राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने आगामी 28 फरवरी को देशभर में होने वाली औद्योगिक हड़ताल के दिन सभी कर्मचारियों को दफ्तर पहुंचने का निर्देश जारी करते हुए कहा है कि गैर हाजिर रहने वाले कर्मचारियों का तनख्वाह काटने से लेकर सर्विस ब्रेक जैसे कदम भी उठाए जा सकते हैं। मालूम हो कि राज्य में विरोधी दल की ओर से बुलाए गए बंद को नाकाम करने के लिए राज्य में पहले भी ऐसे निर्देश जारी किए जा चुके हैं।
1996 और 2004 में विरोधी दल की ओर से प्रस्तावित तीन बंद के दौरान तत्कालीन मुख्य सचिव ने तनख्वाह काटने का निर्देश जारी किया था। मुख्य सचिव समर घोष ने 28 फरवरी की हड़ताल के मद्देनजर सर्कूलर जारी करके कहा है कि उस दिन कर्मचारियों की छुट्टी किसी भी तरह मंजूर नहीं की जाएगी। हालांकि राज्य सरकार गैर हाजिर रहने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई कर सकती है इस बारे में कुछ साफ नहीं किया गया है। इससे सरकारी कर्मचारियों में परेशानी व्याप्त है। वाहन नहीं मिलने और पारिवारिक कारणों से गैर हाजिर रहने वालों का क्या होगा, यह साफ नहीं है। हालांकि सरकारी कर्मचारियों के सर्विस नियम के तहत मंजूरी के बगैर छुट््टी लेने वाले कर्मचारी की तनख्वाह काटने के साथ ही कारण बताओ नोटिस व सर्विस ब्रेक भी किया जा सकता है। सर्विस ब्रेक होने पर कर्मचारी नियुक्ति के समय वाले पद पर लौट जाएगा, इतना ही नहीं वरिष्ठता समाप्त होने पर पद्दोन्नित (प्रमोशन) से भी वंचित रहेंगे। इससे पहले कांग्रेस के शासनकाल में गैर कांग्रेसी कर्मचारियों का सर्विस ब्रेक किया गया था। 1977 में सत्ता में आने के बाद वाममोर्चा ने निर्देश रद्द किया था।
वाममोर्चा की सरकार ने पांच जुलाई 1996 को कांग्रेस, 17 नवंबर 2004 को एसयूसीआई और 3 दिसंबर 2004 को तृणमूल कांग्रेस की हड़ताल के दौरान गैरहाजिर रहने वाले कर्मचारियों की तनख्वाह काटने का निर्देश जारी किया था। हालांकि 1996 के निर्देश में कहा गया था कि बीमारी, परिवहन हड़ताल या किसी और जरुरी काम के बगैर नहीं आने वालों की तनख्वाह काटी जाएगी। जबकि बाकी दोनों हड़ताल में गैरहाजिर रहने पर तनख्वाह काटने का निर्देश जारी किया गया था। लेकिन वास्तविकता यह है कि गैर हाजिर कर्मचारियों की तनख्वाह नहीं काटी गई। सूत्रों का कहना है कि सरकारी निर्देश पर गैर हाजिर रहने वाले कर्मचारियों छुट््टी के लिए आवेदनकरने को कहा जाता था, लेकिन कोई भी कर्मचारी ऐसा नहीं करता था। उनकी छुट््टी भी नहीं काटी जाती थी। हाजरी खाते में एक लकीर खींच दी जाती थी। हालांकि विरोधियों की हड़ताल के दिन गैर हाजिर रहने वाले कर्मचारियों को आवेदन भी करना पड़ता था और छुट्टी भी काटी जाती थी।
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