कोलकाता, 28 दिसंबर (रंजीत लुधियानवी)- राज्य में आत्महत्या करने वालों की तादात में लगातार इजाफा हो रहा है। बीते एक साल में इसमें और भी वृद्धि हुई है। यादवपुर, कसबा, नाकतला, हरिदेवपुर, टिकियापाड़ा के बाद कांकुड़गाछी में मानसिक तनाव से ग्रस्त होकर लोग अपने परिवार वालों की हत्या करने के बाद मौत को गले लगा रहे हैं। पारिवारिक मुश्किलों को ोलने में नाकाम रहने वाले और बीमारी के सामने हार मानने वाले ही ज्यादातर लोग आत्महत्या कर रहे हैं। मरने का सबसे आसान रास्ता जहर पीना और दूसरा गले में फंदा लगाना है। तामिलनाडू के बाद आत्महत्या करनेके मामले में राज्य दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। इससे पुलिस, प्रशासन ही नहीं मनोचिकित्सक भी चिंतित हैं।
मालूम हो कि सोमवार को कांकुड़गाछी में पत्नी और दो बच्चों की हत्या करनेके बाद पति ने आत्महत्या कर ली थी। मंगलवार दसवीं कक्षा की एक छात्रा ने आत्महत्या की। महीने भर पहले राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने देश भर में 2010 में हुए अपराध के आंकड़े जारी किए थे। इससे कई तरह से खुलासे हुए हैं। एक तो यह कि हालात के सामने लोग पारिवारिक मुश्किलों और बीमारी केकारण घुटने टेकते हैं। 23.7 फीसद लोग पारिवारिक समस्याओं और 21.1 फीसदलोग बीमारी के कारण मौत को गलेलगाने पर बीते साल मजबूर हुए थे। इतना ही नहीं मरने वालों में मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लोग ही ज्यादा हैं जबकि गरीब और अमीर तो हालात का हर हालतमें मुकाबला कर लेते हौं। इससे यह भी पता चलता है कि आत्महत्या के मामले में बीते कुछ सालों में पश्चिम बंगाल ने राष्ट्रीय औसत में दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि दूसरे राज्यों में भी आत्महत्या का रुाान बढ़ा है और देश में होने वाली आत्महत्या की घटनाओं में आधी पांच राज्यों में हो रही हैं। राज्यों की इस सूची में महाराष्ट्र, तामिलनाडू, कर्नाटक और आंध्रप्रदेशके साथ पश्चिम बंगाल भी शामिल है।
क्राइम ब्यूरों के आंकड़ों के मुताबिक देश में आत्महत्या करने वाले राज्यों में तामिलनाडू के बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है। बीते साल देश में कुल मिलाकर एक लाख 34 हजार 599 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह आबादी का 11.4 फीसद है। इन आंकड़ों में यह भी खुलासा किया गया है कि 2006 से 2010 तक ऐसे मरने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। तामिलनाडू में 12.3 फीसद और राज्य में 11.9 फीसद लोगों ने आत्महत्या की। पांच राज्यों में ही 57.2 फीसद लोगों ने आत्महत्या की।
केंद्रीय सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि पारिवारिक कारणों से मानसिक तनाव ग्रस्त होकर लोगआत्महत्या कर रहे हैं। 2010 में 23.7 फीसद लोग पारिवारिक मुश्किलों को नहीं ोल पानेके कारण मौत के आगोश में चले गए थे। जबकि आर्थिक हालत और दूसरे कारणों से बीमारी का इलाज नहीं करवाने केकारण मौत को गले लगाने वाले भी कम नहीं थे। 21.1 फीसद लोग बीमारी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हुए थे। इनमें 33.1 फीसद ने जहरखाकर और 31.4 फीसद ने गले में फंदा डाल कर आत्महत्या की।
मनोचिकित्सक व आरजीकर मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डाक्टर गौतम बनर्जी का कहना है कि मानसिक बीमारी के कई कारण होते हैं। आमतौर पर देखाजाता है कि सबसे पहले परिवारके किसी सदस्य के बारे में शक उतपन्न होता है। जैसे पति-पत्नी के किसी दूसरे के साथ नाजायज संबंध हैं, बच्चे उनका कहना नहीं मान रहे हैं। कई बार आर्थिक संकट से परेशान होकर व्यक्ति सोचता है कि सारी मुश्किलों से छूटने का यह आसान रास्ता है। ज्यादातर लोग बीमारी का पता चलनेसे पहले ही जान दे देते हैं लेकिन उनका मानना है कि मनोचिकित्सक के पास जाने पर शत प्रतिशत लोगों की जान बच सकती है। आत्महत्या किसी भी मसले का हल नहीं बल्कि परिवार को ज्यादा मुश्किलों में डालने वाला अपराध है।
Wednesday, December 28, 2011
Sunday, December 25, 2011
ममता की ताजपोशी से यादगार बना साल 2011
पश्चिम बंगाल के लिए साल 2011 में ऐसी कई बातें हुई जिसके लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा विशेष तौर पर उल्लेख किया जाएगा। इसमें सबसे बड़ी घटना रही तृणमूल कांग्रेस की नेता अग्नि कन्या ममता बनर्जी की ओर से लगातार सात बार विधानसभा चुनाव जीत कर राज्य को अपनी जागीर समाने वाली वाममोर्चा को सत्ता से बदखल करना। कम्युनिस्टों ने मतगणना के पहले भी एलान कियाथा कि आठवीं बार भी उनकी ही सरकार बनेगी लेकिन जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो सभी भौचक्क रह गए। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य से लेकर कई बड़े माकपा नेताओं को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा।
साल की एक और बड़ी घटना माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी का मारा जाना रहा है। सालों तक राज्य में संगठन की बागडोर संभालने वाले कुख्यात नेता की मौतके बाद माओवादियों की रीढ़ की हड्डी जैसे टूट गई है। यह ममता सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के तौर पर ममताबनर्जी की सक्रियता में विरोधी अग्निकन्या जैसी ही तीव्रता देखी जा रही है। सालों पुरानी दार्जिलिंग में गोरखालैंड की समस्या सुलझाने के लिए किया गया जीटीए समझौता हो या सिंगुर में किसानों की 400 एकड़ जमीन वापस करने की दिशा में पहल उन्होंने प्रयास किया है।
साल की सबसे दुखद घटना के तौर पर कोलकाता के महंगे अस्पताल एएमआरआइ (आमरी) में आग लगने की घटना को याद किया जा सकता है। जब अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती 90 सेज्यादा मरीज अपनी जान गवां बैठे। लेकिन हैरत की बात यह है कि मरने वाले आग से जल कर नहीं मरे, बल्कि धुंए से दम घुटने के कारण मौत का शिकार हुए। इससे लाखों रुपए लेकर लोगों की जान से खिलवाड़ करने वालों की कलई लोगों के सामने खुल गई है। राज्य सरकार से सांठगांठ करके सस्ती जमीन हथिया कर लगभग डेढ़ करोड़ रुपए के बजाए 10 लाख रुपए से भी कम किराया देकर कारोबार करने वाले साल भर में दो करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च रहे थे। ऐसी बातों से लोगों की नाराजगी व्यवस्था के प्रति बढ़ी ही है।
इसके बाद देशी शराब, जिससे बंगाल में चुल्लू कहा जाता है पीकर 170 से ज्यादा लोगों की मौत ने राजनेताओं , पुलिस से सांठगांठ करके हाकर से करोड़पति बनने वाले लोगों की कलई खोल कर सामने रख दी है।
मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी की सात महीने की कारगुजारी का आंकलन करना समझदारी नहीं होगा। लेकिन जिस तरह सभी विभागों की देख-रेख से लेकर जिलों के सफर के दौरान कामकाजकी समीक्षा काकाम शुरू हुआ है, उससे लोगों को आस बंध रही है कि प्रयास जरूर हो रहे हैं।
आमरी में आग लगने की घटना के बाद दिन भर लोगों के बीच रहकर नाराज परिवार केलोगों को शांत करती, अस्पताल में मुर्दाघरके बाहर लोगों को पोस्टमार्टम के दौरान सांत्वना दे रही ममता अब भी पहले की तरह सुती साड़ी, सफेद चप्पल पहने कर लोगों के बीच पहुंच जाती हैं। तिलजला में हवाई चप्पल के कारखाने में आग लगने की खबर मिलने पर रात डेढ़ बजे घटनास्थल पर पहुंच गई थी।
यह साल राज्य के लोग मुख्यमंत्री की मां गायत्री बनर्जी (81) के निधन की घटना भी नहीं भूल सकते। शायद ममता बनर्जी देश की पहली मुख्यमंत्री होंगी जिनकी मां का इलाज एक सरकारी अस्पताल एसएसकेएम में चल रहा था। उन्होंने सरकारी अस्पताल की चिकित्सा-व्यवस्था पर भरोसा जताया और उसी अस्पताल में उनका निधन हुआ। मां की मौत के बाद सदमें से उबरने में उन्हें दो दिन लगे, तब तक वे अपने कमरे में ही बंद रही। राज्य की जर्जर आर्थिक हालत को देखते हुए मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने कोष में एक करोड़ रुपए जमा करवाए, जो पेंटिंग की बिक्री से हासिल किए थे।
साल की एक और बड़ी घटना माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी का मारा जाना रहा है। सालों तक राज्य में संगठन की बागडोर संभालने वाले कुख्यात नेता की मौतके बाद माओवादियों की रीढ़ की हड्डी जैसे टूट गई है। यह ममता सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के तौर पर ममताबनर्जी की सक्रियता में विरोधी अग्निकन्या जैसी ही तीव्रता देखी जा रही है। सालों पुरानी दार्जिलिंग में गोरखालैंड की समस्या सुलझाने के लिए किया गया जीटीए समझौता हो या सिंगुर में किसानों की 400 एकड़ जमीन वापस करने की दिशा में पहल उन्होंने प्रयास किया है।
साल की सबसे दुखद घटना के तौर पर कोलकाता के महंगे अस्पताल एएमआरआइ (आमरी) में आग लगने की घटना को याद किया जा सकता है। जब अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती 90 सेज्यादा मरीज अपनी जान गवां बैठे। लेकिन हैरत की बात यह है कि मरने वाले आग से जल कर नहीं मरे, बल्कि धुंए से दम घुटने के कारण मौत का शिकार हुए। इससे लाखों रुपए लेकर लोगों की जान से खिलवाड़ करने वालों की कलई लोगों के सामने खुल गई है। राज्य सरकार से सांठगांठ करके सस्ती जमीन हथिया कर लगभग डेढ़ करोड़ रुपए के बजाए 10 लाख रुपए से भी कम किराया देकर कारोबार करने वाले साल भर में दो करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च रहे थे। ऐसी बातों से लोगों की नाराजगी व्यवस्था के प्रति बढ़ी ही है।
इसके बाद देशी शराब, जिससे बंगाल में चुल्लू कहा जाता है पीकर 170 से ज्यादा लोगों की मौत ने राजनेताओं , पुलिस से सांठगांठ करके हाकर से करोड़पति बनने वाले लोगों की कलई खोल कर सामने रख दी है।
मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी की सात महीने की कारगुजारी का आंकलन करना समझदारी नहीं होगा। लेकिन जिस तरह सभी विभागों की देख-रेख से लेकर जिलों के सफर के दौरान कामकाजकी समीक्षा काकाम शुरू हुआ है, उससे लोगों को आस बंध रही है कि प्रयास जरूर हो रहे हैं।
आमरी में आग लगने की घटना के बाद दिन भर लोगों के बीच रहकर नाराज परिवार केलोगों को शांत करती, अस्पताल में मुर्दाघरके बाहर लोगों को पोस्टमार्टम के दौरान सांत्वना दे रही ममता अब भी पहले की तरह सुती साड़ी, सफेद चप्पल पहने कर लोगों के बीच पहुंच जाती हैं। तिलजला में हवाई चप्पल के कारखाने में आग लगने की खबर मिलने पर रात डेढ़ बजे घटनास्थल पर पहुंच गई थी।
यह साल राज्य के लोग मुख्यमंत्री की मां गायत्री बनर्जी (81) के निधन की घटना भी नहीं भूल सकते। शायद ममता बनर्जी देश की पहली मुख्यमंत्री होंगी जिनकी मां का इलाज एक सरकारी अस्पताल एसएसकेएम में चल रहा था। उन्होंने सरकारी अस्पताल की चिकित्सा-व्यवस्था पर भरोसा जताया और उसी अस्पताल में उनका निधन हुआ। मां की मौत के बाद सदमें से उबरने में उन्हें दो दिन लगे, तब तक वे अपने कमरे में ही बंद रही। राज्य की जर्जर आर्थिक हालत को देखते हुए मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने कोष में एक करोड़ रुपए जमा करवाए, जो पेंटिंग की बिक्री से हासिल किए थे।
Thursday, December 22, 2011
अमीरों का केक अब हर दिल अजीज
हावड़ा जिले के शिवपुर थाना इलाके के तहत बंगाल जूट मिल हिंदी हाई स्कूल में पढ़ने वाले धनंजय मिश्रा को केक खाने के चाहत के बावजूद मायूस रहना पड़ा था। भले ही उसके पिता प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक थे लेकिन पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले बेटे की ख्वाहिश पूरी करना उनके बस में नहीं था। ऐसा नहीं है कि उनके पास रुपए नहीं थे । बालक ने स्कूल में एक धनाढ्य के बेटे को केक खाते देख कर केक खाने की जिद की थी जिसे पिता ने पूरा करना चाहा था। लेकिन जेब में रुपए रहने के बावजूद बाजार में नहीं मिलता था केक। यह फिल्म शोले के प्रदर्शन के दौरान की बातें हैं।
जी हां, यह कोई कथा-कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है कि कभी केक सिर्फ अमीरों के शौक की वस्तु हुआ करता था। सामान्य लोग तो बस ललचाते हुए दूसरों को केक खाते देखा करते थे। इसका कारण यह था कि जिले में केक बनाए नहीं जाते थे, कुछ खास इलाके की गिनी-चुनी दुकानें में ही केक रखा जाता था, वह भी कोलकाता से यहां लाया जाता था। हालांकि तब तक हावड़ा जिले में न्यू हावड़ा बेकरी (बापुजी) ने केक बनाने शुरू कर दिए थे। यह 1973 का साल था, तब बहुत सीमित मात्रा में केक बनाए जाते थे। एक कीक की कीमत 20 पैसे हुआ करती थी, हालांकि तब बस का न्यूनतम भाड़ा इससे कम था और 18 पैसे का टिकट कटा कर लोग 18-20 किलोमीटर का सफर आसानी से करते थे। केक महंगा था और लोगों की जेब में उतने पैसे नहीं थे।
अब ऐसा नहीं है, एक तो बेकरी की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है दूसरे सभी केक बनाने में जुटे हुए हैं। गरीब और सामान्य लोगों के लिए नाश्ते के लिए सबसे अच्छा और सस्ता केक ही रह गया है। तीन रुपए का केक और डेढ़-दो रुपए की चाय के साथ पांच रुपए में नाश्ता हो जाता है। जिले के बने हुए केक स्कूलों में दोपहर के भोजन में भी छात्र-छात्राओं को दिए जाते हैं। इसके साथ ही 37 साल पहले शुरू हुई बापुजी कंपनी अब भी केक बनाने के काम में जुटी हुई है और 20 पैसे से शुरू हुआ केक महंगा होकर चार रुपए तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद बड़ी कंपनियों के मुकाबले में टिका हुआ है। सालों पहले की पैकेजिंग में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। पुराने दिनों की याद करते हुए गोविंद मिश्रा कहते हैं कि उन दिनों जिले के मुस्लिम बहुल इलाके में ही बेकरी हुआ करती थी। लेकिन सिर्फ पावरोटी और बिस्कुट बनाए जाते थे। बेकरियां भी बेलिलियस रोड, पीलखाना, लीचू बगान, आंदुल, ट्रामडिपो इलाके में हुआ करती थी। लेकिन उनका अपना-अपना इलाका था। बापुजी ने केक बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं, केक हर घर की चाहत ही नहीं लोगों के पसंद की चीज बन गया है। कोई किसी भी समुदाय का हो, स्कूल-कालेज की छुट्टयां होते ही सर्द मौसम में केक के साथ चाय या कॉफी का आनंद उठाने से नहीं चूकते। क्रिसमस के मौके पर महानगर कोलकाता समेत सभी जिलों में दुकानों अलग तरह से सजी हुई हैं।
मौड़ीग्राम स्टेशन के नजदीक एक दुकानदार रानू ने बताया कि क्रिसमस के मौके पर लोग केक के अलावा कुछ नहीं मांगते। इसलिए दस दिन पहले से ही केक की बिक्री शुरू हो गई थी, जैसे-जैसे 25 दिसंबर करीब आती जा रही है वैसे -वैसे बिक्री बढ़ती जा रही है। इसी तरह के विचार चूनाभाटी इलाके के दूसरे दुकानदार के हैं। दक्षिण हावड़ा हो या मध्य और उत्तर हावड़ा, ज्यादातर इलाकों में सांताक्लाज पांच रुपए से लेकर 50 रुपए तक बिक रहे हैं। चमकदार सितारे भी आठ रुपए से बीस रुपए तक बिक रहे हैं। जबकि बड़े तारे 50-60 रुपए कीमत के हैं। सबसे बड़ा सांताक्लाज 450 रुपए का है। बड़े दिन के मौके पर बिकने वाले केक में भी ज्यादा ग्राहक 40 रुपए से लेकर 70 रुपए तक की कीमत के हैं। हालांकि 170-250 रुपए तक के केक भी बिक रहे हैं लेकिन उनकी तादाद बहुत कम है। बड़े दिन की पूर्व संध्या पर केक दुकानों के घेरे से निकल कर बाहर सज गए हैं लेकिन कई लोगों को अब भी बचपन की याद सता रही है, जब केक एक सपना हुआ करता था।
जी हां, यह कोई कथा-कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है कि कभी केक सिर्फ अमीरों के शौक की वस्तु हुआ करता था। सामान्य लोग तो बस ललचाते हुए दूसरों को केक खाते देखा करते थे। इसका कारण यह था कि जिले में केक बनाए नहीं जाते थे, कुछ खास इलाके की गिनी-चुनी दुकानें में ही केक रखा जाता था, वह भी कोलकाता से यहां लाया जाता था। हालांकि तब तक हावड़ा जिले में न्यू हावड़ा बेकरी (बापुजी) ने केक बनाने शुरू कर दिए थे। यह 1973 का साल था, तब बहुत सीमित मात्रा में केक बनाए जाते थे। एक कीक की कीमत 20 पैसे हुआ करती थी, हालांकि तब बस का न्यूनतम भाड़ा इससे कम था और 18 पैसे का टिकट कटा कर लोग 18-20 किलोमीटर का सफर आसानी से करते थे। केक महंगा था और लोगों की जेब में उतने पैसे नहीं थे।
अब ऐसा नहीं है, एक तो बेकरी की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है दूसरे सभी केक बनाने में जुटे हुए हैं। गरीब और सामान्य लोगों के लिए नाश्ते के लिए सबसे अच्छा और सस्ता केक ही रह गया है। तीन रुपए का केक और डेढ़-दो रुपए की चाय के साथ पांच रुपए में नाश्ता हो जाता है। जिले के बने हुए केक स्कूलों में दोपहर के भोजन में भी छात्र-छात्राओं को दिए जाते हैं। इसके साथ ही 37 साल पहले शुरू हुई बापुजी कंपनी अब भी केक बनाने के काम में जुटी हुई है और 20 पैसे से शुरू हुआ केक महंगा होकर चार रुपए तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद बड़ी कंपनियों के मुकाबले में टिका हुआ है। सालों पहले की पैकेजिंग में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। पुराने दिनों की याद करते हुए गोविंद मिश्रा कहते हैं कि उन दिनों जिले के मुस्लिम बहुल इलाके में ही बेकरी हुआ करती थी। लेकिन सिर्फ पावरोटी और बिस्कुट बनाए जाते थे। बेकरियां भी बेलिलियस रोड, पीलखाना, लीचू बगान, आंदुल, ट्रामडिपो इलाके में हुआ करती थी। लेकिन उनका अपना-अपना इलाका था। बापुजी ने केक बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं, केक हर घर की चाहत ही नहीं लोगों के पसंद की चीज बन गया है। कोई किसी भी समुदाय का हो, स्कूल-कालेज की छुट्टयां होते ही सर्द मौसम में केक के साथ चाय या कॉफी का आनंद उठाने से नहीं चूकते। क्रिसमस के मौके पर महानगर कोलकाता समेत सभी जिलों में दुकानों अलग तरह से सजी हुई हैं।
मौड़ीग्राम स्टेशन के नजदीक एक दुकानदार रानू ने बताया कि क्रिसमस के मौके पर लोग केक के अलावा कुछ नहीं मांगते। इसलिए दस दिन पहले से ही केक की बिक्री शुरू हो गई थी, जैसे-जैसे 25 दिसंबर करीब आती जा रही है वैसे -वैसे बिक्री बढ़ती जा रही है। इसी तरह के विचार चूनाभाटी इलाके के दूसरे दुकानदार के हैं। दक्षिण हावड़ा हो या मध्य और उत्तर हावड़ा, ज्यादातर इलाकों में सांताक्लाज पांच रुपए से लेकर 50 रुपए तक बिक रहे हैं। चमकदार सितारे भी आठ रुपए से बीस रुपए तक बिक रहे हैं। जबकि बड़े तारे 50-60 रुपए कीमत के हैं। सबसे बड़ा सांताक्लाज 450 रुपए का है। बड़े दिन के मौके पर बिकने वाले केक में भी ज्यादा ग्राहक 40 रुपए से लेकर 70 रुपए तक की कीमत के हैं। हालांकि 170-250 रुपए तक के केक भी बिक रहे हैं लेकिन उनकी तादाद बहुत कम है। बड़े दिन की पूर्व संध्या पर केक दुकानों के घेरे से निकल कर बाहर सज गए हैं लेकिन कई लोगों को अब भी बचपन की याद सता रही है, जब केक एक सपना हुआ करता था।
Tuesday, December 20, 2011
नागरिक अधिकार पत्र
सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया जिसके कानून का रूप लेने के बाद हर प्राधिकरण और विभाग के लिए सिटीजन चार्टर (नागरिक अधिकार पत्र) का प्रकाशन और शिकायतों का 30 दिन के भीतर निपटारा अनिवार्य होगा। इसमें नाकाम रहने पर संबंधित अधिकारी को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। नागरिक माल और सेवाओं का समयबद्ध परिदान और शिकायत निवारण अधिकार विधेयक 2011 कार्मिक राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सदन में पेश किया। प्रत्येक विभाग के एक सिटीजन चार्टर का प्रकाशन अण्णा हजारे की एक प्रमुख मांग है। हालांकि वे इसे लोकपाल विधेयक के ही हिस्से के रूप में चाहते थे।
सरकार ने विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अलग से विधेयक पेश किया है और यह विधेयक इसका हिस्सा है। चार्टर में सरकारी अधिकारियों के लिए यह भी अनिवार्य किया गया है कि वे जनता से शिकायत मिलने के दो दिन के भीतर उसका संज्ञान लेंगे। विधेयक में प्रशासन में निचले स्तर के रिश्वत संबंधी मामलों को निपटाने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान किया गया है। यह कदम टीम अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की पृष्ठभूमि में उठाया गया है। यह विधेयक सभी योजनाओं और केंद्र सरकार के सभी विभागों को कवर करेगा और राज्यों को अपने यहां भी इसी प्रकार की प्रणाली को स्थापित करने के लिए एक मंच देगा। विधेयक में सभी मंत्रालयों के लिए 30 दिनों में लोगों की शिकायतों पर कार्रवाई करना जरूरी किया गया है। ऐसा करने में नाकाम रहने पर उच्च प्राधिकार के समक्ष शिकायत की जा सकती है। इस प्राधिकार को 30 दिनों के भीतर अपील पर सुनवाई करके इसका निपटारा करना होगा।
अगर समयसीमा के भीतर शिकायतों का निपटारा नहीं किया जाता है तब शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी पर जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित कानून के तहत हर सार्वजनिक प्राधिकार को केंद्र स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतकार्ता को इस बारे में की गई कारर्वाई की लिखित में जानकारी दिया जाए। अगर अधिकारी दोषी पाया जाता है तब उसे नागरिक को मुआवजा देना होगा। अगर शिकायतकर्ता फैसले से असंतुष्ट हो तब वह केंद्र और राज्य स्तर पर स्थापित लोक शिकायत निपटारा आयोग के समक्ष जा सकता है।
सरकार ने विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अलग से विधेयक पेश किया है और यह विधेयक इसका हिस्सा है। चार्टर में सरकारी अधिकारियों के लिए यह भी अनिवार्य किया गया है कि वे जनता से शिकायत मिलने के दो दिन के भीतर उसका संज्ञान लेंगे। विधेयक में प्रशासन में निचले स्तर के रिश्वत संबंधी मामलों को निपटाने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान किया गया है। यह कदम टीम अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की पृष्ठभूमि में उठाया गया है। यह विधेयक सभी योजनाओं और केंद्र सरकार के सभी विभागों को कवर करेगा और राज्यों को अपने यहां भी इसी प्रकार की प्रणाली को स्थापित करने के लिए एक मंच देगा। विधेयक में सभी मंत्रालयों के लिए 30 दिनों में लोगों की शिकायतों पर कार्रवाई करना जरूरी किया गया है। ऐसा करने में नाकाम रहने पर उच्च प्राधिकार के समक्ष शिकायत की जा सकती है। इस प्राधिकार को 30 दिनों के भीतर अपील पर सुनवाई करके इसका निपटारा करना होगा।
अगर समयसीमा के भीतर शिकायतों का निपटारा नहीं किया जाता है तब शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी पर जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित कानून के तहत हर सार्वजनिक प्राधिकार को केंद्र स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतकार्ता को इस बारे में की गई कारर्वाई की लिखित में जानकारी दिया जाए। अगर अधिकारी दोषी पाया जाता है तब उसे नागरिक को मुआवजा देना होगा। अगर शिकायतकर्ता फैसले से असंतुष्ट हो तब वह केंद्र और राज्य स्तर पर स्थापित लोक शिकायत निपटारा आयोग के समक्ष जा सकता है।
Sunday, December 18, 2011
हुगली नदी में कूद कर जान देने की प्रवृति बढ़ रही है
राज्य में आत्महत्या करने वालों की तादाद में लगातार बढ़ो त्तरी हो रही है। मानसिक तौर पर परेशान होकर लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं। हावड़ा पुल से हुगली नदी में कूद कर जान देने की प्रवृति बढ़ रही है। आत्महत्या करने वालों ने मेट्रो रेलवे के सामने कूद कर जान देने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसी तरह हावड़ा पुल आत्महत्या करने वालों का पसंद स्थल बनता जा रहा है। बीते तीन साल में कम से कम दस लोगों ने नदी में कूद कर आत्महत्या की है। इसमें ज्यादातर लोगों ने हावड़ा पुल से कूद कर जान दी है।
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक एक दिसंबर को हावड़ा मैदान की रहने वाली पूजा सिंह (22) ने हावड़ा पुल के चार नंबर खंबे के नजदीक से हुगली नदी में छलांग लगाई थी। रिवर ट्रैफिक पुलिस ने देर रात पुल से एक किलोमीटर दूर युवती की लाश बरामद की थी। मामले की जांच के बाद पुलिस को पता चला कि पति के साथ कलह के बाद उसने जाने देने का फैसला किया था।
हुगली नदी में कूद कर जान देने वालों में प्रसिद्ध गीतकार पुलक बंदोपाध्याय शामिल हैं। कर्ज दबे होनेके कारण अगस्त महीने में एक व्यापारी ने आत्महत्या का प्रयास किया था। 18 अगस्त को हावड़ा पुल पर अपनी कार खड़ी करने के बाद व्यापारी ने नदी में छलांग लगा दी थी। हालांकि बाद में पुलिस ने उन्हें जीवित पानी से निकाल लिया था। इससे तीन महीने पहले घुसुड़ी में एक महिला ने अपनी बच्ची को नदी में फेंक दिया था। मालूम हो कि मनोवैज्ञानिक आत्महत्या के कई कारण मानते हैं। इनमें मानसिक तौर पर परेशान, अकेलेपन से दुखी, प्रेम में असफल रहने वाले, शादी नहीं होने के कारण, नौकरी नहीं मिलने के गम में तो लोग आत्महत्या करते ही हैं लेकिनकुछ लोग महज इसलिए अपनी जान दे देते हैं कि उनकी ख्वाहिशें अधूरी रह गई थी।
हावड़ा पुल पर पर्याप्त संख्या में सुरक्षा कर्मचारियों का नहीं रहना, रेलिंग का नीचे रहना आत्महत्या करने वालों के लिए जान देने का आसान रास्ता बनता जा रहा है। हालांकि मानसिक तौर पर परेशान लोग ही ऐसा करते हैं, जिनका मनोबल टूट चुका होता है। दो साल पहले बाबूघाट से हावड़ा आते हुए लांच से कूद कर एक दैनिक पत्रिका के संपादक चंदन चक्रवर्ती ने आत्महत्या की थी। उनकी मौत काकारण तो पता नहीं चल सका लेकिन माना जाता है कि अकेलेपन के कारण मानसिक परेशानी में उनका मनोबल रसातल में चला गया था, जिससे उन्होंने आत्महत्या कर ली। उन्होंने शादी नहीं की थी। माना जा रहा है कि इससे ही वे परेशान रहने लगे थे। हालांकि मनोचिकित्सक मानते हैं कि अविवाहित रहना ही उनकी मौत का कारण था जबकि धार्मिक लोगों का मानना है कि गंगा मां ने उन्हें अपनी शरण में ले लिया।
पुलिस वालों का मानना है कि असावधानी में हर साल कई लोग पानी में डूब जाते हैं। तैरना नहीं जानने के कारण ज्यादातर लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं। इसी साल 28 अक्तूबर को हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट में प्रतिमा विसर्जन के दौरान ज्वार में एक युवक डूब गया था। बाली, घुसुड़ी, शिवपुर, नाजिरगंज में नदी की गहराई ज्यादा होने के कारण इस तरह से लोगों के डूबने की घटनाएं होती रहती हैं। पुलिस सूत्रों का कहना है कि विद्यासागर सेतु (दूसरे हुगली पुल) पर फुटपाथ पर लोगों के चलने पर पाबंदी लगाई हुई है, इसलिए ज्यादातर हावड़ा पुल और बाली पुल को आत्महत्या का जरिया बना लिया जाता है। पिछले साल अहिरीटोला से बांधाघाट जाते समय एक व्यक्ति ने आधे रास्ते जाकरलांच से छलांग लगा दी थी। लांच के कर्मचारियों ने साथ-साथ कूद कर उसे बचा लिया था। हालांकि लांच कर्मचारियों का कहना है कि हुगली नदी का बहाव इतना ज्यादा होता है कि किसी के कूदने पर उसे बचा पाना ज्यादातर मामलों में सं•ाव नहीं होता।
हावड़ा पुल से लोगों के कूदने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नित्ययात्रियों का कहना है कि पुल की रेलिंग लांघ कर नीचे कूदना बहुत ही आसान है। हावड़ा के बंकिम सेतु की तरह रेलिंग के दोनों ओर ऊंची तार का जाल बिछा दिया जाए तो लोगों लोगों को जान देने से रोका जा सकता है। इसके साथ ही पुल पर पुलिस की चौकसी बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
मालूम हो कि हावड़ा पुुल के दोनों ओर कई तरह की दुकाने लगती हैं। जहां सब्जी-तरकारी से लेकर बहुत कुछ बेचा-खरीदा जाता है। पुलिस का कहना है कि हजारों लोगों में कोई अचानक रेलिंग लांघ कर पानी में कूद जाए तो उस पर नजर रखना सं•ाव नहीं है। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी व्यक्ति के पानी में कूदने पर वहतुरंत लोगों की नजरों में चढ़ जाता है। कुछ ही पल में इस बारे में पुलिस को सूचित किया जाता है। लेकिन पुलिस वाले अपनी कार्रवाई करने में इतनी देरी कर देते हैं कि तब तक व्यक्ति की मौत हो जाती है। रिवर पुलिस के मुताबिक सूरज डूबने के मौके पर ही इस तरह कीघटनाएं होती हैं। अंधेरे के कारण खोज-बीन में समस्या होती है।
मनोवैज्ञानिक कनिका मित्र का कहना है कि हावड़ा पुल तक लोग आसानी से पहुंच जाते हैं, इसलिए वहां से कूद कर आत्महत्या का प्रयास करते हैं। देवाशीष राय का कहना है कि सानफ्रांसिस्को का गोल्डेन गेट ब्रीज आत्महत्याओं के लिए बदनाम है। दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं वहां होती हैं।
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक एक दिसंबर को हावड़ा मैदान की रहने वाली पूजा सिंह (22) ने हावड़ा पुल के चार नंबर खंबे के नजदीक से हुगली नदी में छलांग लगाई थी। रिवर ट्रैफिक पुलिस ने देर रात पुल से एक किलोमीटर दूर युवती की लाश बरामद की थी। मामले की जांच के बाद पुलिस को पता चला कि पति के साथ कलह के बाद उसने जाने देने का फैसला किया था।
हुगली नदी में कूद कर जान देने वालों में प्रसिद्ध गीतकार पुलक बंदोपाध्याय शामिल हैं। कर्ज दबे होनेके कारण अगस्त महीने में एक व्यापारी ने आत्महत्या का प्रयास किया था। 18 अगस्त को हावड़ा पुल पर अपनी कार खड़ी करने के बाद व्यापारी ने नदी में छलांग लगा दी थी। हालांकि बाद में पुलिस ने उन्हें जीवित पानी से निकाल लिया था। इससे तीन महीने पहले घुसुड़ी में एक महिला ने अपनी बच्ची को नदी में फेंक दिया था। मालूम हो कि मनोवैज्ञानिक आत्महत्या के कई कारण मानते हैं। इनमें मानसिक तौर पर परेशान, अकेलेपन से दुखी, प्रेम में असफल रहने वाले, शादी नहीं होने के कारण, नौकरी नहीं मिलने के गम में तो लोग आत्महत्या करते ही हैं लेकिनकुछ लोग महज इसलिए अपनी जान दे देते हैं कि उनकी ख्वाहिशें अधूरी रह गई थी।
हावड़ा पुल पर पर्याप्त संख्या में सुरक्षा कर्मचारियों का नहीं रहना, रेलिंग का नीचे रहना आत्महत्या करने वालों के लिए जान देने का आसान रास्ता बनता जा रहा है। हालांकि मानसिक तौर पर परेशान लोग ही ऐसा करते हैं, जिनका मनोबल टूट चुका होता है। दो साल पहले बाबूघाट से हावड़ा आते हुए लांच से कूद कर एक दैनिक पत्रिका के संपादक चंदन चक्रवर्ती ने आत्महत्या की थी। उनकी मौत काकारण तो पता नहीं चल सका लेकिन माना जाता है कि अकेलेपन के कारण मानसिक परेशानी में उनका मनोबल रसातल में चला गया था, जिससे उन्होंने आत्महत्या कर ली। उन्होंने शादी नहीं की थी। माना जा रहा है कि इससे ही वे परेशान रहने लगे थे। हालांकि मनोचिकित्सक मानते हैं कि अविवाहित रहना ही उनकी मौत का कारण था जबकि धार्मिक लोगों का मानना है कि गंगा मां ने उन्हें अपनी शरण में ले लिया।
पुलिस वालों का मानना है कि असावधानी में हर साल कई लोग पानी में डूब जाते हैं। तैरना नहीं जानने के कारण ज्यादातर लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं। इसी साल 28 अक्तूबर को हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट में प्रतिमा विसर्जन के दौरान ज्वार में एक युवक डूब गया था। बाली, घुसुड़ी, शिवपुर, नाजिरगंज में नदी की गहराई ज्यादा होने के कारण इस तरह से लोगों के डूबने की घटनाएं होती रहती हैं। पुलिस सूत्रों का कहना है कि विद्यासागर सेतु (दूसरे हुगली पुल) पर फुटपाथ पर लोगों के चलने पर पाबंदी लगाई हुई है, इसलिए ज्यादातर हावड़ा पुल और बाली पुल को आत्महत्या का जरिया बना लिया जाता है। पिछले साल अहिरीटोला से बांधाघाट जाते समय एक व्यक्ति ने आधे रास्ते जाकरलांच से छलांग लगा दी थी। लांच के कर्मचारियों ने साथ-साथ कूद कर उसे बचा लिया था। हालांकि लांच कर्मचारियों का कहना है कि हुगली नदी का बहाव इतना ज्यादा होता है कि किसी के कूदने पर उसे बचा पाना ज्यादातर मामलों में सं•ाव नहीं होता।
हावड़ा पुल से लोगों के कूदने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नित्ययात्रियों का कहना है कि पुल की रेलिंग लांघ कर नीचे कूदना बहुत ही आसान है। हावड़ा के बंकिम सेतु की तरह रेलिंग के दोनों ओर ऊंची तार का जाल बिछा दिया जाए तो लोगों लोगों को जान देने से रोका जा सकता है। इसके साथ ही पुल पर पुलिस की चौकसी बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
मालूम हो कि हावड़ा पुुल के दोनों ओर कई तरह की दुकाने लगती हैं। जहां सब्जी-तरकारी से लेकर बहुत कुछ बेचा-खरीदा जाता है। पुलिस का कहना है कि हजारों लोगों में कोई अचानक रेलिंग लांघ कर पानी में कूद जाए तो उस पर नजर रखना सं•ाव नहीं है। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी व्यक्ति के पानी में कूदने पर वहतुरंत लोगों की नजरों में चढ़ जाता है। कुछ ही पल में इस बारे में पुलिस को सूचित किया जाता है। लेकिन पुलिस वाले अपनी कार्रवाई करने में इतनी देरी कर देते हैं कि तब तक व्यक्ति की मौत हो जाती है। रिवर पुलिस के मुताबिक सूरज डूबने के मौके पर ही इस तरह कीघटनाएं होती हैं। अंधेरे के कारण खोज-बीन में समस्या होती है।
मनोवैज्ञानिक कनिका मित्र का कहना है कि हावड़ा पुल तक लोग आसानी से पहुंच जाते हैं, इसलिए वहां से कूद कर आत्महत्या का प्रयास करते हैं। देवाशीष राय का कहना है कि सानफ्रांसिस्को का गोल्डेन गेट ब्रीज आत्महत्याओं के लिए बदनाम है। दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं वहां होती हैं।
Thursday, December 15, 2011
आठ महीनों में 77 करोड़ से ज्यादा लोगों ने रेलवे में सफर किया
पूर्व रेलवे में बीते आठ महीने में 77 करोड़ से ज्यादा लोगों ने रेलवे में सफर किया है। बीते साल के मुकाबले इस साल लगभग चार करोड़ ज्यादा लोगों ने रेलवे में सफर किया। रेलवे की ओर से गुरुवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि अप्रैल से नवंबर 2011 के बीच कुल मिलाकर 77.69 करोड़ लोगों ने रेलवे में सफर किया है। जबकि बीते साल के इन महीनों में 73.75 करोड़ लोगों ने यातायात किया था। इसमें उपनगरीय रेलगाड़ियों के यात्रियों की संख्या 65.60 करोड़ और लंबी दूरी के यात्रियों की संख्या 12.09 करोड़ थी।
पूर्व रेलवे सूत्रों ने बताया कि इससे रेलवे की आमदनी में भी वृद्धि हुई है। इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान 1030.18 करोड़ रुपए की आय हुई। बीते साल के आठ महीनों के मुकाबले यह आठ फीसद से ज्यादा है।
रेलवे में माल ढुलाई में भी बीते साल के पहले आठ महीनों के मुकाबले वृद्धि हुई है। 35.671 मिलियन टन माल की ढुलाई की गई। पिछले सालों की तरह इस साल भी सबसे ज्यादा कोयले की ढुलाई की गई। इस दौरान 23.145 मिलियन टन कोयले की ढुलाईकी गई।
पहले आठ महीनों में यात्रियों और माल की ढुलाई से पूर्व रेलवेको 3478.90 करोड़ रुपए की आय हुई है, बीते साल इस दौरान 3160.67 करोड़ रुपए की आय हुई थी।
पूर्व रेलवे सूत्रों ने बताया कि इससे रेलवे की आमदनी में भी वृद्धि हुई है। इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान 1030.18 करोड़ रुपए की आय हुई। बीते साल के आठ महीनों के मुकाबले यह आठ फीसद से ज्यादा है।
रेलवे में माल ढुलाई में भी बीते साल के पहले आठ महीनों के मुकाबले वृद्धि हुई है। 35.671 मिलियन टन माल की ढुलाई की गई। पिछले सालों की तरह इस साल भी सबसे ज्यादा कोयले की ढुलाई की गई। इस दौरान 23.145 मिलियन टन कोयले की ढुलाईकी गई।
पहले आठ महीनों में यात्रियों और माल की ढुलाई से पूर्व रेलवेको 3478.90 करोड़ रुपए की आय हुई है, बीते साल इस दौरान 3160.67 करोड़ रुपए की आय हुई थी।
Sunday, December 11, 2011
जब एक डाक्टर ने किया 83 लोगों का पोस्टमार्टम
एक डाक्टर ने भूख-प्यास तजकर लगातार 13 घंटे 20 मिनट की अनथक मेहनत करके 83 लोगों को पोस्टमार्टम किया। यह घटना नौ दिसंबर की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एसएसकेएम के शवगृह के बाहर आमरी अग्निकांड में दम घुटने से मरे लोगों के परिवार वालों से माइक हाथ में थामे नाराज लोगों को शांत करने के साथ ही कह रही थी कि चिंता मत करें , आपके रिश्तेदारों का शव जल्द ही आपको सौंपा जा रहा है।
दूसरी ओर डाक्टर विश्वनाथ काहली भीतर पोस्टमार्टम करने में व्यस्त थे। उस दिन को याद करते हुए वे बताते हैं कि सुबह सवा छह बजे सुबह की सैर (मार्निंग वाक) के दौरान अचानक फोन मिला कि इमरजंसी है। तकरीबन छह बजे एसएसकेएम अस्पताल पहुंचने पर देखा कि चार टेबल पर चार लाशें पड़ी हैं। अपने चार सहायकों के साथ पोस्टमार्टम करने में जुट गए। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ और एक के बाद दूसरी लाश वहां पहुंचने लगी और वे बगैर कुछ खाए -पिए अपने काम में जी-जान से जुटे रहे। सुबह नौ बजकर 40 मिनट से शुरू हुआ काम आखिर रात ग्यारह बजे थमा तो उन्होंने राहत की सांस ली कि आखिर अपने काम में सफल रहे ।
दुखद शुक्रवार को याद करते हुए वे कहते हैं कि लाशों के तौर पर मेज पर पड़े सभी लोगों को देख कर ऐसे लग रहा था कि वे लोग सो रहे हैं। किसी के चेहरे पर भी शिकन नहीं थी। ज्यादातर लोगों की मौत दम घुटने के कारण हुई थी। उनके चेहरे पर कार्बन के धुँए के कारण जरुर कालिख सी लगी हुई थी। मरने वाली लगभग सभी मरीज थे। उनके हाथ-पैर में प्लास्टर लगा हुआ था। कई लोगों के सलाईन के पाइप भी लगे थे। आग के बाद फैले धुंए से बचने में नाकाम रहने के कारण ही उनकी मौत हुई थी। दो किशोर नर्स लड़कियों की लाश भी 83 लोगों में शामिल थी। उन्होंने अस्पताल की वर्दी पहनी हुई थी।
हालांकि उनका कहना है कि एक साथ इतने लोगों का पोस्टमार्टम करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इससे पहले 1988 में उत्तर चौबीस परगना जिले के बैरकपुर शवगृह में इससे भी बड़े हादसे में मरने वालों के शव का पोस्टमार्टम किया गया था। दो बसों एक साथ जलाशय में जा गिरी थी और 130 लोगों की मौत हो गई थी, उन सभी लोगों का पोस्टमार्टम काहली ने ही किया था। डाक्टरी की पढ़ाई के दौरान मास डिजास्टर की शिक्षा से यह फायदा मिला कि शव देखकर मन ज्यादा व्यथित नहीं होता। शुक्रवार भी रात दो बजे घर पहुंचने के बाद दो बार स्नान किया और फिर पहले की तरह तरोताजा होकर सो गया।
Friday, December 9, 2011
ममता भी लगी अल्पसंख्यकों को लुभाने के खेल में
ममता बनर्जी सरकार और अधिक 32 समुदाय ओबीसी श्रेणी में शामिल करने जा रही है। इनमें 29 संगठन मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं। हालांकि चुनाव से पहले ममता बनर्जी की ओर से इसका विरोध किया गया था।
इसके साथ ही राज्य ओबीसी संगठन की ओर से 12 संगठनों को ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश की गई है। यह सभी मुस्लिम संगठन हैं। वाममोर्चा सरकार ने ओबीसी सूची में पिछड़े और अधिक पिछड़े दो भागों में बांटा था। इसके तहत पिछड़ों के लिएसात और अधिक पिछड़ों के लिए दस फीसद आरक्षण का एलान किया गया था। आर्थिक, सामाजिक और शिक्षण के तौर पर पीछे रहने वाले अल्पसंख्यकों और ओबीसी सूची के लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण देने का फैसला किया गया था। यह सितंबर 2010 से लागू हुआ था। मुख्यमंत्री ने इस बारे में नया बिल लाने का एलान किया था लेकिन पुराने बिल के मुताबिक ही ओबीसी सूची में शामिल किए जाने का काम चल रहा है।
राज्य के अल्पसंख्यक विभाग के सूत्रों ने बताया कि फरवरी 2010 के फरवरी महीने में ओबीसी सूची में कुल मिलाकर 66 संप्रदाय शामिल थे। इनमें 12 मुस्लिम संप्रदाय थे। 2001 की जनगणना के मुताबिक राज्य में मुसलमान समुदाय की कुल आबादी दो करोड़ दो लाख थी। अब 86 फीसद लोग ही पिछड़े लोगों की सूची में शामिल हैं। राज्य की ओबीसी सूची में 108 संप्रदाय के तीन करोड़ 15 लाख से ज्यादा लोग शामिल हैं। इनमें 53 मुस्लिम संगठन हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में 7.2 फीसदी मुसलमान सरकारी नौकरी में हैं जबकि रेलवे में यह संख्या 4.5 फीसद है। दूसरी ओर राज्य में सरकारी नौकरी में 4.7 फीसद मुसलमान काम कर रहे थे।
Thursday, December 8, 2011
ममता सरकार के निर्देश से पुलिस वाले परेशान
ममता सरकार के निर्देश से राज्य के पुलिस वाले पुलिस वाले परेशान हैं। पुलिस फायरिंग में मगराहाट में एक छात्रा समेत तो महिलाओं की मौत के बाद राज्य सरकार ने पुलिस पर अंकुश लगाने का फैसला किया है। इसके तहत पुलिस वाले बंदूक के बजाए लाठी लेकर चलेंगे और गोलियां चलाने की जरुरत हो तो रबड़ की गोलियां चलाएंगे।
गुस्साए लोगों को संभालने के लिए पुलिस वालों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस बारे में पुलिस महानिदेशक(डीजी) का निर्देश सभी जिलों में पहुंच गया है। लेकिन स्टैंडर्ड आपरेटिव प्रोसीड्यूर (एसओपी) से समस्या घटने के बजाए बढ़ गई है। मालूम हो कि निर्देश में कहा गया है कि गुस्साए लोगों की समूह को पहले समझाएं बात नहीं बने तो लाठीचार्ज करें। इससे भी फायदा नहीं हो तो अश्रू गैस के गोले छोड़ने के बाद भी फायदा नहीं हो तो उच्चाधिकारियों से मंजूरी लेकर फायरिंग करें। लेकिन गोलियां प्लास्टिक या रबड़ की चलानी होगी। समस्या यह है कि किसी जगह बंदूक है तो गोली नहीं, गोली है तो बंदूक नहीं। कई जगह दोनों नहीं है। इसके साथ ही प्रशिक्षित पुलिस कर्मचारी भी नहीं है।
राज्य पुलिस के महानिदेशक नपराजित मुखर्जी का निर्देश खास तौर पर पुलिस वालों के लिए है। इसके तहत पुलिस वाले जन आक्रोश दबाने के लिए गोलियां तो चलाएं लेकिन इसमें किसीव्यक्ति की जान नहीं जाए, इस पर जोर दिया गया है। इसलिए निर्देश में कहा गया है कि कानून व्यवस्था संभालनी हो या बिजली की चोरी करने वालों के खिलाफ कुछ करना हो, पुलिस वाले रबड़ की गोलियां, प्लास्टिक की गोलियां अभियान के दौरान साथ रखें। हालांकि राज्य के ज्यादातर पुलिस थाने में काम करने वालों ने ऐसी गोलियों के बारे में कम ही सुना है। यह गोलियां किस बंदूक में डाल कर चलाईजाती हैं, इसका भी लोगों को कम ही पता है। इसलिए यह निर्देश कहां तक सफल होगा, कहा नहीं जा सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि पुलिस थाने दो दूर की बात है कई जगह जिला पुलिस मुख्यालय में भी रबड़ या प्लास्टिक की गोलियों का इंतजाम नहीं है। मालूम हो कि रबड़ की गोलियां अश्रु गैस के गोले छोड़ने वाली बंदूक गैस गन से चलाई जाती हैं। जबकि प्लास्टिक की गोलियां 303 राईफल से चलती हैं। कई थाना कर्मचारियों का कहना है कि बंदूक तो है लेकिन गोलियां नहीं हैं। जबकि प्लास्टिक प्लेट चलाने वाली बंदूक तो ज्यादातर पुलिस वालों ने शायद ही कभी देखी हो।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि मुर्शिदाबाद जिले के शमशेरगंज, हरिहरपाड़ा और भगवानगोला में कुल मिलाकर एक-एक गैस गन और रबड़ की पांच-पांच गोलियां हैं। पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम और खेजुरी थाने में रबड़ की गोलियां मौजूद हैं लेकिन जिले के दूसरे थानों में गोलियां नहीं दी गई हैं। वीरभूम जिला पुलिस के पास गिनी चुनी बंदूके और गोलियां हैं। हावड़ा जिले के ग्रामीण इलाके में ग्यारह पुलिस थानों में डोमजूड़, बागनान और उलबेड़िया में ही एक-एकगैस गन हैं जबकि दूसरे सभी आठ थानों में दो गैस गन ही हैंं। उत्तर बंगाल के ज्यादातर थानों में रबड़ की गोलियां नहीं हैं। जहां 25-50 गोलियां हैं वहां इसे चलानेके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं। जिले में कुल मिलाकर 100 से भी कम गोलियां हैं। इसलिए कई जगह कानून तोड़ो अभियान चलने पर पुलिस के लिए भारी मुश्किल होगी।
हालांकि इस बीच पुलिस महानिदेशक के निर्देश के बाद आटोमैटिक हथियार पुलिस कंट्रोल रुम में जमा करवाए जा रहे हैं। कांस्टेबलों को राइफल के बजाए लाठी थमा कर ड्यूटी पर भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं दक्षिण बंगाल के एक जिले के पुलिस अधिकारी का कहना है कि बैंक से रुपए लाने के लिए जाने वाले पुलिस कर्मचारी भी बंदूक के बजाए लाठी लेकर जा रहे हैं।
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि आग्नेयास्त्र का व्यवहार कम से कम किया जाए। लेकिन पुलिस वाले गुस्साए लोगों के सामने खाली हाथ जाएंगे तो मार खाकर लौटना पड़ेगा। पुलिस वाले बंदूक हाथ में लेकर गोलियां ही नहीं चलाते कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए लोगों को डराना भी आवश्यक है।
Wednesday, December 7, 2011
बस में बेटिकट सफर करने वालों को देना होगा जुर्माना
रेलवे की तरह सरकारी बस में बेटिकट सफर करने वाले यात्रियों को अब जुर्माना देना होगा। मां,माटी, मानुष की नई राज्य सरकार इस नियम को सख्ती से लागू करने जा रही है। हावड़ा से धर्मतला के बीच चलने वाली रूट नंबर 24 बस को चलाने में एक किलोमीटर कुल मिलाकर 26 रुपए से ज्यादा का खर्च होता है। जबकि आय महज 19 रुपए होती है। ऐसा नहीं है कि कलक त्ता ट्रांसपोर्ट परिवहन निगम (सीएसटीस) के बस रूट घाटे में चलते हैं। हावड़ा से सियालदह के बीच रुट नंबर ग्यारह का खर्च 20 रुपए से ज्यादा है तो आमदन 34 रुपए से ज्यादा है। हावड़ा व यादवपुर के बीच चलने वाले ईचार नंबर रूट का खर्च 25 रुपए से कुछ ज्यादा तो आय 43 रुपए से ज्यादा है। इसी तरह हावड़ा-पर्णश्री रूट में चलने वाली एस 37ए का खर्च 30 रुपए तो आय 36 रुपए से ज्यादा है। इसमें पैसे कुछ इधर-उधर हैं । लेकिन यह सही तस्वीर नहीं है।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सीएसटीसी के 65 रुट में 48 रुट घाटे पर चलते हैं। इनमें 31 रुट ऐसे हैं कि खर्च की तुलना में आय सामान्य ज्यादा है। लेकिन लाbhजनक रुट महज ग्यारह ही हैं। छह रुट ऐसे हैं जहां न फायदा न नुकसान हो रहा है। बाघबाजार -गरिया के बीच रुट नंबर 21 चलानेके लिए राज्य सरकार को प्रति किलोमीटर 26 रुपए 28 पैसे खर्च करने पड़ते हैं जबकि वापस सिर्फ 16 रुपए 75 पैसे ही आते हैं। जबकि विमानबंदर-गरिया के एक रूट में 30 रुपए खर्च के बदले महज 15 रुपए चार पैसे ही मिलते हैं।
सूत्रों से पता चला है कि कुल मिलाकर प्रतिदिन सीएसटीसी की 450 बसें चलती हैं इनमें महानगर और आसपास के रुट में 360 बसें चलती हैं। इनमें इतना खर्च हो रहा है कि राज्य परिवहन वि•ााग सकते में है। मालूम हो कि लग•ाग 13 करोड़ रुपए तो कर्मचारियों को वेतन देनेके लिए निकल जाते हैं। साढ़े तीन करोड़ रुपए डीजल खरीदने में खर्च होते हैं। जबकि टिकट बिक्री से लग•ाग पांच करोड़ रुपए की आमदनी होती है। सूत्रों का कहना है कि किसी बस के खराब होने पर उसकी मरम्मत करवाना एक समस्या हो जाता है।
सीएसटीसी के अध्यक्ष maante हैं कि बस रुट में घाटा हो रहा है। लेकिन उनका कहना है कि एक बार में ऐसे रुट से बसें बंद करना संbhव नहीं है क्योंकि सरकार की लोगों के प्रति जिम्मेवारी है। हालांकि उनका कहना है कि घाटे वाले रुट की बसे कुछ कम करने फायदे वाले रुट में चलाने की योजना जरुर है। सूत्रों से पता चला है कि निगम घाटे से उबरने के लिए कई प्रयास कर रहाहै। इसके तहत सबसे ज्यादा जोर टिकट बेच कर आय बढ़ाने पर दिया जा रहा है। इसके तहत बस स्टैंड से बस चलने से पहले ही यात्रियों से टिकट लेने पर सहमति प्रकट की गई है। जिससे चलती बस में टिकट काटने की ज्यादा समस्या नहीं हो।
इसके अलावा बस स्टाप पर बस से उतरने वाले यात्रियों से टिकट मांगने के लिए पर्यवेक्षकों को और ज्यादा सक्रिय किया जाएगा। हावड़ा बस स्टैंड पर ऐसी व्यवस्था है लेकिन कितने बेटिकट लोगों को पकड़ा गया होगा, इसका हिसाब नहीं है। सीएसटीसी की ओर से अब रेलवेकी तरह ही बेटिकट यात्रियों से जुर्माना वसूलने का काम शुरू किया जाएगा। एक अधिकारी के मुताबिक हाल तक जुर्माना वसूलनेकी व्यवस्था होने के बावजूद ऐसा नहीं किया जाता था। लेकिन अब जुर्माना वसूल किया जाएगा। मालूम हो कि जहां कुछ कंडक्टर बस यात्री से तय किराए से कम पैसे लेकर टिकट नहीं देते तो कुछ कंडक्टर पचास-सौ रुपए का खुदरा देने से बचने के लिए टिकट ही नहीं काटते। इससे निगम को घाटा होता है लेकिन कंडक्टर की सेहत पर असर नहीं पड़ता, जबकि प्राइवेट बस कंडक्टर चार रुपए के टिकट के लिए एक सौ रुपए का खुदरा आसानी से कर देता है।
इसके साथ ही ओवरटाइम और इंसेटिव पर अंकुश लगाने पर विचार किया जा रहा है। इन दोनो खातों में हर महीने निगम को 65 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हं। इसे आगामी कुछ महीनों में 40 लाख रुपए कम करके 25 लाख करने की योजना है। इसके लिए बस रुट में परिवर्तन किया जाएगा, जिससे कोलकाता-दीघा जैसे रुट में कर्मचारियों से आठ घंटे से कम काम लिया जा सके और ओवरटाइम नहीं देना पड़े। इसके साथ ही कई रुटों पर तय मात्रा से ज्यादा टिकटों की बिक्री पर दिए जाने वाले इंसेंटिव पर कांट-छांट किए जाने की योजना है।
शराब बेच कर कमाई की योजना नाकाम
तृणमूल कांग्रेस सरकार की ओर से शराब की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि करके राजस्व वसूली का रिकार्ड कायम करने की योजना बनाई थी जिससे विधायकों और मंत्रियों की वेतन वृद्धि आसानी से की जा सके। हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि इससे सरकार को कोई खास फायदा होने वाला है। इसके साथ ही दूध की कीमतों में भी भारी वृद्धि की गई है। शराब की बिक्री घटने के साथ ही सरकारी दूध की बिक्री भी पहले की तुलना में बढ़ नहीं रही है। इससे सरकारी योजना अधर में दिख रही है।
गौरतलब है कि राज्य में सबसे ज्यादा देशी-विदेशी शराब की बिक्री दुर्गापूजा के महीने में होती है। बीते साल अक्तूबर महीने में देशी शराब की 67 लाख पांच हजार लीटर शराब की बिक्री हुई थी। जबकि अक्तूबर 2011 में बिक्री बढ़ने के बजाए 0.7 फीसद घट गई है। इस साल 66 लाख 55 हजार लीटर देशी शराब ही बिक सकी। आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी शराब बीते साल पूजा के महीने में 87 लाख 70 हजार लीटर बिकी थी, लेकिन इस साल महज 72 लाख छह हजार लीटर शराब ही बिक सकी है। इस तरह 17.8 फीसद बिक्री घट गई है। हालांकि कीमतों में भारी वृद्धि के कारण राजस्व 155 करोड़ 25 लाख रुपए से बढ़कर 162 करोड़ 54 लाख रुपए हुआ है। यह वृद्धि 4.7 फीसद है जबकि सरकार की ओर से 32 फीसद आय बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। नवंबर महीने में तो बिक्री की हालत और भी खराब रही है। माना जा रहा है कि इससे राजस्व में घाटा होगा, जिससे सरकारी लक्ष्य हासिल करना टेढ़ी खीर हो सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि छह महीने पुरानी सरकार खर्चो से परेशान है इसलिए राजस्व बढ़ाने के मद्देनजर पूजा से पहले राज्य सरकार ने कीमतें बढ़ाने का एलान किया था। बीते कुछ महीने के दौरान 750 मिली लीटर की बोतल पर लगभग एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे राजस्व की कमी महानगर कोलकाता ही नहीं दूसरे जिलों में भी दर्ज की गई है। आबकारी विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक अक्तूबर महीने में जलपाईगुड़ी में विदेशी शराब की बिक्री 1.4 फीसद बढ़ी। इससे लोगों ने विदेशी शराब पीना छोड़ कर देशी शराब पीना शुरू कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हुगली में 22.7 फीसद, हावड़ा में 39 फीसद, नदिया में 71 फीसद, पूर्व मेदिनीपुर में 80.8 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले में 29.1 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ी है।
हालांकि आबकारी विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि सरकार कीमतों में वृद्धि करके राजस्व बढ़ाने के बजाय लोगों को शराब से दूर करना चाहती है। सरकार की नीति का नतीजा देखा जा रहा कि शराब की बिक्री घट रही है। लेकिन दूध की कीमतें बढ़ाने के पीछे क्या उद््देश्य है, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं। लेकिन सरकार इस मोर्चे में भी नाकाम रही है, इसका पता इससे चलता है कि महंगी शराब की बिक्री घटने के साथ ही देशी और अवैध शराब (चुल्लू) की बिक्री में भारी वृद्धि देखी गई है। पूर्व मेदिनीपुर जिले में लगभग 81 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ने से यह बात पता चलती है कि अवैध शराब का प्रचलन बढ़ने से कभी भी कोई बढ़ा हादसा हो सकता है।
शराब बेच कर कमाई की योजना नाकाम
तृणमूल कांग्रेस सरकार की ओर से शराब की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि करके राजस्व वसूली का रिकार्ड कायम करने की योजना बनाई थी जिससे विधायकों और मंत्रियों की वेतन वृद्धि आसानी से की जा सके। हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि इससे सरकार को कोई खास फायदा होने वाला है। इसके साथ ही दूध की कीमतों में भी भारी वृद्धि की गई है। शराब की बिक्री घटने के साथ ही सरकारी दूध की बिक्री भी पहले की तुलना में बढ़ नहीं रही है। इससे सरकारी योजना अधर में दिख रही है।
गौरतलब है कि राज्य में सबसे ज्यादा देशी-विदेशी शराब की बिक्री दुर्गापूजा के महीने में होती है। बीते साल अक्तूबर महीने में देशी शराब की 67 लाख पांच हजार लीटर शराब की बिक्री हुई थी। जबकि अक्तूबर 2011 में बिक्री बढ़ने के बजाए 0.7 फीसद घट गई है। इस साल 66 लाख 55 हजार लीटर देशी शराब ही बिक सकी। आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी शराब बीते साल पूजा के महीने में 87 लाख 70 हजार लीटर बिकी थी, लेकिन इस साल महज 72 लाख छह हजार लीटर शराब ही बिक सकी है। इस तरह 17.8 फीसद बिक्री घट गई है। हालांकि कीमतों में भारी वृद्धि के कारण राजस्व 155 करोड़ 25 लाख रुपए से बढ़कर 162 करोड़ 54 लाख रुपए हुआ है। यह वृद्धि 4.7 फीसद है जबकि सरकार की ओर से 32 फीसद आय बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। नवंबर महीने में तो बिक्री की हालत और भी खराब रही है। माना जा रहा है कि इससे राजस्व में घाटा होगा, जिससे सरकारी लक्ष्य हासिल करना टेढ़ी खीर हो सकता है।
सूत्रों से पता चला है कि छह महीने पुरानी सरकार खर्चो से परेशान है इसलिए राजस्व बढ़ाने के मद्देनजर पूजा से पहले राज्य सरकार ने कीमतें बढ़ाने का एलान किया था। बीते कुछ महीने के दौरान 750 मिली लीटर की बोतल पर लगभग एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे राजस्व की कमी महानगर कोलकाता ही नहीं दूसरे जिलों में भी दर्ज की गई है। आबकारी विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक अक्तूबर महीने में जलपाईगुड़ी में विदेशी शराब की बिक्री 1.4 फीसद बढ़ी। इससे लोगों ने विदेशी शराब पीना छोड़ कर देशी शराब पीना शुरू कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हुगली में 22.7 फीसद, हावड़ा में 39 फीसद, नदिया में 71 फीसद, पूर्व मेदिनीपुर में 80.8 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले में 29.1 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ी है।
हालांकि आबकारी विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि सरकार कीमतों में वृद्धि करके राजस्व बढ़ाने के बजाय लोगों को शराब से दूर करना चाहती है। सरकार की नीति का नतीजा देखा जा रहा कि शराब की बिक्री घट रही है। लेकिन दूध की कीमतें बढ़ाने के पीछे क्या उद््देश्य है, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं। लेकिन सरकार इस मोर्चे में भी नाकाम रही है, इसका पता इससे चलता है कि महंगी शराब की बिक्री घटने के साथ ही देशी और अवैध शराब (चुल्लू) की बिक्री में भारी वृद्धि देखी गई है। पूर्व मेदिनीपुर जिले में लगभग 81 फीसद देशी शराब की बिक्री बढ़ने से यह बात पता चलती है कि अवैध शराब का प्रचलन बढ़ने से कभी भी कोई बढ़ा हादसा हो सकता है।
Monday, December 5, 2011
मजबूरी में भी लोग करते हैं बिजली चोरी
सबसे पहले तो बिजली का कनेक्शन लेना ही आसान नहीं है, उसके बाद अनियंत्रित तरीके से बगैर किसी मुकाबले के राज्य में बिजली दरों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। भले ही केंद्र की ओर से सभी घरों में बिजली पहुंचाने की बात सालों पहले की गई थी लेकिन आज भी पचास फीसद लोगों को बिजली नहीं मिल सकी है। इसलिए कहीं लोग मजबूरी में बिजली की चोरी कर रहे हैं तो कहीं राजनीतिक दलों की मदद से यह काम किया जा रहा है। हुकिंग करके कितने ही घरों में ब त्ती, पंखे और टीवी चल रहे हैं ।
मकान के 100 गज के दायरे में बिजली का खंबा है, मकान के पक्के बरामदे से छूकर अल्यूमिनीयम की तार गुजरती दिखाईदेती है लेकिन इसके बावजूद घर में लालटेन जलाकर बच्चे पढ़ रहे हैं। हालांकि बिजली विभाग के कार्यालय में पर्याप्त रकम भी जमा की गई है। लेकिन उपभोक्ता का आवेदन सालों से फाइलों में दबा पड़ा है। बिजली विभाग की ओर से खंबे से लेकर घर तक बिजली पहुचाने में आनाकानी की मिसाले कोलकाता से कुछ दूरी पर मौजूद मगराहाट से लेकर जलपाईगुड़ी के मदारीहाट तक देखी जासकती हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना शुरू की गई थी, इसके मुताबिक न्यूनतम 50 परिवारों या 100 लोगों के वर्जिन मौजा में सभी लोगों को बिजली देने का इंतजाम किया जाएगा। गरीबी सीमारेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को मुफ्त और दूसरे लोगों को रुपए देकर बिजली मिलेगी। राज्य के 14 जिलों में यह काम वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन की ओर से किया जा रहा है। कोलकाता के अलावा दूसरे जिलों में केंद्र सरकार के तहत चार संस्थाएं यह काम कर रही हैं। एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के दौरान दो हजार करोड़ रुपए की रकम खर्च हो गई है। लेकिन अभी तक राज्य के आधे लोग बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगराहाट के नैनान गांव के लोगों ने 2007 में बिजली के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक बिजली नहीं मिली है, इसलिए वहां लोग बिजली चोरी करने के लिए मजबूर थे।
आंकड़ों की बात करें तो सरकार खुद यह बात मानती है कि राज्य के आधे से ज्यादा 55 फीसदी लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। जबकि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के चार राज्यों में लगभग 100 फीसद बिजली पहुंच चुकी है। बिजली विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक कूचबिहार के 70 फीसद, उ त्तर दिनाजपुर के 70 फीसद, मालदा जिले के 64 फीसद, पुरुलिया के 65 फीसद, मुर्शिदाबाद जिलेके 60 फीसद, जलपाईगुड़ी के 62 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले के 55 फीसद, वीरभूम के 53 फीसद, बांकुड़ा के 52 फीसद, पूर्व औरपश्चिमी मेदिनीपुर जिले के 51 फीसद, बर्दवान के 47 फीसद, नदिया के 44 फीसद, उ त्तर चौबीस परगना जिले के 38 फीसद, दार्जिलिंग के 23 फीसद, हुगली के 24 फीसद और हावड़ा जिले के 10 फीसद परिवारों के घर में अभी तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। उनका कहना है कि राज्य में ग्रामीण परिवार एक करोड़ 20 लाख है, इसमें 67 लाख परिवारों के घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
राज्य के बिजली मंत्री ने विधानसभा में एलान किया था कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना के तहत 2041 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किए गए हैं और 3933 मौजा में से 3929 मौजा में बिजली पहुंचाने काकाम पूरा हो गया है। हालांकि केंद्रीय सरकार की परियोजना के मुताबिक एक मौजा में 10 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन पहुंचने से ही वह इलाका बिजली वितरण का काम पूरा करने में सफल माना जाएगा। इस तरह सरकारी खाते में एक सौ फीसद लोगों को बिजली मिलने का रिकार्ड दर्ज होजाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महज 10 फीसद लोगों के घरों में बिजली पहुंचने के बाद भी 90 फीसद परिवार अंधेरे में रहते हैं। बिजली विभाग के एक अधिकारी मानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत ऐसी है कि लोग महीने में 50 रुपएका बिल भारने में भी असमर्थ हैं, ऐसे में बिजली की लाइन लेने से पहले उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है।
ऐसे हालत में लोग बिजलीकी चोरी करते हैं। महानगर कोलकाता में भी बिजलीकी चोरी जारी है। इलाके के राजनीतिक दलों और दादाओं की मदद से यहकाम हो रहा है। शहर के 18 फीसद इलाके में चोरी ज्यादा हो रही है। इसमें मेटियाबुर्ज, गार्डेनरीच, तिलजला, नारकुलडांगा, रिपन स्ट्रीट, मेंहदीबगान, इलियट रोड, तपसिया, टेंगरा, लेक गार्डेन, उ त्तर पंचान्न ग्राम, बेहाला के कई इलाके शामिल बताए जाते हैं। सीईएससी के तहत टीटागढ़, हावड़ा, बानतला, कमरहट््टी के वि•िासबसे पहले तो बिजली का कनेक्शन लेना ही आसान नहीं है, उसके बाद अनियंत्रित तरीके से बगैर किसी मुकाबले के राज्य में बिजली दरों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। भले ही केंद्र की ओर से सभी घरों में बिजली पहुंचाने की बात सालों पहले की गई थी लेकिन आज भी पचास फीसद लोगों को बिजली नहीं मिल सकी है। इसलिए कहीं लोग मजबूरी में बिजली की चोरी कर रहे हैं तो कहीं राजनीतिक दलों की मदद से यह काम किया जा रहा है। हुकिंग करके कितने ही घरों में ब त्ती, पंखे और टीवी चल रहे हैं ।
मकान के 100 गज के दायरे में बिजली का खंबा है, मकान के पक्के बरामदे से छूकर अल्यूमिनीयम की तार गुजरती दिखाईदेती है लेकिन इसके बावजूद घर में लालटेन जलाकर बच्चे पढ़ रहे हैं। हालांकि बिजली विभाग के कार्यालय में पर्याप्त रकम भी जमा की गई है। लेकिन उपभोक्ता का आवेदन सालों से फाइलों में दबा पड़ा है। बिजली विभाग की ओर से खंबे से लेकर घर तक बिजली पहुचाने में आनाकानी की मिसाले कोलकाता से कुछ दूरी पर मौजूद मगराहाट से लेकर जलपाईगुड़ी के मदारीहाट तक देखी जासकती हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना शुरू की गई थी, इसके मुताबिक न्यूनतम 50 परिवारों या 100 लोगों के वर्जिन मौजा में सभी लोगों को बिजली देने का इंतजाम किया जाएगा। गरीबी सीमारेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को मुफ्त और दूसरे लोगों को रुपए देकर बिजली मिलेगी। राज्य के 14 जिलों में यह काम वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन की ओर से किया जा रहा है। कोलकाता के अलावा दूसरे जिलों में केंद्र सरकार के तहत चार संस्थाएं यह काम कर रही हैं। एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के दौरान दो हजार करोड़ रुपए की रकम खर्च हो गई है। लेकिन अभी तक राज्य के आधे लोग बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगराहाट के नैनान गांव के लोगों ने 2007 में बिजली के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक बिजली नहीं मिली है, इसलिए वहां लोग बिजली चोरी करने के लिए मजबूर थे।
आंकड़ों की बात करें तो सरकार खुद यह बात मानती है कि राज्य के आधे से ज्यादा 55 फीसदी लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। जबकि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के चार राज्यों में लगभग 100 फीसद बिजली पहुंच चुकी है। बिजली विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक कूचबिहार के 70 फीसद, उ त्तर दिनाजपुर के 70 फीसद, मालदा जिले के 64 फीसद, पुरुलिया के 65 फीसद, मुर्शिदाबाद जिलेके 60 फीसद, जलपाईगुड़ी के 62 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले के 55 फीसद, वीरभूम के 53 फीसद, बांकुड़ा के 52 फीसद, पूर्व औरपश्चिमी मेदिनीपुर जिले के 51 फीसद, बर्दवान के 47 फीसद, नदिया के 44 फीसद, उ त्तर चौबीस परगना जिले के 38 फीसद, दार्जिलिंग के 23 फीसद, हुगली के 24 फीसद और हावड़ा जिले के 10 फीसद परिवारों के घर में अभी तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। उनका कहना है कि राज्य में ग्रामीण परिवार एक करोड़ 20 लाख है, इसमें 67 लाख परिवारों के घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
राज्य के बिजली मंत्री ने विधानसभा में एलान किया था कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना के तहत 2041 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किए गए हैं और 3933 मौजा में से 3929 मौजा में बिजली पहुंचाने काकाम पूरा हो गया है। हालांकि केंद्रीय सरकार की परियोजना के मुताबिक एक मौजा में 10 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन पहुंचने से ही वह इलाका बिजली वितरण का काम पूरा करने में सफल माना जाएगा। इस तरह सरकारी खाते में एक सौ फीसद लोगों को बिजली मिलने का रिकार्ड दर्ज होजाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महज 10 फीसद लोगों के घरों में बिजली पहुंचने के बाद भी 90 फीसद परिवार अंधेरे में रहते हैं। बिजली विभाग के एक अधिकारी मानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत ऐसी है कि लोग महीने में 50 रुपएका बिल भारने में भी असमर्थ हैं, ऐसे में बिजली की लाइन लेने से पहले उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है।
ऐसे हालत में लोग बिजलीकी चोरी करते हैं। महानगर कोलकाता में भी बिजलीकी चोरी जारी है। इलाके के राजनीतिक दलों और दादाओं की मदद से यहकाम हो रहा है। शहर के 18 फीसद इलाके में चोरी ज्यादा हो रही है। इसमें मेटियाबुर्ज, गार्डेनरीच, तिलजला, नारकुलडांगा, रिपन स्ट्रीट, मेंहदीबगान, इलियट रोड, तपसिया, टेंगरा, लेक गार्डेन, उ त्तर पंचान्न ग्राम, बेहाला के कई इलाके शामिल बताए जाते हैं। सीईएससी के तहत टीटागढ़, हावड़ा, बानतला, कमरहट्टी के विसबसे पहले तो बिजली का कनेक्शन लेना ही आसान नहीं है, उसके बाद अनियंत्रित तरीके से बगैर किसी मुकाबले के राज्य में बिजली दरों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। भले ही केंद्र की ओर से सभी घरों में बिजली पहुंचाने की बात सालों पहले की गई थी लेकिन आज भी पचास फीसद लोगों को बिजली नहीं मिल सकी है। इसलिए कहीं लोग मजबूरी में बिजली की चोरी कर रहे हैं तो कहीं राजनीतिक दलों की मदद से यह काम किया जा रहा है। हुकिंग करके कितने ही घरों में ब त्ती, पंखे और टीवी चल रहे हैं ।
मकान के 100 गज के दायरे में बिजली का खंबा है, मकान के पक्के बरामदे से छूकर अल्यूमिनीयम की तार गुजरती दिखाईदेती है लेकिन इसके बावजूद घर में लालटेन जलाकर बच्चे पढ़ रहे हैं। हालांकि बिजली विभाग के कार्यालय में पर्याप्त रकम भी जमा की गई है। लेकिन उपभोक्ता का आवेदन सालों से फाइलों में दबा पड़ा है। बिजली विभाग की ओर से खंबे से लेकर घर तक बिजली पहुचाने में आनाकानी की मिसाले कोलकाता से कुछ दूरी पर मौजूद मगराहाट से लेकर जलपाईगुड़ी के मदारीहाट तक देखी जासकती हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना शुरू की गई थी, इसके मुताबिक न्यूनतम 50 परिवारों या 100 लोगों के वर्जिन मौजा में सभी लोगों को बिजली देने का इंतजाम किया जाएगा। गरीबी सीमारेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को मुफ्त और दूसरे लोगों को रुपए देकर बिजली मिलेगी। राज्य के 14 जिलों में यह काम वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कार्पोरेशन की ओर से किया जा रहा है। कोलकाता के अलावा दूसरे जिलों में केंद्र सरकार के तहत चार संस्थाएं यह काम कर रही हैं। एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के दौरान दो हजार करोड़ रुपए की रकम खर्च हो गई है। लेकिन अभी तक राज्य के आधे लोग बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मगराहाट के नैनान गांव के लोगों ने 2007 में बिजली के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक बिजली नहीं मिली है, इसलिए वहां लोग बिजली चोरी करने के लिए मजबूर थे।
आंकड़ों की बात करें तो सरकार खुद यह बात मानती है कि राज्य के आधे से ज्यादा 55 फीसदी लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। जबकि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के चार राज्यों में लगभग 100 फीसद बिजली पहुंच चुकी है। बिजली विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक कूचबिहार के 70 फीसद, उ त्तर दिनाजपुर के 70 फीसद, मालदा जिले के 64 फीसद, पुरुलिया के 65 फीसद, मुर्शिदाबाद जिलेके 60 फीसद, जलपाईगुड़ी के 62 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले के 55 फीसद, वीरभूम के 53 फीसद, बांकुड़ा के 52 फीसद, पूर्व औरपश्चिमी मेदिनीपुर जिले के 51 फीसद, बर्दवान के 47 फीसद, नदिया के 44 फीसद, उ त्तर चौबीस परगना जिले के 38 फीसद, दार्जिलिंग के 23 फीसद, हुगली के 24 फीसद और हावड़ा जिले के 10 फीसद परिवारों के घर में अभी तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। उनका कहना है कि राज्य में ग्रामीण परिवार एक करोड़ 20 लाख है, इसमें 67 लाख परिवारों के घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
राज्य के बिजली मंत्री ने विधानसभा में एलान किया था कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतपरियोजना के तहत 2041 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किए गए हैं और 3933 मौजा में से 3929 मौजा में बिजली पहुंचाने काकाम पूरा हो गया है। हालांकि केंद्रीय सरकार की परियोजना के मुताबिक एक मौजा में 10 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन पहुंचने से ही वह इलाका बिजली वितरण का काम पूरा करने में सफल माना जाएगा। इस तरह सरकारी खाते में एक सौ फीसद लोगों को बिजली मिलने का रिकार्ड दर्ज होजाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महज 10 फीसद लोगों के घरों में बिजली पहुंचने के बाद भी 90 फीसद परिवार अंधेरे में रहते हैं। बिजली विभाग के एक अधिकारी मानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों की हालत ऐसी है कि लोग महीने में 50 रुपएका बिल भारने में भी असमर्थ हैं, ऐसे में बिजली की लाइन लेने से पहले उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है।
ऐसे हालत में लोग बिजलीकी चोरी करते हैं। महानगर कोलकाता में भी बिजलीकी चोरी जारी है। इलाके के राजनीतिक दलों और दादाओं की मदद से यहकाम हो रहा है। शहर के 18 फीसद इलाके में चोरी ज्यादा हो रही है। इसमें मेटियाबुर्ज, गार्डेनरीच, तिलजला, नारकुलडांगा, रिपन स्ट्रीट, मेंहदीबगान, इलियट रोड, तपसिया, टेंगरा, लेक गार्डेन, उ त्तर पंचान्न ग्राम, बेहाला के कई इलाके शामिल बताए जाते हैं। सीईएससी के तहत टीटागढ़, हावड़ा, बानतला, कमरहट्टी के वि•िान्न इलाकों में बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी आम तौर पर तीन तरह से की जाती है। इसके तहत जमीन के नीचे से, खंबे की तार से तार जोड़ कर व मीटर से की जाती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सरकार की ओर से एक संस्था को बिजली आपूर्ति का ठेका दिया गया है, इससे ही समस्याएं हो रही हैं।
हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर इलाके में अभी भी कई परिवार बगैर बिजली के रह रहे हैं। नए जमाने में पंखा, बल्ब, टीवी कंप्यूटर के साथ सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल फोन चार्ज करना हो गया है। इसके लिए बिजली की जरूरत है। यहां के गढ़ भवानीपुर गांव में पंचायत के उ त्तर चांदचक गांव के नजदीक से बिजली की तार गुजरती है। लेकिन लोगों के घरों में अंधेरा है, इसलिए लोग अभी भी लालटेन के सहारे अंधेरा दूर करने में लगे हैं। यही हालत सांकराईल थाना इलाके के नीमतला इलाके के कई घरों की भी है। महानगर से सटे राज्य से किसी जमाने के शेफिल्ड का जब यह हाल है तो दूसरे इलाकों की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।•िान्न इलाकों में बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी आम तौर पर तीन तरह से की जाती है। इसके तहत जमीन के नीचे से, खंबे की तार से तार जोड़ कर व मीटर से की जाती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सरकार की ओर से एक संस्था को बिजली आपूर्ति का ठेका दिया गया है, इससे ही समस्याएं हो रही हैं।
हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर इलाके में अभी भी कई परिवार बगैर बिजली के रह रहे हैं। नए जमाने में पंखा, बल्ब, टीवी कंप्यूटर के साथ सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल फोन चार्ज करना हो गया है। इसके लिए बिजली की जरूरत है। यहां के गढ़ भवानीपुर गांव में पंचायत के उ त्तर चांदचक गांव के नजदीक से बिजली की तार गुजरती है। लेकिन लोगों के घरों में अंधेरा है, इसलिए लोग अभी भी लालटेन के सहारे अंधेरा दूर करने में लगे हैं। यही हालत सांकराईल थाना इलाके के नीमतला इलाके के कई घरों की भी है। महानगर से सटे राज्य से किसी जमाने के शेफिल्ड का जब यह हाल है तो दूसरे इलाकों की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।न्न इलाकों में बिजली चोरी की जा रही है। बिजली चोरी आम तौर पर तीन तरह से की जाती है। इसके तहत जमीन के नीचे से, खंबे की तार से तार जोड़ कर व मीटर से की जाती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सरकार की ओर से एक संस्था को बिजली आपूर्ति का ठेका दिया गया है, इससे ही समस्याएं हो रही हैं।
हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर इलाके में अभी भी कई परिवार बगैर बिजली के रह रहे हैं। नए जमाने में पंखा, बल्ब, टीवी कंप्यूटर के साथ सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल फोन चार्ज करना हो गया है। इसके लिए बिजली की जरूरत है। यहां के गढ़ भवानीपुर गांव में पंचायत के उ त्तर चांदचक गांव के नजदीक से बिजली की तार गुजरती है। लेकिन लोगों के घरों में अंधेरा है, इसलिए लोग अभी भी लालटेन के सहारे अंधेरा दूर करने में लगे हैं। यही हालत सांकराईल थाना इलाके के नीमतला इलाके के कई घरों की भी है। महानगर से सटे राज्य से किसी जमाने के शेफिल्ड का जब यह हाल है तो दूसरे इलाकों की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।
माओवादी हमले की आशंका के बावजूद वाममोर्चा नेताओं की सुरक्षा घटाई गई
किशनजीकी मौत के बाद माओवादियों की ओर से हिंसक वारदात की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस बीच माओवादी नेताओं की ओर से धमकियां दी जा रही है लेकिन राज्य सरकार ने वाममोर्चा के कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों की सुरक्षा व्यवस्था पहले की तुलना में घटा दी है, जबकि कई लोगों की सुरक्षा व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। इससे कई लोगों की जान खतरे में पड़ गई है। राज्य सरकारकी ओर से कुल मिलाकर 194 लोगों को विशेष सुरक्षा प्रदान की जा रही है। इसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को सर्वाधिक जेड प्लस सुरक्षा श्रेणी में रखा गया है। इसके बाद वाई श्रेणी में 89 और एक्स श्रेणी में 99 लोगों को रखा गया है। इसमें खतरे की श्रेणी में 29 लोगों को वाई श्रेणी में शामिल किया गया है।
कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माकपा) की ओर से वाममोर्चा के नेताओं की सुरक्षा के बारे में तैयार एक रिपोर्ट से इस बात का खुलासा होता है। यह रिपोर्ट साल में दो बार पेश की जाती है। इसमें सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया जाता है। इससे पता चलता है कि माओवादियों की धमकी के बाद अधिकतम सुरक्षा पाने वाले नेताओं की सुरक्षा या तो खत्म कर दी गई है या इसमें कमी की गई है।
सूत्रों से पता चला है कि राज्य के पूर्व मंत्री जोगेश चंद्र बर्मन को वाममोर्चा सरकार के दौरान वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई थी। लेकिन अब इसे घटा कर एक्स श्रेणी में कर दिया गया है। दूसरी ओर विधानस•ाा के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल हासिम हलीम और उपाध्यक्ष •ाक्ति पदघोष की सुरक्षा हटा ली गई है। इसी तरह राज्य के पूर्व वि त्त मंत्री असीम दासगुप्ता के अलावा विवादग्रस्त मंत्री गौतम देव की सुरक्षा एक्स श्रेणी में परिवर्तित कर दी गई है। यही हालत पूर्व पीडब्लूडी मंत्री क्षिती गोस्वामी की है। सुभ•ााष नस्कर को इसी श्रेणी में रखा गया है। जबकि विश्वनाथ चौधरी, नारायण विश्वास और तपन राय की सुरक्षा व्यवस्था हटानेके बारे में एक प्रस्ताव पारित हो गया है। इसके साथ ही दूसरे कई पूर्व मंत्रियों के बारे में चेतावनी के नहीं मिलने से उनकी सुरक्षा व्यवस्था घटा या समाप्त की जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक बांकुड़ा, पुरुलिया और मिदनापुर के जंगल महल इलाके में पूर्व मंत्रियों को एक्स श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही इन इलाकों के नव निर्वाचित 14 विधायकों को इसी तरह की सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही देवलीना हेमब्रग, सुकुमार हांसदा, शांतिराम महतो अधिकतम सुरक्षा पाने वाले नेताओं की सूची में शामिल हैं। राज्य में सबसे ज्यादा सुरक्षा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव और केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को प्रदान की जा रही है। इन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा में रखा गया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री की मां गायत्री देवी को अधिकतम सुरक्षा प्रदान करने के तहत वाई श्रेणी में सुरक्षा प्रदान की जा रही है।
Friday, December 2, 2011
किशनजी की हत्या की गई-सीडीआरओ
कोलकाता, कोआर्डीनेशन आफ डेमोक्रेटिक राइट्स आर्गेनाइजेशन (सीडीआरओ) का कहना है कि माओवादी नेता किशनजी के बारे में राज्य सरकार का दावा जांच-पड़ताल के बाद किसी भी तरह सेसही नहीं ठहरता है। शुक्रवार को कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में संगठन के महासचिव देव प्रसाद रायचौधरी, एपीसीएलसी के महासचिव सीएच चंद्रशेखर के अलावा भानू शंकर, गौतम नवलाखा ने यह जानकारी दी। इसके साथ ही संगठन की ओर से मांग की गई है कि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश या अवकाश प्राप्त न्यायधीश से मामले की स्वतंत्र तौर पर न्यायिक जांच करवाई जाए। इसके साथ ही भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया जाए।
उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से दावा किया गया है कि 24 नवंबर को बुड़ीशोल के जंगल में पुलिस मुकाबले में किशनजी की मौत हो गई है। कहा गया था कि तीन दिन से पुलिस और साझा सुरक्षा बलों ने इलाके को घेरे में ले लिया था और मुकाबला चल रहा था। किशनजी समेत दूसरे लोगों को आत्मसमर्पण करने के लिए माइक पर घोषणा की गई थी। लेकिन जांच पड़ताल से पता चलता है कि यह दावा ठीक नहीं है।
इस दौरान 25 लोगों का एक दल अलग-अलग ग्रूप बनाकर घटनास्थल के आसपास के पांच गांव के 300 लोगों से मिला और पूछताछ की। इसमें सात साल की उम्र के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग पुरुष-महिलाएं शामिल थे। लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा कि तीन दिन पहले पुलिस ने इलाके की घेराबंदी की थी और वहां किसीतरह का मुकाबला चल रहा था। ज्यादातर लोगों का कहना था कि पुलिस और साझा सुरक्षा बल के जवान 24 नवंबर को गांव में पहुंचे और लोगों को घर से नहीं निकलने की चेतावनी देकर चले गए। इसके बाद विभिन्न लोगों के मुताबिक साढ़े चार बजे से साढ़े पांच बजे के बीच 15 से लेकर 20 मिनट तक गोलियां चलने की आवाज सुनी गई। लेकिन किसी भी गांव वाले ने माइक की आवाज नहीं सुनी जिससे माना जा सके कि किशनजी को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया हो। इतना ही नहीं घटनास्थल के आसपास के इलाकों में पेड़ों की जांच के दौरान कहीं भी गोलियों के निशान नहीं मिले, जबकि मुकाबले के दौरान चलाई गई गोलियों से पेड़ों पर निशान होने चाहिए थे। इससे साफतौर पर यह लगता है कि सिर्फ 24 अक्तूबर को ही पुलिस वाले वहां पहुंचे थे और 15-30 मिनट तक फायरिंग की गई। यह इच्छाकृत की गई हत्या है इसलिए स्वतंत्र जांच करवाने के साथ ही धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया जाए।
Saturday, November 26, 2011
पंजाबी फिल्मों का बीते सालों में •ाारी विकास हुआ- ओम पुरी
बीते कुछ सालों में पंजाबी फिल्म उद्योग का •ाारी विकास हुआ है और ज्यादातर लोग वहां की फिल्मों में काम करने के इच्छुक हैं। ओमपुरी •ाी पंजाबी ल्म उद्योग का •ाारी विकास हुआ है और ज्यादातर लोग वहां की फिल्मों में काम करने के इच्छुक हैं। ओमपुरी •ाी पंजाबी •ााषा की फिल्मों में काम करना चाहते हैं लेकिन फिलहाल इस तरह का कोई प्रस्ताव उनके पास नहीं है। उद्योग जगत की ओर से फिल्मों में पूंजी निवेश के बारे में कोलकाता में आयोजित एक संगोष्ठी में उन्होंने यह विचार व्यक्त किए। पहले व्यापार और वहां के बारे में समुचित जानकारी हासिल की जानी चाहिए। कलकत्ता चेंबर आफ कामर्स की ओर से एक संगोष्ठी में उन्होंने यह विचार पेश किए। इस मौके पर निर्देशक गौतम घोष, केन घोष, फिल्म अ•िानेत्री ऋतुपर्णा सेनगुप्ता ने •ाी अप ने विचार प्रकट करते हुए माना कि उद्योग और फिल्म जगत में नजदीकियां बढ़ी हैं।
ओम पुरी ने इस मौके पर कहा कि हिंदी फिल्म जगत ही अमरीकी उद्योग का मुकाबला कर सकता है। लेकिन फिल्मों की संख्या और बाजार में वृद्धि के बावजूद फिल्मों का स्तर नहीं बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्मों का निर्माण किया जाना चाहिए । लेकिन अच्छी फिल्मों का मतलब यह नहीं कि बोर फिल्म बनाई जाए । समाचार पत्र में •ाले ही संपादकीय पन्ना और संपादकीय बोर होते हैं लेकिन कुछ लोग तो उसे पढ़ते ही हैं। ठीक इसी तरह हर तरह की फिल्म के दर्शक होते हैं।
उन्होंने उद्योगपतियों से कहा कि हम लोग नहीं चाहते कि निवेश करें और घाटा नहीं सह पाने के कारण दूसरी फिल्म नहीं बना सके। इसके लिए फिल्म के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए। जैसे किसी कारोबार को शुरू करने के बारे में जानकारी हासिल की जाती है उसी तरह फिल्मों के बारे में •ाी जानकारी हा सिल की जानी चाहिए। अमिता•ा, शाहरुख, सलमान कोई •ाी ऐसा कलाकार नहीं है जो फिल्म को हिट साबित कर सके। रा-वन की असफलता से एक बार फिर यह साफ हो गया कि बड़े कलाकार, तकनीकी दक्षता ब गैर कहानी के नाकाम हो जाती है। विदेश में पटकथा पर ज्य ादा जोर दिया जाता है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्मों में कैरियर शुरू करने वालों को मै यह सलाह देता हूं कि पहले शिक्षा पूरी करो और बा द में •ाविष्य में दूसरा विकल्प तैयार रखकर इस पेशे में प्रवेश करो। इसी तरह उद्योग जगत •ाी अगली फिल्म की तैयारी के साथ उतरे। राज कपूर जैसे निर्माता की ए क फिल्म फलाप होती थी तो दूसरी से•ारपाई कर देते थे। लेकिन आज निर्माता, वितरक एक फिल्म के बा द दिखाई नहीं देता। व्यापार में •ा रोसा उठ गया है। लोगों को आकर्षित करने के लिए नए सिनेमाघर •ाी बनाए जाने चाहिए। पांच तारा होटल के अलावा दूसरे होटल •ाी बनाए जाते हैं, इसी तरह स•ाी तरह के हाल का निर्माण जरूरी है।
इस मौके पर गौतम घोष ने कहा कि कार्पोरेट जगत का स्वागत है लेकिन पहले फिल्म उद्योग के बारे में जानकारी हासिल करें। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के पास बीमा और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। पायरेसी ने फिल्म जगत का नुकसान किया है लेकिन मिलबैठ कर इसका सामना किया जा सकता है। उद्योग जगत के लोग फिल्म बनाने लगते हैं लेकिन उन्हें फिल्मों के बारे में कु छ पता नहीं होता। पहले यह पता लगाया जाना चाहिए कि कोलकाता में कितने हाल चल रहे है, कितने हाल की स्थिति खराब है, इसके बाद आगे बढ़ना चाहि ए। उन्होंने कहा कि राइस सिनेमा (इटली) की ओ र से उनसे बा तचीत के दौरान कहा गया कि विदेशी फिल्मों में •ाारतीय अ•िानेताओं को •ाी लें क्योकि उनकी विदेशों में खासे दर्शक हैं।
निर्देशक केन घोष ने कहा कि बी ते दो साल में आठ हिं दी फिल्मों ने 100 करोड़ रुपए से ज् यादा का कारोबार किया है। इससे पता चलता है कि लोगों की दिलचस्पी हिं दी फिल्मों के प्रति बढ़ी है। हालांकि मल्टीप्लेकस की इसमें खासी •ाूमिका है। चेंबर की अध्यक्ष अलका बांगड़ा ने स्वागत •ााषण में कहा कि हर साल 52 •ााषाओं में एक हजार फिल्मों का निर्माण किया जाता है। 32 कार्पोरेट हाउ स समेत 400 निर्माण धीन संस्थाएं फिल्में बना रही हैं और इससे हर साल 40 लाख टिकटों की बिक्री होती है। उन्होंने कहा कि फिल्म उद्योग ने लग•ाग 60 लाख लोगों को रोजगार दिया है औ र इसका व्यापार 12 हजार करोड़ रुपए से बढ़ गया है।
ओम पुरी ने इस मौके पर कहा कि हिंदी फिल्म जगत ही अमरीकी उद्योग का मुकाबला कर सकता है। लेकिन फिल्मों की संख्या और बाजार में वृद्धि के बावजूद फिल्मों का स्तर नहीं बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्मों का निर्माण किया जाना चाहिए । लेकिन अच्छी फिल्मों का मतलब यह नहीं कि बोर फिल्म बनाई जाए । समाचार पत्र में •ाले ही संपादकीय पन्ना और संपादकीय बोर होते हैं लेकिन कुछ लोग तो उसे पढ़ते ही हैं। ठीक इसी तरह हर तरह की फिल्म के दर्शक होते हैं।
उन्होंने उद्योगपतियों से कहा कि हम लोग नहीं चाहते कि निवेश करें और घाटा नहीं सह पाने के कारण दूसरी फिल्म नहीं बना सके। इसके लिए फिल्म के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए। जैसे किसी कारोबार को शुरू करने के बारे में जानकारी हासिल की जाती है उसी तरह फिल्मों के बारे में •ाी जानकारी हा सिल की जानी चाहिए। अमिता•ा, शाहरुख, सलमान कोई •ाी ऐसा कलाकार नहीं है जो फिल्म को हिट साबित कर सके। रा-वन की असफलता से एक बार फिर यह साफ हो गया कि बड़े कलाकार, तकनीकी दक्षता ब गैर कहानी के नाकाम हो जाती है। विदेश में पटकथा पर ज्य ादा जोर दिया जाता है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्मों में कैरियर शुरू करने वालों को मै यह सलाह देता हूं कि पहले शिक्षा पूरी करो और बा द में •ाविष्य में दूसरा विकल्प तैयार रखकर इस पेशे में प्रवेश करो। इसी तरह उद्योग जगत •ाी अगली फिल्म की तैयारी के साथ उतरे। राज कपूर जैसे निर्माता की ए क फिल्म फलाप होती थी तो दूसरी से•ारपाई कर देते थे। लेकिन आज निर्माता, वितरक एक फिल्म के बा द दिखाई नहीं देता। व्यापार में •ा रोसा उठ गया है। लोगों को आकर्षित करने के लिए नए सिनेमाघर •ाी बनाए जाने चाहिए। पांच तारा होटल के अलावा दूसरे होटल •ाी बनाए जाते हैं, इसी तरह स•ाी तरह के हाल का निर्माण जरूरी है।
इस मौके पर गौतम घोष ने कहा कि कार्पोरेट जगत का स्वागत है लेकिन पहले फिल्म उद्योग के बारे में जानकारी हासिल करें। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के पास बीमा और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। पायरेसी ने फिल्म जगत का नुकसान किया है लेकिन मिलबैठ कर इसका सामना किया जा सकता है। उद्योग जगत के लोग फिल्म बनाने लगते हैं लेकिन उन्हें फिल्मों के बारे में कु छ पता नहीं होता। पहले यह पता लगाया जाना चाहिए कि कोलकाता में कितने हाल चल रहे है, कितने हाल की स्थिति खराब है, इसके बाद आगे बढ़ना चाहि ए। उन्होंने कहा कि राइस सिनेमा (इटली) की ओ र से उनसे बा तचीत के दौरान कहा गया कि विदेशी फिल्मों में •ाारतीय अ•िानेताओं को •ाी लें क्योकि उनकी विदेशों में खासे दर्शक हैं।
निर्देशक केन घोष ने कहा कि बी ते दो साल में आठ हिं दी फिल्मों ने 100 करोड़ रुपए से ज् यादा का कारोबार किया है। इससे पता चलता है कि लोगों की दिलचस्पी हिं दी फिल्मों के प्रति बढ़ी है। हालांकि मल्टीप्लेकस की इसमें खासी •ाूमिका है। चेंबर की अध्यक्ष अलका बांगड़ा ने स्वागत •ााषण में कहा कि हर साल 52 •ााषाओं में एक हजार फिल्मों का निर्माण किया जाता है। 32 कार्पोरेट हाउ स समेत 400 निर्माण धीन संस्थाएं फिल्में बना रही हैं और इससे हर साल 40 लाख टिकटों की बिक्री होती है। उन्होंने कहा कि फिल्म उद्योग ने लग•ाग 60 लाख लोगों को रोजगार दिया है औ र इसका व्यापार 12 हजार करोड़ रुपए से बढ़ गया है।
Thursday, November 24, 2011
टॉप माओवादी नेता किशनजी के मारे जाने की खबर
टॉप माओवादी नेता किशनजी के मारे जाने की खबर
पश्चिम बंगाल के जंगमहल में प्रमुख माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के एक एनकाउंटर में मारे जाने की खबर है।
जानकारी के मुताबिक उग्रवाद निरोधक बल के जवानों ने करीब तीस मिनट तक चली मुठभेड़ में उसे मार गिराया गया। उसके साथ 4 अन्य माओवादी नेताओं के भी मारे जाने की खबर है।
हालांकि गृह मंत्रालय ने अभी तक इस खबर की पुष्टि नहीं की है। इससे पहले बुधवार को किशनजी जंगलमहल में संयुक्त बलों को चकमा देकर अपनी एक महिला साथी के साथ पश्चिमी मेदिनीपुर जिले से झारखंड भाग गया था।
छापेमार विरोधी दस्ते के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कल बताया था कि ' इस बात की संभावना है कि किशनजी अपने कुछ साथियों के साथ झाड़ग्राम के नलबानी, लालबानी और खुशबानी के घने जंगल में छिपा हुआ है।'
पश्चिम बंगाल के जंगमहल में प्रमुख माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के एक एनकाउंटर में मारे जाने की खबर है।
जानकारी के मुताबिक उग्रवाद निरोधक बल के जवानों ने करीब तीस मिनट तक चली मुठभेड़ में उसे मार गिराया गया। उसके साथ 4 अन्य माओवादी नेताओं के भी मारे जाने की खबर है।
हालांकि गृह मंत्रालय ने अभी तक इस खबर की पुष्टि नहीं की है। इससे पहले बुधवार को किशनजी जंगलमहल में संयुक्त बलों को चकमा देकर अपनी एक महिला साथी के साथ पश्चिमी मेदिनीपुर जिले से झारखंड भाग गया था।
छापेमार विरोधी दस्ते के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कल बताया था कि ' इस बात की संभावना है कि किशनजी अपने कुछ साथियों के साथ झाड़ग्राम के नलबानी, लालबानी और खुशबानी के घने जंगल में छिपा हुआ है।'
Wednesday, November 23, 2011
मातृभाषा विकास में रोड़ा नहीं तरक्की की सीढ़ी
मातृभाषा विकास में रोड़ा नहीं बल्कि तरक्की की सीढ़ी बन सकती है। ताजा शोध से इस बात का पता चला है कि अपनी भाषामें पारंगत व्यक्ति दूसरी भाषाको ज्यादा अच्छी तरह और गहराई से सीख सकता है। एक दिवसीय पंजाबी सम्मेलन में वक्ताओं की बातों में यह विचार उ•ार कर सामने आया। पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की ओर से यह आयोजन किया गया था। दूसरी पूर्वी
भारतीय पंजाबी कांफ्रेंस नेशनल लाइब्रेरी के भाषा भवन आडीरोटियम में आयोजित की गई। इस मौके पर पूर्वी भारत के सात राज्यों से लगभग 200 प्रतिनिधि शामिल हए। राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह समरोह में मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा विश्वविद्यालस के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह, डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। मालूम हो कि पहला पूर्वी भरत सम्मेलन धनबाद में पिछले साल आयोजित किया गया था।
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि मातृ भाषा दूसरी
भाषा सीखने में रुकावट बन सकती है। बीते दिनों यूनेस्को की ओर से किए गए शोध से इस बात का पता चलता है कि अपनी
भाषा में समृद्ध व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है। इसलिए अपने बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह से अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो पहले उसे अपनी
भाषा के बारे में ज्ञान दें।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच, जजबात को मातृ•ााषा में जितनी अच्छी तरह से प्रकट कर सकता है, उसे वह दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता। कुछ लोग अपनी मातृ
भाषा से कट जाते हैं लेकिन ऐसा करके वह जैसे खो जाते हैं, गुम हो जाते हैं।
उन्होेंने कहा कि प्रसिद्धा पंजाबी फिल्म अ•ि भनेता बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे अपनी एक पुस्तक लेकर कवि गुरू रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए गए थे। टैगोर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी माृत•ााषा क्या है तो जवाब मिला कि पंजाबी, तब उन्होंने कहा कि अपनी •
भाषा में क्यों नहीं लिखते? जो व्यक्ति अपनी
भाषा में अच्छी तरह से मन के विचार प्रकट कर सकता है किसी दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता है। स्वंय टैगोर ने •ाी सारा काम अपनी मातृ•
भाषा में ही किया है। इसके बाद साहनी ने पंजाबी में लिखना शुरू किया। उनके
भाई
भीष्म साहनी ने
भी पंजाबी के बारे में लिखा है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी का विरसा (संस्कृति) बहुत अमीर है लेकिन हम गरीब हो जाते हैं। अपने इतिहास, परंपरा से कटते जा रहे हैं। हमारा गुरू गुरू नानक हर मामले में अमीर है, पर हम उनके बताए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। पंजाबियों का सबसे बड़ा गुण उनका चरित्र है। खुश मिजाज और दिल खोल कर व्यवहार करने वाला पंजाबी होता है, तंग दिल पंजाबी नहीं हो सकता । किसी मेहमान से जो यह पूछे कि चाय पिएंगे या नहीं , वह पंजाबी नहीं हो सकता। पंजाबी तो वह है जो चाय, बिस्कुट और दो चार मिठाईयां परोस कर पूछे कि बताएं और क्या खाना है?
महानगर कोलकाता में पंजाबियों के बारे में लोगों के विचार के बारे में उन्होंने कहा कि वायसराय की बेटी कोलकाता आई थी तो उसे कहा गया था कि जब
भी किसी टैक्सी में सवार होना पगड़ी वाले पंजाबी की टैक्सी में सवार होना। इस तरह लोगों की नजर में पंजाबियों की पहचान रक्षक के तौर पर है, यह कायम रहनी चाहिए। यूपी में सुना कि वहां पंजाबी की गवाही को दो लोगों की गवाही के बराबर माना जाता था क्योंकि लोग मानते थे कि सरदार
भूठ नहीं बोल सकता।
विश्वविद्यालय के डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने की नोट (कुंजीगत)
भाषण में कहा कि व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास जरुरी है लेकिन यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। स•
भयता-संस्कृति के साथ राजनीतिक जगह की
भी जरूरत है।
भाषा के विकास के लिए शिक्षा में सहायक होना चाहिए, वह रोजगार के साधन मुहैया करवा सके और सरकारी
भाषा बने जिससे उसके फलने-फूलने में मदद मिले।
उन्होंने कहा कि
भाषा रीढ़ की हड््डी की तरह है। शब्दों के बगैर सारा कुछ बेरंग है। लेकिन आने वाली पीढ़ी
भाषा से जुड़े इसके लिए जरुरी है कि लिपि का विकास निरंतर जारी रहे। लोग
भाषा लिखना नहीं जानते तो दूसरी पीढ़ी उसे सीख नहीं सकेगी। वह सिमटती जाएगी और एकदिन समाप्त हो जाएगी। किसी जमाने में फ्रांसीसी
भाषा पहले स्थान पर थी लेकिन अब अंग्रेजी आगे आ गई है।
उन्होेंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुलीन वर्ग
भाषा और धर्म के मामले में हीनता बोध से ग्रस्त है। वे लोग धन के मामले में तो आगे हैं लेकिन
भाषा के प्रति जागरुक नहीं है। इसलिए दूसरी
भाषा के प्रति मोह दिखाते हैं। बच्चों को मम्मी, डैडी तो बोलना सिखाते हैं लेकिन अपनी
भाषा के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं। अ•ाी कनाडा में प्रवासियों के बारे में
भाषा के बारे में गणना हुई तो उसमेंं 100 में 34 फीसद बच्चों ने पंजाबी को अपनी मातृ
भाषा बताया , उनका जन्म वहीं हुआ जबकि जर्मन के छह और पूर्तगाल के तीन फीसद बच्चों ने अपनी मातृ भाषा को बताया।
राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पद संभालते ही उन्होंने पंजाबी को भाषायी मान्यता प्रदान की। रेल मंत्री के तौर पर सिखों के धार्मिक स्थल हुजूर साहिब (महाराष्ट्र), आनंदपुर साहिब (पंजाब), स्वर्णमंदिर(अमृतसर) समेत स•ाी स्थानों के लिए रेलगाड़ियां चलाई हैं । अब वे राज्य में पंजाबियों के लिए कोई स्मारक स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने गुरू नानक जयंती पर मुासे कहा था कि नानक की मूर्ति स्थापित करनी है तो बताएं लेकिन मैने बताया कि सिख धर्म में मूर्ति पूजा की मनाही है। इस मौके पर वि•िभान्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम
भी पेश किए गए।
भाषा विकास में रोड़ा नहीं बल्कि तरक्की की सीढ़ी बन सकती है। ताजा शोध से इस बात का पता चला है कि अपनी
भाषा में पारंगत व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह और गहराई से सीख सकता है। एक दिवसीय पंजाबी सम्मेलन में वक्ताओं की बातों में यह विचार उभर कर सामने आया। पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की ओर से यह आयोजन किया गया था। दूसरी पूर्वी
भारतीय पंजाबी कांफ्रेंस नेशनल लाइब्रेरी के
भाषा
भवन आडीरोटियम में आयोजित की गई। इस मौके पर पूर्वी
भारत के सात राज्यों से लग
भग 200 प्रतिनिधि शामिल हए। राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह समरोह में मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा विश्वविद्यालस के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह, डाक्टर जसविंदर सिंह ने
भी अपने विचार व्यक्त किए। मालूम हो कि पहला पूर्वी
भारत सम्मेलन धनबाद में पिछले साल आयोजित किया गया था।
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि मातृ
भाषा दूसरी
भाषा सीखने में रुकावट बन सकती है। बीते दिनों यूनेस्को की ओर से किए गए शोध से इस बात का पता चलता है कि अपनी
भाषा में समृद्ध व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है। इसलिए अपने बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह से अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो पहले उसे अपनी
भाषा के बारे में ज्ञान दें।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच, जजबात को मातृ
भाषा में जितनी अच्छी तरह से प्रकट कर सकता है, उसे वह दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता। कुछ लोग अपनी मातृ
भाषा से कट जाते हैं लेकिन ऐसा करके वह जैसे खो जाते हैं, गुम हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रसिद्धा पंजाबी फिल्म अ•िभनेता बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे अपनी एक पुस्तक लेकर कवि गुरू रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए गए थे। टैगोर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी मात
भाषा क्या है तो जवाब मिला कि पंजाबी, तब उन्होंने कहा कि अपनी
भाषा में क्यों नहीं लिखते? जो व्यक्ति अपनी
भाषा में अच्छी तरह से मन के विचार प्रकट कर सकता है किसी दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता है। स्वंय टैगोर ने
भी सारा काम अपनी मातृ•ााषा में ही किया है। इसके बाद साहनी ने पंजाबी में लिखना शुरू किया। उनके
भाई
भीष्म साहनी ने
भी पंजाबी के बारे में लिखा है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी का विरसा (संस्कृति) बहुत अमीर है लेकिन हम गरीब हो जाते हैं। अपने इतिहास, परंपरा से कटते जा रहे हैं। हमारा गुरू गुरू नानक हर मामले में अमीर है, पर हम उनके बताए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। पंजाबियों का सबसे बड़ा गुण उनका चरित्र है। खुश मिजाज और दिल खोल कर व्यवहार करने वाला पंजाबी होता है, तंग दिल पंजाबी नहीं हो सकता । किसी मेहमान से जो यह पूछे कि चाय पिएंगे या नहीं , वह पंजाबी नहीं हो सकता। पंजाबी तो वह है जो चाय, बिस्कुट और दो चार मिठाईयां परोस कर पूछे कि बताएं और क्या खाना है?
महानगर कोलकाता में पंजाबियों के बारे में लोगों के विचार के बारे में उन्होंने कहा कि वायसराय की बेटी कोलकाता आई थी तो उसे कहा गया था कि जब
भी किसी टैक्सी में सवार होना पगड़ी वाले पंजाबी की टैक्सी में सवार होना। इस तरह लोगों की नजर में पंजाबियों की पहचान रक्षक के तौर पर है, यह कायम रहनी चाहिए। यूपी में सुना कि वहां पंजाबी की गवाही को दो लोगों की गवाही के बराबर माना जाता था क्योंकि लोग मानते थे कि सरदार
भूठ नहीं बोल सकता।
विश्वविद्यालय के डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने की नोट (कुंजीगत)
भाषण में कहा कि व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास जरुरी है लेकिन यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। स
भयता-संस्कृति के साथ राजनीतिक जगह की
भी जरूरत है।
भाषा के विकास के लिए शिक्षा में सहायक होना चाहिए, वह रोजगार के साधन मुहैया करवा सके और सरकारी
भाषा बने जिससे उसके फलने-फूलने में मदद मिले।
उन्होंने कहा कि
भाषा रीढ़ की हड््डी की तरह है। शब्दों के बगैर सारा कुछ बेरंग है। लेकिन आने वाली पीढ़ी
भाषा से जुड़े इसके लिए जरुरी है कि लिपि का विकास निरंतर जारी रहे। लोग
भाषा लिखना नहीं जानते तो दूसरी पीढ़ी उसे सीख नहीं सकेगी। वह सिमटती जाएगी और एकदिन समाप्त हो जाएगी। किसी जमाने में फ्रांसीसी
भाषा पहले स्थान पर थी लेकिन अब अंग्रेजी आगे आ गई है।
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुलीन वर्ग
भाषा और धर्म के मामले में हीनता बोध से ग्रस्त है। वे लोग धन के मामले में तो आगे हैं लेकिन
भाषा के प्रति जागरुक नहीं है। इसलिए दूसरी
भाषा के प्रति मोह दिखाते हैं। बच्चों को मम्मी, डैडी तो बोलना सिखाते हैं लेकिन अपनी
भाषा के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं। अ
भी कनाडा में प्रवासियों के बारे में
भाषा के बारे में गणना हुई तो उसमें 100 में 34 फीसद बच्चों ने पंजाबी को अपनी मातृ
भाषा बताया , उनका जन्म वहीं हुआ जबकि जर्मन के छह और पूर्तगाल के तीन फीसद बच्चों ने अपनी मातृ
भाषा को बताया।
राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पद सं
भालते ही उन्होंने पंजाबी को
भाषायी मान्यता प्रदान की। रेल मंत्री के तौर पर सिखों के धार्मिक स्थल हुजूर साहिब (महाराष्ट्र), आनंदपुर साहिब (पंजाब), स्वर्णमंदिर(अमृतसर) समेत स
भी स्थानों के लिए रेलगाड़ियां चलाई हैं । अब वे राज्य में पंजाबियों के लिए कोई स्मारक स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने गुरू नानक जयंती पर मुासे कहा था कि नानक की मूर्ति स्थापित करनी है तो बताएं लेकिन मैने बताया कि सिख धर्म में मूर्ति पूजा की मनाही है। इस मौके पर वि
भान्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम
भी पेश किए गए।
Tuesday, November 22, 2011
क्या है फासीवादी
फासीवाद या फ़ासिस्टवाद (फ़ासिज़्म) इटली में बेनितो मुसोलिनी द्वारा संगठित "फ़ासिओ डि कंबैटिमेंटो" का राजनीतिक आंदोलन था जो मार्च,1919 में प्रारंभ हुआ। इसकी प्रेरणा और नाम सिसिली के 19वीं शताब्दी के क्रांतिकारियों-"फासेज़"-से ग्रहण किए गए। मूल रूप में यह आंदोलन समाजवाद या साम्यवाद के विरुद्ध नहीं, अपितु उदारतावाद के विरुद्ध था।
मोटे तौर पर फासीवादी व्यवस्था में शासक द्वारा किया गया हर कार्य और आदेश जनता पर लागू होता है। इसमें लिखित संविधान जैसी कोई बात नहीं होती है। शासक के हर अच्छे और बुरे कार्यों को जनता पर थोप दिया जाता है।
डा.लॉरेंस ब्रिट नामक एक राजनीतिक विज्ञानी ने फासीवादी शासनों जैसे हिटलर (जर्मनी), मुसोलिनी (इटली ) फ्रेंको (स्पेन), सुहार्तो (इंडोनेशिया), और पिनोचेट (चिली) का अध्ययन किया और निम्नलिखित 14 लक्षणों की पहचान की है;
1. शक्तिशाली और सतत राष्ट्रवाद — फासिस्ट शासन देश भक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, नारों , प्रतीकों और अन्य सामग्री का निरंतर उपयोग करते हैं। हर जगह झंडे दिखाई देते हैं जैसे वस्त्रों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजानिक स्थानों पर झंडों की भरमार।
2. मानव अधिकारों के मान्यता प्रति तिरस्कार — क्योंकि दुश्मनों से डर है इसलिए फासिस्ट शासनों द्वारा लोगो को लुभाया जाता है कि यह सब सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वक्त की ज़रुरत है।शासकों के दृष्टिकोण से लोग घटनाक्रम को देखना शुरू कर देते हैं और यहाँ तक कि वे अत्याचार, हत्याओं, और आनन-फानन में सुनाई गयी कैदियों को लम्बी सजाओं का अनुमोदन करना भी शुरू कर देते हैं।
3. दुश्मन या गद्दार की पहचान एक एकीकृत कार्य बन जाता है — लोग कथित आम खतरे और दुश्मन – उदारवादी; कम्युनिस्टों, समाजवादियों, आतंकवादियों, आदि के खात्मे की ज़रुरत प्रति उन्मांद की हद तक एकीकृत किए जाते हैं।
4. मिलिट्री का वर्चस्व — बेशक व्यापक घरेलू समस्याएं होती हैं पर सरकार सेना का विषम फंडिंग पोषण करती है। घरेलू एजेंडे की उपेक्षा की जाती है ताकि मिलट्री और सैनिकों का हौंसला बुलंद और ग्लैमरपूर्ण बना रहे।
5. उग्र लिंग-विभेदीकरण — फासिस्ट राष्ट्रों की सरकारें लगभग पुरुष प्रभुत्व वाली होती हैं।फासीवादी शासनों के अधीन, पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को और अधिक कठोर बना दिया जाता है। गर्भपात का सख्त विरोध होता है और कानून और राष्ट्रीय नीति होमोफोबिया और गे विरोधी होती है।
6. नियंत्रित मास मीडिया – कभी कभी तो मीडिया सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, लेकिन अन्य मामलों में, परोक्ष सरकार विनियमन, या प्रवक्ताओं और अधिकारियों द्वारा पैदा की गयी सहानुभूति द्वारा मीडिया को नियंत्रित किया जाता है। सामान्य युद्धकालीन सेंसरशिप विशेष रूप से होती है।
7. राष्ट्रीय सुरक्षा का जुनून – एक प्रेरक उपकरण के रूप में सरकार द्वारा इस डर का जनता पर प्रयोग किया जाता है।
8.धर्म और सरकार का अपवित्र गठबंधन —फासिस्ट देशों में सरकारें एक उपकरण के रूप में सबसे आम धर्म को आम राय में हेरफेर करने के लिए प्रयोग करती हैं। सरकारी नेताओं द्वारा धार्मिक शब्दाडंबर और शब्दावली का प्रयोग सरेआम होता है बेशक धर्म के प्रमुख सिद्धांत सरकार और सरकारी कार्रवाईयों के विरुद्ध होते हैं।
9. कारपोरेट पावर संरक्षित होती है – फासीवादी राष्ट्र में औद्योगिक और व्यवसायिक शिष्टजन सरकारी नेताओं को शक्ति से नवाजते हैं जिससे अभिजात वर्ग और सरकार में एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्ते की स्थापना होती है।
10. श्रम शक्ति को दबाया जाता है – श्रम-संगठनों का पूर्ण रूप से उन्मूलन कर दिया जाता है या कठोरता से दबा दिया जाता है क्योंकि फासिस्ट सरकार के लिए एक संगठित श्रम-शक्ति ही वास्तविक खतरा होती है।
11. बुद्धिजीवियों और कला प्रति तिरस्कार – फासीवादी राष्ट्र उच्च शिक्षा और अकादमिया के प्रति दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं. अकादमिया और प्रोफेसरों को सेंसर करना और यहाँ तक कि गिरफ्तार करना असामान्य नहीं होता. कला में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति पर खुले आक्रमण किए जाते हैं और सरकार कला की फंडिंग करने से प्राय: इंकार कर देती है।
12. अपराध और सजा प्रति जुनून – फासिस्ट सरकारों के अधीन कानून लागू करने के लिए पुलिस को लगभग असीमित अधिकार दिए जाते हैं. पुलिस ज्यादितियों के प्रति लोग प्राय: निरपेक्ष होते हैं यहाँ तक कि वे सिविल आज़ादी तक को देशभक्ति के नाम पर कुर्बान कर देते हैं। फासिस्ट राष्ट्रों में अक्सर असीमित शक्ति वाले विशेष पुलिस बल होते हैं।
13. उग्र भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार — फासिस्ट राष्ट्रों का राज्य संचालन मित्रों के समूह द्वारा किया जाता है जो अक्सर एक दूसरे को सरकारी ओहदों पर नियुक्त करते हैं और एक दूसरे को जवाबदेही से बचाने के लिए सरकारी शक्ति और प्राधिकार का प्रयोग किया जाता है। सरकारी नेताओं द्वारा राष्ट्रीय संसाधनों और खजाने को लूटना असामान्य बात नहीं होती।
14.चुनाव महज धोखाधड़ी होते हैं — कभी-कभी होने वाले चुनाव महज दिखावा होते हैं। विरोधियों के विरुद्ध लाँछनात्मक अभियान चलाए जाते है और कई बार हत्या तक कर दी जाती है,विधानपालिका के अधिकारक्षेत्र का प्रयोग वोटिंग संख्या या राजनीतिक जिला सीमाओं को नियंत्रण करने के लिए और मीडिया का दुरूपयोग करने के लिए किया जाता है
मोटे तौर पर फासीवादी व्यवस्था में शासक द्वारा किया गया हर कार्य और आदेश जनता पर लागू होता है। इसमें लिखित संविधान जैसी कोई बात नहीं होती है। शासक के हर अच्छे और बुरे कार्यों को जनता पर थोप दिया जाता है।
डा.लॉरेंस ब्रिट नामक एक राजनीतिक विज्ञानी ने फासीवादी शासनों जैसे हिटलर (जर्मनी), मुसोलिनी (इटली ) फ्रेंको (स्पेन), सुहार्तो (इंडोनेशिया), और पिनोचेट (चिली) का अध्ययन किया और निम्नलिखित 14 लक्षणों की पहचान की है;
1. शक्तिशाली और सतत राष्ट्रवाद — फासिस्ट शासन देश भक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, नारों , प्रतीकों और अन्य सामग्री का निरंतर उपयोग करते हैं। हर जगह झंडे दिखाई देते हैं जैसे वस्त्रों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजानिक स्थानों पर झंडों की भरमार।
2. मानव अधिकारों के मान्यता प्रति तिरस्कार — क्योंकि दुश्मनों से डर है इसलिए फासिस्ट शासनों द्वारा लोगो को लुभाया जाता है कि यह सब सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वक्त की ज़रुरत है।शासकों के दृष्टिकोण से लोग घटनाक्रम को देखना शुरू कर देते हैं और यहाँ तक कि वे अत्याचार, हत्याओं, और आनन-फानन में सुनाई गयी कैदियों को लम्बी सजाओं का अनुमोदन करना भी शुरू कर देते हैं।
3. दुश्मन या गद्दार की पहचान एक एकीकृत कार्य बन जाता है — लोग कथित आम खतरे और दुश्मन – उदारवादी; कम्युनिस्टों, समाजवादियों, आतंकवादियों, आदि के खात्मे की ज़रुरत प्रति उन्मांद की हद तक एकीकृत किए जाते हैं।
4. मिलिट्री का वर्चस्व — बेशक व्यापक घरेलू समस्याएं होती हैं पर सरकार सेना का विषम फंडिंग पोषण करती है। घरेलू एजेंडे की उपेक्षा की जाती है ताकि मिलट्री और सैनिकों का हौंसला बुलंद और ग्लैमरपूर्ण बना रहे।
5. उग्र लिंग-विभेदीकरण — फासिस्ट राष्ट्रों की सरकारें लगभग पुरुष प्रभुत्व वाली होती हैं।फासीवादी शासनों के अधीन, पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को और अधिक कठोर बना दिया जाता है। गर्भपात का सख्त विरोध होता है और कानून और राष्ट्रीय नीति होमोफोबिया और गे विरोधी होती है।
6. नियंत्रित मास मीडिया – कभी कभी तो मीडिया सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, लेकिन अन्य मामलों में, परोक्ष सरकार विनियमन, या प्रवक्ताओं और अधिकारियों द्वारा पैदा की गयी सहानुभूति द्वारा मीडिया को नियंत्रित किया जाता है। सामान्य युद्धकालीन सेंसरशिप विशेष रूप से होती है।
7. राष्ट्रीय सुरक्षा का जुनून – एक प्रेरक उपकरण के रूप में सरकार द्वारा इस डर का जनता पर प्रयोग किया जाता है।
8.धर्म और सरकार का अपवित्र गठबंधन —फासिस्ट देशों में सरकारें एक उपकरण के रूप में सबसे आम धर्म को आम राय में हेरफेर करने के लिए प्रयोग करती हैं। सरकारी नेताओं द्वारा धार्मिक शब्दाडंबर और शब्दावली का प्रयोग सरेआम होता है बेशक धर्म के प्रमुख सिद्धांत सरकार और सरकारी कार्रवाईयों के विरुद्ध होते हैं।
9. कारपोरेट पावर संरक्षित होती है – फासीवादी राष्ट्र में औद्योगिक और व्यवसायिक शिष्टजन सरकारी नेताओं को शक्ति से नवाजते हैं जिससे अभिजात वर्ग और सरकार में एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्ते की स्थापना होती है।
10. श्रम शक्ति को दबाया जाता है – श्रम-संगठनों का पूर्ण रूप से उन्मूलन कर दिया जाता है या कठोरता से दबा दिया जाता है क्योंकि फासिस्ट सरकार के लिए एक संगठित श्रम-शक्ति ही वास्तविक खतरा होती है।
11. बुद्धिजीवियों और कला प्रति तिरस्कार – फासीवादी राष्ट्र उच्च शिक्षा और अकादमिया के प्रति दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं. अकादमिया और प्रोफेसरों को सेंसर करना और यहाँ तक कि गिरफ्तार करना असामान्य नहीं होता. कला में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति पर खुले आक्रमण किए जाते हैं और सरकार कला की फंडिंग करने से प्राय: इंकार कर देती है।
12. अपराध और सजा प्रति जुनून – फासिस्ट सरकारों के अधीन कानून लागू करने के लिए पुलिस को लगभग असीमित अधिकार दिए जाते हैं. पुलिस ज्यादितियों के प्रति लोग प्राय: निरपेक्ष होते हैं यहाँ तक कि वे सिविल आज़ादी तक को देशभक्ति के नाम पर कुर्बान कर देते हैं। फासिस्ट राष्ट्रों में अक्सर असीमित शक्ति वाले विशेष पुलिस बल होते हैं।
13. उग्र भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार — फासिस्ट राष्ट्रों का राज्य संचालन मित्रों के समूह द्वारा किया जाता है जो अक्सर एक दूसरे को सरकारी ओहदों पर नियुक्त करते हैं और एक दूसरे को जवाबदेही से बचाने के लिए सरकारी शक्ति और प्राधिकार का प्रयोग किया जाता है। सरकारी नेताओं द्वारा राष्ट्रीय संसाधनों और खजाने को लूटना असामान्य बात नहीं होती।
14.चुनाव महज धोखाधड़ी होते हैं — कभी-कभी होने वाले चुनाव महज दिखावा होते हैं। विरोधियों के विरुद्ध लाँछनात्मक अभियान चलाए जाते है और कई बार हत्या तक कर दी जाती है,विधानपालिका के अधिकारक्षेत्र का प्रयोग वोटिंग संख्या या राजनीतिक जिला सीमाओं को नियंत्रण करने के लिए और मीडिया का दुरूपयोग करने के लिए किया जाता है
Monday, October 10, 2011
गजल को बनाई आम आदमी की दिल की जुबां
गजल गायकी के बेताज बादशाह जगजीत सिंह के असामयिक निधन से बंगाल का संगीत जगत मर्माहत है। राज्य के विशिष्ट कलाकारों को इस बात का बेहद दुख है कि गजल को दिल की जुबां बनाकर आम आदमी तक रखने वाला जगजीत सिंह जैसा फनकार अब शायद ही फिर से दुनिया में आए। प्रख्यात गायिका उषा उत्थुप ने कहा कि जगजीत भाई ने गजल को सिर्फ गाया ही नहीं, उसे आम आदमी की जुबां और भावनाओं से जोड़ दिया था। उन्होंने गजल के जादू के असर को और व्यापक किया था। उनके निधन से हुई क्षति को शायद ही पूरा किया जा सके। किंवदंती गायक मन्ना डे ने जब उनके निधन का समाचार सुना तो गमगीन हो गए। उन्होंने कहा कि इतना अच्छा गाने वाला चला गया, उनके गाने सुनता था, मन को सुकून मिलता था। डे ने कहा कि कोई कर भी क्या सकता है। एक दिन सभी को जाना है। गायिका हैमंती शुक्ला और तबला वादक विक्रम घोष भी गजल गायक की मौत से शोकाकुल हैं। हैमंती ने 'दैनिक जागरण' से बातचीत में उनके साथ अपनी यादों को ताजा करते हुए कहा कि वे जब भी कोलकाता आते थे। उनसे मिले बिना नहीं जाते थे। 1990 में सड़क हादसे में जवान बेटे की मौत के बाद उन्होंने गाना बंद नहीं किया लेकिन दर्द उनके सुरों में साफ महसूस होता था। भरभराई आवाज में गायिका बोलीं कि वे तो गजल की आवाज को अपने दिल की जुबां बना देते थे। उनकी तरह हस्ती अब कहां से आएगी। उनके जैसा गायक और इंसान अब कहां मिलेगा। हिंदी, उर्दू पंजाबी और नेपाली में गायन करने वाले जगजीत सिंह के लिए बांग्ला गायकी का क्षेत्र भले नया था लेकिन उनकी पत्नी के बंगाली होने के कारण यह भाषा उनकी अपनी भाषा हो गई थी और इसी नाते बंगाल भी उनके लिए अपने घर जैसा था। फिल्मी दुनिया में पार्श्वगायकी के क्षेत्र में कमाने वाले अभिजीत ने सुरों की साधना जगजीत सिंह की शार्गिदी में ही की थी।
गजल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे
प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह ने अपनी मखमली आवाज के जरिए गजलों को नया जीवन दिया। वह अपने जीवन के70वें साल का जश्न अनोखे ढंग से मनाना चाहते थे। उनकी इस साल 70 संगीत समारोहों में शिरकत करने की हसरत थी लेकिन सोमवार को अपने निधन से पहले तक वह केवल 46 संगीत समारोहों में ही शामिल हो सके थे।
सिंह ने पंडित छगनलाल शर्मा और उस्ताद जमाल खान से संगीत की शिक्षा ली थी। उनकी गजल व भजन गायन की अलग शैली ने उन्हें बहुत जल्दी जाना-पहचाना नाम बना दिया, 70 व 80 के दशक में उनकी ताजगी से भरी आवाज को खूब लोकप्रियता मिली। उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
राजस्थान के एक सिख परिवार में आठ फरवरी, 1941 को जन्मे सिंह ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर किया था। वह 1965 में एक गायक के तौर पर काम की तलाश में मुम्बई आकर बस गए। यह एक संघर्ष था। उन्होंने शुरुआती दिनों में एक गायक के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए छोटी-छोटी संगीत सभाओं, लोगों के घरों में आयोजित संगीत समारोहों और फिल्मी पार्टियों में गजल गायकी की। उनके लिए यह रोजमर्रा की बात थी लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं खोई।
साल 1967 में उनकी गायिका चित्रा से मुलाकात हुई। दो साल के मेलजोल के बाद दोनों ने विवाह कर लिया। उन्होंने साथ में कई सफलतम एलबमें पेश कीं। इनमें एकैस्टेसीज, ए साउंड एफेयर, पैशन्स और बियोंड टाइम एलबम शामिल हैं। दोनों ने 1990 में अपने बेटे विवेक की 21 साल की उम्र में मौत होने से पहले साथ में अनेक गजलें गाईं लेकिन बेटे की मौत के बाद चित्रा ने गाना बंद कर दिया।
वर्ष 1987 में सिंह ने अपनी डिजीटल सीडी एलबम बियोंड टाइम रिकॉर्ड की। यह किसी भारतीय संगीतकार की इस तरह की पहली एलबम थी। उन्होंने अर्थ, साथ साथ और प्रेमगीत जैसी फिल्मों में भी गीत गाए। उनकी होठों से छू लो तुम (प्रेमगीत), तुमको देखा तो ये ख्याल आया (साथ साथ), झुकी झुकी सी नजर (अर्थ), होश वालों को खबर क्या (सरफरोश) और बड़ी नाजुक है (जॉगर्स पार्क) जैसी फिल्मी गजलों ने उनकी मौजूदगी को और भी मजबूत बनाया।
उनकी गैर फिल्मी एलबम्स में होप, इन सर्च, इनसाइट, मिराज, विजन्स, कहकशां, लव इज ब्लाइंड, चिराग, सजदा, मरासिम, फेस टू फेस, आईना और क्राई फॉर क्राई काफी सफल रहीं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं पर आधारित दो एलबमें नई दिशा (1999) और संवेदना (2002) भी निकालीं।
Wednesday, October 5, 2011
चार्जशीट
एवरग्रीन हीरो देवानंद एक बार फिर अपनी नई फिल्म के साथ हाजिर हैं। 80 से ज्यादा की उम्र में देव साहब ने कैमरे के सामने बतौर ऐक्टर और कैमरे के पीछे निर्देशन की जिम्मेदारी खुद ही संभाली हैं। पिछले साल देवानंद ने अपनी सुपर हिट ब्लैक ऐंड वाइट फिल्म हम दोनों को कलर करके रिलीज किया , लेकिन फिल्म यंगस्टर्स की कसौटी पर खरी नहीं उतरी। शायद यही वजह है कि इस बार उन्होंने चार्जशीट में अंडरवर्ल्ड के साथ क्राइम की दुनिया को चुना।
इस फिल्म में भी देव साहब ने एक अहम रोल अपने पास रखा और नसीरुद्दीन शाह , जैकी श्रॉफ उनकी इस फिल्म के मुख्य किरदार हैं। इन दिनों विवादों में घिरे अमर सिंह भी फिल्म में बतौर गेस्ट रोल में हैं। फिल्म की कहानी आपको 70-80 के दशक में बनने वाली सस्पेंस , थ्रिलर फिल्मों की याद दिला सकती है।
कहानी में नयेपन की कमी और लीड रोल में सभी सीनियर स्टार्स होने की वजह से फिल्म का यंगस्टर्स में क्रेज नहीं है। अगर आप देवानंद के फैन हैं और अपने चहेते इस एवरग्रीन हीरो को एकबार फिर कैमरे के सामने उनकी खास अदाओं के साथ देखना चाहते हैं, तो बेशक फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।
इस फिल्म में भी देव साहब ने एक अहम रोल अपने पास रखा और नसीरुद्दीन शाह , जैकी श्रॉफ उनकी इस फिल्म के मुख्य किरदार हैं। इन दिनों विवादों में घिरे अमर सिंह भी फिल्म में बतौर गेस्ट रोल में हैं। फिल्म की कहानी आपको 70-80 के दशक में बनने वाली सस्पेंस , थ्रिलर फिल्मों की याद दिला सकती है।
कहानी में नयेपन की कमी और लीड रोल में सभी सीनियर स्टार्स होने की वजह से फिल्म का यंगस्टर्स में क्रेज नहीं है। अगर आप देवानंद के फैन हैं और अपने चहेते इस एवरग्रीन हीरो को एकबार फिर कैमरे के सामने उनकी खास अदाओं के साथ देखना चाहते हैं, तो बेशक फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।
Thursday, September 29, 2011
Double Decker train on Oct 1
Railway Minister Dinesh Trivedi
will flag off the superfast Double Decker train at Howrah
station on October One as a Puja gift to passengers.
Eastern Railway today said that 12383-up/12384-dn
Howrah-Dhanbad Express (double decker) will run five-day week
between Howrah and Dhanbad.
The fully air-conditioned train will have nine
coaches, including seven AC chair cars having 128 seats in
each coach and two generator cars.
The Double-Decker train will stop at Bardhaman,
Durgapur, Asansol, Barakar, Kumardubi.
The train will have maximum speed of 110 kmph and will
run via Howrah-Bardhaman chord line.
will flag off the superfast Double Decker train at Howrah
station on October One as a Puja gift to passengers.
Eastern Railway today said that 12383-up/12384-dn
Howrah-Dhanbad Express (double decker) will run five-day week
between Howrah and Dhanbad.
The fully air-conditioned train will have nine
coaches, including seven AC chair cars having 128 seats in
each coach and two generator cars.
The Double-Decker train will stop at Bardhaman,
Durgapur, Asansol, Barakar, Kumardubi.
The train will have maximum speed of 110 kmph and will
run via Howrah-Bardhaman chord line.
Wednesday, September 28, 2011
Singur Ka Faisla
Upholding the Singur Land Rehabilitation and Development Act 2011as constitutional and valid, the Calcutta High Court in its judgment today pointed out that the provision of compensation laid in the act was vague and uncertain. The High Court stayed the operation of the Singur Act till November 2 which prohibits the state to distribute the land among the unwilling farmers now.
Delivering the final verdict on the Singur Land Development Act, Justice I P Mukherjee said that the compensation is to be awarded by applying the principle of compensation mentioned in the section 23 and 24 of the Land Acquisition Act 1894, the central act. The High Court pointed out '' Although, there is an intention expressed by the legislature to pay compensation, the intention expressed is vague and uncertain''. Therefore section 23 and 24 of the Land Acquisition Act which are deemed to be incorporated in the Sigur act for deciding compensation, said in the verdict.
Justice Mukherjee said that the Tata Motors would have to apply to District Judge, Hoogly for getting the compensation. The High Court also directed that the payment of compensation would be decided by the District Judge within six months. The High Court also said '' If the government admits any compensation in its rejoinder to the application to be filed by the Tatas, the government should pay it immediately'' said High Court.
The state government took over the possession of the land at Singur on June 21 evening applying the Singur Act, passed in the state assembly on June 14 . Following that the Tata Motors moved to the Calcutta High Court challenging the validity of the act. The Tata Motors conusel argueed that the provision of compensation in the act was not clear and land was taken over by the police not in legal manner.
Regarding the manner in which possession of land was taken, the High Court observed that the district officials exceeded their powers without any notice to the Tata Motors and acting so hastly. The High Court today appointed District Magistrate and Superintendent of Police, jointly as special officer to ensure safe and smooth transition of the Land from the Tatas to the state.
The High Court also directed that the Tata Motors would be allowed to remove their material from the site if any with in two months.
The Calcutta High Court today put a seal on the the public purpose, the main objective of the act. According to the act, it was introduced to distribute the land among the unwilling farmers who did not receive the any compensation. The High Court also accepted the plea of the state government that the Tata Motors abandoned the Signur site and the land remained unutilised for nearly three years. The High Court today observed that said that the act can not be called arbitrary legislation which was targeted at a particular person or corporate body to victimise it.
It was the contention of the state counsels that the act was introduced under the provision of the state list. But the Tata Motors counsel argued that the Singur act interferred with central act Land Acquisition Act, 1894 on the ground the new act should be struck down by the court.
Today Justice Mukherjee said that the act was not wholly an exercise of power of the state legislature under state list, but also an exercise of its power under concurrent list also. But the High Court also said that sufficient public purpose is made out in the act.
Explaining to put the stay, Justice Mukherjee said that any aggrieved party should be given chance to move an appeal to the higher forum.
1. September 26-- Mamata Banerjee staged a Dharna at BDO office Singur in protest against the acquisition of land in the third week of September,2006.
2. October 4- 2006 Land at Singur was handed over to the Tata Motors.
3. February 23,2007--Calcutta High Court wanted to get details on the acquisition of Singur land .
4. January 18,2008- Calcutta High Court upheld land acquisition at Singur.
5. October 3,2008-- The Tata Motor announced to withdraw the project.
6. June 14, 2011-- The Singur Land Rehabilitation and Development Act was passed in the assembly.
7. June 21, 2011-- The state government took over the possesion of the land at Singur from Tata Motors.
8. June 22, 2011---Tata Motors moved to the Calcutta High Court challenging Singur Act.
9. September 28,2011--The Calcutta High Court held Singur Act constitutional and valid.
Delivering the final verdict on the Singur Land Development Act, Justice I P Mukherjee said that the compensation is to be awarded by applying the principle of compensation mentioned in the section 23 and 24 of the Land Acquisition Act 1894, the central act. The High Court pointed out '' Although, there is an intention expressed by the legislature to pay compensation, the intention expressed is vague and uncertain''. Therefore section 23 and 24 of the Land Acquisition Act which are deemed to be incorporated in the Sigur act for deciding compensation, said in the verdict.
Justice Mukherjee said that the Tata Motors would have to apply to District Judge, Hoogly for getting the compensation. The High Court also directed that the payment of compensation would be decided by the District Judge within six months. The High Court also said '' If the government admits any compensation in its rejoinder to the application to be filed by the Tatas, the government should pay it immediately'' said High Court.
The state government took over the possession of the land at Singur on June 21 evening applying the Singur Act, passed in the state assembly on June 14 . Following that the Tata Motors moved to the Calcutta High Court challenging the validity of the act. The Tata Motors conusel argueed that the provision of compensation in the act was not clear and land was taken over by the police not in legal manner.
Regarding the manner in which possession of land was taken, the High Court observed that the district officials exceeded their powers without any notice to the Tata Motors and acting so hastly. The High Court today appointed District Magistrate and Superintendent of Police, jointly as special officer to ensure safe and smooth transition of the Land from the Tatas to the state.
The High Court also directed that the Tata Motors would be allowed to remove their material from the site if any with in two months.
The Calcutta High Court today put a seal on the the public purpose, the main objective of the act. According to the act, it was introduced to distribute the land among the unwilling farmers who did not receive the any compensation. The High Court also accepted the plea of the state government that the Tata Motors abandoned the Signur site and the land remained unutilised for nearly three years. The High Court today observed that said that the act can not be called arbitrary legislation which was targeted at a particular person or corporate body to victimise it.
It was the contention of the state counsels that the act was introduced under the provision of the state list. But the Tata Motors counsel argued that the Singur act interferred with central act Land Acquisition Act, 1894 on the ground the new act should be struck down by the court.
Today Justice Mukherjee said that the act was not wholly an exercise of power of the state legislature under state list, but also an exercise of its power under concurrent list also. But the High Court also said that sufficient public purpose is made out in the act.
Explaining to put the stay, Justice Mukherjee said that any aggrieved party should be given chance to move an appeal to the higher forum.
1. September 26-- Mamata Banerjee staged a Dharna at BDO office Singur in protest against the acquisition of land in the third week of September,2006.
2. October 4- 2006 Land at Singur was handed over to the Tata Motors.
3. February 23,2007--Calcutta High Court wanted to get details on the acquisition of Singur land .
4. January 18,2008- Calcutta High Court upheld land acquisition at Singur.
5. October 3,2008-- The Tata Motor announced to withdraw the project.
6. June 14, 2011-- The Singur Land Rehabilitation and Development Act was passed in the assembly.
7. June 21, 2011-- The state government took over the possesion of the land at Singur from Tata Motors.
8. June 22, 2011---Tata Motors moved to the Calcutta High Court challenging Singur Act.
9. September 28,2011--The Calcutta High Court held Singur Act constitutional and valid.
ममता बनर्जी ने भवानीपुर सीट जीती
पश्चिम बंगाल के भवानीपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के लिए बुधवार को हुई मतगणना में मुख्यमंत्नी ममता बनर्जी अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की एन.मुखर्जी को 54218 मतों से हरा दिया है।
राज्य के लोकनिर्माण मंत्नी सुब्रत बख्शी ने सुश्री बनर्जी के लिए भवानीपुर सीट से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद यह सीट खाली थी।
बशीरहाट (उत्तर) विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के ए.टी.एम.अब्दुल्ला ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के साबिर अली गाजी को आज 30941 मतों से पराजित करके इस सीट पर कब्जा कर लिया।
गत 25 सितम्बर को इस सीट पर हुए उप चुनाव में अब्दुल्ला और गाजी के अलावा भारतीय जनता पार्टी के सुबोध कुमार चक्रवर्ती और निर्दलीय अजित प्रमाणिक भी मैदान में थे। माकपा प्रत्याशी के इस सीट पर पराजित होने के बाद राज्य विधानसभा में अब वाममोर्चा के सदस्यों की संख्या घटकर 63 रह गई है।
बशीरहाट (उत्तर) सीट से माकपा विधायक मुस्तफा बिन कासिम का निधन होने के कारण इस सीट पर उपचुनाव कराया गया था।
गत 25 सितम्बर को इन दोनों सीटों पर हुए उपचुनाव के लिए आज सुबह आठ बजे मतगणना शुरू हुई थी।
राज्य के लोकनिर्माण मंत्नी सुब्रत बख्शी ने सुश्री बनर्जी के लिए भवानीपुर सीट से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद यह सीट खाली थी।
बशीरहाट (उत्तर) विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के ए.टी.एम.अब्दुल्ला ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के साबिर अली गाजी को आज 30941 मतों से पराजित करके इस सीट पर कब्जा कर लिया।
गत 25 सितम्बर को इस सीट पर हुए उप चुनाव में अब्दुल्ला और गाजी के अलावा भारतीय जनता पार्टी के सुबोध कुमार चक्रवर्ती और निर्दलीय अजित प्रमाणिक भी मैदान में थे। माकपा प्रत्याशी के इस सीट पर पराजित होने के बाद राज्य विधानसभा में अब वाममोर्चा के सदस्यों की संख्या घटकर 63 रह गई है।
बशीरहाट (उत्तर) सीट से माकपा विधायक मुस्तफा बिन कासिम का निधन होने के कारण इस सीट पर उपचुनाव कराया गया था।
गत 25 सितम्बर को इन दोनों सीटों पर हुए उपचुनाव के लिए आज सुबह आठ बजे मतगणना शुरू हुई थी।
Monday, September 26, 2011
नहीं कर सकेंगे 100 सौ से अधिक एसएमएस
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) का प्रति सिम प्रतिदिन एक सौ एसएमएस का नियम मंगलवार से लागू हो जाएगा। ट्राई ने देशभर के मोबाइलधारकों को अवांछित विज्ञापन वाले एसएमएस से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से यह नियम लागू कर रहा है। हालांकि उसके इस कदम से दोस्तों और रिश्तेदारों से एसएमएस के जरिये जुडे रहने वाले उन युवाओं को अधिक परेशानी होगी जो रातदिन एसएमएस करने में लगे रहते हैं।
ट्राई ने गत पांच सितंबर को अवांछित काल और एसएमएस पर रोक लगाने की घोषणा की थी। यह नियम 27 सितंबर से लागू हो रही है। ट्राई ने इसके साथ ही दूरसंचार कंपनियों को प्रति सिम प्रतिदिन एक सौ से अधिक एसएमएस की अनुमति नहीं देने का आदेश दिया था। हालांकि यह नियम त्योहारों के अवसर पर लागू नहीं होगा और उस दिन उपभोक्ता असीमित एसएमएस कर सकेंगे।
ट्राई ने कहा है कि पोस्टपेड कनेक्शन के मामले में आपरेटर प्रति महीने तीन हजार से अधिक एसएमएस की अनुमति नहीं दे सकते हैं। ट्राई के इन सुझावों के लागू होने के साथ ही उन उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिलेगी जो डू नाट काल रजिस्ट्री में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। ट्राई को अपने इस सुझाव पर अमल करने बीच के दूरसंचार कंपनियों के संगठन सेलुलर आपरेटर एयोसियेशन आफ इंडिया (सीओएआई) ने नियामक से इस पर दोबारा विचार करने का आग्रह करते हुए कहा है कि इस तरह के नियम से आम उपभोक्ताओं के मौलिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
सीओएआई ने कहा है कि कई मौके पर एसएमएस संचार का महत्वपूर्ण माध्यम होता है। संगठन के महानिदेशक राजन एस मैथ्यु ने पिछले सप्ताह ट्राई को भेजे पत्र में कहा कि किसी ग्राहक के साथ एक समय ऎसी स्थिति आ सकती है जब वह एसएमएस की इस सीमा को पूरा कर चुका होगा लेकिन अचानक उसके समक्ष अपात स्थिति उत्पन्न हो जाए। उन्होंने कहा कि इस तरह के नियम से उस ग्राहक की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
ट्राई ने गत पांच सितंबर को अवांछित काल और एसएमएस पर रोक लगाने की घोषणा की थी। यह नियम 27 सितंबर से लागू हो रही है। ट्राई ने इसके साथ ही दूरसंचार कंपनियों को प्रति सिम प्रतिदिन एक सौ से अधिक एसएमएस की अनुमति नहीं देने का आदेश दिया था। हालांकि यह नियम त्योहारों के अवसर पर लागू नहीं होगा और उस दिन उपभोक्ता असीमित एसएमएस कर सकेंगे।
ट्राई ने कहा है कि पोस्टपेड कनेक्शन के मामले में आपरेटर प्रति महीने तीन हजार से अधिक एसएमएस की अनुमति नहीं दे सकते हैं। ट्राई के इन सुझावों के लागू होने के साथ ही उन उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिलेगी जो डू नाट काल रजिस्ट्री में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। ट्राई को अपने इस सुझाव पर अमल करने बीच के दूरसंचार कंपनियों के संगठन सेलुलर आपरेटर एयोसियेशन आफ इंडिया (सीओएआई) ने नियामक से इस पर दोबारा विचार करने का आग्रह करते हुए कहा है कि इस तरह के नियम से आम उपभोक्ताओं के मौलिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
सीओएआई ने कहा है कि कई मौके पर एसएमएस संचार का महत्वपूर्ण माध्यम होता है। संगठन के महानिदेशक राजन एस मैथ्यु ने पिछले सप्ताह ट्राई को भेजे पत्र में कहा कि किसी ग्राहक के साथ एक समय ऎसी स्थिति आ सकती है जब वह एसएमएस की इस सीमा को पूरा कर चुका होगा लेकिन अचानक उसके समक्ष अपात स्थिति उत्पन्न हो जाए। उन्होंने कहा कि इस तरह के नियम से उस ग्राहक की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
Friday, September 23, 2011
कठिन समय में प्रेम मौसम
मुख्य कलाकार : शाहिद कपूर, सोनम कपूर, अदिति शर्मा, सुप्रिया पाठक और अनुपम खेर आदि।
निर्देशक : पंकज कपूर
तकनीकी टीम : निर्माता- शीतल विनोद तलवार, सुनील लुल्ला, कथा-पटकथा-संवाद- पंकज कपूर, गीत- इरशाद कामिल, संगीत- प्रीतम चक्रवर्ती
पंकज कपूर की मौसम मिलन और वियोग की रोमांटिक कहानी है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानी में आम तौर पर सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि नहीं रहती। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और गंभीर अभिनेता जब निर्देशक की कुर्सी पर बैठते हैं तो वे अपनी सोच और पक्षधरता से प्रेरित होकर अपनी सृजनात्मक संतुष्टि के साथ महत्वपूर्ण फिल्म बनाने की कोशिश करते हैं। हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय ढांचे और उनकी सोच में सही तालमेल बैठ पाना मुश्किल ही होता है। अनुपम खेर और नसीरुद्दीन शाह के बाद अब पंकज कपूर अपने निर्देशकीय प्रयास में मौसम ले आए हैं।
पंकज कपूर ने इस प्रेमकहानी के लिए 1992 से 2002 के बीच की अवधि चुनी है। इन दस-ग्यारह सालों में हरेन्द्र उर्फ हैरी और आयत तीन बार मिलते और बिछुड़ते हैं। उनका मिलना एक संयोग होता है, लेकिन बिछुड़ने के पीछे कोई न कोई सामाजिक-राजनीतिक घटना होती है। फिल्म में पंकज कपूर ने बाबरी मस्जिद, कारगिल युद्ध और अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के आतंकी हमले का जिक्र किया है। पहली घटना में दोनों में से कोई भी शरीक नहीं है। दूसरी घटना में हैरी शरीक है। तीसरी घटना से आयत प्रभावित होती है। आखिरकार अहमदाबाद के दंगे की चौथी घटना में दोनों फंसते हैं और यहीं उनका मिलन भी होता है। पंकज कपूर ने प्रेमकहानी में वियोग का कारण बन रही इन घटनाओं पर कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है। अंत में अवश्य ही हैरी कुछ भयानक सायों का उल्लेख करता है, जिनके न चेहरे होते हैं और न नाम। निर्देशक अप्रत्यक्ष तरीकेसे सांप्रदायिकता, घुसपैठ और आतंकवाद के बरक्स हैरी और आयत की अदम्य प्रेमकहानी खड़ी करते हैं।
पंकज कपूर ने पंजाब के हिस्से का बहुत सुंदर चित्रण किया है। हैरी और आयत के बीच पनपते प्रेम को उन्होंने गंवई कोमलता के साथ पेश किया है। गांव के नौजवान प्रेमी के रूप में शाहिद जंचते हैं और सोनम कपूर भी सुंदर एवं भोली लगती हैं। दोनों के बीच का अव्यक्त प्रेम भाता है। दूसरे मौसम में स्काटलैंड में एयरफोर्स ऑफिसर के रूप में भी शाहिद कपूर ने सार्थक मेहनत की है। यहां सोनम कपूर खिल गई हैं। इसके बाद की घटनाओं, प्रसंगों और चरित्रों के निर्वाह में निर्देशक की पकड़ ढीली हो गई है। आरंभिक आकर्षण कम होता गया है। कई दृश्य लंबे और बोझिल हो गए हैं। इंटरवल के बाद के हिस्से में निर्देशक आत्मलिप्त हो गए हैं और अपने सृजन से चिपक गए हैं।
फिल्म के अंतिम दृश्य बनावटी, नकली और फिल्मी हो गए हैं। एक संवेदनशील, भावुक और अदम्य प्रेमकहानी फिल्मी फार्मूले का शिकार हो जाती है। अचानक सामान्य अदम्य प्रेमी हैरी हीरो बन जाता है। यहां पंकज कपूर बुरी तरह से चूक जाते हैं और फिल्म अपने आरंभिक प्रभाव को खो देती है। यह फिल्म पूरी तरह से शाहिद कपूर और सोनम कपूर पर निर्भर करती है। दोनों ने अपने तई निराश नहीं किया है। फिल्म अपने नैरेशन और क्लाइमेक्स में कमजोर पड़ती है।
निर्देशक : पंकज कपूर
तकनीकी टीम : निर्माता- शीतल विनोद तलवार, सुनील लुल्ला, कथा-पटकथा-संवाद- पंकज कपूर, गीत- इरशाद कामिल, संगीत- प्रीतम चक्रवर्ती
पंकज कपूर की मौसम मिलन और वियोग की रोमांटिक कहानी है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानी में आम तौर पर सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि नहीं रहती। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और गंभीर अभिनेता जब निर्देशक की कुर्सी पर बैठते हैं तो वे अपनी सोच और पक्षधरता से प्रेरित होकर अपनी सृजनात्मक संतुष्टि के साथ महत्वपूर्ण फिल्म बनाने की कोशिश करते हैं। हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय ढांचे और उनकी सोच में सही तालमेल बैठ पाना मुश्किल ही होता है। अनुपम खेर और नसीरुद्दीन शाह के बाद अब पंकज कपूर अपने निर्देशकीय प्रयास में मौसम ले आए हैं।
पंकज कपूर ने इस प्रेमकहानी के लिए 1992 से 2002 के बीच की अवधि चुनी है। इन दस-ग्यारह सालों में हरेन्द्र उर्फ हैरी और आयत तीन बार मिलते और बिछुड़ते हैं। उनका मिलना एक संयोग होता है, लेकिन बिछुड़ने के पीछे कोई न कोई सामाजिक-राजनीतिक घटना होती है। फिल्म में पंकज कपूर ने बाबरी मस्जिद, कारगिल युद्ध और अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के आतंकी हमले का जिक्र किया है। पहली घटना में दोनों में से कोई भी शरीक नहीं है। दूसरी घटना में हैरी शरीक है। तीसरी घटना से आयत प्रभावित होती है। आखिरकार अहमदाबाद के दंगे की चौथी घटना में दोनों फंसते हैं और यहीं उनका मिलन भी होता है। पंकज कपूर ने प्रेमकहानी में वियोग का कारण बन रही इन घटनाओं पर कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है। अंत में अवश्य ही हैरी कुछ भयानक सायों का उल्लेख करता है, जिनके न चेहरे होते हैं और न नाम। निर्देशक अप्रत्यक्ष तरीकेसे सांप्रदायिकता, घुसपैठ और आतंकवाद के बरक्स हैरी और आयत की अदम्य प्रेमकहानी खड़ी करते हैं।
पंकज कपूर ने पंजाब के हिस्से का बहुत सुंदर चित्रण किया है। हैरी और आयत के बीच पनपते प्रेम को उन्होंने गंवई कोमलता के साथ पेश किया है। गांव के नौजवान प्रेमी के रूप में शाहिद जंचते हैं और सोनम कपूर भी सुंदर एवं भोली लगती हैं। दोनों के बीच का अव्यक्त प्रेम भाता है। दूसरे मौसम में स्काटलैंड में एयरफोर्स ऑफिसर के रूप में भी शाहिद कपूर ने सार्थक मेहनत की है। यहां सोनम कपूर खिल गई हैं। इसके बाद की घटनाओं, प्रसंगों और चरित्रों के निर्वाह में निर्देशक की पकड़ ढीली हो गई है। आरंभिक आकर्षण कम होता गया है। कई दृश्य लंबे और बोझिल हो गए हैं। इंटरवल के बाद के हिस्से में निर्देशक आत्मलिप्त हो गए हैं और अपने सृजन से चिपक गए हैं।
फिल्म के अंतिम दृश्य बनावटी, नकली और फिल्मी हो गए हैं। एक संवेदनशील, भावुक और अदम्य प्रेमकहानी फिल्मी फार्मूले का शिकार हो जाती है। अचानक सामान्य अदम्य प्रेमी हैरी हीरो बन जाता है। यहां पंकज कपूर बुरी तरह से चूक जाते हैं और फिल्म अपने आरंभिक प्रभाव को खो देती है। यह फिल्म पूरी तरह से शाहिद कपूर और सोनम कपूर पर निर्भर करती है। दोनों ने अपने तई निराश नहीं किया है। फिल्म अपने नैरेशन और क्लाइमेक्स में कमजोर पड़ती है।
Thursday, September 22, 2011
सिर्फ 32 रुपये की कमाई पर गुजर-बसर
क्या महानगर में कोई रोजाना सिर्फ 32 रुपये की कमाई पर गुजर-बसर कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को दाखिल हलफनामे में योजना आयोग ने गरीबी रेखा की जो नई परिभाषा तय की है, उसमें कहा गया है कि महानगरों में अगर चार लोगों का परिवार महीने में 3,860 रुपये से ज्यादा खर्च करता है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा। चार लोगों के लिए 3,860 रुपये का मतलब है एक आदमी पर महज 32 रुपये प्रतिदिन। इसी तरह योजना आयोग के मुताबिक अगर ग्रामीण क्षेत्रों में कोई शख्स हर रोज 26 रुपये से ज्यादा खर्च करता है तो वो गरीब नहीं कहलाएगा। उसे गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए चलने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलेगा। सब्जी की कीमतों में आग लगी हुई है। दूध के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। खाने-पीने की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं। महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है, लेकिन योजना आयोग की दलील है कि जो हर रोज 32 रुपए खर्च कर सकता है, वो भला गरीब कैसे हो सकता है! आम जनता ने योजना आयोग की इस रिपोर्ट को कड़वा मजाक करार दिया है। पंकज ढनढनिया ने कहा कि आज 32 रुपये में ठीक से प्यास नहीं बुझती तो भला एक दिन का खर्च चलाने के बारे में कैसे सोचा जा सकता है? आज अगर तीन लीटर स्वच्छ पेयजल खरीदने जाएंगे तो इसमें 36 रुपये लग जाएंगे। बांधाघाट में रहने वाले पवन अग्रवाल ने कहा कि गरीबी की इस नयी परिभाषा का कोई मतलब नहीं है। एक व्यक्ति जब घर से निकलता है तो उसका सुबह से शाम तक बस, आटो और रिक्शा का किराया ही 50 रुपए से ज्यादा लग जाता है। कभी-कभी तो सिर्फ रिक्शा का किराया ही 30 रुपये से ज्यादा देना पड़ता है। यमुना प्रसाद ने कहा कि आये दिन नून-तेल के दाम आसमान छूते जा रहे हैं। वहां 32 रुपये में गुजारा करने वालों को गरीबी की श्रेणी से बाहर रखने का फैसला आम जनता के साथ कड़वा मजाक है। हमारे नेता करोड़ों की संपत्ति रखे हुए हैं और आम जनता 32 रुपये में अपना खर्च चलाए। अहिरीटोला के शंकर साव का कहना है कि उनके परिवार का गुजारा बाटी-चोखा की दुकान से चलता है। उनके दिनभर का खर्च ही 100 है। मुट्ठी मिस कर खर्च करने पर भी एक दिन का खर्च 100 रुपया पड़ जाता है। वे यूपी के मिर्जापुर के रहने वाले हैं। वर्षों पहले उनके दादा जी ने यह दुकान लगायी थी और इसी से उनके पूरे परिवार का खर्च चलता है हावड़ा के नंदीबगान में रहने वाले गुड्डू राय ने कहा कि सरकार ने 32 रुपया खर्च करने वालों को खुशहाल की श्रेणी में रखने का फैसला करके देश की जनता की गरीबी का मजाक उड़ाया है। आज जिस तरह से महंगाई मुंह बाए खड़ी है, उसमें उनके जैसे मध्यम श्रेणी के लोगों की तो दूर की बात है, अच्छे वेतन वाले लोगों को भी गुजारा करना कठिन हो रहा है
Badal slams Centre for making mockery of poor
Punjab Chief Minister Parkash
Singh Badal today said he was shocked to learn that in the
eyes of the Centre a person earning Rs 25 in villages and Rs
32 in urban areas was rich.
"This is the most cruel joke ever played on the poor in
this country and amounts to rubbing salt into their wounds. It
is beyond anyone's understanding as to how a government can
base its policies on such weird presumptions," he said.
"By these standards India has suddenly been transformed
into a land of the rich. Is this the UPA's way of removing
poverty in the country? the Chief Minister posed.
Badal said that the spiralling prices of essential
commodities had not only broken the back of the already
suffering common man but had also unleashed new inflationary
trends which in turn would further slow down the growth rate.
Singh Badal today said he was shocked to learn that in the
eyes of the Centre a person earning Rs 25 in villages and Rs
32 in urban areas was rich.
"This is the most cruel joke ever played on the poor in
this country and amounts to rubbing salt into their wounds. It
is beyond anyone's understanding as to how a government can
base its policies on such weird presumptions," he said.
"By these standards India has suddenly been transformed
into a land of the rich. Is this the UPA's way of removing
poverty in the country? the Chief Minister posed.
Badal said that the spiralling prices of essential
commodities had not only broken the back of the already
suffering common man but had also unleashed new inflationary
trends which in turn would further slow down the growth rate.
Tuesday, September 20, 2011
32 रुपए में खर्चा चलाने वाला आदमी गरीब नहीं: योजना आयोग
आये दिन पेट्रोल के दाम बढ़ाने वाली केंद्र सरकार ने गरीबों के साथ घटिया मजाक किया है। देश के विकास के लिए योजनाएं बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था योजना आयोग ने कहा है कि जो व्यक्ति शहर में 32 रुपए और गांव में 26 रुपए प्रति दिन में खर्चा चला सकते हैं, वो गरीबी रेखा से ऊपर माने जायेंगे। गरीबी रेखा की नई परिभाषा में सरकार ने कहा कि मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु या चेन्नई में चार लोगों के परिवार का खर्चा 3,860 रुपए में चल सकता है। उन्हें गरीबी रेखा में नहीं गिना जायेगा।
खास बात यह है कि यह योजना हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कमेटी ने बनायी है। देश के वित्तमंत्री रह चुके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र कहता है कि एक दिन में एक आदमी प्रति दिन अगर 5.50 रुपए दाल पर, 1.02 रुपए चावल, रोटी पर, 2.33 रुपए दूध, 1.55 रुपए तेल, 1.95 रुपए साग-सब्जी, 44 पैसे फल पर, 70 पैसे चीनी पर, 78 पैसे नमक व मसालों पर, 1.51 पैसे अन्य खाद्य पदार्थों पर, 3.75 पैसे ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्यक्ति अगर 49.10 रुपए मासिक किराया दे तो आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जायेगा।
सुरेश तेंदुलकर कमेटी द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वस्थ्य रहने के लिए 39.70 रुपए पर्याप्त हैं। शिक्षा पर 99 पैसे प्रति दिन या 29.60 रुपए प्रति माह का खर्च, 61.30 रुपये प्रति माह में कपड़े, 9.60 रुपए जूते-चप्पल और 28.80 पैसे अन्य सामान पर खर्च करे तो वो गरीब नहीं कहलायेगा। खास बात यह है कि योजना आयोग ने यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किये हैं। हालांकि रिपोर्ट में अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद पेश की जायेगी।
खास बात यह है कि यह योजना हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कमेटी ने बनायी है। देश के वित्तमंत्री रह चुके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र कहता है कि एक दिन में एक आदमी प्रति दिन अगर 5.50 रुपए दाल पर, 1.02 रुपए चावल, रोटी पर, 2.33 रुपए दूध, 1.55 रुपए तेल, 1.95 रुपए साग-सब्जी, 44 पैसे फल पर, 70 पैसे चीनी पर, 78 पैसे नमक व मसालों पर, 1.51 पैसे अन्य खाद्य पदार्थों पर, 3.75 पैसे ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्यक्ति अगर 49.10 रुपए मासिक किराया दे तो आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जायेगा।
सुरेश तेंदुलकर कमेटी द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वस्थ्य रहने के लिए 39.70 रुपए पर्याप्त हैं। शिक्षा पर 99 पैसे प्रति दिन या 29.60 रुपए प्रति माह का खर्च, 61.30 रुपये प्रति माह में कपड़े, 9.60 रुपए जूते-चप्पल और 28.80 पैसे अन्य सामान पर खर्च करे तो वो गरीब नहीं कहलायेगा। खास बात यह है कि योजना आयोग ने यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किये हैं। हालांकि रिपोर्ट में अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद पेश की जायेगी।
Sunday, September 18, 2011
After IAF, Shahid's 'Mausam' raises hackles of Railways
Pankaj Kapoor's upcoming movie
'Mausam' is in fresh trouble with the Railway Ministry taking
"strong" objection to a scene, where the actor is seen
speeding in a car through an unmanned level crossing in front
of an approaching train, as it feels that it could encourage
youngsters to engage in such dangerous actions.
Concerned over increase in number of mishaps at unmanned
crossings which have claimed more than 130 lives in recent
past, Railways have decided to take up the matter with the
makers of the movie asking them to carry a disclaimer that the
they do not endorse such acts and these should not be
replicated.
"The scene apart, we are also concerned over the fact
that it is enacted by actor Shahid Kapoor who is popular among
the youths," said a senior railway official, adding, a letter
would be sent to the film unit soon. The promos with the
particular scene are currently being aired by TV channels.
The movie had earlier raised hackles of Air Force which
objected to a 30-second aerial action sequence with Shahid
who plays an Air Force pilot.
Last week, the Indian Air Force (IAF) had objected to
certain action scenes in the film, where the actor plays
the role of a fighter pilot.
'Mausam' is in fresh trouble with the Railway Ministry taking
"strong" objection to a scene, where the actor is seen
speeding in a car through an unmanned level crossing in front
of an approaching train, as it feels that it could encourage
youngsters to engage in such dangerous actions.
Concerned over increase in number of mishaps at unmanned
crossings which have claimed more than 130 lives in recent
past, Railways have decided to take up the matter with the
makers of the movie asking them to carry a disclaimer that the
they do not endorse such acts and these should not be
replicated.
"The scene apart, we are also concerned over the fact
that it is enacted by actor Shahid Kapoor who is popular among
the youths," said a senior railway official, adding, a letter
would be sent to the film unit soon. The promos with the
particular scene are currently being aired by TV channels.
The movie had earlier raised hackles of Air Force which
objected to a 30-second aerial action sequence with Shahid
who plays an Air Force pilot.
Last week, the Indian Air Force (IAF) had objected to
certain action scenes in the film, where the actor plays
the role of a fighter pilot.
Friday, September 16, 2011
मूल्यवृद्धि पर भड़की ममता, केंद्र को चेताया
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो व राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महंगाई के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्र को सावधान करते हुए पेट्रोल की बढ़ी कीमतें तत्काल वापस लेने की मांग की है। सुश्री बनर्जी ने शुक्रवार को राइटर्स बिल्डिंग में संवाददाताओं से कहा कि आम जनता महंगाई से पहले से ही त्रस्त है। बार-बार पेट्रोल का दाम बढ़ाने से आम जनता पर ही बोझ बढ़ेगा। वह तेल के दाम बढ़ाने के केंद्र के निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनके निर्देश पर केंद्रीय जहाजरानी राज्यमंत्री मुकुल राय ने केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से फोन कर आपत्ति जतायी। कहा कि पेट्रोल की कीमत बढ़ाने के निर्णय से वह सहमत नहीं हैं और उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्र के समक्ष अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।
सुश्री बनर्जी ने कहा कि उन्होंने राज्य में अपने स्तर पर महंगाई कम करने का प्रयास किया है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद उन्होंने सब्सिडी देकर रसोई गैस की कीमतें घटायी। इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने पेट्रोल की बढ़ी कीमत को वापस लेने के लिए केंद्र पर चौतरफा दबाव बनाना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के साथ राइटर्स बिल्डिंग में हुई बैठक में भी इस मुद्दे पर कड़ी आपत्ति जतायी। इससे पहले सुश्री बनर्जी ने रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को दिल्ली में केंद्र के समक्ष तृणमूल कांग्रेस की ओर से पेट्रोल की मूल्य वृद्धि पर विरोध दर्ज कराने का निर्देश दिया। इसके बाद श्री त्रिवेदी ने केंद्र के समक्ष इस मुद्दे पर अपनी कड़ी आपत्ति जतायी। उन्होंने तृणमूल काग्रेस की ओर से पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी को वापस लिए जाने की माग की और कहा कि यह आम आदमी को प्रभावित करेगा। बाद में श्री त्रिवेदी ने वहां संवाददाता सम्मेलन बुलाकर कहा कि तृणमूल काग्रेस चाहती है कि पेट्रोल की कीमतों में बढोतरी को वापस लिया जाए। उन्होंने कहा कि कीमतें बढ़ाने से पहले उनकी पार्टी की राय नहीं मागी गई। उन्होंने एलपीजी की कीमतों में प्रस्तावित वृद्धि का भी विरोध किया और कहा कि यह कोई लक्जरी नहीं है, बल्कि आम आदमी के लिए अत्यंत जरूरी है और इसे और नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
सुश्री बनर्जी ने कहा कि उन्होंने राज्य में अपने स्तर पर महंगाई कम करने का प्रयास किया है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद उन्होंने सब्सिडी देकर रसोई गैस की कीमतें घटायी। इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने पेट्रोल की बढ़ी कीमत को वापस लेने के लिए केंद्र पर चौतरफा दबाव बनाना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के साथ राइटर्स बिल्डिंग में हुई बैठक में भी इस मुद्दे पर कड़ी आपत्ति जतायी। इससे पहले सुश्री बनर्जी ने रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को दिल्ली में केंद्र के समक्ष तृणमूल कांग्रेस की ओर से पेट्रोल की मूल्य वृद्धि पर विरोध दर्ज कराने का निर्देश दिया। इसके बाद श्री त्रिवेदी ने केंद्र के समक्ष इस मुद्दे पर अपनी कड़ी आपत्ति जतायी। उन्होंने तृणमूल काग्रेस की ओर से पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी को वापस लिए जाने की माग की और कहा कि यह आम आदमी को प्रभावित करेगा। बाद में श्री त्रिवेदी ने वहां संवाददाता सम्मेलन बुलाकर कहा कि तृणमूल काग्रेस चाहती है कि पेट्रोल की कीमतों में बढोतरी को वापस लिया जाए। उन्होंने कहा कि कीमतें बढ़ाने से पहले उनकी पार्टी की राय नहीं मागी गई। उन्होंने एलपीजी की कीमतों में प्रस्तावित वृद्धि का भी विरोध किया और कहा कि यह कोई लक्जरी नहीं है, बल्कि आम आदमी के लिए अत्यंत जरूरी है और इसे और नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
Thursday, September 15, 2011
आम आदमी की सरकार के 77 फीसदी मंत्री करोड़पति
मनमोहन सिंह की सरकार में 77 फीसदी मंत्री करोड़पति हैं. गौर करने की बात ये है कि मंत्री सिर्फ करोड़पति नहीं है, बल्कि उनकी संपत्ति में दो साल के भीतर 1000 फीसदी से ज्यादा तक का इजाफा दर्ज किया गया है. मंत्रियों की संपत्तियों पर आंख खोल देने वाली रिपोर्ट गुरुवार को ही जारी हुई है.
जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से बेहाल है लेकिन मनमोहन के मंत्री तो मालामाल हैं. सरकार के आधे से ज्यादा मंत्री ना सिर्फ करोड़पति हैं, बल्कि दो साल में कइयों की संपत्ति 100 गुना से भी ज्यादा बढ़ गयी है. पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रियों ने पीएमओ में अपनी सपंत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया था. उन आंकड़ों का जब एसोसिएसन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म और इलेक्शन नेशनल वॉच ने विश्लेषण किया तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए.
एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री डीएमके के डॉक्टर एस जगतरक्षकन की संपत्ति 2 साल में 1092 फीसदी बढ़ी है. 2009 में जगतरक्षकन की संपत्ति करीब 6 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 70 करोड़ से ज्यादा हो गई है. यानी दो साल में उनकी संपत्ति में 64 करोड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ है.
इतना ज्यादा इजाफा तो केंद्रीय मंत्रियों में सबसे अमीर प्रफुल्ल पटेल की संपत्ति में भी नहीं हुआ. 2009 में प्रफुल्ल पटेल ने अपनी संपत्ति 78 करोड़ 82 लाख से ज्यादा बताई थी, जो 2011 में बढ़कर 1 अरब 22 करोड़ से ज्यादा हो गई है. पटेल की संपत्ति में करीब 42 करोड़ का इजाफा हुआ है.
अमीर मंत्रियों में तीसरे नंबर पर कमलनाथ हैं. जिनकी संपत्ति दो साल में 189 फीसदी बढ़ी है. 2009 में कमलनाथ ने अपनी संपत्ति 14 करोड़ 17 लाख, 70 हजार 37 रुपये बताई थी, 2011 में उन्होंने इससे 26 करोड़ ज्यादा संपत्ति बताई है. धनी मंत्रिय़ों में दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल भी पीछे नहीं हैं. उनकी संपत्ति 38 करोड़ से ज्यादा है. हालांकि, 2009 में भी उनके पास 30 करोड़ से ज्यादा की सपंत्ति थी.
एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक मनमोहन सरकार के कई और मंत्रियों की संपत्ति में भारी इजाफा हुआ है. कपड़ा राज्य मंत्री पानाबाका लक्ष्मी की संपत्ति दो साल में 828 फीसदी बढ़ी है. उनकी संपत्ति करीब पौने दो करोड़ से बढ़कर 16 करोड़ के ऊपर पहुंच गई है. जनजातीय कार्य राज्यमंत्री तुषारभाई चौधरी की संपत्ति में भी करीब 705 फीसदी का इजाफा हुआ है.
वायलार रवि की संपत्ति में भी 502 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है. संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला 2009 में करीब 8 करोड़ के मालिक थे, अब उनकी संपत्ति 30 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है. यानी 294 फीसदी का इजाफा. अश्विनी कुमार की संपत्ति करीब साढ़े आठ करोड़ से बढ़कर 25 करोड़ से ऊपर चली गई है. यानी इजाफा 193 फीसदी. जयंति नटराजन भी पीछे नहीं हैं. उनके पास अब 23 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है, जो 2009 की तुलना में 191 फीसदी ज्यादा है.
केंद्रीय कानून सलमान खुर्शीद ढाई करोड़ से सवा छह करोड़ की संपत्ति के स्वामी बन चुके हैं. संपत्ति में इजाफा 139 फीसदी. देश के सबसे अमीर मंत्रियों में शुमार वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की संपत्ति 14 करोड़ 90 लाख से बढ़कर 32 करोड़ 66 लाख हो गई है. ज्योतिरादित्य की संपत्ति में दो साल में 119 फीसदी का इजाफा हुआ है.
सुशील कुमार शिंदे ने इस बार अपनी संपत्ति 17 करोड़ 80 लाख से ज्यादा बताई है. ये 2009 की तुलना में 9 करोड़ ज्यादा है. यानी 107 फीसदी का इजाफा. एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक मिलिंद देवड़ा की संपत्ति में 89 फीसदी का इजाफा हुआ है. देवड़ा की संपत्ति पहले साढ़े 17 करोड़ थी जो बढ़कर 33 करोड़ को पार कर गई है. कृषि मंत्री शरद पवार की संपत्ति में भी 43 फीसदी का इजाफा हुआ है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सपंत्ति में भी 16 फीसदी इजाफा हुआ है. एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक 77 में 59 मंत्री यानी 77 करीब फीसदी मंत्री करोड़पति हैं. 2009 में मंत्रियों की औसत संपत्ति 7.3 करोड़ थी. ये बढ़कर 10.6 करोड़ हो गई है. यानी मंत्रियों की संपत्ति में औसतन 3.3 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई.
दो साल में मंत्रियों की संपत्ति में 45 फीसदी का इजाफा. यकीनन ये आंकड़े आम आदमी की सरकार की छवि से मेल नहीं खाते. एक तरफ देश के ज्यादातर वेतनभोगी पिछले दो साल से मंदी और महंगाई की मार से परेशान हैं, दूसरी तरफ करोड़पति मंत्री. कहीं यही वजह तो नहीं कि सरकार आम आदमी का दर्द नहीं समझ पा रही.
जिन मंत्रियों की संपत्ति में आई गिरावट
जहां मनमोहन मंत्रिमंडल के 24 मंत्रियों की संपत्ति दो साल में सौ फीसदी से ज्यादा बढ़ गई, 15 मंत्री ऐसे भी हैं जिनकी संपत्ति में गिरावट दर्ज हुई है. कम से कम पीएमओ में उन्होंने जो संपत्ति जाहिर की है, उससे तो यही मतलब निकलता है. इन मंत्रियों की फेहरिस्त में शामिल हैं केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, फारुख अब्दुल्ला, वीरप्पा मोइली और जयपाल रेड्डी जैसे धाकड़ मंत्री.
नि मंत्रियों ने 2009 की तुलना में अपनी संपत्ति में कमी बताई है. इसमें सबसे ऊपर हैं प्रनीत कौर. प्रनीत कौर ने 2009 में 42 करोड़ की संपत्ति बताई थी, लेकिन इस बार उन्होंने महज 1 करोड़ 89 लाख की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया. इस लिहाज से प्रनीत कौर की संपत्ति दो साल में 96 फीसदी घटी है. वीरप्पा मोइली की संपत्ति में भी 95 फीसदी की गिरावट आई है. 2009 में मोइली 2 करोड़ 93 लाख के मालिक थे. मोइली के मुताबिक अब उनके पास सिर्फ 13 लाख 33 हजार की संपत्ति है.
फारुख अब्दुल्ला की संपत्ति में भी 93 फीसदी तक की गिरावट आई है. जयपाल रेड्डी की संपत्ति करीब साढ़े पांच करोड़ से घटकर 2011 में 60 लाख पर आ गई है. यानी रेड्डी की संपत्ति 89 फीसदी घटी है. पीएमओ में दिए गए ब्योरे के मुताबिक विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की सपंत्ति भी 2009 के 5 करोड़ 34 लाख 94 हजार 748 रुपये से घटकर 2011 में 3 करोड़ 97 लाख 14 हजार 224 रुपये रह गई है.
यूं तो गृहमंत्री पी चिदंबरम अभी भी करीब 25 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं, लेकिन 2009 की तुलना में उनकी संपत्ति भी 11 फीसदी घटी है. मनमोहन सरकार की युवा मंत्री अगाथा संगमा की संपत्ति 66 लाख से घटकर 62 लाख रह गई है. इसी तरह जितिन प्रसाद की संपत्ति सवा तीन करोड़ से घटकर अब करीब डेढ़ करोड़ रह गई है. 2009 की तुलना में मंत्रियों की संपत्ति में फर्क का आंकड़ा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने जारी किया है.
जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से बेहाल है लेकिन मनमोहन के मंत्री तो मालामाल हैं. सरकार के आधे से ज्यादा मंत्री ना सिर्फ करोड़पति हैं, बल्कि दो साल में कइयों की संपत्ति 100 गुना से भी ज्यादा बढ़ गयी है. पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रियों ने पीएमओ में अपनी सपंत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया था. उन आंकड़ों का जब एसोसिएसन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म और इलेक्शन नेशनल वॉच ने विश्लेषण किया तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए.
एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री डीएमके के डॉक्टर एस जगतरक्षकन की संपत्ति 2 साल में 1092 फीसदी बढ़ी है. 2009 में जगतरक्षकन की संपत्ति करीब 6 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 70 करोड़ से ज्यादा हो गई है. यानी दो साल में उनकी संपत्ति में 64 करोड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ है.
इतना ज्यादा इजाफा तो केंद्रीय मंत्रियों में सबसे अमीर प्रफुल्ल पटेल की संपत्ति में भी नहीं हुआ. 2009 में प्रफुल्ल पटेल ने अपनी संपत्ति 78 करोड़ 82 लाख से ज्यादा बताई थी, जो 2011 में बढ़कर 1 अरब 22 करोड़ से ज्यादा हो गई है. पटेल की संपत्ति में करीब 42 करोड़ का इजाफा हुआ है.
अमीर मंत्रियों में तीसरे नंबर पर कमलनाथ हैं. जिनकी संपत्ति दो साल में 189 फीसदी बढ़ी है. 2009 में कमलनाथ ने अपनी संपत्ति 14 करोड़ 17 लाख, 70 हजार 37 रुपये बताई थी, 2011 में उन्होंने इससे 26 करोड़ ज्यादा संपत्ति बताई है. धनी मंत्रिय़ों में दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल भी पीछे नहीं हैं. उनकी संपत्ति 38 करोड़ से ज्यादा है. हालांकि, 2009 में भी उनके पास 30 करोड़ से ज्यादा की सपंत्ति थी.
एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक मनमोहन सरकार के कई और मंत्रियों की संपत्ति में भारी इजाफा हुआ है. कपड़ा राज्य मंत्री पानाबाका लक्ष्मी की संपत्ति दो साल में 828 फीसदी बढ़ी है. उनकी संपत्ति करीब पौने दो करोड़ से बढ़कर 16 करोड़ के ऊपर पहुंच गई है. जनजातीय कार्य राज्यमंत्री तुषारभाई चौधरी की संपत्ति में भी करीब 705 फीसदी का इजाफा हुआ है.
वायलार रवि की संपत्ति में भी 502 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है. संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला 2009 में करीब 8 करोड़ के मालिक थे, अब उनकी संपत्ति 30 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है. यानी 294 फीसदी का इजाफा. अश्विनी कुमार की संपत्ति करीब साढ़े आठ करोड़ से बढ़कर 25 करोड़ से ऊपर चली गई है. यानी इजाफा 193 फीसदी. जयंति नटराजन भी पीछे नहीं हैं. उनके पास अब 23 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है, जो 2009 की तुलना में 191 फीसदी ज्यादा है.
केंद्रीय कानून सलमान खुर्शीद ढाई करोड़ से सवा छह करोड़ की संपत्ति के स्वामी बन चुके हैं. संपत्ति में इजाफा 139 फीसदी. देश के सबसे अमीर मंत्रियों में शुमार वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की संपत्ति 14 करोड़ 90 लाख से बढ़कर 32 करोड़ 66 लाख हो गई है. ज्योतिरादित्य की संपत्ति में दो साल में 119 फीसदी का इजाफा हुआ है.
सुशील कुमार शिंदे ने इस बार अपनी संपत्ति 17 करोड़ 80 लाख से ज्यादा बताई है. ये 2009 की तुलना में 9 करोड़ ज्यादा है. यानी 107 फीसदी का इजाफा. एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक मिलिंद देवड़ा की संपत्ति में 89 फीसदी का इजाफा हुआ है. देवड़ा की संपत्ति पहले साढ़े 17 करोड़ थी जो बढ़कर 33 करोड़ को पार कर गई है. कृषि मंत्री शरद पवार की संपत्ति में भी 43 फीसदी का इजाफा हुआ है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सपंत्ति में भी 16 फीसदी इजाफा हुआ है. एडीआर और एनईडब्ल्यू के मुताबिक 77 में 59 मंत्री यानी 77 करीब फीसदी मंत्री करोड़पति हैं. 2009 में मंत्रियों की औसत संपत्ति 7.3 करोड़ थी. ये बढ़कर 10.6 करोड़ हो गई है. यानी मंत्रियों की संपत्ति में औसतन 3.3 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई.
दो साल में मंत्रियों की संपत्ति में 45 फीसदी का इजाफा. यकीनन ये आंकड़े आम आदमी की सरकार की छवि से मेल नहीं खाते. एक तरफ देश के ज्यादातर वेतनभोगी पिछले दो साल से मंदी और महंगाई की मार से परेशान हैं, दूसरी तरफ करोड़पति मंत्री. कहीं यही वजह तो नहीं कि सरकार आम आदमी का दर्द नहीं समझ पा रही.
जिन मंत्रियों की संपत्ति में आई गिरावट
जहां मनमोहन मंत्रिमंडल के 24 मंत्रियों की संपत्ति दो साल में सौ फीसदी से ज्यादा बढ़ गई, 15 मंत्री ऐसे भी हैं जिनकी संपत्ति में गिरावट दर्ज हुई है. कम से कम पीएमओ में उन्होंने जो संपत्ति जाहिर की है, उससे तो यही मतलब निकलता है. इन मंत्रियों की फेहरिस्त में शामिल हैं केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, फारुख अब्दुल्ला, वीरप्पा मोइली और जयपाल रेड्डी जैसे धाकड़ मंत्री.
नि मंत्रियों ने 2009 की तुलना में अपनी संपत्ति में कमी बताई है. इसमें सबसे ऊपर हैं प्रनीत कौर. प्रनीत कौर ने 2009 में 42 करोड़ की संपत्ति बताई थी, लेकिन इस बार उन्होंने महज 1 करोड़ 89 लाख की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया. इस लिहाज से प्रनीत कौर की संपत्ति दो साल में 96 फीसदी घटी है. वीरप्पा मोइली की संपत्ति में भी 95 फीसदी की गिरावट आई है. 2009 में मोइली 2 करोड़ 93 लाख के मालिक थे. मोइली के मुताबिक अब उनके पास सिर्फ 13 लाख 33 हजार की संपत्ति है.
फारुख अब्दुल्ला की संपत्ति में भी 93 फीसदी तक की गिरावट आई है. जयपाल रेड्डी की संपत्ति करीब साढ़े पांच करोड़ से घटकर 2011 में 60 लाख पर आ गई है. यानी रेड्डी की संपत्ति 89 फीसदी घटी है. पीएमओ में दिए गए ब्योरे के मुताबिक विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की सपंत्ति भी 2009 के 5 करोड़ 34 लाख 94 हजार 748 रुपये से घटकर 2011 में 3 करोड़ 97 लाख 14 हजार 224 रुपये रह गई है.
यूं तो गृहमंत्री पी चिदंबरम अभी भी करीब 25 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं, लेकिन 2009 की तुलना में उनकी संपत्ति भी 11 फीसदी घटी है. मनमोहन सरकार की युवा मंत्री अगाथा संगमा की संपत्ति 66 लाख से घटकर 62 लाख रह गई है. इसी तरह जितिन प्रसाद की संपत्ति सवा तीन करोड़ से घटकर अब करीब डेढ़ करोड़ रह गई है. 2009 की तुलना में मंत्रियों की संपत्ति में फर्क का आंकड़ा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने जारी किया है.
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