कोलकाता, 5 फरवरी (जनसत्ता)।
बीते 30-32 साल के दौरान देश में पता नहीं कितना परिवर्तन आ चुका है, राज्य में इस दौरान तीन दशक से सत्ता कर रही वामपंथी सरकार का जमाना गुजरे दिनों की बात हो चुका है। अब यहां आधुनिकता और विकास की बात करने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार का शासन छह साल से चल रहा है। लेकिन पुलिस का आलम यह है कि वही पुराने ढर्रे पर चल रही है। केंद्र में कांग्रेस की सरकार का बहुमत जाने और मिली जुली सरकारों के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार के गठन के बाद रवैये में फेरबदल हुआ है। बंगाल में पुलिस का सिखों के प्रति नजरिया नहीं बदला है। इसलिए कई सिखों की ओर से आरोप लगाया जाता है कि पुलिस वाले अब भी उन्हें आतंकवादी मानते हैं।
गौरतलब है कि बीते साल भवानीपुर के खालसा स्कूल में अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य के साथ हुई बैठक में कई सिखों ने आरोप लगाया था कि पासपोर्ट बनवाने में पश्चिम बंगाल में भारी परेशानी होती है। जबकि बिहार, ओडिसा, उत्तर प्रदेश, पंजाब,दिल्ली , हरियाणा समेत दूसरे राज्यों में ऐसे नहीं होता है। 1984 में जब पंजाब में विभिन्न मांगों को लेकर अकाली दल आंदोलन कर रहा था, तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद सिखों पर अलगाववादी होने का ठप्पा लगा दिया था। पुलिस मुकाबलोौं से बचने के लिए लोग विदेश जाने लगे थे। इस दौरान विदेश जाने वाले सिखों के लिए कई तरह के नियम-कानून बनाए गए थे। आरोप है कि सिखों की काली सूची भी बनाई गई थी। अब केंद्र और पंजाब में अकाली-भाजपा सरकार है और हालात बदल चुके हैं। लेकिन बंगाल में लगता है कि हालात नहीं बदले हैं।
हावड़ा जिले के सांकराईल थाना इलाके में एक सिख पति-पत्नी ने 10 जनवरी को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। हावड़ा जिले में ही शिवपुर थाना इलाके की एक मुस्लिम युवती ने 12 जनवरी को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। मुस्लिम महिला को जनवरी में ही पासपोर्ट मिल गया, लेकिन सिख दंपत्ति की अभी तक पुलिस वेरिफिकेशन भी क्लीयर नहीं हुई। हालांकि पुलिस वाले एक हजार रुपए से ज्यादा डकार चुके हैं।
इस बारे में सांकराईल थाना के एक डीआइबी अधिकारी का कहना है कि सिखों के लिए पासपोर्ट बनाना आसान नहीं है। इसके लिए बहुत सारी जांच होती है। फाईल पुलिस थाने, डीआइबी समेत कई जगह जाती है। जब उनसे यह कहा गया कि पुलिस का काम कागजात की जांच करना नहीं, सिर्फ यह देखना है कि पासपोर्ट बनाने वाला व्यक्ति उस इलाके में रहता है या नहीं और उसके खिलाफ कोई आपराधिक रिकार्ड है या नहीं, इसका ब्योरा देना है। उनका कहना था कि सिखों के मामले में ऐसा नहीं है। यह यह पूछा गया कि इस बारे में कोई लिखित निर्देश आपसे पास है, उनका कहना था कि सालों से ऐसे ही चल रहा है। इस बारे में आप उच्चाधिकारियों से बातचीत कर सकते हैं।
राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य गुरबख्स सिंह से जब यह पूछा गया कि क्या वास्तव में सिखों के लिए पासपोर्ट जांच के लिए अलग कानून है? उनका कहना था कि ऐसा तो नहीं है। उन्होंने बताया कि ऐसी कुछ शिकायतें पहले भी मिली हैं, इस बारे में उच्च स्तर तक पड़ताल की जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर सिखों के साथ भेदभाव का रवैया अपनाया जाता है, तब यह बहुत गलत बात है। ऐसी बातों को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बीते 30-32 साल के दौरान देश में पता नहीं कितना परिवर्तन आ चुका है, राज्य में इस दौरान तीन दशक से सत्ता कर रही वामपंथी सरकार का जमाना गुजरे दिनों की बात हो चुका है। अब यहां आधुनिकता और विकास की बात करने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार का शासन छह साल से चल रहा है। लेकिन पुलिस का आलम यह है कि वही पुराने ढर्रे पर चल रही है। केंद्र में कांग्रेस की सरकार का बहुमत जाने और मिली जुली सरकारों के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार के गठन के बाद रवैये में फेरबदल हुआ है। बंगाल में पुलिस का सिखों के प्रति नजरिया नहीं बदला है। इसलिए कई सिखों की ओर से आरोप लगाया जाता है कि पुलिस वाले अब भी उन्हें आतंकवादी मानते हैं।
गौरतलब है कि बीते साल भवानीपुर के खालसा स्कूल में अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य के साथ हुई बैठक में कई सिखों ने आरोप लगाया था कि पासपोर्ट बनवाने में पश्चिम बंगाल में भारी परेशानी होती है। जबकि बिहार, ओडिसा, उत्तर प्रदेश, पंजाब,दिल्ली , हरियाणा समेत दूसरे राज्यों में ऐसे नहीं होता है। 1984 में जब पंजाब में विभिन्न मांगों को लेकर अकाली दल आंदोलन कर रहा था, तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद सिखों पर अलगाववादी होने का ठप्पा लगा दिया था। पुलिस मुकाबलोौं से बचने के लिए लोग विदेश जाने लगे थे। इस दौरान विदेश जाने वाले सिखों के लिए कई तरह के नियम-कानून बनाए गए थे। आरोप है कि सिखों की काली सूची भी बनाई गई थी। अब केंद्र और पंजाब में अकाली-भाजपा सरकार है और हालात बदल चुके हैं। लेकिन बंगाल में लगता है कि हालात नहीं बदले हैं।
हावड़ा जिले के सांकराईल थाना इलाके में एक सिख पति-पत्नी ने 10 जनवरी को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। हावड़ा जिले में ही शिवपुर थाना इलाके की एक मुस्लिम युवती ने 12 जनवरी को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। मुस्लिम महिला को जनवरी में ही पासपोर्ट मिल गया, लेकिन सिख दंपत्ति की अभी तक पुलिस वेरिफिकेशन भी क्लीयर नहीं हुई। हालांकि पुलिस वाले एक हजार रुपए से ज्यादा डकार चुके हैं।
इस बारे में सांकराईल थाना के एक डीआइबी अधिकारी का कहना है कि सिखों के लिए पासपोर्ट बनाना आसान नहीं है। इसके लिए बहुत सारी जांच होती है। फाईल पुलिस थाने, डीआइबी समेत कई जगह जाती है। जब उनसे यह कहा गया कि पुलिस का काम कागजात की जांच करना नहीं, सिर्फ यह देखना है कि पासपोर्ट बनाने वाला व्यक्ति उस इलाके में रहता है या नहीं और उसके खिलाफ कोई आपराधिक रिकार्ड है या नहीं, इसका ब्योरा देना है। उनका कहना था कि सिखों के मामले में ऐसा नहीं है। यह यह पूछा गया कि इस बारे में कोई लिखित निर्देश आपसे पास है, उनका कहना था कि सालों से ऐसे ही चल रहा है। इस बारे में आप उच्चाधिकारियों से बातचीत कर सकते हैं।
राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य गुरबख्स सिंह से जब यह पूछा गया कि क्या वास्तव में सिखों के लिए पासपोर्ट जांच के लिए अलग कानून है? उनका कहना था कि ऐसा तो नहीं है। उन्होंने बताया कि ऐसी कुछ शिकायतें पहले भी मिली हैं, इस बारे में उच्च स्तर तक पड़ताल की जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर सिखों के साथ भेदभाव का रवैया अपनाया जाता है, तब यह बहुत गलत बात है। ऐसी बातों को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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