नई दिल्ली। न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने बलात्कार के लिए सजा बढ़ाकर 20 साल तक के कारावास और सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश की है लेकिन मौत की सजा का सुझाव देने से समिति बची है। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने बुधवार को सरकार को अपनी 630 पृष्ठ की रपट सौंप दी। इसमें बलात्कारियोंके लिए अधिक कडेÞ दंडात्मक प्रावधान के लिए आपराधिक कानून में संशोधन का सुझाव दिया गया है।
दिल्ली में 23 साल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के सप्ताह भर बाद 23 दिसंबर को तीन सदस्यीय समिति का गठन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने किया था। सामूहिक बलात्कार की इस घटना की पूरे देश में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और नाराज लोग सड़कों पर उतर आए। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध रोकने के लिए कानूनों में बदलाव की मांग तेज हुई।
समिति में हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ और पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम भी शामिल थे। समिति ने सिफारिश की है कि किसी व्यक्ति को जानबूझ कर छूना और अगर वह छूना यौन प्रकृति का हो और जिसे छुआ जा रहा है, उसकी सहमति के विरुद्ध हो तो कानून में उसे यौन हिंसा माना जाना चाहिए। समिति ने किसी के लिए धमकी भरे शब्द या भाव भंगिमा, किसी लड़की का पीछा करना, मानव तस्करी और यौन इच्छा के चलते घूरने सहित कई नए तरह के आपराधिक कृत्यों को लेकर सजा का प्रस्ताव किया है। किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से उस पर हमला करने की स्थिति में तीन से सात साल की सजा का प्रस्ताव समिति ने किया है। समिति ने उन पुलिस अधिकारियों के लिए कडेÞ दंड का प्रावधान करने की सिफारिश की है जो शिकायत के बाद बलात्कार या यौन उत्पीड़न का मामला पंजीकृत नहीं करते। वर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन में समिति के निष्कर्षांे को बताते हुए कहा कि समिति का कार्य भारत में महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानपूर्ण माहौल मुहैया कराने में सरकार की विफलता का समाधान पेश करना था। सरकार ने अभी स्पष्ट नहीं किया है कि वह रपट पर कब तक कार्रवाई करेगी लेकिन वर्मा ने सरकार से जरूर कहा है कि समिति ने महीने भर में अपना काम पूरा किया है और उम्मीद करती है कि सरकार भी तेजी से कार्रवाई करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि सरकार समिति की रपट को पढेÞगी। सिफारिशों पर कब तक कार्रवाई की जाएगी, इसकी कोई समयसीमा अभी नहीं तय की गई है। वर्मा ने कहा कि समिति के कुछ प्रस्ताव देश की अपराध संहिता में संशोधन के लिए संसद में लंबित विधेयक में शामिल किए जा सकते हैं। राजधानी में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद हजारों प्रदर्शनकारी दिल्ली के इंडिया गेट पर एकत्र हो गए और कई दिन जमकर प्रदर्शन किया। देश भर में गुस्सा फूटा। दोषियों को मौत की सजा या उन्हें नपुंसक बनाने की मांगें उठीं। वर्मा समिति ने हालांकि इस तरह की कोई सिफारिश नहीं की है। मौजूदा कानून के तहत बलात्कारी को सात साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। 16 दिसंबर वाली घटना के दोषियों को मौत की सजा इसलिए हो सकती है क्योंकि उन पर हत्या का आरोप भी है। करीब महीने भर काम करने वाली वर्मा समिति को 80 हजार सुझाव मिले। इनमें महिला कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद और विदेश के कई प्रोफेसर और विद्वान शामिल थे। बलात्कार करने वाले मातहतों को नियंत्रित करने में विफल रहने वाले सैन्य या पुलिस अधिकारियों के लिए दस साल की सजा का प्रस्ताव समिति ने किया है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तैयार रपट का उल्लेख करते हुए वर्मा ने महात्मा गांधी और अरस्तू का उल्लेख किया। उन्होंने शिक्षा और सामाजिक बरताव में बदलाव की वकालत की। साथ ही कहा कि कानूनों का अनुपालन नहीं कर पाने के लिए शीर्ष पुलिस अधिकारयिों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। वर्मा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की मूल वजह शासन की विफलता है। सामूहिक बलात्कार घटना के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह बात और शर्ममाक है कि हर उस व्यक्ति ने उदासीनता दिखाई, जिसे अपनी ड्यूटी निभानी थी। जन प्रतिनिधित्व कानून में सुधार की आवश्यकता बताते हुए वर्मा समिति ने सुझाव दिया कि चुनावी उम्मीदवारों की ओर से उनकी संपत्ति के बारे में दिए गए ब्योरे की जांच नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (कैग) से कराई जा सकती है। वर्मा ने कहा कि यदि उम्मीदवार की ओर से सौंपा गया ब्योरा गलत पाया जाए तो उस स्थिति में उसे अयोग्य करार दिया जाए। वर्मा की रपट में कहा गया कि गलत ब्योरा दिया जाना जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत उम्मीदवार को अयोग्य करार दिए जाने का आधार बनना चाहिए। ‘राजनीति के अपराधीकरण’ और ‘अपराध के राजनीतिकरण’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन होना चाहिए ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखा जा सके और जनता का सच्चा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। वर्मा ने कहा कि किसी उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है या नहीं, इसकी पुष्टि होनी चाहिए और नामांकन पत्र की वैधता के लिए हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार का प्रमाणपत्र आवश्यक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई उम्मीदवार यदि अपने खिलाफ चल रहे मामले का खुलासा नहीं करता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। वर्मा ने कहा कि संसद और विधानसभा में जो लोग चुनकर पहुंचे हैं और अगर उनमें से किसी के खिलाफ जघन्य अपराध को लेकर आपराधिक मामला लंबित है तो उन्हें संसद और संविधान का सम्मान करते हुए अपना पद छोड़ देना चाहिए। खाप पंचायतों को आडेÞ हाथ लेते हुए वर्मा समिति ने कहा कि जो रुख खाप पंचायतें अपनाती हैं, वह तर्कहीन स्तर पर पहुंच गया है। समिति ने सरकार से कहा कि वह सुनिश्चित करे कि शादी के मामले में लोगों के फैसलों में इस तरह की संस्थाएं हस्तक्षेप नहीं करें। समिति ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के परिप्रेक्ष्य में खाप पंचायतों के रुख पर विचार करना प्रासंगिक था। वर्मा ने कहा कि खाप पंचायतों का जाति व्यवस्था बनाए रखने का तर्क किसी व्यक्ति की स्वतंत्र रूप से अपना साथी चुनने की आजादी छीनता है। उन्होंने कहा कि किसी महिला को उसकी पसंद से शादी नहीं करने देने के गंभीर सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम हैं। ऐसा नहीं होने देने के लिए महिलाओं की स्वतंत्र रूप से आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाता है और उसकी शिक्षा, रोजगार व मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है।
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि भले ही यह रपट उनके नाम से जानी जा सकती है लेकिन यह भारत और विदेश की जनता से आए सुझावों का नतीजा है। उन्होंने कहा कि हमें 80 हजार सुझाव मिले और सभी को पढ़ा गया और रपट को अंतिम रूप देने से पहले उन पर विचार किया गया। परिपक्व प्रतिक्रिया के लिए उन्होंने युवाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि युवाओं ने हमें सिखाया, वह सब कुछ जिसकी जानकारी वरिष्ठ पीढ़ी को नहीं थी। उन्होंने कितने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाली दिल्ली पुलिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं होने का जिक्र भी वर्मा समिति की रपट में है। रपट में कहा गया कि इस अस्पष्टता को दूर करना चाहिए ताकि दिल्ली में कानून व्यवस्था की स्थिति कायम करने में अलग अलग जिम्मेदारियां न हों। भारत में लापता बच्चों के सही आंकडेÞ उपलब्ध नहीं होने पर चिंता जताते हुए वर्मा ने कहा कि इन बच्चों को जबरन बाल श्रम के लिए ढकेला जाता है और उनका यौन उत्पीड़न भी होता है। वर्मा ने कहा कि हर जिलाधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह अपने जिले में लापता बच्चों की संख्या रखे। जिलाधिकारियों और पुलिस की ओर से लापता बच्चों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता का इसी बात से पता चलता है कि गृह मंत्रालय ने 30 जनवरी 2012 को राज्यों को भेजी एडवाइजरी (परामर्श) में कहा है कि इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। बलात्कारी को मौत की सजा का सुझाव नहींमहिला सुरक्षा के लिए कानूनों में व्यापक बदलाव की सिफारिश
महिला अपराध पर जस्टिस वर्मा ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट
नई दिल्ली । महिलाओं के विरूद्ध अपराध से निबटने के लिये कानून के क्रियान्वयन के लिए जो बात जरूरी है वह यह है कि इन्हें लागू करने वालों में संवेदनशीलता हो। न्यायमूर्ति जे एस वर्मा ने कहा कि राज्यों के पुलिस प्रमुखों ने बमुश्किल ही कोई जवाब दिया।
दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड पर वर्मा ने कहा : जिन्हें काम करना चाहिए, उनमें से हरेक में पूरी तरह से बेरूखी रही ।
वर्मा समिति को मिले थे 80 हजार सुझाव
यौन अपराधों से निपटने के लिए कानूनों में सुधार के उपाय सुझाने के लिए गठित न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति को लगभग 80 हजार सुझाव मिले और समिति ने अपना काम 29 दिन में संपन्न किया । तीन सदस्यीय समिति के अध्यक्ष वर्मा थे । उनके अलावा हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ और पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम बतौर सदस्य समिति में थे । केन््रद सरकार ने समिति को 23 दिसंबर 2012 को सिफारिशें देने का काम सौंपा था । वर्मा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की मूल वजह शासन की विफलता है । 16 दिसंबर को हुई सामूहिक बलात्कार घटना के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह बात और शर्ममाक है कि हर उस व्यक्ति ने उदासीनता दिखायी, जिसे अपनी ड्यूटी निभानी थी । गृह मंत्रालय को 631 पृष्ठ की भारी भरकम रपट सौंपने के बाद वर्मा ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘ हमने 29 दिन में रपट सौंप दी है । जब मैंने 30 दिन में काम पूरा करने की पेशकश की थी तो मुझे अहसास नहीं था कि काम कितना बडा है । ’’ उन्होंने कहा कि भले ही यह रपट उनके नाम से जानी जा सकती है लेकिन यह भारत और विदेश की जनता से आये सुझावों का नतीजा है । उन्होंने कहा कि हमें 80 हजार सुझाव मिले और सभी को पढा गया और रपट को अंतिम रूप देने से पहले उन पर विचार किया गया । रपट को अंतिम रूप देने के लिए समयसीमा कैसे तय की गयी, इस सवाल पर वर्मा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने उनसे संपर्क किया तो ‘‘ मैंने उनसे पूछा कि संसद का अगला सत्र कब है । ’’ वर्मा के मुताबिक मंत्री ने कहा कि अगला : बजट : सत्र 21 फरवरी को शुरू होगा । दो महीने बाकी थे इसलिए ‘‘ मैंने तय किया कि इस काम को 30 दिन में पूरा करूंगा । यदि हम इसे दो महीने की बजाय आधे वक्त यानी एक महीने में रपट तैयार कर सकते हैं तो सरकार को अपने संसाधनों की मदद से तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए । ’’ परिपक्व प्रतिक्रिया के लिए उन्होंने युवाओं की प्रशंसा की । उन्होंने कहा कि युवाओं ने हमें सिखाया, वह सब कुछ जिसकी जानकारी वरिष्ठ पीढी को नहीं थी । उन्होंने कितने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया ।
हैरत है कि गृह सचिव ने पुलिस आयुक्त की तारीफ की : वर्मा
सामूहिक बलात्कार घटना के बाद दिल्ली के पुलिस आयुक्त नीरज कुमार की तारीफ करने वाले केन््रदीय गृह सचिव आर के सिंह को आडे हाथ लेते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस वर्मा ने आज कहा कि जब माफी मांगे जाने की उम्मीद थी, उस समय यह : आयुक्त की पीठ थपथपाना : सुनकर काफी हैरत हुई ।
महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में कानूनों में सुधार के उपाय सुझाने वाली रपट सौंपने के बाद वर्मा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि पुलिस आयुक्त की पीठ थपथपायी गयी । वह भी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो गृह सचिव के पद पर हो । ‘‘ मुझे यह देखकर काफी हैरत हुई । ’’ उन्होंने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा की ड्यूटी में विफलता के लिए कम से कम उन्हें माफी मांगनी चाहिए थी । दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की सामूहिक बलात्कार घटना के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में आर के सिंह ने दिल्ली पुलिस की सराहना की थी । चलती बस में सामूहिक बर्बर बलात्कार की शिकार बनी 23 वर्षीय युवती ने 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड दिया था । |
Thursday, January 24, 2013
बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश- वर्मा समिति
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