कोलकाता : बंगाल के पुस्तकालयों में अब सरकार के पिट्ठू अखबारों को ही लोग पढ़ने को बाध्य होंगे.पुस्तकालय अपनी मरजी से अब अखबार नहीं ले सकते हैं.राज्य के पुस्तकालय विभाग ने इस संबंध में एक अधिसूचना जारी कर सभी सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त पुस्तकालयों को यह बता दिया है.इसमें बांग्ला के पांच, हिंदी के एक व उर्दू के दो अखबार का ही चयन किया गया है.
पुस्तकालयों में पढ़े जाने वाले अखबारों की सूची में सिर्फ़ आठ अखबारों को रखा गया है. अधिसूचना में कहा गया है कि ये अखबार विकास में महत्वपूर्ण योगदान है तथा पुस्तकालय में जानेवालों को ये स्वतंत्र सोच की ओर ले जाते हैं.14 मार्च को ही यह अधिसूचना जारी हुई थी.आठ से ज्यादा अखबार नहीं लेने का साफ़ निर्देश दिया गया है. इनमें जो अखबार हैं, वे सरकार के पिट्टू ही हैं.
इनमें बांग्ला के प्रतिदिन, सकाल बेला, एक दिन, खबर 365, दैनिक स्टेट्समैन, हिंदी में सन्मार्ग व उर्दू के आजाद हिंद व अखबार-ए- मशरीक शामिल हैं. साथ ही यह साफ़ तौर पर कह दिया गया है कि इसके अलावा किसी अन्य अखबारों की खरीद पर सरकार एक भी रुपया खर्च नहीं करेगी. इन आठ अखबार की सूची अधिसूचना में दे दी गयी है.किसी अन्य अखबार की खरीद पर रोक लगा दी गयी है. सरकार के इस फ़ैसले के खिलाफ़ विधानसभा में सरकार की सहयोगी पार्टी कांग्रेस से लेकर विपक्षी दलों ने आवाज उठायी.
विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने कहा कि इमरजेंसी के समय भी ऐसा नहीं देखा गया था. गणतंत्र की दुहाई देनेवाली सरकार ने हद कर दी है.यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.इस फ़ैसले को सरकार को वापस लेना चाहिए. राज्य में पूरी तरह से तानाशाही चल रही है. मीडिया पर इस तरह से आक्रमण उचित नहीं माना जा सकता है.दूसरी ओर विधानसभा में ही उल्लेख काल में कांग्रेस के असित मित्रा ने इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने कहा कि सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है, वह अलोकतांत्रिक है.
उन्होंने कहा कि स्वयं ममता बनर्जी कई मौकों पर कहती हैं कि विभिन्न मुद्दों पर मीडिया की अपनी राय हो सकती है.यह उनका अधिकार है.उन्होंने मुख्यमंत्री से इस अधिसूचना को वापस लेने का अनुरोध किया.कई अन्य विरोधी दलों के सदस्यों ने भी सरकार के इस फ़ैसले की निंदा की. अंगरेजी के किसी अखबार को सूची में जगह नहीं मिली है.
आपातकाल के समय में भी ऐसी स्थिति नहीं देखी गयी थी.जैसी स्थिति ममता बनर्जी की सरकार के दौरान उत्पन्न हुई है.मीडिया पर आक्रमण निंदनीय है.डॉ सूर्यकांत मिश्रा, विपक्ष के नेता
यह पूरी तरह से अगणतांत्रिक हैं.सरकार यह तय नहीं कर सकती है कि लोग कौन अखबार पढ़े और कौन अखबार नहीं पढ़ें -प्रो. प्रदीप भट्टाचार्य, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
सरकार अब मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.जो उसकी चापलूसी करते हैं, उन्हें ही वह सहयोग कर रही है.सरकार बाकी सभी अखबारों पर लगाम लगाना चाहती है.-राहुल सिन्हा, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा
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