मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फारवर्ड ट्रेडिंग के मुद्दे पर केंद्र सरकार का जोरदार विरोध किया है और कहा है कि राज्य में किसी भी हालत पर इसका समर्थन नहीं करेंगी। लेकिन इसके बावजूद राज्य में इस तरह से कारोबार किया जा रहा है जिसका नतीजा है कि आम लोगों की रसोई के लिए अति आवश्यक सरसों के तेल के साथ ही दाल, आटा, मैदा, चीनी समेत दूसरी वस्तुओं की कीमत में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बीते एक महीने के दौरान रसोई की वस्तुओं में वृद्धि उल्लेखनीय रही है। कोलकाता, हावड़ा समेत राज्य की दुकानों में आटा और मैदा की कीमतों में तीन-चार रुपए किलोग्राम की दर से वृद्धि हुई है। इसी तरह सरसों के तेल में भी आठ रुपए से लेकर 10 रुपए तक वृद्धि हुई है। विभिन्न तरह की दालों की कीमत भी छह से लेकर 10 रुपए तक महंगी हो गई है। इसके साथ ही मशाले भी पीछे नहीं हैं। मसालों की कीमतों प्रति किलो एक महीने में 80 से लेकर 90 रुपए तक बढ़ गई है। इसी तरह बिस्कुट, साबुन, डिटरजेंट , टूथ पेस्ट से लेकर सिर में लगाने वाले तेल की कीमतों का भी वैसा ही हाल है। अंडे की दर कुछ घटने के बाद फिर बढ़ गई है।
बाजार के आंकड़ों के मुताबिक एक महीने पहले आटा 16 रुपए किलोग्राम की दर से बिक रहा था, यह अब 19 रुपए तक पहुंच गया है। इसी तरह मैदा 17 रुपए से 20 रुपए, सरसों तेल 90 रुपए से एक सौ रुपए, मसूल दाल 67 से 73, मटर दाल 38 से 46, मूंग दाल 95 से 110 , चीनी 36 से 42, जीरा 180 से 200, हल्दी 120 रुपए से लेकर 140 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है।
हालांकि चावल की कीमतों में कुछ गिरावट के संकेत हैं। मालूम हो कि चावल, आलू, साग-सब्जी का उत्पादन ही राज्य में होता है, इसलिए इनकी कीमतों पर राज्य सरकार अंकुश लगा सकती है। जबकि दाल, आटा, मैदा, चीनी, मसालों समेत दूसरा सामान देश के दूसरे राज्यों से यहां आता है। मांग से लगभग दुगना उत्पादन होने के बाद भी तमाम सरकारी कोशिशें नाकाम हो गई हैं और आलू 15-16 रुपए से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। जबकि मैदा, आटा, तेल, चीनी महंगी क्यों हो गई है इस बारे में विक्रेता से लेकर क्रेता तक अंधेरे में हैं। यह भी कहा जा रहा है डीजल की कीमतें बढ़ने के कारण परिवहन खर्च में वृद्धि हुई है, इसका असर आवश्यक वस्तुओं की कीमत पर पड़ा है। लेकिन व्यापारियों का कहना है कि महंगाई का यह इकलौता कारण नहीं है।
बड़ाबाजार के व्यापारियों की मानें तो उनके मुताबिक महंगाई का कारण उत्पादन में कमी या आपूर्ति व्यवस्था में गड़बड़ी नहीं है। इसका मुख्य कारण फारवर्ड ट्रेडिंग है। बड़ी-बड़ी कंपनियों की ओर से अग्रिम व्यापार या फारवर्ड ट्रेडिंग के नाम पर करोड़ों रुपए का माल खरीद कर गोदाम में इकट्ठा कर रखा है। इस साल देश में बारिश आशानुसार नहीं हुई है। उत्तर, दक्षिण और पश्चिम भारत के कई जिलों 50 फीसद से भी कम बारिश हुई है। इसका असर उत्पादन पर हुआ है। बारिशकी कमी के कारण जमीन का जलस्तर भी प्रभावित हुआ है। इससे दालों का उत्पादन और गन्ने के उत्पादन पर असर पड़ा है। मौके को देखते हुए कार्पोरेट संस्थाओं ने भी कीमतों में वृद्धि शुरूकर दी है। जिससे लगभग सभी वस्तुएं महंगी हो गई हैं।
रमजान का महीना चल रहा है, इसके बाद बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा आने वाला है। इसके बाद दीपावली की बारी है। कुछ व्यापारियों का कहना है कि हर साल त्योहार के मौके पर कीमतों में वृद्धि होती है। लेकिन इस साल कीमतों में भारी वृद्धि का कारण फारवर्ड ट्रेडिंग है। इसमें खुदरा या थोक व्यापारियों का कोई हाथ नहीं है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ तौर पर एलान किया है कि वे फारवर्ड ट्रेडिंग का समर्थन नहीं करते हैं और इसे किसी भी हालत में लागू नहीं होने देंगे। आरोप है कि सब्जी की कीमतों के खिलाफ उन्होंने जैसे कार्रवाई की थी,जिससे कीमतें बहुत घट गई थी कार्पोरेट संस्थाओं के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने एलान किया था कि इंफोर्समेंट ब्रांच की ओर से गैरकानूनी तौर पर स्टाक जमा करके रखे गोदामों पर छापामारी की जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया, जिससे कीमते हैं कि घटने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
बाजार के आंकड़ों के मुताबिक एक महीने पहले आटा 16 रुपए किलोग्राम की दर से बिक रहा था, यह अब 19 रुपए तक पहुंच गया है। इसी तरह मैदा 17 रुपए से 20 रुपए, सरसों तेल 90 रुपए से एक सौ रुपए, मसूल दाल 67 से 73, मटर दाल 38 से 46, मूंग दाल 95 से 110 , चीनी 36 से 42, जीरा 180 से 200, हल्दी 120 रुपए से लेकर 140 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है।
हालांकि चावल की कीमतों में कुछ गिरावट के संकेत हैं। मालूम हो कि चावल, आलू, साग-सब्जी का उत्पादन ही राज्य में होता है, इसलिए इनकी कीमतों पर राज्य सरकार अंकुश लगा सकती है। जबकि दाल, आटा, मैदा, चीनी, मसालों समेत दूसरा सामान देश के दूसरे राज्यों से यहां आता है। मांग से लगभग दुगना उत्पादन होने के बाद भी तमाम सरकारी कोशिशें नाकाम हो गई हैं और आलू 15-16 रुपए से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। जबकि मैदा, आटा, तेल, चीनी महंगी क्यों हो गई है इस बारे में विक्रेता से लेकर क्रेता तक अंधेरे में हैं। यह भी कहा जा रहा है डीजल की कीमतें बढ़ने के कारण परिवहन खर्च में वृद्धि हुई है, इसका असर आवश्यक वस्तुओं की कीमत पर पड़ा है। लेकिन व्यापारियों का कहना है कि महंगाई का यह इकलौता कारण नहीं है।
बड़ाबाजार के व्यापारियों की मानें तो उनके मुताबिक महंगाई का कारण उत्पादन में कमी या आपूर्ति व्यवस्था में गड़बड़ी नहीं है। इसका मुख्य कारण फारवर्ड ट्रेडिंग है। बड़ी-बड़ी कंपनियों की ओर से अग्रिम व्यापार या फारवर्ड ट्रेडिंग के नाम पर करोड़ों रुपए का माल खरीद कर गोदाम में इकट्ठा कर रखा है। इस साल देश में बारिश आशानुसार नहीं हुई है। उत्तर, दक्षिण और पश्चिम भारत के कई जिलों 50 फीसद से भी कम बारिश हुई है। इसका असर उत्पादन पर हुआ है। बारिशकी कमी के कारण जमीन का जलस्तर भी प्रभावित हुआ है। इससे दालों का उत्पादन और गन्ने के उत्पादन पर असर पड़ा है। मौके को देखते हुए कार्पोरेट संस्थाओं ने भी कीमतों में वृद्धि शुरूकर दी है। जिससे लगभग सभी वस्तुएं महंगी हो गई हैं।
रमजान का महीना चल रहा है, इसके बाद बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा आने वाला है। इसके बाद दीपावली की बारी है। कुछ व्यापारियों का कहना है कि हर साल त्योहार के मौके पर कीमतों में वृद्धि होती है। लेकिन इस साल कीमतों में भारी वृद्धि का कारण फारवर्ड ट्रेडिंग है। इसमें खुदरा या थोक व्यापारियों का कोई हाथ नहीं है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ तौर पर एलान किया है कि वे फारवर्ड ट्रेडिंग का समर्थन नहीं करते हैं और इसे किसी भी हालत में लागू नहीं होने देंगे। आरोप है कि सब्जी की कीमतों के खिलाफ उन्होंने जैसे कार्रवाई की थी,जिससे कीमतें बहुत घट गई थी कार्पोरेट संस्थाओं के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने एलान किया था कि इंफोर्समेंट ब्रांच की ओर से गैरकानूनी तौर पर स्टाक जमा करके रखे गोदामों पर छापामारी की जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया, जिससे कीमते हैं कि घटने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
No comments:
Post a Comment