गुस्साए लोगों को संभालने के लिए पुलिस वालों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस बारे में पुलिस महानिदेशक(डीजी) का निर्देश सभी जिलों में पहुंच गया है। लेकिन स्टैंडर्ड आपरेटिव प्रोसीड्यूर (एसओपी) से समस्या घटने के बजाए बढ़ गई है। मालूम हो कि निर्देश में कहा गया है कि गुस्साए लोगों की समूह को पहले समझाएं बात नहीं बने तो लाठीचार्ज करें। इससे भी फायदा नहीं हो तो अश्रू गैस के गोले छोड़ने के बाद भी फायदा नहीं हो तो उच्चाधिकारियों से मंजूरी लेकर फायरिंग करें। लेकिन गोलियां प्लास्टिक या रबड़ की चलानी होगी। समस्या यह है कि किसी जगह बंदूक है तो गोली नहीं, गोली है तो बंदूक नहीं। कई जगह दोनों नहीं है। इसके साथ ही प्रशिक्षित पुलिस कर्मचारी भी नहीं है।
राज्य पुलिस के महानिदेशक नपराजित मुखर्जी का निर्देश खास तौर पर पुलिस वालों के लिए है। इसके तहत पुलिस वाले जन आक्रोश दबाने के लिए गोलियां तो चलाएं लेकिन इसमें किसीव्यक्ति की जान नहीं जाए, इस पर जोर दिया गया है। इसलिए निर्देश में कहा गया है कि कानून व्यवस्था संभालनी हो या बिजली की चोरी करने वालों के खिलाफ कुछ करना हो, पुलिस वाले रबड़ की गोलियां, प्लास्टिक की गोलियां अभियान के दौरान साथ रखें। हालांकि राज्य के ज्यादातर पुलिस थाने में काम करने वालों ने ऐसी गोलियों के बारे में कम ही सुना है। यह गोलियां किस बंदूक में डाल कर चलाईजाती हैं, इसका भी लोगों को कम ही पता है। इसलिए यह निर्देश कहां तक सफल होगा, कहा नहीं जा सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि पुलिस थाने दो दूर की बात है कई जगह जिला पुलिस मुख्यालय में भी रबड़ या प्लास्टिक की गोलियों का इंतजाम नहीं है। मालूम हो कि रबड़ की गोलियां अश्रु गैस के गोले छोड़ने वाली बंदूक गैस गन से चलाई जाती हैं। जबकि प्लास्टिक की गोलियां 303 राईफल से चलती हैं। कई थाना कर्मचारियों का कहना है कि बंदूक तो है लेकिन गोलियां नहीं हैं। जबकि प्लास्टिक प्लेट चलाने वाली बंदूक तो ज्यादातर पुलिस वालों ने शायद ही कभी देखी हो।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि मुर्शिदाबाद जिले के शमशेरगंज, हरिहरपाड़ा और भगवानगोला में कुल मिलाकर एक-एक गैस गन और रबड़ की पांच-पांच गोलियां हैं। पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम और खेजुरी थाने में रबड़ की गोलियां मौजूद हैं लेकिन जिले के दूसरे थानों में गोलियां नहीं दी गई हैं। वीरभूम जिला पुलिस के पास गिनी चुनी बंदूके और गोलियां हैं। हावड़ा जिले के ग्रामीण इलाके में ग्यारह पुलिस थानों में डोमजूड़, बागनान और उलबेड़िया में ही एक-एकगैस गन हैं जबकि दूसरे सभी आठ थानों में दो गैस गन ही हैंं। उत्तर बंगाल के ज्यादातर थानों में रबड़ की गोलियां नहीं हैं। जहां 25-50 गोलियां हैं वहां इसे चलानेके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं। जिले में कुल मिलाकर 100 से भी कम गोलियां हैं। इसलिए कई जगह कानून तोड़ो अभियान चलने पर पुलिस के लिए भारी मुश्किल होगी।
हालांकि इस बीच पुलिस महानिदेशक के निर्देश के बाद आटोमैटिक हथियार पुलिस कंट्रोल रुम में जमा करवाए जा रहे हैं। कांस्टेबलों को राइफल के बजाए लाठी थमा कर ड्यूटी पर भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं दक्षिण बंगाल के एक जिले के पुलिस अधिकारी का कहना है कि बैंक से रुपए लाने के लिए जाने वाले पुलिस कर्मचारी भी बंदूक के बजाए लाठी लेकर जा रहे हैं।
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि आग्नेयास्त्र का व्यवहार कम से कम किया जाए। लेकिन पुलिस वाले गुस्साए लोगों के सामने खाली हाथ जाएंगे तो मार खाकर लौटना पड़ेगा। पुलिस वाले बंदूक हाथ में लेकर गोलियां ही नहीं चलाते कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए लोगों को डराना भी आवश्यक है।
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