रेलवे की तरह सरकारी बस में बेटिकट सफर करने वाले यात्रियों को अब जुर्माना देना होगा। मां,माटी, मानुष की नई राज्य सरकार इस नियम को सख्ती से लागू करने जा रही है। हावड़ा से धर्मतला के बीच चलने वाली रूट नंबर 24 बस को चलाने में एक किलोमीटर कुल मिलाकर 26 रुपए से ज्यादा का खर्च होता है। जबकि आय महज 19 रुपए होती है। ऐसा नहीं है कि कलक त्ता ट्रांसपोर्ट परिवहन निगम (सीएसटीस) के बस रूट घाटे में चलते हैं। हावड़ा से सियालदह के बीच रुट नंबर ग्यारह का खर्च 20 रुपए से ज्यादा है तो आमदन 34 रुपए से ज्यादा है। हावड़ा व यादवपुर के बीच चलने वाले ईचार नंबर रूट का खर्च 25 रुपए से कुछ ज्यादा तो आय 43 रुपए से ज्यादा है। इसी तरह हावड़ा-पर्णश्री रूट में चलने वाली एस 37ए का खर्च 30 रुपए तो आय 36 रुपए से ज्यादा है। इसमें पैसे कुछ इधर-उधर हैं । लेकिन यह सही तस्वीर नहीं है।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सीएसटीसी के 65 रुट में 48 रुट घाटे पर चलते हैं। इनमें 31 रुट ऐसे हैं कि खर्च की तुलना में आय सामान्य ज्यादा है। लेकिन लाbhजनक रुट महज ग्यारह ही हैं। छह रुट ऐसे हैं जहां न फायदा न नुकसान हो रहा है। बाघबाजार -गरिया के बीच रुट नंबर 21 चलानेके लिए राज्य सरकार को प्रति किलोमीटर 26 रुपए 28 पैसे खर्च करने पड़ते हैं जबकि वापस सिर्फ 16 रुपए 75 पैसे ही आते हैं। जबकि विमानबंदर-गरिया के एक रूट में 30 रुपए खर्च के बदले महज 15 रुपए चार पैसे ही मिलते हैं।
सूत्रों से पता चला है कि कुल मिलाकर प्रतिदिन सीएसटीसी की 450 बसें चलती हैं इनमें महानगर और आसपास के रुट में 360 बसें चलती हैं। इनमें इतना खर्च हो रहा है कि राज्य परिवहन वि•ााग सकते में है। मालूम हो कि लग•ाग 13 करोड़ रुपए तो कर्मचारियों को वेतन देनेके लिए निकल जाते हैं। साढ़े तीन करोड़ रुपए डीजल खरीदने में खर्च होते हैं। जबकि टिकट बिक्री से लग•ाग पांच करोड़ रुपए की आमदनी होती है। सूत्रों का कहना है कि किसी बस के खराब होने पर उसकी मरम्मत करवाना एक समस्या हो जाता है।
सीएसटीसी के अध्यक्ष maante हैं कि बस रुट में घाटा हो रहा है। लेकिन उनका कहना है कि एक बार में ऐसे रुट से बसें बंद करना संbhव नहीं है क्योंकि सरकार की लोगों के प्रति जिम्मेवारी है। हालांकि उनका कहना है कि घाटे वाले रुट की बसे कुछ कम करने फायदे वाले रुट में चलाने की योजना जरुर है। सूत्रों से पता चला है कि निगम घाटे से उबरने के लिए कई प्रयास कर रहाहै। इसके तहत सबसे ज्यादा जोर टिकट बेच कर आय बढ़ाने पर दिया जा रहा है। इसके तहत बस स्टैंड से बस चलने से पहले ही यात्रियों से टिकट लेने पर सहमति प्रकट की गई है। जिससे चलती बस में टिकट काटने की ज्यादा समस्या नहीं हो।
इसके अलावा बस स्टाप पर बस से उतरने वाले यात्रियों से टिकट मांगने के लिए पर्यवेक्षकों को और ज्यादा सक्रिय किया जाएगा। हावड़ा बस स्टैंड पर ऐसी व्यवस्था है लेकिन कितने बेटिकट लोगों को पकड़ा गया होगा, इसका हिसाब नहीं है। सीएसटीसी की ओर से अब रेलवेकी तरह ही बेटिकट यात्रियों से जुर्माना वसूलने का काम शुरू किया जाएगा। एक अधिकारी के मुताबिक हाल तक जुर्माना वसूलनेकी व्यवस्था होने के बावजूद ऐसा नहीं किया जाता था। लेकिन अब जुर्माना वसूल किया जाएगा। मालूम हो कि जहां कुछ कंडक्टर बस यात्री से तय किराए से कम पैसे लेकर टिकट नहीं देते तो कुछ कंडक्टर पचास-सौ रुपए का खुदरा देने से बचने के लिए टिकट ही नहीं काटते। इससे निगम को घाटा होता है लेकिन कंडक्टर की सेहत पर असर नहीं पड़ता, जबकि प्राइवेट बस कंडक्टर चार रुपए के टिकट के लिए एक सौ रुपए का खुदरा आसानी से कर देता है।
इसके साथ ही ओवरटाइम और इंसेटिव पर अंकुश लगाने पर विचार किया जा रहा है। इन दोनो खातों में हर महीने निगम को 65 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हं। इसे आगामी कुछ महीनों में 40 लाख रुपए कम करके 25 लाख करने की योजना है। इसके लिए बस रुट में परिवर्तन किया जाएगा, जिससे कोलकाता-दीघा जैसे रुट में कर्मचारियों से आठ घंटे से कम काम लिया जा सके और ओवरटाइम नहीं देना पड़े। इसके साथ ही कई रुटों पर तय मात्रा से ज्यादा टिकटों की बिक्री पर दिए जाने वाले इंसेंटिव पर कांट-छांट किए जाने की योजना है।
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