Wednesday, May 19, 2010

पश्चिम बंगाल निकाय चुनाव २०१०

कोलकाता, रंजीत लुधियानवी
30 मई को होने वाले कोलकाता नगर निगम समेत 81 पालिका चुनाव को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। इसके नतीजे निश्चित रूप से राज्य की राजनीति की दशा-दिशा तय करेंगे ही, साथ ही कुछ हद तक इसका असर केंद्र की राजनीति पर भी पड़ेगा। कांग्रेस और ममता बनर्जी के रिश्तों से लेकर वाममोर्चा का भविष्य इसी पर निर्भर माना जा रहा है। ममता कई बार साफ कह चुकी हैं कि कांग्रेस दिल्ली संभाले और हमें बंगाल संभालने दे, एक दूसरे के काम में दखल नहीं देना चाहिए। यूपीए गठबंधन में तृणमूल दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन निकाय चुनाव में कांग्रेस-तृणमूल गठजोड़ टूट गया। सत्तारूढ़ वाममोर्चा के विरुद्ध विपक्ष एकजुट नहीं हो सका। तृणमूल कांग्रेस राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी है और केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस को राज्य में विपक्षी पार्टी का तगमा लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। स्थानीय निकाय चुनाव में भी वह अपनी राष्ट्रीय छवि के अनुरूप आचरण कर रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कम सीटों पर लड़ी और अधिक सीटें तृणमूल के लिए छोड़ दी, लेकिन स्थानीय निकायों के चुनाव में उसे ममता के समक्ष झुकना गंवारा नहीं हुआ। ममता के अहं को ठेस लगी और उन्होंने कोलकाता नगर निगम की सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर दिए। इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि अब राज्य में कोई जोट नहीं है।
केंद्र की यूपीए सरकार में सबसे बड़े सहयोगी दल के रूप में शामिल तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में एकला चलो की नीति अख्तियार कर ली। राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजर में कांग्रेस के साथ ममता के संबंधों में दरार पैदा हो चुका है। यह बात दूसरी है कि यूपीए सरकार में शरीक होने के नाते कांग्रेस ममता के खिलाफ फिलहाल ज्यादा आक्रामक नहीं है। विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख जोट का विकल्प खुला रखा गया है लेकिन विपक्ष की एकजुटता पर संदेह बना हुआ है। आम मतदाताओं की गतिविधियां परिवर्तन के पक्ष में दिख रही हैं। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी हर बार यह साबित करने का प्रयास कर रही है कि राज्य में परिवर्तन की हवा उनके नेतृत्व में पैदा हुई है। परिवर्तन का जो माहौल पैदा हुआ है, उसे इनकार नहीं किया जा सकता। वाममोर्चा के नेता भी इसे स्वीकार कर रहे हैं। प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि यदि कांग्रेस और तृणमूल संयुक्त रूप से जनता के परिवर्तन की इच्छा को पूरा करने में संगठित रूप से प्रयास करती तो स्पष्ट मत उभर कर सामने आता। राज्य के गली, चौराहा और महानगर के नुक्कड़ों पर भी विपक्ष का जोट टूटने की आलोचना हो रही है। बनर्जी ने कहा है कि स्थानीय निकायों में सीधी टक्कर वाममोर्चा और तृणमूल कांग्रेस के बीच है। उनकी नजर में कांग्रेस इस लड़ाई में कहीं नहीं है। इसके बावजूद कांग्रेस अपनी राष्ट्रीय छवि के अनुरूप मैदान में डटी है। चुनाव प्रचार में भी कांग्रेस के नेता अपनी राष्ट्रीय छवि के अनुरूप आचरण करते दिख रहे हैं। इस क्रम में उन्हें कभी-कभी तृणमूल कांग्रेस की आलोचना भी करनी पड़ रही है। ममता बनर्जी जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव कराने को लेकर आतुर दिख रही हैं। उन्हें डर है कि परिवर्तन का जो माहौल तैयार हुआ है वह विलंब होने से ठंडा भी पड़ सकता है। इधर, कांग्रेस और तृणमूल के बीच जो दरार पड़ी है उसे चौड़ा होने पर राज्य में नया समीकरण भी पैदा हो सकता है। ममता की मांग पर भले ही तीन माह के अंदर विधानसभा चुनाव न हो लेकिन स्थानीय निकायों के चुनाव नतीजों से कुछ हद तक राज्य की राजनीतिक तस्वीर साफ हो जाएगी और विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मी तेज हो जाएगी।

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