कोलकाता, 28 दिसंबर (रंजीत लुधियानवी)- राज्य में आत्महत्या करने वालों की तादात में लगातार इजाफा हो रहा है। बीते एक साल में इसमें और भी वृद्धि हुई है। यादवपुर, कसबा, नाकतला, हरिदेवपुर, टिकियापाड़ा के बाद कांकुड़गाछी में मानसिक तनाव से ग्रस्त होकर लोग अपने परिवार वालों की हत्या करने के बाद मौत को गले लगा रहे हैं। पारिवारिक मुश्किलों को ोलने में नाकाम रहने वाले और बीमारी के सामने हार मानने वाले ही ज्यादातर लोग आत्महत्या कर रहे हैं। मरने का सबसे आसान रास्ता जहर पीना और दूसरा गले में फंदा लगाना है। तामिलनाडू के बाद आत्महत्या करनेके मामले में राज्य दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। इससे पुलिस, प्रशासन ही नहीं मनोचिकित्सक भी चिंतित हैं।
मालूम हो कि सोमवार को कांकुड़गाछी में पत्नी और दो बच्चों की हत्या करनेके बाद पति ने आत्महत्या कर ली थी। मंगलवार दसवीं कक्षा की एक छात्रा ने आत्महत्या की। महीने भर पहले राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने देश भर में 2010 में हुए अपराध के आंकड़े जारी किए थे। इससे कई तरह से खुलासे हुए हैं। एक तो यह कि हालात के सामने लोग पारिवारिक मुश्किलों और बीमारी केकारण घुटने टेकते हैं। 23.7 फीसद लोग पारिवारिक समस्याओं और 21.1 फीसदलोग बीमारी के कारण मौत को गलेलगाने पर बीते साल मजबूर हुए थे। इतना ही नहीं मरने वालों में मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लोग ही ज्यादा हैं जबकि गरीब और अमीर तो हालात का हर हालतमें मुकाबला कर लेते हौं। इससे यह भी पता चलता है कि आत्महत्या के मामले में बीते कुछ सालों में पश्चिम बंगाल ने राष्ट्रीय औसत में दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि दूसरे राज्यों में भी आत्महत्या का रुाान बढ़ा है और देश में होने वाली आत्महत्या की घटनाओं में आधी पांच राज्यों में हो रही हैं। राज्यों की इस सूची में महाराष्ट्र, तामिलनाडू, कर्नाटक और आंध्रप्रदेशके साथ पश्चिम बंगाल भी शामिल है।
क्राइम ब्यूरों के आंकड़ों के मुताबिक देश में आत्महत्या करने वाले राज्यों में तामिलनाडू के बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है। बीते साल देश में कुल मिलाकर एक लाख 34 हजार 599 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह आबादी का 11.4 फीसद है। इन आंकड़ों में यह भी खुलासा किया गया है कि 2006 से 2010 तक ऐसे मरने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। तामिलनाडू में 12.3 फीसद और राज्य में 11.9 फीसद लोगों ने आत्महत्या की। पांच राज्यों में ही 57.2 फीसद लोगों ने आत्महत्या की।
केंद्रीय सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि पारिवारिक कारणों से मानसिक तनाव ग्रस्त होकर लोगआत्महत्या कर रहे हैं। 2010 में 23.7 फीसद लोग पारिवारिक मुश्किलों को नहीं ोल पानेके कारण मौत के आगोश में चले गए थे। जबकि आर्थिक हालत और दूसरे कारणों से बीमारी का इलाज नहीं करवाने केकारण मौत को गले लगाने वाले भी कम नहीं थे। 21.1 फीसद लोग बीमारी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हुए थे। इनमें 33.1 फीसद ने जहरखाकर और 31.4 फीसद ने गले में फंदा डाल कर आत्महत्या की।
मनोचिकित्सक व आरजीकर मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डाक्टर गौतम बनर्जी का कहना है कि मानसिक बीमारी के कई कारण होते हैं। आमतौर पर देखाजाता है कि सबसे पहले परिवारके किसी सदस्य के बारे में शक उतपन्न होता है। जैसे पति-पत्नी के किसी दूसरे के साथ नाजायज संबंध हैं, बच्चे उनका कहना नहीं मान रहे हैं। कई बार आर्थिक संकट से परेशान होकर व्यक्ति सोचता है कि सारी मुश्किलों से छूटने का यह आसान रास्ता है। ज्यादातर लोग बीमारी का पता चलनेसे पहले ही जान दे देते हैं लेकिन उनका मानना है कि मनोचिकित्सक के पास जाने पर शत प्रतिशत लोगों की जान बच सकती है। आत्महत्या किसी भी मसले का हल नहीं बल्कि परिवार को ज्यादा मुश्किलों में डालने वाला अपराध है।
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