मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपने तेवर दिखाए हैं हालांकि इसका नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में
सेट टॉप बाक्स नहीं लगाए जाने से कुल मिलाकर यह घाटा लगभग 200 करोड़ रुपए हो सकता है। केबल टीवी व्यापार से जुड़े मल्टीपल सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) से केंद्र सरकार की ओर से सेवा कर वसूली शुरू की गई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने मनोरंजन कर लेने की बात की गई थी। लेकिन कर वसूली के नियम कानून और वसूली में ढांचागत समस्या के कारण राजस्व वसूली विज्ञप्ति जारी करने के बाद आगे नहीं बढ़ सकी ।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से आगामी एक जुलाई से चार महानगरों में एमएसओ को डिजीटल करने के एलान के बाद राज्य में राजस्व वृद्धि का मौका मिला है। इससे एक ओर सेट टॉप बाक्स की बिक्री से बिक्री कर हासिल होगा दूसरे बाक्सकी तकनी के माध्यम सेपता चल सकता है कि कुल मिलाकर कितने लोग केबल देख रहे हैं। इस तरह कुल मिलाकर राज्य सरकार को लगभग 200 करोड़ रुपए की कमाई हो सकती है।
लेकिन राज्य सरकार की ओर से सेट टाप बाक्स लागू करने का विरोध किया जा रहा है। राज्य के नगर विकास मंत्री फिरहाद हाकिम ने दिल्ली में केंद्रीय सूचना- प्रसारण मंत्री से मुलाकात करके कहा है कि फिलहाल यह व्यवस्था लागू करने के पक्ष में नहीं हैं। इसका कारण यह बताया गया है कि केबल सेवा को विकसित (डिजीटलाइजेशन) करनेके लिए जितने सेट टॉप बाक्स की जरुरत है, उतने बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि केबल आपरेटर व्यापार से जुड़े कुछ लोग नहीं चाहते कि नई व्यवस्था लागू हो, इसलिए विरोध किया जा रहा है। इसके साथ ही सरकार का मानना है कि कुछ ग्राहक भी नाराज हो सकते हैं इसलिए विरोध किया जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद कें द्र सरकार ने 1995 के केबल टेलीविजन नेटवर्क कानून की सात नंबर धारा के तहत 2003 में केबल सेवा कंडीशनल एक्सेस सिस्टम (कैस) लागू करने का निर्देश दिया था। इसे मुंबई-दिल्ली-कोलकाता में लागू किया जाना था। इसके तहत कोलकाता को चार जोन में बांटा गया। इसके बाद केबल आपरेटरों के भारी विरोध के कारण वाममोर्चा सरकार इस मामले में पीछे हट गया। एक बार फिर वही होने जा रहा है।
नई व्यवस्था के तहत ग्राहक अपनी पसंद का चैनल देख सकते हैं, उन्हें केबल आपरेटरों की मर्जी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। क्योंकि अभी तो आपरेटर अपनी इच्छा के मुताबिक चैनलों में उलट-फेर करते रहते हैं। दूसरे केबल कारोबार पर सरकार का शिकंजा कुछ हद तक काम हो सकता था। अभी राज्य के पास यह जानने का साधन नहीं है कि कितने लोग केबल टीवी देखते हैं। लेकिन सेट टाप बाक्स चालू होने से इसका पता चल सकता। इससे मनोरंजन कर वसूली में भी आसानी होती।
मालूम हो कि कोलकाता में केबल आपरेटर एक ग्राहक के लिए महीने में 10 रुपए और जिले में पांच रुपए मनोरंजन कर देते हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि ग्राहक जितने मर्जी हों, नगर निगम में साल में एक बार 3500 रुपए जमा करने से ही छुट््टी हो जाती है। आरोप है कि केबल ग्राहकों की संख्या की जानकारी हासिल करने का कोई तरीका नहीं होने से राज्य सरकार को घाटा उठाना पड़ रहा है। वित्त विभाग के पास कोलकाता के 1300 और जिले के 1400 आपरेटरों की सूची है।
सूत्रों के मुताबिक किसी आपरेटर के 400 ग्राहकहोते हैं तो वह महज 50-60 लोगों के बारे में बताया है, यहां तीन-चार हजार ग्राहकों वाले आपरेटर भी हैं लेकिन कोई भी सही संख्या की जानकारी सरकार को नहीं देता।
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