किसी जमाने में बंद का मतलब ताकत का प्रदर्शन करना था। एक राजनीतिक दल की ओर से बंद का एलान किया जाता था तो दूसरा दल उसका विरोध करता था। लेकिन बाद में हालात बदलते गए। पश्चिम बंगाल के लोगों ने बंद को छुट्टी के तौर पर स्वीकार कर लिया। जब भारतीय जनता पार्टी और एसयूसीआई जैसे राजनीतिक दल के ओर से बुलाए गए बंगाल बंद को भी जबरदस्त सफलता मिली। हालांकि दोनों राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की संख्या इतनी ज्यादा नहीं है कि राज्य को ठप किया जा सके। लेकिन इसके बावजूद दोनों दलों के बंद को व्यापक सफलता मिली थी। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं। ममता बनर्जी ने बंद को नाकाम करने के लिए सख्त रवैया अपनाया हुआ है। राज्य में ऐसे वातावरण में मंगलवार को वामपंथी संगठनों की ओर से देशव्यापी औद्योगिक हड़ताल के विरोध में राज्य सरकार की ओर से की गई सख्ती का क्या कोई असर होगा या जिस तरह ब्रिगेड रैली में माकपा ने जोरदार ताकत का प्रदर्शन किया था, बंद के दौरान भी उसी तरह की शक्ति प्रदर्शन का नजारा देख कर पहले से कई समस्याओं में घिरी राज्य सरकार को शर्मिंदगी उठानी होगी?
हावड़ा में बंद के पुराने दिनों को याद करते हुए मनजीत कौर ने बताया कि बचपन के दिनों में बंद का मतलब आज जैसा बंद नहीं था। कांग्रेस और माकपा दो ही प्रमुख राजनीतिक दल थे , दोनों के अपने संगठन थे। एक की ओर से बंद के दौरान दूसरे दल का कामकाज सामान्य तौर पर जारी रहता था। परिवहन में भी आधी बसें बंद रहती थी जो आधी चलती थी। यही हाल बाजार, दुकानों का था। सिनेमाहाल भी दोनों दलों में बंटे हुए थे। शालीमार सिनेमा हाल खुला रहता था तो झर्णा बंद रहता था। वेलिंग्टन बंद रहता था तो सपना खुला रहता था। लेकिन बाद के दिनों में कोई भी बंद की अपील करे तो शत प्रतिशत बंद होता था। इसलिए मंगलवार को भी बंद सफल रहेगा।
सालों से चाय की दुकान चला रहे बाबू दा का कहना है कि हमारी दुकान तो हमेशा खुली रहती है इसलिए कल भी खुली रहेगी। लेकिन बंद को सफल तो होना ही है। डनलप इलाके में वैसे भी माकपा की खासी ताकत है। इसके अलावा लोग बंद में छुट्टी मनाना ही ठीक समझते हैं।
कोलकाता में रश्मि शर्मा ने कहा कि बंद तो पहले ही सफल हो गया है। राज्य के ज्यादातर स्कूल-कालेज में पहले ही छुट्टी घोषित कर दी गई है। इसी तरह प्राइवेट संस्थाओं में लोग भी गैरहाजिर ही रहेंगे। रवि मतवाल का कहना था कि हमारे इलाके में तो सरकारी बसें चलती नहीं हैं और बंद के दिन निजी परिवहन व्यवस्था ठप रहती है। इसलिए बंद के दिन दफ्तर जाने की बात सोचना भी कठिन ही है। कोलकाता नगर निगम में काम करने वाले एक कर्मचारी विकास के मुताबिक प्रशासन की ओर से एलान किया गया है कि किसी भी तरह की छुट््टी मंजूर नहीं की जाएगी। लेकिन बागनान से कोलकाता पहुंचना संभव नहीं है। ट्रेन सेवा सामान्य रही तो दफ्तर जाने के बारे में सोचा जा सकता है। ट्रेन बंद रही तो दफ्तर जाने का सवाल ही नहीं है।
बंद के दौरान किसी तरह की समस्या से बचने के लिए दो एपीजे स्कूल, बिड़ला हाई स्कूल फार ब्वायज, महादेवी बिड़ला गर्ल्स हायर सेकें डरी स्कूल भारतीय विद्या भवन ने पहले ही परीक्षा का दिन परिवर्तित कर दिया है। सेंट जेम्स स्कूल, द हेरिटेज स्कूल, श्री शिक्षायतन और बालीगंज शिक्षा सदन ने मंगलवार को स्कूल बंद रखने का फैसला किया है। इसी तरह हावड़ा में भी ज्यादातर स्कूलों ने बंद का एलान कर दिया है। जबकि कुछ स्कूल के प्रबंधकों ने छुट््टी का एलान नहीं किया है लेकिन अभिभावकों को बता दिया गया है कि स्कूल बंद रहेगा बच्चों को नहीं भेजे।
डनलप से अंकुलहाटी होकर पांचला जाने वाली 79 रुट के बस चालकों का कहना है कि बंद के दिन बसें बंद रहेंगी। इसी तरह हावड़ा से आलमपुर के बीच चलने वाली रुट नंबर 61 के कंडक्टर ने भी बताया कि बंद के दिन बसें बंद रहेगी। मौड़ीग्राम-साल्टलेक के बीच चलने वाली मिनी बस चालकों और नाजिरगंज तक चलने वाले ट्रैकर चालकों का भी कहना है कि मंगलवार को उनके वाहन बंद ही रहेंगे।
गोविंद रावत के मुताबिक कोलकाता में राज्य सरकार की ओर से सरकारी बसें चलाई जाती हैं। इस बार भी ऐसा हो सकता है लेकिन हावड़ा में प्राइवेट बसें ही चलती हैं। सरकारी बसें तो यहां चलती नहीं है। इसलिए परिवहन सौ फीसद बंद रहेगा इसमें किसी तरह का संदेह नहीं है। हालांकि राज्य के परिवहन विभाग के मंत्री मदन मित्रा का कहना है कि किसी तरह की समस्या होने पर सीधे उनके मोबाईल नंबर 98303-21032 पर संपर्क किया जा सकता है।
राज्य सरकार के सख्त रवैये को देखते हुए कुछ लोगों का मानना है कि हिंसक संघर्ष हो सकते हैं। लेकिन क्या बंद पुरानी राह पर लौटेगा जब एक दल के इलाके में बंद प्रभावहीन रहता था तो दूसरे के इलाके में शत प्रतिशत बंद रहता था या समूचा राज्य पारंपरिक तौर पर ठप रहेगा?
No comments:
Post a Comment