर भी ममता ने केंद्र सरकार को खुली चुनौती दी थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि एनसीटीसी के जरिए केंद्र राज्य के अधिकार पर हमला कर रही है. ममता के विरोध के बाद एनसीटीसी का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है.

31 दिसंबर 2011: लोकायुक्त की नियुक्ति का विरोध
ममता ने केंद्र के प्रस्ताविक लोकपाल विधेयक का विरोध करते हुए मांग की है कि राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का मसला पूरी तरह राज्य सरकार के अधीन रहे.

24 नवंबर 2011: विदेशी किराना का विरोध
पिछले साल नवंबर में जब सरकार ने विदेशी किराना की बात कही थी उस समय भी ममता ने सरकार को धमकी दी थी.

6 सितंबर 2011: तीस्ता जल समझौते का विरोध
ममता बनर्जी बांग्लादेश सरकार के साथ होनेवाले तीस्ता जल समझौते के खिलाफ हैं और उन्हीं की विरोध की वजह से पिछले साल ये समझौता नहीं हो पाया था.

3 सितंबर 2011: भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध
ममता सरकार मौजूदा भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ है क्योंकि उनका मानना है कि इस बिल में किसानों के हितों की अनदेखी की गई है. ममता के विरोध की वजह से ये बिल भी लटका हुआ है. ममता पश्चिम बंगाल को विशेष आर्थिक पैकेज के मसले पर भी सरकार को कोई बार धमकी दे चुकी हैं.

वैसे ममता शुरू से इस तरह की राजनीतिक धमकी देती आई हैं. 90 के दशक में जब वो पी वी नरसिंहराव की सरकार में कांग्रेसी मंत्री थी तो उन्होंने ज्योति बसु की सरकार को हटाने की मांग करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

इसी तरह एनडीए सरकार में उन्होंने तहलका मामले के बाद तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज को हटाने की मांग करते हुए रेलमंत्री का पद छोड़ दिया था.

Sunday, September 16, 2012

अतीत का हिस्सा बनते जा रहे हैं सिनेमाघर



 हावड़ा जिले के शिवपुर थाना इलाके में  किसी जमाने में धर्मेंद्र की फिल्म जुगनू देखने के लिए मायापुरी सिनेमाहाल के सामने दर्शकों की  लंबी कतार लगी रहती थी। लोग सिनेमाहाल का अग्रिम टिकट कटाने के लिए मारपीट तक करते थे, इस दौरान किसी का पर्स गायब हो जाता तो किसी की घड़ी। यही हाल धर्मेंद्र की फिल्म आजाद के लिए नवभारत सिनेमा हाल में थी। कोलकाता के ज्योति सिनेमाहाल में सन्नी देवल की पहली फिल्म बेताब का अग्रिम टिकट कटाने वालों की लंबी कतार बारिश में भी टस से मस नहीं हो रही थी।  सदाबहार फिल्म शोले भले ही सफलता के सर्वकालीन कीर्तिमान कायम करने में कामयाब रही हो उसे शुरूआती दर्शक नहीं मिले थे। इसके बावजूद नई फिल्म लगने के बाद कई लोग आराम से फिल्म देखते थे कि महीना-दो महीना तो चलेगी, बाद में देखलेंगे।  लेकिन यह सारी बातें अब जहां सपने की तरह लगती हैं क्योंकि सिनेमाहाल के दर्शक तो  गायब होते ही  जा रहे हैं, वहीं सिनेमाहाल भी दर्शकों के साथ गुम होते जा रहे हैं।
इन दिनों सिनेमा हाल में जाकर फिल्म देखने वाले  दर्शकों की पुरानी पहचान बदलती जा रही है। पारंपरिक सिनेमाहाल बंद हो रहे हैं और उनकी जगह बहुमंजिला इमारतें, शापिंग माल बनते जा रहे हैं। महानगर कोलकाता का प्रसिद्ध सिनेमाहाल ओरिएंट मलबे में बदल चुका है। बदलते जमाने के साथ नहीं बदलने के कारण सिनेमाहाल से दर्शक दूर होते जा रहे हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि सिनेमाघरों की हालत में सुधार नहीं करने के कारण ही दर्शक मल्टीप्लेक्स की ओर जा रहे हैं।
हावड़ा में जोगमाया सिनेमाहाल में एक राजनीतिक दल का कार्यालय बन चुका है। इसके अलावा मायापुरी, अलका समेत बंद होने वाले सिनेमा घरों की एक लंबी सूची है। कोलकाता में हाथीबगान में पूर्णश्री, रुपबानी, खन्ना, धर्मतला का लोटस, लाइटहाउस, चैप्लिन, ओपेरा, न्यु सिनेमा, ज्योति, जेम, टाईगर इस सूची में शामिल हैं। दक्षिण कोलकाता में बंद सिनेमाघरों की सूची में उज्जला, कालिका, रुपाली, पूर्णा, भारती शामिल है। इस ताजा सूची में ओरिएंट का नाम शामिल हो गया है, अचानक वहां जाकर देखा कि हाल मलबे में बदल गया है। पता चला है कि वहां बहुमंजिला इमारत बनाई जाएगी।
ईस्टर्न इंडिया मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन (इंपा) से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि किसी जमाने में राज्य में कुल मिलाकर 700 से ज्यादा सिनेमाघर थे। बीते पांच साल में लगभग 250 सिनेमाहाल बंद हो गए हैं। जो हाल चल रहे हैं, उनकी हालत भी दयनीय बनी हुई है। कितने दिनों तक वे चलते रहेंगे, इस बारे में कोई नहीं बता सकता।
मालूम हो कि महानगर कोलकाता और हावड़ा में अभी भी कई सिनेमाघर चल रहे हैं लेकिन कब वहां हाउसफुल का बोर्ड लगा था , यह सवाल किसी ईनामी प्रतियोगिता में पूछा जाए तो शायद ही कोई जबाव दे सके। आखिर क्या कारण है कि लोग सिनेमाहाल से दूर जा रहे हैं और मल्टीप्लेक्स में दर्शकों की भीड़ बढ़ती जा रही है। जबकि वहां टिकटों की भारी कीमत रहती है, नई और चर्चित  फिल्म  के टिकट की कीमत तो इतनी रहती है कि सामान्य परिवार का उसमें हफ्ते का राशन आ जाए। इस बारे में पूछने पर सिनेमा घरों से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि सामान्य सिनेमा हाल में 700-800 दर्शकों के बैठने की जगह रहती है, वहीं मल्टीप्लेक्स में एक हजार-ग्यारह सौ दर्शकों के लिए चार-पांच स्क्रीन रहते हैं। यहां दर्शकों को फिल्म चुनने का मौका रहता है, दूसरे साफ-सुथरे हाल, शानदार साउंड और जबरदस्त एयरकंडीशन केकारण यहां फिल्म देखने का मजा ही कुछ और रहता है। इसलिए अब सामान्य सिनेमाहाल में भी एक दिन में दो-तीन फिल्में दिखाने की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही साउंड सिस्टम और दूसरी सुविधाओं में भी सुधार किया जा रहा है।
हालांकि पारंपरिक सिनेमाघर, जिसे सिंगल स्क्रीन कहा जाता है, उनकी हालत खराब है। यहां कई बार मुश्किल से उंगलियों पर गिने जाने लायक दर्शक दिखते हैं। लगातार बंद होते सिनेमाघरों की हालत देखते हुए ऐसा लगता है कि शायद वे जल्द ही अतीत का हिस्सा न बन जाएं।


Tuesday, September 11, 2012

कोलकाता में बढ़े मकानों के दाम



रियल एस्टेट क्षेत्र में मंदी को नकारते हुए जमीन की ऊंची कीमतें कोलकाता में मकानों के दाम बढ़ा रही हैं। अच्छे इलाकों में जमीन की कीमतें 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं, क्योंकि मांग लगातार बनी हुई है, जबकि शहर के बाहरी शहरी और अद्र्ध-शहरी इलाकों में मुश्किल से ही कोई नई टाउनशिप विकसित हुई है।
सरकारी निकायों जैसे कोलकाता नगर निगम (केएमसी) और हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हिडको) द्वारा हाल ही में की गई जमीन की नीलामी से शहर में जमीन की बढ़ती कीमतों का सही पता चलता है। इस साल जून में केएमसी ने ईएम बाईपास पर 2 एकड़ का प्लॉट 115 करोड़ रुपये में बेचा था, जो शहर में अब तक का सबसे ऊंची कीमत पर हुआ जमीन का सौदा था। इससे पहले भूमि का बड़ा सौदा 2009 में हुआ था। उस समय ईएम बाईपास पर 3.35 एकड़ का प्लॉट 135 करोड़ रुपये में बेचा गया था। अभी कुछ समय पहले ही राजारहाट की आईटी टाउनशिप में हिडको ने 2.5 एकड़ का रिटेल एवं ऑफिस कॉम्पलेक्स 51.13 करोड़ रुपये में बेचा है।
शहर के एक रियल एस्टेट डेवलपर संतोष रूंगटा ने कहा, 'कोलकाता में जमीन की कीमतें करीब 50 फीसदी बढ़ी हैं, जिसका असर आने वाली परियोजनाओं में दिखाई देगा। जमीन की आपूर्ति घट रही है, लेकिन मांग लगातार बनी हुई है और इस मांग को पूरी करने के लिए मुश्किल से ही कोई नई टाउनशिप आ रही है।'
जमीन की कीमतों में भारी बढ़ोतरी पश्चिम बंगाल में नई नहीं है। वर्ष 2009 के आसपास पूववर्ती वामपंथी सरकार के शासनकाल में सरकारी एजेंसियों ने प्रमुख जगहों पर जमीन की बिक्री कर भारी राशि अर्जित की थी। उदाहरण के लिए कोलकाता और इसके आसपास जमीन के सौदे करने वाली तीन प्रमुख सरकारी एजेंसियां थींं-कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण (केएमडीए), कोलकाता नगर निगम और पश्चिम बंगाल आवास बोर्ड। इन्होंने दो वर्ष से कम समय की अवधि में 18,000 करोड़ रुपये मूल्य की 5,250 एकड़ जमीन के सौदे किए। केएमडीए ने एक दिन में रियल एस्टेट डेवलपरों के साथ 800 करोड़ रुपये से ज्यादा के सौदे किए थे।
पश्चिम बंगाल में नई टाउनशिप विकसित करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा शहरी भूमि (सीमा और नियमन) अधिनियम (यूएलसीए), 1976 है। अधिनियम के अनुसार कोलकाता जैसे ए श्रेणी में आने वाले शहर में खाली जमीन पर सीङ्क्षलग लिमिट 7.5 कट्टा या 500 वर्ग मीटर है। पश्चिम बंगाल देश के उन कुछेक राज्यों में से एक है, जिनमें यूएलसीए जैसा कानून है। यह कदम मुख्यमंत्री की चिंताओं के समान ही है।

Thursday, September 6, 2012

ममता के राज में 1000 रुपए की दवा अब 333 रुपए में मिलेगी


  कोलकाता, 6 सितंबर (जनसत्ता)। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के स्वास्थ्य विभाग ने  दुर्गापूजा के पहले राज्य के लोगों के लिए खुशखबरी देने की योजना बनाई है। इसके तहत राज्य के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में  कम मूल्य की सस्ती दवा की दुकाने खुलने जा रही हैं। इन दुकानों में अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) की दवाओं पर 66 फीसद से लेकर 52 फीसद तक आम लोगों को छूट मिलेगी। ड्रग कंट्रोल विभाग के सूत्रों का कहना है कि  राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रस्तावित कम मूल्य की 35 दुकानों से यह छूट मिल सकेगी।
सूत्रों से पता चला है कि कोलकाता मेडिकल कालेज, आरजीकर अस्पताल, एसएसकेएम और एनआरएस अस्पताल में ऐसी दुकानें खोली जाएंगी। यहां पर 100 रुपए की एमआरपी की दवाएं खरीदने के लिए 66 रुपए से ज्यादा की छूट मिलेगी। हाल में राज्य के 35 सरकारी अस्पतालों में गरीब और मध्यमवर्ग के लोगों की समस्याओं को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) माडल के तहत कम मूल्य की दवाएं बेचने का फैसला किया गया था। यह दुकानें चलाने और कितनी कम कीमत पर दवाएं ग्राहकों को उपलब्ध कराई जाएंगी, यह पता लगाने के लिए निविदाएं जारी की गई थी। बीते महीने के अंतिम हफ्ते निविदाएं खोली गई। दुकान चलाने के लिए आवेदन करने वालों का चुनाव हो गया है।
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का कहना है कि 35 कम मूल्य की दुकानों से दवाओं से लेकर चिकित्सा के काम में व्यवहार किया जाने वाला सभी सामान एमआरपी से 52 फीसद से लेकर 66.25 फीसद कम कीमत पर उपलब्ध होगा। कोलकाता के पांच में से चार मेडिकल कालेज अस्पतालों में ही यह दुकानें खुल रही हैं। यहां से लोगों को 66.25 फीसद छूट मिलेगी। यहां एक हजार रुपए की दवाएं खरीदने वालों को 333 रुपए देने होंगे। राज्य सरकार की ओर से सस्ती दवाएं खोलने के लिए आवेदन की मांग करते हुए कहा गया था कि पीपीपी मॉडल से दुकानें खोली जाएंगी, दुकानों के लिए जगह और बिजली का बंदोबस्त राज्य सरकार करके देगी। लेकिन जमीन के लिए चुनी गई संस्था को किराया देना होगा। दवाओं के वितरक, खुदरा विक्रेता या रिटेल चेन वाले ऐसी दुकानें चलाएंगे। आवेदन के लिए शर्त रखी गई थी कि कम से कम 30 फीसद छूट देने वाले ही आवेदन कर सकते हैं। इसमें लगभग 300 लोगों ने आवेदन किया था। इसमें 100से ज्यादा संस्थाओं ने फाइनेंसियल बिड में हिस्सा लिया। बाद में देखा गया कि चुनी गई संस्थाओं में न्यूनतम 52 फीसद और अधिकतम 66.25 फीसदी छूट देने की बात कही गई थी।
राज्य के स्वास्थ्य अधिकारी (शिक्षा) डाक्टर सुशांत बनर्जी का कहना है कि आगामी दो महीनों में सभी दुकानें खुल जाएंगी। इससे राज्य के लोगों को भारी लाभ होगा और महंगाई के दौर में राहत मिल सकेगी।

Wednesday, September 5, 2012

पश्चिम बंगाल में छह लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई


 उच्च न्यायालय ने अजमल कसाब की फांसी का मामला रोक रखा है, इस बीच पश्चिम बंगाल में छह लोगों को फांसी की सजा मिली हुई है।  यह कैदी अलीपुर और प्रेसीडेंसी जेल में बंद हैं। इन कैदियों ने दया याचिका दायर की है। तीन कैदियों की याचिका कलकत्ता उ च्च न्यायालय और तीन कैदियों की याचिका उ च्चतम न्यायालय के विचाराधीन है। जेल में कैद फांसी के दिन गिन रहे हैं। हालांकि कुछ लोगों पर अदालत ने रहम भी की है जबकि कुछ लोग अभी तक अपने भविष्य के बारे में चिंतित हैं।
मालूम हो कि देश में अंतिम बार जो फांसी दी गई थी वह अलीपुर सेंट्रल जेल में हुई थी। 14 अगस्त 2004 को घनंजय चटर्जी (39) को फांसी दी गई थी। दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर इलाके में पांच मार्च 1990 को सुरक्षा गार्ड चटर्जी ने बिल्डिंग में रहने वाली एक 14 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने के बाद हत्या कर दी थी। इससे पहले सीरियल किलर के तौर पर कुख्यात आटो शंकर को 27 अप्रैल 1995 को चेन्नई सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। राज्य में धनंजय से पहले हत्या के दो आरोपियों कार्तिक सिल और सुकुमार बर्मन को 1993 को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था।
गौरतलब है कि धनंजय को फांसी देने के बाद राज्य में कई लोगों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इसमें सबसे पहले स्पेशल सेशंस कोर्ट ने आफताब अंसारी और जमालुद्दीन नासिर को 27 अप्रैल 2005 को फांसी की सजा सुनाई थी। दोनों अभियुक्तों को अमेरिकी सूचना केंद्र पर हमलाकरने के आरोप में सजा सुनाई गई थी। अंसारी तीन मई 2002 से अलीपुर जेल में कैद है जबकि दूसरे अभियुक्त को पिछले साल फरवरी में यहां लाया गया था। दोनों ने उ च्चतम न्यायालय में याचिका दायर कीहै, इसलिए कलकत्ता उ च्च न्यायालय में उनका मामला फंसा हुआ है।
सूत्रों ने बताया कि उ च्चतम न्यायालय में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के हेड कांस्टेबल बलबीर सिंह की फांसी की याचिका भी विचाराधीन है। जनरल सिक्युरिटी फोर्स कोर्ट की ओर से सजा सुनाए जाने के बाद गुवाहाटी उ च्च न्यायालय ने भी उनकी रहम की अपील ठुकरा दी थी। उन्हें छह अक्तूबर 2010 को अलीपुर जेल लाया गया था। अपने उच्चाधिकारी  की हत्या के आरोप में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है।
इसी तरह फांसी की सजा पाने वालों में अलीपुर जेल में शंभु लोहार और प्रेसीडेंसी जेल में केबल राय कैद है। शंभु को सूरी की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। सैंथिया तेल मिल के भीतर दो लोगों की हत्या के आरोप में 15 सितंबर 2010 को सजा सुनाई गई थी। जबकि राय को 18 अप्रैल 2005 में ताराचंद (68) और शारदा देवी बांका (56) की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उसे 24 सितंबर 2008 को कोलकाता की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। पुलिस के मुताबिक उसने 20 लाख रुपए की चोरी की थी और अपने मालिक-मालकिन की हत्या की थी। हत्या के बाद वह अपने गांव भाग गया था पुलिस ने हत्या के एक महीने बाद बिहार के सिमुलतला से उसे गिरफ्तार किया था। इसके बाद से वह प्रेसीडेंसी जेल में बंद है। 25 अगस्त को इस साल सूचित किया गया कि कलकत्ता उ च्च न्यायालय ने उसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है। लेकिन यह आदेश जेल में अभी तक नहीं पहुंचा है।
मालूम हो कि उक्त कैदी ही ऐसे नहीं हैं जिन्हें फांसी की सजा मिली हुई है। इसके अलावा निक्कु यादव भी इस सूची में शामिल है। उसने बालीगंज सर्कुलर रोड स्थित त्रिपुरा इंक्लेव के फ्लैट में अपनी मालकिन रवींद्र कौर लुथरा की हत्या कर दी थी। यह हत्या 15 फरवरी 2007 को की गई थी। अलीपुर सेसंस कोर्ट ने 29 अगस्त 2008 को उसे फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में कलकत्ता उ च्च न्यायालय ने सात अक्तूबर 2010 को फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

Sunday, September 2, 2012

जनवरी में होंगे पंचायत चुनाव


   राज्य में आगामी दिनों होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर राज्य चुनाव आयोग और सरकार में मतभेद दिखाई दे रहे हैं। सरकारी सूत्रों का मानना है कि  यह विवाद कब तक सुलझ जाएगा, इसका कुछ पता नहीं चल रहा है।
मामूल हो कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 21 जुलाई को कोलकाता की एक सभा में कहा था कि दुर्गापूजा के बाद राज्य में पंचायत चुनाव होंगे। इसके बाद मई में राज्य चुनाव आयोग के लिखे पत्र के जवाब में सरकार ने जुलाई में जवाब भेजा कि दिसंबर में हम चुनाव चाहते हैं। इसके बाद से ही तारीख को लेकर समस्या देखी जा रही है। नियमानुसार राज्य सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद ही चुनाव आयोग पंचायत चुनावकी तिथि का एलान करेगा। सूत्रों का कहना है कि बीते कई महीनों से चर्चा चल रही है लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका है।
हालांकि सरकारी सूत्रों का कहना है कि जल्द ही मामले का समाधान हो जाएगा। इसके तहत जनवरी 2013 में राज्य में चार दिन पंचायत चुनाव किये जा सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि आयोग का मानना है कि पंचायत इलाका तय करने के लिए ही ढाई महीने का समय लगेगा। यह काम सितंबर से पहले शुरू नहीं किया जा सकता है। इसके बाद चुनावी प्रक्रिया शुरू करने के लिए कम से कम 75 दिन प्रतीक्षा करनी होगी। इस तरह सितंबर से काम शुरू होने पर 150 दिन सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के लिए चाहिए। यह काम जनवरी तक पूरा होगा और दो महीने माध्यमिक, उच्च माध्यमिक और दूसरी परीक्षाओं में निकल जाएगा। इसलिए आयोग का मानना है कि अप्रैल से पहले चुनाव संभव नहीं है। इतना ही नहीं आयोग का कहना है कि मई में चुनाव होंगे तो जनवरी में नई मतदाता सूची में शामिल लोग भी मतदान में हिस्सा ले सकेंगे।
दूसरी ओर राज्य सरकार का मानना है कि इलाका पुनर्विन्यास के लिए ज्यादा से ज्यादा डेढ़ महीने लगेंगे, इसके अलावा दूसरे सारे काम चार महीने में पूरे हो जाएंगे। जनवरी में आसानी से पंचायत चुनाव करवाए जा सकते हैं। जबकि मतदान जनवरी 2012 की मतदाता सूची के आधार पर होने चाहिए। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में मई 2008 में पंचायत चुनाव हुए थे। तीन स्तरीय पंचायत का बोर्ड गठन होने में जून महीना गुजर गया था।