राज्य के व्यापारियों से माओवादियों ने लगभग 65 करोड़ रुपए की वसूली की है। इतना ही नहीं रंगदारी के तौर पर वसूल की गई रकम का एक हिस्सा उन्होंने निवेश भी किया है। इसके साथ ही सात प्राइवेट स्वयंसेवी संस्थाओं को आर्थिक मदद भी प्रदान की है। केंद्रीय खुफिया विभाग की रिपोर्ट में इसका खुलासा करते हुए मामले की तह तक जाने के लिए रकम देने वाले व्यापारियों से पूछताछ की जा रही है। माओवादियों से आर्थिक मदद हासिल करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं के आर्थिक लेन-देन का ब्यौरा बैंकों से इकट्ठा किया जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि प्राथमिक तौर पर 65 करोड़ की वसूली का पता चला है लेकिन यह रकम और भी बड़ी हो सकती है। इसका कारण बताया जा रहा है कि पिछले साल भर में माओवादियों ने जहां अपना प्रभाव बढ़ाया है वहीं वसूली भी शुरू कर दी है। अपनी रणनीति के तहत पहले सिंगुर और नंदीग्राम के आंदोलनकारियों की आर्थिक मदद के लिए व्यापारियों से भारी रकम चंदे के तौर पर वसूली गई। एक बार चंदा देने वालों से हर महीने वसूली की जाने लगी। ओड़िसा, झाड़खंड,छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल के जंगल महल इलाके में कारोबार करने वाले 45 लोग इसमें शामिल हैं।
सूत्रों का कहना है कित बांग्लादेश के साथ आयात-निर्यात करने वाले कई व्यापारी भी माओवादियों की सूची में शामिल हैं। 50 हजार रुपए से लेकर दस लाख रुपए तक एक व्यापारी से वसूले जा रहे हैं, इसके लिए किस तरह के नोट चाहिए, इसका भी निर्देश दिया रहता है। रुपए नहीं देने वालों को धमकिया तो मिलती ही हैं एक कारखाने में तो श्रमिक हड़ताल भी कराई गई थी। आकाश, कंचन और आकाश की पत्नी अनू वसूली की देखरेख कर रहे हैं। खुफिया सूत्रों के मुताबिक किशनजी की मौत के बाद वसूली बंद हो गई थी। लेकिन इस साल जनवरी से दोबारा यह काम शुरू हो गया है। सूत्रों के मुताबिक वेणूगोपाल और रामकृष्ण ने एक व्यापारी से कोलकाता में बकाया 40 लाख रुपए की वसूली भी की थी। वसूली के बाद ही आंध्र प्रदेश की ग्रे हाउंड वाहिनी और कोलकाता पुलिस की एसटीएफ ने पांच माओवादी धर दबोचे थे। इसके बाद एक जगह 55 लाख रुपए और दूसरी जगह 36 लाख रुपए बरामद किए जा चुके हैं।
खुफिया सूत्रों के मुताबिक वसूली गई रकम का एक हिस्सा छत्तीसगढ़ में माओवादी नेताओं को भेजने के बाद राज्य के विभिन्न इलाकों में पूंजी निवेश किया गया है। इसके तहत माओवादियों के लिंकमैन के तौर पर काम कर रहे कई लोगों के नाम बैंक और डाकघरों में भी रुपए जमा करवाए गए हैं।
एसटीएफ के एक अधिकारी के मुताबिक बरानगर, बेलघरिया, अगरपाड़ा और खड़दह में माओवादियों के लिंक मैन के तौर पर कई लोग काम कर रहे थे। छापामारी के दौरान बरामद दस्तावेज और सीडी-फ्लापी से इसका पता चला है। हालांकि माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले एक बुद्धिजीवी ने स्वयंसेवी संस्थाओं को आर्थिक मदद प्रदान किए जाने के आरोप का खंडन करते हुए कहा है कि उन्हें बदनाम करने के लिए गलत प्रचार किया जा रहा है।
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