Monday, December 2, 2013

सबसे काबिल हैं पंजाबी, पश्चिम बंगाल फिसड्डी


 देश में रोजगार की दृष्टि से सबसे अधिक योग्य (यानी काबिल) लोग पंजाबी हैं जबकि सबसे कम योग्य (फिसड्डी) पश्चिम बंगाल के हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा जारी इंडिया स्किल रिपोर्ट 2014 से यह तथ्य सामने आया है।

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय तथा सी.आई. आई. एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित तीसरे राष्ट्रीय कौशल विकास सम्मेलन में यह रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार देश में रोजगार की दृष्टि से योग्य लोगों में 42.47 प्रतिशत लोग पंजाब से आते हैं जबकि तमिलनाडु से 36.13 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश से 30.44 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश से 33.4 प्रतिशत, दिल्ली से 29.68 प्रतिशत, कर्नाटक से 17.63 प्रतिशत, ओडिशा से 12.43 प्रतिशत एवं पश्चिम बंगाल से 4.23 प्रतिशत लोग रोजगार की दृष्टि से योग्य हैं।

रिपोर्ट के अनुसार उद्योग जगत में कार्यरत महिलाओं तथा पुरुषों के अनुपात में काफी अंतर है लेकिन रोजगार की दृष्टि से योग्य महिलाएं सर्वाधिक पंजाब से हैं जबकि सबसे कम योग्य महिलाएं पश्चिम बंगाल में हैं। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक योग्य पुरुष तमिलनाडु में हैं जबकि सबसे कम योग्य पुरुष पश्चिम बंगाल में हैं।

Thursday, November 21, 2013

छोटे परदे की बदलती दुनिया



-विश्व टेलीविजन दिवस-

आज विश्व टेलीविजन दिवस है. यह दिन है न सिर्फ टेलीविजन की विकासयात्रा को याद करने का, बल्कि यह समझने का भी कि टेलीविजन ने दुनिया को बदलने में किस तरह अपनी भूमिका निभायी है. टेलीविजन के अब तक के सफर, समाज में उसकी भूमिका और उसमें आ रहे बदलावों को समेटने की कोशिश करता आज का नॉलेज

आज की पीढ़ी को शायद यह विश्वास नहीं होगा कि महज दोत्नतीन दशक पहले लोग टेलीविजन पर कार्यक्रम देखने के लिए आसत्नपड़ोस के घरों में जाया करते थे. जिस तरह आज शहरों और सुविधासंपन्न गांवों में तकरीबन हर घर में टेलीविजन मौजूद है, ऐसा उस समय नहीं हुआ करता था. अस्सी के दशक में देश में जब टेलीविजन ने उच्चवर्गीय घरों के दायरे से निकलते हुए मध्यवर्गीय परिवारों में प्रवेश किया, तो किसी को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि इतनी जल्दी यह इतना लोकप्रिय हो जायेगा. 1990 के महज एक दशक की अवधि में यह तकरीबन प्रत्येक मध्यवर्गीय घरों में लोकप्रिय हो गया.

भारत में भले ही टेलीविजन की शुरुआत 1959 में हो चुकी थी, लेकिन इसकी लोकप्रियता 1980 के दशक में कायम हुई. रामानंद सागर निर्देशित धारावाहिक ‘रामायण’ , 1982 के एशियाई खेलों और 1987 में भारत में आयोजित ‘विश्व कप क्रिकेट’ ने भारत में टेलीविजन की लोकप्रियता को बहुत हद तक बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभायी. धारावाहिक ‘रामायण’ के प्रसारण के समय तो सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था.

इसे टेलीविजन की लोकप्रियता ही कहा जायेगा कि इस धारावाहिक में ‘भगवान राम’ का किरदार निभानेवाले अरुण गोविल को लोग उनके नाम से कम, बल्कि ‘भगवान राम’ की भूमिका के लिए अधिक जानने लगे.  तकरीबन उसी दौर में ‘बुनियाद’ और ‘हम लोग’ जैसे धारावाहिकों, जिन्हें भारत का शुरुआती शोप ऑपेरा भी कहा जा सकता है, ने भारत में टेलीविजन की दुनिया को एकदम से बदल दिया. क्रिकेट खेल के सीधे प्रसारण ने लोगों में एक अलग तरह का रोमांच पैदा कर दिया. हालांकि उस दौर में रंगीन टेलीविजन की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन ब्लैक एंड व्हाइट की तुलना में ज्यादा कीमती होने के चलते इसकी मौजूदगी बहुत कम ही घरों में थी. लेकिन दो दशकों से कम समय में भारत में  टेलीविजन ने संचार के दूसरे साधनों के समान ही अविश्वसनीय प्रगति की है. इस प्रगति की कहानी में दूरदर्शन की कहानी अभिन्न तरीके से जुड़ी हुई है.

दूरदर्शन की उपलब्धि

दूरदर्शन ने देश में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और वैज्ञानिक सोच को एक नयी दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. इसने देश में लंबे समय तक पब्लिक ब्रॉडकास्टर की भूमिका निभायी और अपनी तमाम खामियों के बावजूद यह काम आज भी कर रहा है. दूरदर्शन का पहला प्रसारण 15 सितंबर, 1959 को प्रयोगात्मक आधार पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया था. उस समय दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में महज तीन दिन आधात्नआधा घंटे ही होता था. उस समय इसे ‘टेलीविजन इंडिया’ के नाम से जाना जाता था. वर्ष 1975 में इसका हिंदी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया.

दूरदर्शन ने धीरे-धीरे अपने पैर पसारे और दिल्ली में 1965, मुंबई में 1972, कोलकाता और  चेन्नई में 1975 में इसका प्रसारण शुरू किया गया. 15 अगस्त, 1965 को पहले समाचार बुलेटिन का प्रसारण दूरदर्शन से किया गया था. दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर रात साढ़े आठ बजे प्रसारित होने वाला राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन तकरीबन उसी समय से आज भी जारी है. 1982 में दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों के प्रसारण से श्वेत और श्याम दिखने वाला दूरदर्शन रंगीन हो गया.

टेलीविजन की कहानी

कई लोगों की कड़ी मेहनत और तकरीबन तीन दशक के रिसर्च के बाद टेलीविजन का आविष्कार हुआ. सबसे पहले 1875 में बोस्टन के जॉर्ज कैरे ने सुझाव दिया था कि किसी चित्र के सारे अवयवों या घटकों को एक साथ इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भेजा जा सकता है. इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए 1887 में एडवियर्ड मायब्रिज ने इनसान और जानवरों के हलचल की फोटोग्राफिक रिकॉर्डिग की. इसे उन्होंने लोकोमोशन नाम दिया. इसके बाद ऑगस्टे और लुईस लुमियर नाम के दो भाईयों ने सिनेमैटोग्राफ नाम की संरचना का विचार रखा, जिसमें एक साथ कैमरा, प्रोजेक्टर और प्रिंटर था. उन दोनों ने 1895 में पहली पब्लिक फिल्म बनायी. 1907 में रूसी वैज्ञानिक बोरिस रोसिंग ने पहले एक प्रयोगात्मक टेलीविजन प्रणाली के रिसीवर में एक सीआरटी का उपयोग किया और इससे टीवी को नया रूप मिला. फिर लंदन में स्कॉटिश आविष्कारक जॉन लोगी बेयर्ड चलती छवियों के संचरण का प्रदर्शन करने में सफल रहे. बेयर्ड स्कैनिंग डिस्क ने एक रंग छवियों का 30 लाइनों को संकल्प कर उसे प्रस्तुत किया. इस तरह टीवी के आविष्कार में अनेक वैज्ञानिकों ने अहम रोल अदा किया, लेकिन ब्लादीमीर ज्योरकिन को ही ‘टीवी का पिता’ कहा जाता है. उन्होंने 1923 में आइकोनोस्कोप की खोज की. यह ऐसी ट्यूब थी, जो एक चित्र को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से किसी चित्र से जोड़ती है. इसके कुछ साल बाद ही उन्होंने काइनस्कोप यानी कैथोडत्नरे ट्यूब खोज निकाली. इसकी मदद से उन्होंने एक स्क्वायर इंच का पहला टीवी बनाया. यह ब्लैक एंड व्हाइट टीवी थी. इसके बाद रंगीन टेलीविजन की तकनीक को खोजने में तकरीबन बीस वर्ष लग गये. दुनिया की पहली रंगीन टेलीविजन 1953 में बनी.

टेलीविजन प्रसारण में बीबीसी ने पहला टीवी प्रसारण केंद्र बनाते हुए 1932 में अपनी सेवा शुरू की. 22 अगस्त, 1932 को लंदन के ब्रॉडकास्ट हाउस से पहली बार टीवी का प्रायोगिक प्रसारण शुरू हुआ और 2 नवंबर, 1932 को बीबीसी ने एलेक्जेंडरा राजमहल से दुनिया का पहला नियमित टीवी चैनल का प्रसारण शुरू कर दिया था. इसके पांच साल बाद राजा जॉर्ज छठवें ने राज्याभिषेक समारोह को ब्रिटेन की जनता तक सीधे पहुंचाने के लिए पहली बार ओवी वैन का इस्तेमाल किया. उसके बाद 12 जून 1937 को पहली बार विंबल्डन टेनिस का सीधा प्रसारण दिखाया गया था. 9 नवंबर 1947 को टेलीविजन के इतिहास में पहली बार टेली रिकार्डिग कर उसी कार्यक्रम का रात में प्रसारण किया गया. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में 1946 में एबीसी टेलीविजन नेटवर्क का उदय हुआ. पहली बार रंगीन टेलीविजन का अविर्भाव 17 दिसंबर 1953 को अमेरिका में हुआ और विश्व का पहला रंगीन विज्ञापन कैप्सूल 6 अगस्त 1953 को न्यूयॉर्क में प्रसारित हुआ था. 1967 में पूरी दुनिया की करोड़ों जनता ने अमेरिका की नेटवर्क टीवी के जरिये चांद पर गये दोनों आतंरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतरते देखा. इसके बाद 1976 में पहली बार केबल नेटवर्क के जरिये टेलीविजन प्रसारण का इतिहास कायम किया गया. 1979 में सिर्फ खेलकूद का विशेष टीवी नेटवर्क इएसपीएन स्थापित हुआ.

पिछले दो दशकों में टेलीविजन की दुनिया ने आश्चर्यजनक प्रगति की है. इस प्रगति में न सिर्फ नयेत्ननये टेलीविजन सेटों का आविष्कार शामिल है, बल्कि टेलीविजन देखने का पूरा तरीका ही बदल गया है. अब टेलीविजन मोबाइल फोन और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है. आज टेलीविजन हाइ डिफिनिशन हो चुका है, थ्री डाइमेंशनल हो गया है. वास्तव में अपनी शुरुआत के 80 वर्षो में टेलीविजन की प्रगति आश्चर्यचकित करती है, लेकिन आनेवाले समय में इसे कंप्यूटर से और कड़ी चुनौती मिलना तय है. बहरहाल दुनिया में संचार के तरीके को बदलने में इसने जो भूमिका निभायी है, वह अविस्मरणीय है.

टेलीविजन संचार का सबसे सशक्त माध्यम है. लोगों को दुनियाभर की जानकारी देने में टेलीविजन की अहम भूमिका को देखते हुए 17 दिसंबर, 1996 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 नवंबर को हर वर्ष विश्व टेलीविजन दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया. 21 नवंबर की तारीख इसलिए चुनी गयी, क्योंकि इसी दिन पहले विश्व टेलीविजन फोरम की बैठक हुई थी. माना जाता है कि विश्व टेलीविजन दिवस मनाने का कारण यह भी रहा कि टेलीविजन के द्वारा एकत्नदूसरे देशों की शांति, सुरक्षा, आर्थिक सामाजिक विकास व संस्कृति को जाना व समझा जा सके.

 इनकी निगाह में टेलीविजन

बान की-मून, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव

टेलीविजन ने पूरे विश्व में लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीकों और उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है. समानता आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से, टेलीविजन ने वैश्विक मुद्दों को रेखांकित किया है और समुदायों एवं परिवारों के बीच संघर्षो और उम्मीदों को समझने में मददगार साबित हुआ है. संयुक्त राष्ट्र यह कामना करता है कि प्रसारकों के सहयोग से यह समाज को सूचना और शिक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ हमारे लिए एक बेहतर दुनिया के निर्माण की ओर अग्रसर होगा.

 लेक वालेसा, पोलैंड के पूर्व राष्ट्रपति (1990-95),

नोबेल विजेता

लोकतंत्र की एक ऐसी आधारशिला, जिससे असीमित सूचना तक पहुंच कायम होती है. टेलीविजन चैनलों का बहुलवाद (प्लूरलिज्म) इनमें से इसका एक आवश्यक और अनिवार्य तत्व है.

 कोफी अन्नान, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव (1997-2006)

टेलीविजन लोगों की भलाई के लिए एक जबरदस्त ताकत हो सकता है. इससे जुड़े हुए लोगों को यह दुनियाभर में बड़ी संख्या में शिक्षा मुहैया करा सकता है. यह इसे प्रदर्शित कर सकता है कि हम अपने पड़ोस, नजदीक और दूर स्थित लोगों के साथ किस तरह से जुड़े हुए हैं. और, यह उस कोने में पसरे अंधेरे में रोशनी फैला सकता है, जहां अज्ञान और नफरत ने अपने पैर फैला रखे हैं. ऐसे कंटेंट तैयार करते हुए, जो न केवल ताकतवर, बल्कि कमजोर लोगों की कहानी को भी बयां करते होंत्न आपसी समझ और धैर्य को बढ़ावा देने के रूप में टेलीविजन उद्योग की अहम भूमिका है. इसका फायदा न केवल दुनिया के धनी देशों को  हुआ है, बल्कि उन सभी विकासशील देशों को भी इससे बहुत फायदा हुआ है, जिसमें दुनिया की ज्यादातर आबादी रहती है.

दूरदर्शन की यात्रा

आकाशवाणी के भाग के रूप में टेलीविजन सेवा की नियमित शुरुआत दिल्ली से वर्ष 1965 से हुई थी.  दूरदर्शन की स्थापना 15 सितंबर, 1976 को हुई. उसके बाद रंगीन प्रसारण की शुरुआत नयी दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों के दौरान हुई. इसके बाद तो देश में प्रसारण क्षेत्र में बड़ी क्रांति आ गयी. दूरदर्शन का तेजी से विकास हुआ और 1984 में देश में तकरीबन हर दिन एक ट्रांसमीटर लगाया गया. इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण मोड़ को इस तरह से रेखांकित किया जा सकता है.

- दूसरे चैनल की शुरुआत : दिल्ली (9 अगस्त, 1984), मुंबई (1 मई, 1985), चेन्नई (19 नवंबर, 1987), कोलकाता (1 जुलाई, 1988)

- मेट्रो चैनल शुरू करने के लिए एक दूसरे चैनल की नेटवर्किग  : 26 जनवरी, 1993

-अंतरराष्ट्रीय चैनल डीडी इंडिया की शुरुआत : 14 मार्च, 1995

त्नप्रसार भारती का गठन (भारतीय प्रसारण निगम) : 23 नवंबर, 1997

-खेल चैनल डीडी स्पोर्ट्स की शुरुआत : 18 मार्च, 1999

-संवर्धन/ सांस्कृतिक चैनल की शुरुआत : 26 जनवरी, 2002

-24 घंटे के समाचार चैनल डीडी न्यूज की शुरुआत : 3 नवंबर, 2002



-निशुल्क डीटीएच सेवा डीडी डाइरेक्ट प्लस की शुरुआत : 16 दिसंबर, 2004

Friday, September 13, 2013

आधार के आंकड़े निराशाजनक, समयसीमा बढ़ाने की होगी सिफारिश



रंजीत लुधियानवी

कोलकाता, 12 सितंबर। आगामी 2014 की फरवरी तक सभी लोगों का आधार कार्ड बनाने की समयसीमा राज्य सरकार ने तय कर दी है। इस दौरान राज्य के सभी जिलों को तीन भागों में बांट कर आधार कार्ड बनाने का काम पूरा करने का फैसला किया गया है। इसके साथ ही जिन लोगों के कार्ड के लिए तस्वीरें खींचने का काम हो चुका है और अभी तक कार्ड नहीं मिला है। ऐसे लोगों के लिए ई-आधार कार्ड चालू करने का निर्णय किया गया है। अभी तक आधार कार्ड के दायरे में नहीं आने वालों को कार्ड बनाने के लिए पंचायत इलाके के नागरिकों को बीडीओ कार्यालय, नगर निगम इलाके में रहने वालों के लिए निगम कार्यालय और नगरपालिका इलाके में रहने वलों के लिए संबंधित बोरो या वार्ड कार्यालय में जाकर फार्म में खुद से संबंधित 15 आवश्यक आंकड़े दर्ज करवाने होंगे। ऐसा करने के लिए अपने पास पहचान पत्र (आइडेंटी प्रूफ) और रहने का रिहायशी प्रमाण पत्र (एड्रेस प्रूफ) लेकर जाना होगा। इसके बाद यह पता लगाने का प्रयास करेंकि आपके इलाके में आधार कार्ड के लिए कब फोटो खींचने वाले  शिविर का आयोजन किया जा रहा है। तय तिथि पर फोटो और बायोमैट्रिक आंकड़ें जमा करवा दें। हालांकि लौटने से पहले एकनालेजमेंट रसीद जरूर प्राप्त कर लें। तीन महीने तक डाक के माध्यम से कार्ड आपके घर पहुंच जाना चाहिए। ऐसे नहीं होने पर डब्लूडब्लूडब्लू डाट यूआईडीएआआई डाट आइएन वेबसाइट के ई आधार पोर्टल पर प्राप्त की गई रसीद के नंबर से स्टेटस की जांच कर सकते हैं।
मालूम हो कि आगामी एक नवंबर से कोलकाता, हावड़ा और कूचबिहार जिलों में रसोई गैस पर सबसिडी सीधे ग्राहक के बैंक खाते में जमा हो जाएगी। इसके लिए ग्राहक के पास आधार कार्ड या आधार नंबर होना चाहिए। बगैर कार्ड या नंबर वाले उपभोक्ताओं को 31 जनवरी तक सबसिडी वाला सिलेंडर मिलता रहेगा। इसके बाद जब तक आधार कार्ड या नंबर प्राप्त नहीं होता है, बगैर सबसिडी वाला सिलेंडर खरीदना होगा।
अगर आप खुशकिस्मत हैं और आधार के दायरे में आ चुके हैं, तब रसोई गैस डिस्ट्रीब्यूटर से मुफ्त में दो फार्म हासिल करें, एक फार्म में आधार कार्ड नंबर समेत दूसरे आंकड़े भर कर डिस्ट्रीब्यूटर के पास जमा करें। इसके साथ आधार कार्ड की प्रतिलिपि (जेराक्स) जमा देना न भूलें। बैंक के लिए दूसरा फार्म भरकर जिस बैंक में आप सबसिडी लेना चाहते हैं, बैंक खाता और आधार नंबर लिखकर जमा कर दें। डिस्ट्रीब्यूटर के कार्यालय में बैंक का फार्म एक बाक्स  में डाल दें या सीधे जाकर बैंक में जमा कर सकते हैं। इसके बाद आपका आधार नंबर रसोई गैस के कंजुमर नंबर से साथ जुड़ जाएगा। इसी तरह आपका आधार नंबर बैंक खाते के साथ लिंक हो जाएगा।
परियोजना के चालू होने के बाद पहला गैस सिलेंडर बुक करते ही संबंधित बैंक खाते में 490 रुपए जमा हो जाएंगे। जब आपके घर सिलेंडर आएगा, तब आपको बाजार दर पर सिलेंडर के लिए कीमत देनी होगी। इस महीने सिलेंडर की कीमत कोलकाता में 967 रुपए हैं।   सबसिडी वाले सिलेंडर के लिए आपको 412 रुपए 50 पैसे देने चाहिए, जबकि भुगतान ज्यादा का कर रहे हैं, इसलिए 64 रुपए 50 पैसे सिलेंडर मिलने के बाद आपके खाते में जमा हो जाएंगे। इसके बाद दूसरे सिलेंडर के दौरान बुकिंग करते ही सबसिडी की सारी रकम आपके खाते में जमा हो जाएगी। एक वित्त वर्ष में आपके एक अप्रैल से लेकर 31 मार्च की अवधि तक सबसिडी वाले नौ सिलेंडर मिलेंगे, इसके बाद खरीदे जाने वाले सिलेंडर पर आपको सबसिडी नहीं मिलेगी।
आंकड़ों के मुताबिक 11 मार्च 2013 तक कोलकाता में 55.46, हावड़ा में 60.50 फीसद और हुगली में 46.57 लोगों को आधार कार्ड मिले हैं, जबकि यहां 31 अक्तूबर तक काम पूरा होने की समयसीमा है। उत्तर चौबीस परगना में 7.29 फीसद और दक्षिण चौबीस परगना में 21.58 फीसद लोगों के कार्ड बने हैं, यहां 28 फरवरी तक कार्ड बनाने की समय सीमा तय की गई है। हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आधार कार्ड के दायरे में आने वाले जिलों में पहला नंबर हावड़ा जिले का है। यहां सबसे ज्यादा 83.9 फीसद लोग इस दायरे में आ चुके हैं। जबकि उत्तर दिनाजपुर में 8.3 फीसद, बांकुड़ा में 13.9 फीसद, कूचबिहार में 77 फीसद, जलपाईगुड़ी में 23.3 फीसद, दार्जिलिंग में 25 फीसद, दक्षिण दिनाजपुर में 50.6 फीसद, मालदा में 42.4 फीसद, हुगली में 79 फीसद, कोलकाता में 63.37 फीसद, मुर्शिदाबाद में 56 फीसद , पूर्व मेदिनीपुर जिले में 47.2 फीसद, दक्षिण चौबीस परगना जिले में 36.1 फीसद , बर्दवान जिले में 3.8, नदिया जिले में 34.5 फीसद,  वीरभूम 30.6 फीसद, उत्तर चौबीस परगना जिले में 27.9 फीसद, पश्चिम मेदिनीपुर जिले में 24.6 फीसद लोग आधार के दायरे में आ चुके हैं।
 राज्य के जनगणना विभाग के संयुक्त अधिकारी पीके मजुमदार का कहना है कि आधार बनाने के मामले में राज्य आठवें स्थान पर है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि हम कार्ड बनाने के मामले में पिछड़े हुए हैं। पंचायत चुनाव और डाक घर में पिन कोड की समस्या को लेकर जरूर कार्ड बनाने में देरी हुई है, ऐसा नहीं होता तो हालात और अच्छे होते। पंचायत चुनाव के लिए मार्च के अंत में अधिसूचना जारी हुई थी और जुलाई तक प्रक्रिया पूरी हुई। इस दौरान ग्रामीण इलाकों में कार्ड बनाने का काम पूरी तरह से बंद रहा। इसके बाद एक नाम के कई जगह पिनकोड अपलोड होने के कारण शहरी इलाकों में आधार का काम थम गया था।
राज्य सरकार की ओर से कोलकाता, हावड़ा, हुगली, बांकुड़ा,कूचबिहार, दक्षिण दिनाजपुर और मालदा जिले के लिए 31 अक्तूबर तक आधार कार्ड बनाने का काम पूरा करने की समयसीमा तय कर दी है। जबकि वीरभूम, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिमी मेदिनीपुर, पुरुलिया, उत्तर दिनाजपुर और जलपाईगुड़ी जिले में 31 दिसंबर तक समयसीमा तय की गई है। बर्दवान,उत्तर चौबीस परगना, दक्षिण चौबीस परगना, मुर्शिदाबाद, नदिया और दार्जिलिंग जिले के लिए 28 फरवरी की समयसीमा तय की गई है।
इधर राज्य सरकार के सूत्रों का कहना है कि सिलेंडर की सबसिडी सीधे उपभोक्ताओं के खाते में पहुंचाने के लिए सभी लोगों को 28 फरवरी तक आधार के दायरे में लाने की परियोजना बनाई गई है। गृह सचिव बासुदेव बंदोपाध्याय के मुताबिक इस बारे में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय को पत्र लिख कर कहा जाएगा कि तय समय पर काम पूरा नहीं हुआ तब सबसिडी के मामले में समयसीमा बढ़ाई जाए, जिससे लोगों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो। 

Wednesday, June 12, 2013

बंगाल में अपराध घटे या बढ़े?

 राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं में वृद्धि हुई है। नेशनल क्राईम रिकार्ड  ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। लेकिन राज्य सरकार का कहना है कि बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ संगीन अपराध की घटनाओं में कमी हुई है। रिपोर्ट में सरकारी पक्ष का जिक्र नहीं किया गया है।
 राज्य के पुलिस महानिदेशक नपराजित मुखर्जी ने बुधवार को एक पत्रकार सम्मेलन में कहा कि राज्य में बलात्कार की घटनाएं अऔर संगीन अपराध में मामलों में उल्लेखनीय कमी हुई है। लेकिन ब्यूरो ने हमारा पक्ष छापने से इंकार कर दिया। हमलोगों ने ब्यूरो को लिखा कि हमारा पक्ष प्रकाशित किया जाए, जिससे आंकड़ों के बारे में गलत धारणाएं नहीं हो। 
मालूम हो कि क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 2012 में अपराध के 30942 घटनाएं हुई हैं, जबकि 2011 में यह 29133 थी। डकैती की घटनाएं 236 के बजाए 279 दर्ज हुई।  हत्या के मामले 2109 से बढ़कर 2252, हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि बलात्कार की घटनाएं इस दौरान 2363 से घटकर 2046 हो गई है। जबकि मुखर्जी ने दावा किया कि यहां के  हालात दूसरे राज्यों के बेहतर हैं। उनका कहना है कि हमलोग महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को रोकने के लिए बहुत गंभीर हैं और बीते छह महीने में इस बारे में कई कदम उठाए गए हैं। 
मालदा, उत्तर दिनाजपुर और हल्दिया में बलात्कार और गंभीर अपराध की घटनाओं के मामले में उम्र कैद की सजा दिए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इससे अपराध दर और उत्पीड़न की रोकथाम के बारे में बीते छह महीने के दौरान हमारी कोशिशों का पता चलता है। इस मौके पर उन्होंने कहा कि संगीन अपराध के मामले बीते साल के मुकाबले 2317 से घट कर 2012 में 1978 हो गए हैं। 
मालूम हो कि पुलिस महानिदेशक का बयान उत्तर चौबीस परगना जिले के बारासात में कालेज छात्रा से सामूहिक बलात्कार की घटना के पांच दिन बाद आया है, जब सारे राज्य में विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बारासात में नया पुलिस थाना बनाने के बारे में विचार किया जा रहा है। इसके साथ ही सामूहिक बलात्कार के मामले में पहले की कठोर कदम उठाए गए हैं। हालांकि उन्होंने माना कि उत्तर चौबीस परगना जिले के बैरकपुर में तीन पत्रकारों पर हमला करने के मामले में मुख्य अभियुक्त शिबु यादव फरार है। 
मुख्य सचिव संजय मित्र ने बारासात सामूहिक बलात्कार और टीवी पत्रकारों पर हमले की घटनाओं को बीते दो-तीन दिनों में हुई  छिटपुट घटनाएं बताते हुए कहा कि पुलिस  एक्शन ले रही है। हमलोग चार्जशीट पेश करके अदालत से सख्त सजा दिए जाने की मांग करेंगे। उन्होंने कहा कि अपराध के मामले में राज्य सरकार किसी भी तरह की राहत बरतने के लिए तैयार नहीं है। 
  


Thursday, June 6, 2013

ममता अग्निपरीक्षा तो सफल हुई पर संकट टला नहीं


रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 6   जून । भाजपा और कांग्रेस के बगैर  हावड़ा लोकसभा उपचुनाव सीट पर चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी  एक अग्निपरीक्षा में सफल हो गई हैं । दल के वोट भी नहीं घटे हैं। लेकिन इसके बावजूद सत्ताधारी दल के लोगों के चेहरे पर सफलता मिलने पर  खुशी की झलक नहीं दिख रही है। जबकि तृणमूल कांग्रेस अकेले दम पर सफल ही नहीं रही है, अपने मतदाताओं को भी साथ रखने में कामयाब हुई है। इस दौरान बाहरी उम्मीदवार, अंदरुनी गुटबाजी, शारदा चिट फंड घोटाले  और कांग्रेस की ओर से तृणमूल कांग्रेस को पराजित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने का भी विरोधियों को फायदा नहीं मिला । इसका सबसे बड़ा कारण माकपा के वोट प्रतिशत में वृद्धि है। बीते दो साल में पहली बार वाममोर्चा किसी उपचुनाव में अपने वोट बढ़ाने में सफल रही है। चार फीसद से ज्यादा वोट बढ़ने के साथ ही दो विधानसभा केंद्रों पर भी लीड हासिल करने में सफल रही, जिससे तृणमूल समर्थक हैरान-परेशान हैं।
तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि सप्तरथी षडयंत्र के खिलाफ अभिमन्यु की तरह ममता बनर्जी ने माकपा,कांग्रेस, भाजपा, तीन बांग्ला टीवी चैनलों, तीन बांग्ला दैनिक समाचार पत्रों और एक श्रेणी के बुद्धिजीवियों से संघर्ष किया, जिन्होंने सरकार से जो हासिल करने की उम्मीद की थी, वह सफल नहीं हुई। इसके बाद वे लोग विरोधी बन गए। इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस के वोट घटे नहीं बल्कि बढ़ गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस को 2006 के विधानसभा में 12.25 फीसद मत मिले थे। जबकि 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठबंधन को 49.94 फीसद वोट मिले थे। इसमें कांग्रेस के वोट निकाल दिए जाएं तो तृणमूल के वोट 37.69 फीसद होते हैं जबकि 2013 के लोकसभा उपचुनाव में तृणमूल ने लगभग सात फीसद ज्यादा 44.68 फीसद मत प्राप्त किए हैं। इतना ही नहीं 2009 के लोकसभा की बात करें तब भी कांग्रेस-तृणमूल गठजोड़ को 48.04 और माकपा को 44.27 फीसद वोट मिले थे। इसमें कांग्रेस के वोट निकालने पर भी तृणमूल के वोट ज्यादा ही दिखते हैं। जबकि माकपा के वोट 44.27 फीसद से घट कर 41.85 फीसद रह गए हैं।
विधानसभा नतीजों में भी ज्यादा हेरफेर नहीं हुआ है। पिछले लोकसभा की तरह ही इस बार भी विधानसभा इलाकों का नतीजा 5-2 रहा है। हालांकि तब  माकपा ने तब बाली और उत्तर हावड़ा में बढ़त हासिल की थी जबकि इस बार दक्षिण हावड़ा और सांकराईल में बढ़त मिली है। इस तरह विधानसभा इलाकों की स्थित, वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही तृणमूल ने प्रतिष्ठा की सीट पर जीत हासिल की है। लेकिन समस्या यह है कि वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही जीत का फर्क बहुत ज्यादा घट गया है। इसमें एक बड़ा कारण कांग्रेस के वोट माने जा रहे हैं भले ही वह कहीं भी सफल नहीं हो सकी। इसके अलावा भाजपा के वोट वाले इलाके उत्तर हावड़ा, मध्य हावड़ा, पांचला में वोट बढ़े हैं। विधानसभा (2011) में माकपा सभी सात जगह पिछड़ रही थी लेकिन इस बार 37 फीसद से 41.85 फीसद वोट हासिल करने के साथ ही पांच विधानसभा केंद्रों में प्रतिशत बढ़ा जबकि एक जगह यथास्थिति रही है। विधायक अशोक घोष के उत्तर हावड़ा में जीत का फर्क 19608 से घट कर 6952, मंत्री अरुप राय के मध्य हावड़ा में 50670 से 6952, जटुलहिरी के शिवपुर में 46404 से 7047, ब्रजमोहन मजुमदार के दक्षिण हावड़ा में तो माकपा ने 31422 से पिछड़ने के बाद 2519 की बढ़त हासिल की। यही हाल सांकराईल का रहा, यहां माकपा ने शीतल सरदार की बढ़त 17859 को लांघ कर 6602 बढ़त प्राप्त की। पांचला में गुलशन मल्लिक भी 12118 को नहीं संभाल सके और यह महज 9960 रह गई।
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भले ही तृणमूल कांग्रेस के वोट 2006 और 2009 की तुलना में ज्यादा इधर-उधर नहीं हुए हैं। लेकिन उनके चार फीसद वोट माकपा की झोली में गए हैं और भाजपा के लगभग चार फीसद वोट तृणमूल को मिले हैं। इस तरह माकपा के वोट बढ़ गए लेकिन तृणमूल के वोट कुल मिलाकर पहले की तरह ही रहे हैं। सांकराईल और दक्षिण हावड़ा की हार तृणमूल के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि दोनों विधानसभा केंद्र ग्रामीण इलाके में हैं और अगले महीने पहले चरण के पंचायत चुनाव यहां होने वाले हैं। दोनों इलाकों में 20 से 25 फीसद मुसलमान मतदाता भी हैं, चिट फंड घोटाले के पीड़ित लोगों की यहां भारी संख्या भी है। कांग्रेस का मानना है कि सांकराईल में उनके लगभग 32 हजार वोट हैं। तृणमूल कांग्रेस को 61737, माकपा को 68339 और कांग्रेस को यहां 20608 वोट मिले हैं। दक्षिण हावड़ा में तृणमूल कांग्रेस को 70049, माकपा को 72568 और कांग्रेस को 11013 वोट मिले हैं। हालांकि पांचला में भी कांग्रेस ने 17659 वोट हासिल करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तृणमूल कांग्रेस 69612, माकपा को 59652 वोट मिले।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हावड़ा की जीत के बाद साफ तौर पर कहा है कि हमें कांग्रेस की नहीं उन्हें हमारी जरूरत है। लेकिन उपचुनाव के नतीजों से लगता है कि अकेले चुनाव लड़ने के कारण जहां कांग्रेस का सफाया हो सकता है वहीं वाममोर्चा को भारी सफलता मिलने की उम्मीद है। इसका खामियाजा सत्ताधारी दल को ही भुगतना होगा क्योंकि हावड़ा में 2008 के पंचायत चुनाव में वाममोर्चा को 62.16, तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस को 17.16 और भाजपा को 1.09 फीसद सफलता मिली थी।  भाजपा-कांग्रेस के बगैर पंचायत चुनाव की वैतरणी पार करना ममता के लिए आसान नहीं होगा।

Tuesday, March 26, 2013

महिला को मर्जी के खिलाफ रंग लगाने पर हो सकती है सात साल तक की जेल



कोलकाता, 26 मार्च (रंजीत लुधियानवी)। मंगलवार को किसी को रंग लगाने से पहले सौ बार सोच लीजीए कहीं लेने के देने न पड़ जाएं। रंगबाज बन कर खुश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि शिकायत मिलने पर सात साल तक की सजा भी हो सकती है। इसके अलावा किसी भी तरह की शिकायत मिलने पर पुलिसकुछ भी कर सकती है। इसलिए सतर्क रहने में ही फायदा है। कोलकाता पुलिस की ओर सेजारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक 27 और 28 मार्च को सुबह सात बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक महानगर के 54 रास्तों व 144 धारा जारी किए गए रास्तों पर शोभायात्रा के मौके पर किसी  भी तरह का माइक्रोफोन व्यवहार नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा पुलिस ने चौकसी के व्यापक प्रबंध किए हैं। जिससे किसी भी तरह की अप्रत्याशित घटना को रोका जा सके।
इधर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ रंग लगाने पर शिकायत की गई तो आईपीसी की धारा 376 (क) के तहत अभियुक्त व्यक्ति को सात साल तक सश्रम कारावास की सजा भुगतनी पड़ सकती है। इसके साथ ही जुर्माना भी देना पड़ सकता है। मालूम हो कि दी क्रिमिनल आर्डिनेंस ला ( एमेंडमेंट) आर्डिनेंस 2013 के आधार पर बनाए गए नए बलात्कार विरोधी कानून के मुताबिक महिला की छाती पर हाथ लगाना गैर जमानती अपराध है।
इस मामले में शील भंग करने के प्रयास का आरोप दायर हो सकता है।इसकेतहत धारा 354 में शिकायत दर्ज होने पर धारा 354 (क ) और (ख) में मामला दर्ज हगा और अधिकतम पांच साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है। जबकि धारा 354 में ग और ड के तहत मामला होने पर एक साल तक जेल जुर्माना या दोनों हो सकता है। इसके साथ ही मानहानि का आरोप भी दर्ज किया जा सकता है। इस कानून के मुताबिक आईपीसी की धारा 509 में तीन साल तक जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है। सभी धाराओं में जमानत नहीं होगी क्योंकि गैर जमानती धाराएं हैं।
दू सरी ओर किसी पुरुष को जबरन रंग लगाने पर भी सजा का प्रावधान है। इस मामले में भारतीय दंड विधान की धारा 341 और 342 के तहत किसी व्यक्ति को जबरन बंधक बनाने और किसी व्यक्ति को एक जगह रोक कर रखने का मामला दायर हो सकता है। धारा 341 के तहत एक महीने की जेल या 500 रुपए जुर्माना या दोनों, और धारा 342 के तहत जेल और एक हजार रुपए जुर्माना हो सकता है। हालांकि दोनों मामले जमानत योग्य हैं।
इसके अलावा कोलकाता पुलिस एक्ट की 68 (घ), 66 धारा और कैलकाता सबर्बन पुलिस एक्ट की धारा 41 (ख) 66 धारा में भी मामला दायर किया जा सकता है। इस मामले में पुलिस 100 रुपए जुर्माना वसूल सकती है और दोनों धाराएं जमानत योग्य हैं।

Sunday, March 24, 2013

सोशल नेटवर्किंग साइट बदल रहे हैं जिंदगी की डगर



पीछे की बेंच पर बैठने वाले बड़ी कक्षा के दादाओं की दहशत के कारण सुमन अब मैदान में ही नहीं जा रहा है। इसके बजाए वह शुन्य में निहारता रहता है और मनोचिकित्सकों के कक्ष में देखा जाता है।
इसी तरह दोस्तों के साथ प्रशांत ने फोटो खिंचवाई थी, लेकिन कंप्यूटर पर उसके साथ वाले सभी मित्रों की तस्वीर काट कर सिर्फ एक लड़की की फोटो जोड़ कर अपलोड कर दी गई। गुस्से में पेपर कटर से ऐसा करने वाले छात्र की ऊंगली ही प्रशांत ने काट दी थी। एक और प्रताड़ना की शिकार नुपूर हालांकि अभी इस सबसे दूर चली  गई है। नेट दुनिया में मित्र बने एक युवक के साथ चैटिंग के माध्यम से पहली बार प्रेम का स्वाद चखा था। परीक्षा के दबाव में व्यस्त होने के कारण वह चैटिंग में टाइम नहीं दे रही थी। नाराज प्रेमी ने धमकी दी कि आपसी बातचीत की सारी बातें जगजाहिर कर देखा। आखिर परिवार और समाज के डर से उसने आत्महत्या कर ली।
उपर की तीन कहानियों में नाम काल्पनिक हैं लेकिन घटनाएं सच्ची है। इन सभी मामलों में अभिभावकों का आरोप है कि नेट बुलिंग या नेट पर प्रताड़ना के कारण ऐसा हो रहा है। आंकड़ों की बात करें तो भारत में इस तरह आन लाइन प्रताड़ना, परेशानी या शर्मिंदगी का शिकार होने वालों में 53 फीसद नेट का प्रयोग करने वाले शामिल हैं। कोलकाता महानगर में ही यह समस्या हर साल 30 फीसद की दर से बढ़ रही है। कुल मिलाकर 32 फीसदी अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चे नेट के कारण परेशानी का सामना करते हैं। ज्यादातर (55 फीसदी) अभिभावकों का मानना है कि नेटवर्किंग साइट के लिए ऐसा हो रहा है। मेट्रो शहरों में कुल मिलाकर 40 फीसद टीन एजर्स मोबाइल फोन पर नेट चलाते हैं। इस तरह हर मिनट नेट अपराध का शिकार होने वालों की संख्या 80 व्यक्ति है।
मालूम हो कि इंटरनेट पर छात्र-छात्राओं में खास तौर पर फेसबुक, आर्कुट, हाई फाइव या अपना सर्कल जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट छात्र-छात्राओं को जमकर लुभा रहे हैं। दिन-रात वक्त मिलते ही वे लोग इस पर जुट जाते हैं। इस चक्कर में यार-दोस्त , पढ़ाई-लिखाई सब पीछे छुटती जा रही है। लेकिन इससे ही मानसिक परेशानियां बढ़ रही हैं यह आरोप नया नहीं है। इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि स्कूल में विवाद हो या खेल के मैदान में किसी तरह की बात लोग सीधे नेट पर जा पहुंचते हैं औरदिल की भड़ास निकाल देते हैं। सामने जुबान बंद रहकर मौका मिलते ही ऐसा कुछ अपलोड करने से विरोधी की इमेज देश-दुनिया में तबाह हो जाती है। इस मामले में कोई तस्वीर को खराब करके पेश करता है तो कोई नाराज लोगों का हेट समूह ही बना डालता है। कोई जिससे नाराजगी है उसके बारे में ऐसी -ऐसी बातें लोगों को बताता है कि बेचारे का सिर शर्म से झुकता ही चला जाता है।
एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के आंकड़ों के मुताबिक नेट प्रताड़ना में चीन और सिंगापुर के बाद भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। यह समस्या सबसे ज्यादा आठ साल  से लेकर 17 साल के छात्र-छात्राओं में देखी जा रही है। कोलकाता जैसे शहर से निकल कर यह समस्या छोटे शहरों तक फैलने लगी है।
मानसिक अवसाद,हिंसक विचारधारा, निष्ठुर मनोभाव से लेकर आत्महत्या तक की घटनाएं नेट पर बेइज्जत होनेके बाद हो रही हैं। कोलकाता के एक अध्यापक का कहना है कि किशोर मन पर इस तरह का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। लेकिन नेट दुनिया में प्रवेश करने से पहले बच्चों को दुनिया के कायदे-कानून की जानकारी हासिल करनी जरुरी है। इसके साथ ही जिम्मेवारी की भी जरुरत है। इसके बजाए होता यह है कि नेट एक नशे की तरह कम उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। मेरा मानना है कि दसवीं कक्षा से पहले किसी भी नेटवर्किंग साइट का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। इसके बजाए बच्चों को पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने, गीत-संगीत के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
जबकि महानगर के एक दूसरे अध्यापक का कहना है कि रैगिंग रोकने के लिए जिस तरह कानून बने हुए हैं, नेट पर प्रताड़ना करने वालों के लिए भी वैसे ही कानून की जरुरत है। कई स्कूलों में नेटवर्किंग साइट पर रोक लगाई गई है, हालांकि यह बहुत कम जगह है। शिक्षा विभाग को इस बारे में जागरुक होने की जरुरत है।
लेकिन क्या इसके लिए जागरुकता की कमी है या दोस्तों के चक्कर में फंस कर युवा मन नेट के जाल में फंसता चला जाता है। शिक्षा जगत से जुड़े एक व्यक्ति का मानना है कि जिस तरह दोस्तों के चक्कर में लोग शराब-सिगरेट की लत का शिकार होते हैं,ठीक वैसा ही नेट के मामले में भी हो रहा है। इसके साथ ही सस्ते मोबाइल और पांच रुपए में नेट का प्रयोग जैसी सुविधाएं मिलने के कारण कोई भी आसानी से नेट के चंगुल में फंस जाता है। पहले परिवार वालों की ओर से बच्चों को नशे से दूर रहने के लिए कहा जाता था लेकिन अब अभिभावक खुद ही नेट में व्यस्त रहते हैं तो बच्चों से क्या कहें?
हालांकि खुशी की बात यह है कि समस्या बढ़ने के साथ ही अभिभावक भी जागरुक हो रहे हैं। एक साफ्टवेयर बनाने वाली संस्था की समीक्षा के मुताबिक शहरों में रहने वाले ज्यादातर अभिभावकों को समस्या के बारे में जानकारी है। स्कूलों में भी जागरुकता बढ़ रही है। जिससे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हालात बिगड़ने के बजाए सुधरना शुरू करेंगे।

Monday, February 18, 2013

ममता बनर्जी की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद




कोलकाता। ममता बनर्जी की कविताओं का पहली बार अंग्रेजी में अनुवाद और उनकी पेंटिंग को किताब की शक्ल देने के साथ ही उनमें छिपा कलाकार अब उनके गृह राज्य से बाहर निकलने के प्रयास में है। अपनी कविताओं में ममता बनर्जी राजनीति के इतर पक्षों को उजागर कर रही हैं। बांग्ला से अंग्रेजी में नंदिनी सेनगुप्ता द्वारा अनूदित 56 कविताओं के संग्रह के साथ ही उनकी नवीनतम पेंटिंग को भी किताब की शक्ल दी जा रही है।

पहली बार उनकी कविताओं का अनुवाद हो रहा है । ममता नियमित रूप से लेखन और पेंटिंग करती हैं और अपनी कला के लिए उन्हें व्यापक प्रशंसकों की तलाश है। उनकी पेंटिंग की सभी चारों प्रदर्शनियां अभी तक कोलकाता में हुई हैं लेकिन पिछले वर्ष अक्टूबर में उनकी कलाकृतियां विदेशों में गईं। ‘फ्लावर पावर’ की कृति न्यूयॉर्क में 3 हजार डॉलर में बिकी।

उनकी कविताओं और पेंटिंग में दिखता है कि किस तरह उनका दिल न केवल देश के लोगों के लिए धड़कता है बल्कि प्रकृति पर भी उनकी निगाह बनी रहती है। प्रकृति प्रेम का इजहार करते हुए ममता बनर्जी ने पूर्णिमा की खूबसूरती, मौसम, नदियों, समुद्र एवं फूलों पर लिखा है। उनकी कविता की हर पंक्ति उन्हें दर्द से ऊपर उठने और मानवता, स्वतंत्रता एवं समानता के नए युग की तरफ देशवासियों को ले जाने की ओर इशारा करती है।  

Sunday, February 17, 2013

इक स्कूल बना न्यारा




कोलकाता,  (रंजीत लुधियानवी)। कई सालों से पति-पत्नी का देखा गया  सपना आखिर पूरा हो गया। इसके लिए दोनों ने सालों अनथक लगन और मेहनत से काम किया।  पुड़ियां  बेच कर जुगाड़ की गई पूंजी से एक स्कूल खड़ा हो ही गया। एक पति के काम में मदद और दूसरी ओर बच्चों को पढ़ाने में मन लगाकर एक महिला ने लोगों में अपना लोहा मनवा लिया है। सुबह वि•िान्न इलाकों में घुम-घुम कर सब्जी-पूड़ी बेचने के बाद दोपहर को दंपति स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं। लेकिन इलाके में यह दंपति मास्टरजी और बहनजी के तौर पर ही प्रसिद्ध है।
उत्तर चौबीस परगना जिले में बारासात-हसनाबाद शाखा में कड़वा कदंबगाछी रेलवे स्टेशन है। इसके नजदीक हेमंत बसु कालोनी में गरीबों की बस्ती है। स्टेशन उतर कर कन्हाई मास्टरजी या आलो बहनजी के बारे में पूछते ही अंधा •ाी आपको उनके घर का रास्ता बता देगा, साहा दंपति इलाके में इतने ज्यादा मशहूर हो चुके हैं। सुबह उठते ही पति-पत्नी काम में जुट जाते हैं। एक कड़ाही में पूड़ियां तलने लगता है तो दूसरा पूड़ी के लिए गोले बनाता है। आठ बजे तक दोनों यह काम करते हैं। मौका निकालकर कन्हाई कपड़े बदल लेते हैं और एक हाथ में पुड़ियों की बाल्टी और दूसरे हाथ में आलू की सब्जी की बाल्टी लेकर काम के लिए निकल पड़ते हैं। इस बीच पत्नी बेलने और तलने दोनों काम करती हैं। स्टेशन के आसपास के इलाके में लोगों में नाश्ते का सामान बेचते हैं। एक घंटे में एक बाल्टी सामान बेच कर पति दोबारा घर लौटते हैं। तब तक एक बाल्टी तैयार रहती है। दोबारा निकलते हैं । बीस साल से परिवार इसी तरह से गुजर -बसर कर रहा है।
पति बारहवीं कक्षा और पत्नी नौंवी कक्षा तक पढ़ सकी थी। दोनों शिक्षक बनना चाहते थे लेकिन शैक्षणिक योग्यता नहीं थी क्योंकि आर्थिक तंगी के कारण उनका उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना अधुरा ही रह गया था। तब उन्होंने तय किया कि दोनों मिलकर इलाके में एक स्कूल बनाएंगे। इस सोच ने उनके जीवन का दूसरा अध्याय शुरू कर दिया। अब पत्नी बनाती और  पति शाम ढलते ही हसनाबाद लोकल ट्रेन में समोसे, गजा और खाने का दूसरा सामान लेकर रास्ते पर निकल पड़ते, जिससे रोजगार को और बढ़ाया जा सके। इस तरह दोनों ने मिलजुल कर सुख-दुख, सर्दी-गर्मी की परवाह छोड़कर पाई-पाई इकट्ठा करनी शुरु कर दी। कुछ रुपए इकट्ठा हुए तो 2004 में रेलवे स्टेशन के नजदीक दो कट्ठा जमीन खरीद ली। इसके बाद वहां कमरा बनाया और लिटिल प्लानेट केजी स्कूल शुरू कर दिया।
पति-पत्नी को शिक्षा के बारे में कोईजानकारी नहीं थी। बच्चे कहां से आएंगे, यह •ाी एक कठिन सवाल था। इस बीच कन्हाई ने मोंटेशरी प्रशिक्षण हासिल किया। गरीब बस्ती के लोगों ने सपने में •ाी बच्चों को स्कूल •ोजने के बारे में नहीं सोचा था, इसलिए बच्चे मिलना एक समस्या बन गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और घर-घर जाकर लोगों को प्रेरित करना शुरू किया। पहले साल किसी तरह 42 बच्चे मिल गए। यह सारे बच्चे मुफ्त पढ़ाए जा रहे थे क्योंकि फीस मांगते ही अ•िा•ाावक बच्चों को स्कूल •ोजना बंद कर देते। इसके बाद धीरे-धीरे 25 रुपए महीना फीस रखी गई। तब तक अ•िा•ाावकों को •ाी साहा दंपति की अनथक मेहनत और शिक्षा के महत्व के बारे में कुछ-कुछ जानकारी होने लगी थी। लेकिन यह फीस •ाी स•ाी अ•िा•ाावक नहीं देते थे।
सालों बाद स्कूल में कुल मिलाकर 200 छात्र-छात्राएं हो गए हैं और नर्सरी से लेकर चौथी कक्षा तक छह शिक्षिकाएं पढ़ाने के लिए मौजूद हैं। लेकिन अ•ाी •ाी साहा दंपति स्कूल से परिवार चलाने के योग्य नहीं हो सके हैं। बच्चों के अ•िा•ाावक •ाी अनपढ़ हैं इसलिए पति-पत्नी को मिल कर बच्चों को शाम को होम वर्क करवाना पड़ता है। अब उन्होंने अ•िा•ाावकों को शिक्षित करने की योजना बनाई है जिससे स्कूल का काम बच्चे घर पर कर सकें। इलाके में शिक्षा की मसाल जला रहे साहा दंपति एक मिसाल बन गए हैं। लेकिन अ•ाी •ाी घर चलाने के लिए पहले की तरह पति-पत्नी सुबह उठकर पुड़ियां तलना शुरू करते हैं।



Friday, February 1, 2013

डनलप को नीलाम करने का निर्देश

 कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार टायर निर्माण की बंद पड़ी विख्यात कंपनी डनलप इंडिया लिमिटेड को नीलाम करने का निर्देश सरकारी लिक्विडेटर (परिसमापक) को दिया। उल्लेखनीय है कि हुगली के निकट शाहागंज में 1936 में कंपनी की स्थापना की गयी थी जो 80 के दशक तक टायर निर्माण की प्रमुख कंपनी थी। बंद पड़ी कंपनी की समस्त चल अचल सम्पत्ति को जब्त कर उसे बेचने का फैसला जारी करते हुए न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी ने गुरुवार सरकारी परिसमापक को कंपनी की सभी परिसंपत्तियों के कागजात तुरंत अपने नियंत्रण में लेने का निर्देश दिया है। ईवी मथाई, ए के कुंडू एंड कंपनी सहित 15 अन्य ऋणदाताओं ने संयुक्त रूप से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बंद कंपनी की सम्पत्ति नीलाम कर अपने पैसे का भुगतान चाहा था जिसे न्यायाधीश ने मान लिया। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने यह बात स्वीकार की आश्वासन के बावजूद कि डनलप अब बकाएदारों से लिया गया कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है, लिहाजा उनके डूबते हित को बचाने का एक मात्र यही विकल्प है। वहीं डनलप कंपनी के वकीलों का तर्क था कि वे उधार चुकाने में लगे हैं लिहाजा कंपनी को कायम रहने दिया जाए। पर कोर्ट ने उनकी दलील ठुकरा दी। डनलप 1990 के दशक में डांवाडोल होने लगी थी और कुछ सालों बाद ही बीमार और तालाबंदी का शिकार हो गई। कंपनी की वित्तीय जटिलता के दौरान 2005 में पवन कुमार रुइया के नेतृत्व में रुइया समूह ने इसका संचालन प्रत्यक्ष तौर पर अपने हाथ में लिया था। इसी बीच रुइया समूह ने कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। समूह के एक प्रवक्ता ने कहा कि हमने अभी फैसले को देखा नहीं है, कोर्ट के निर्देश की कापी आने के बाद हम आगे की कार्रवाई तय करेंगे।

Tuesday, January 29, 2013

तीन बेटियों की हत्या, मां को मिली उम्र कैद की सजा


 एक के बाद दूसरी और तीसरी लड़की की अस्वाभिक तरीके से मौत हुई थी। इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की। बेटी होने के अपराध में जन्म ग्रहण करने के बाद उनकी हत्या के आरोप में मां को गिरफ्तार किया गया था। बेटियों की हत्या के आरोप में बारासात अदालत ने मां सुमन अग्रवाल को उम्र कैद की सजा सुनाई है। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जहां सरकारी और गैर सरकारी प्रचार करके दावा किया जाता है कि लोग जागरुक हो रहे हैं वैसी हालत में पश्चिम बंगाल जैसे राज्य के किसी गांव नहीं कोलकाता शहर के नजदीक ही ऐसी हत्या की दर्दनाक घटना से लोग दहल गए हैं। इससे समाज में लड़कियों की हालत के बारे में भी जानकारी मिलती है। पुलिस सूत्रों का मानना है कि महिला शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमार नहीं थी, स्वस्थ थी। सरकारी वकील के मुताबिक महज बेटी होने के अपराध में ही उनकी हत्या की गई है, सबूतों से इसका ही पता चलता है।
हालांकि अदालत में सुनवाई के दौरान हत्या के आरोप में गिरफ्तार सुमन (25) इसके ज्यादा कुछ नहीं कह रही थी कि ‘मैं निर्दोष हंू’। बारासात अदालत में सातवें अतिरिक्त जिला व दायरा न्यायधीश शब्बार रशीदी ने जब हत्या के मामले में उम्र कैद का फैसला सुनाया तो उसने इतना कहा कि मुझे जेल नहीं घर जाना है।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि कुछ साल पहले अग्रवाल दंपति बड़ाबाजार के रुपचंद स्ट्रीट इलाके से बागुईहाटी थाना इलाके के जंगरा स्थित मंडपपाड़ा में किराए के मकान में रहने के लिए आए थे। सितंबर 2010 में पवन और सुमन की ढाई साल की बेटी राधिका की मौत हो गई थी। पुलिस की  ओर से मामले में पेश की गई चार्जशीट में कहा गया है कि दूसरी बेटी तुलसी की मौत भी उसी साल सितंबर महीने में हुई। महिला ने पति को फोन किया कि बेटी बीमार हो गई है, पति दफ्तर से घर लौटा और अस्पताल लेकर जाने पर पता चला कि पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई है। अस्पताल से मामले की जानकारी मिलने के बाद बागुईहाटी थाना पुलिस ने अस्वाभाविक मौत का मामला दर्ज किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि तुलसी को गला घोंट कर मारा गया है। इसके बाद पुलिस ने खुद ही (सुओमोटो )हत्या का मामला दर्ज किया। इसके बाद जब जांच शुरू की गई तो पुलिस को पता चला कि राधिका की मौत भी इसी तरीके से हुई थी। लेकिन जिस डाक्टर से मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल किया गया था उसने अस्वाभाविक मौत का जिक्र नहीं किया था। पुलिस जांच से पता चला कि अग्रवाल दंपति की तीन बेटियां थी। सबसे पहले 2009 में उनकी एक बेटी की मौत हो गई थी। तीन बच्चियों की मौत के समय घर में सुमन अकेली थी , इसका पता चलने के बाद पुलिस ने उसे अप्रैल 2011 में  गिरफ्तार कर लिया।
सरकारी वकील के मुताबिक तीन लड़कियों की हत्या के मामले में पति, डाक्टर और पड़ोसियों समेत कुल मिलाकर ग्यारह लोगों की गवाही ली गई। पति ने अदालत में बताया कि लड़कियों पर कुछ हद तक अत्याचार होता है, इसका उसे संदेह तो था लेकिन इसका नतीजा इतना भयंकर होगा कभी कल्पना नहीं की थी। गवाही के दौरान कई पड़ोसियों ने भी अदालत को बताया कि परेशान होकर सुमन कई बार बेटियों की पिटाई करती थी। हालांकि सुमन के पिता का मानना है कि मेरी बेटी निर्दोष है और उनका कहना है कि बड़ी अदालत में फैसले के खिलाफ अपील करेंगे।
इस घटना से दोनों परिवार ही नहीं आसपास के लोग भी सकते में हैं। कई लोगों को अदालत के फैसले के बाद भी यह बात अजीब सी लगती है कि एक मां एक नहीं तीन-तीन बेटियों का भविष्य बनाने के बजाए उनकी हत्या भी कर सकती है।

Thursday, January 24, 2013

बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश- वर्मा समिति

नई दिल्ली। न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने बलात्कार के लिए सजा बढ़ाकर 20 साल तक के कारावास और सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश की है लेकिन मौत की सजा का सुझाव देने से समिति बची है। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने बुधवार को सरकार को अपनी 630 पृष्ठ की रपट सौंप दी। इसमें बलात्कारियोंके लिए अधिक कडेÞ दंडात्मक प्रावधान के लिए आपराधिक कानून में संशोधन का सुझाव दिया गया है।
दिल्ली में 23 साल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के सप्ताह भर बाद 23 दिसंबर को तीन सदस्यीय समिति का गठन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने किया था। सामूहिक बलात्कार की इस घटना की पूरे देश में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और नाराज लोग सड़कों पर उतर आए। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध रोकने के लिए कानूनों में बदलाव की मांग तेज हुई।
समिति में हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ और पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम भी शामिल थे। समिति ने सिफारिश की है कि किसी व्यक्ति को जानबूझ कर छूना और अगर वह छूना यौन प्रकृति का हो और जिसे छुआ जा रहा है, उसकी सहमति के विरुद्ध हो तो कानून में उसे यौन हिंसा माना जाना चाहिए। समिति ने किसी के लिए धमकी भरे शब्द या भाव भंगिमा, किसी लड़की का पीछा करना, मानव तस्करी और यौन इच्छा के चलते घूरने सहित कई नए तरह के आपराधिक कृत्यों को लेकर सजा का प्रस्ताव किया है। किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से उस पर हमला करने की स्थिति में तीन से सात साल की सजा का प्रस्ताव समिति ने किया है।
समिति ने उन पुलिस अधिकारियों के लिए कडेÞ दंड का प्रावधान करने की सिफारिश की है जो शिकायत के बाद बलात्कार या यौन उत्पीड़न का मामला पंजीकृत नहीं करते। वर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन में समिति के निष्कर्षांे को बताते हुए कहा कि समिति का कार्य भारत में महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानपूर्ण माहौल मुहैया कराने में सरकार की विफलता का समाधान पेश करना था। सरकार ने अभी स्पष्ट नहीं किया है कि वह रपट पर कब तक कार्रवाई करेगी लेकिन वर्मा ने सरकार से जरूर कहा है कि समिति ने महीने भर में अपना काम पूरा किया है और उम्मीद करती है कि सरकार भी तेजी से कार्रवाई करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि सरकार समिति की रपट को पढेÞगी। सिफारिशों पर कब तक कार्रवाई की जाएगी, इसकी कोई समयसीमा अभी नहीं तय की गई है। वर्मा ने कहा कि समिति के कुछ प्रस्ताव देश की अपराध संहिता में संशोधन के लिए संसद में लंबित विधेयक में शामिल किए जा सकते हैं।
राजधानी में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद हजारों प्रदर्शनकारी दिल्ली के इंडिया गेट पर एकत्र हो गए और कई दिन जमकर प्रदर्शन किया। देश भर में गुस्सा फूटा। दोषियों को मौत की सजा या उन्हें नपुंसक बनाने की मांगें उठीं। वर्मा समिति ने हालांकि इस तरह की कोई सिफारिश नहीं की है। मौजूदा कानून के तहत बलात्कारी को सात साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। 16 दिसंबर वाली घटना के दोषियों को मौत की सजा इसलिए हो सकती है क्योंकि उन पर हत्या का आरोप भी है।
करीब महीने भर काम करने वाली वर्मा समिति को 80 हजार सुझाव मिले। इनमें महिला कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद और विदेश के कई प्रोफेसर और विद्वान शामिल थे। बलात्कार करने वाले मातहतों को नियंत्रित करने में विफल रहने वाले सैन्य या पुलिस अधिकारियों के लिए दस साल की सजा का प्रस्ताव समिति ने किया है।
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तैयार रपट का उल्लेख करते हुए वर्मा ने महात्मा गांधी और अरस्तू का उल्लेख किया। उन्होंने शिक्षा और सामाजिक बरताव में बदलाव की वकालत की। साथ ही कहा कि कानूनों का अनुपालन नहीं कर पाने के लिए शीर्ष पुलिस अधिकारयिों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। वर्मा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की मूल वजह शासन की विफलता है। सामूहिक बलात्कार घटना के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह बात और शर्ममाक है कि हर उस व्यक्ति ने उदासीनता दिखाई, जिसे अपनी ड्यूटी निभानी थी। 
जन प्रतिनिधित्व कानून में सुधार की आवश्यकता बताते हुए वर्मा समिति ने सुझाव दिया कि चुनावी उम्मीदवारों की ओर से उनकी संपत्ति के बारे में दिए गए ब्योरे की जांच नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (कैग) से कराई जा सकती है। वर्मा ने कहा कि यदि उम्मीदवार की ओर से सौंपा गया ब्योरा गलत पाया जाए तो उस स्थिति में उसे अयोग्य करार दिया जाए। वर्मा की रपट में कहा गया कि गलत ब्योरा दिया जाना जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत उम्मीदवार को अयोग्य करार दिए जाने का आधार बनना चाहिए।
‘राजनीति के अपराधीकरण’ और ‘अपराध के राजनीतिकरण’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन होना चाहिए ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखा जा सके और जनता का सच्चा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
वर्मा ने कहा कि किसी उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है या नहीं, इसकी पुष्टि होनी चाहिए और नामांकन पत्र की वैधता के लिए हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार का प्रमाणपत्र आवश्यक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई उम्मीदवार यदि अपने खिलाफ चल रहे मामले का खुलासा नहीं करता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। वर्मा ने कहा कि संसद और विधानसभा में जो लोग चुनकर पहुंचे हैं और अगर उनमें से किसी के खिलाफ जघन्य अपराध को लेकर आपराधिक मामला लंबित है तो उन्हें संसद और संविधान का सम्मान करते हुए अपना पद छोड़ देना चाहिए। 
खाप पंचायतों को आडेÞ हाथ लेते हुए वर्मा समिति ने कहा कि जो रुख खाप पंचायतें अपनाती हैं, वह तर्कहीन स्तर पर पहुंच गया है। समिति ने सरकार से कहा कि वह सुनिश्चित करे कि शादी के मामले में लोगों के फैसलों में इस तरह की संस्थाएं हस्तक्षेप नहीं करें। समिति ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के परिप्रेक्ष्य में खाप पंचायतों के रुख पर विचार करना प्रासंगिक था।
वर्मा ने कहा कि खाप पंचायतों का जाति व्यवस्था बनाए रखने का तर्क किसी व्यक्ति की स्वतंत्र रूप से अपना साथी चुनने की आजादी छीनता है। उन्होंने कहा कि किसी महिला को उसकी पसंद से शादी नहीं करने देने के गंभीर सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम हैं। ऐसा नहीं होने देने के लिए महिलाओं की स्वतंत्र रूप से आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाता है और उसकी शिक्षा, रोजगार व मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है।
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि भले ही यह रपट उनके नाम से जानी जा सकती है लेकिन यह भारत और विदेश की जनता से आए सुझावों का नतीजा है। उन्होंने कहा कि हमें 80 हजार सुझाव मिले और सभी को पढ़ा गया और रपट को अंतिम रूप देने से पहले उन पर विचार किया गया। परिपक्व प्रतिक्रिया के लिए उन्होंने युवाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि युवाओं ने हमें सिखाया, वह सब कुछ जिसकी जानकारी वरिष्ठ पीढ़ी को नहीं थी। उन्होंने कितने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाली दिल्ली पुलिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं होने का जिक्र भी वर्मा समिति की रपट में है। रपट में कहा गया कि इस अस्पष्टता को दूर करना चाहिए ताकि दिल्ली में कानून व्यवस्था की स्थिति कायम करने में अलग अलग जिम्मेदारियां न हों।
भारत में लापता बच्चों के सही आंकडेÞ उपलब्ध नहीं होने पर चिंता जताते हुए वर्मा ने कहा कि इन बच्चों को जबरन बाल श्रम के लिए ढकेला जाता है और उनका यौन उत्पीड़न भी होता है। वर्मा ने कहा कि हर जिलाधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह अपने जिले में लापता बच्चों की संख्या रखे। जिलाधिकारियों और पुलिस की ओर से लापता बच्चों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता का इसी बात से पता चलता है कि गृह मंत्रालय ने 30 जनवरी 2012 को राज्यों को भेजी एडवाइजरी (परामर्श) में कहा है कि इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
बलात्कारी को मौत की सजा का सुझाव नहींमहिला सुरक्षा के लिए कानूनों में व्यापक बदलाव की सिफारिश

महिला अपराध पर जस्टिस वर्मा ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट
नई दिल्ली । महिलाओं के विरूद्ध अपराध से निबटने के लिये कानून के क्रियान्वयन के लिए जो बात जरूरी है वह यह है कि इन्हें लागू करने वालों में संवेदनशीलता हो। न्यायमूर्ति जे एस वर्मा ने कहा कि राज्यों के पुलिस प्रमुखों ने बमुश्किल ही कोई जवाब दिया।
दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड पर वर्मा ने कहा : जिन्हें काम करना चाहिए, उनमें से हरेक में पूरी तरह से बेरूखी रही ।
वर्मा समिति को मिले थे 80 हजार सुझाव
यौन अपराधों से निपटने के लिए कानूनों में सुधार के उपाय सुझाने के लिए गठित न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति को लगभग 80 हजार सुझाव मिले और समिति ने अपना काम 29 दिन में संपन्न किया ।
तीन सदस्यीय समिति के अध्यक्ष वर्मा थे । उनके अलावा हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ और पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम बतौर सदस्य समिति में थे । केन््रद सरकार ने समिति को 23 दिसंबर 2012 को सिफारिशें देने का काम सौंपा था ।
वर्मा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की मूल वजह शासन की विफलता है । 16 दिसंबर को हुई सामूहिक बलात्कार घटना के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि यह बात और शर्ममाक है कि हर उस व्यक्ति ने उदासीनता दिखायी, जिसे अपनी ड्यूटी निभानी थी ।
गृह मंत्रालय को 631 पृष्ठ की भारी भरकम रपट सौंपने के बाद वर्मा ने यहां संवाददाताओं से  कहा, ‘‘ हमने 29 दिन में रपट सौंप दी है । जब मैंने 30 दिन में काम पूरा करने की पेशकश की थी तो मुझे अहसास नहीं था कि काम कितना बडा है । ’’
उन्होंने कहा कि भले ही यह रपट उनके नाम से जानी जा सकती है लेकिन यह भारत और विदेश की जनता से आये सुझावों का नतीजा है ।
उन्होंने कहा कि हमें 80 हजार सुझाव मिले और सभी को पढा गया और रपट को अंतिम रूप देने से पहले उन पर विचार किया गया ।
रपट को अंतिम रूप देने के लिए समयसीमा कैसे तय की गयी, इस सवाल पर वर्मा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने उनसे संपर्क किया तो ‘‘ मैंने उनसे पूछा कि संसद का अगला सत्र कब है । ’’
वर्मा के मुताबिक मंत्री ने कहा कि अगला : बजट : सत्र 21 फरवरी को शुरू होगा । दो महीने बाकी थे इसलिए ‘‘ मैंने तय किया कि इस काम को 30 दिन में पूरा करूंगा । यदि हम इसे दो महीने की बजाय आधे वक्त यानी एक महीने में रपट तैयार कर सकते हैं तो सरकार को अपने संसाधनों की मदद से तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए । ’’ परिपक्व प्रतिक्रिया के लिए उन्होंने युवाओं की प्रशंसा की ।
उन्होंने कहा कि युवाओं ने हमें सिखाया, वह सब कुछ जिसकी जानकारी वरिष्ठ पीढी को नहीं थी । उन्होंने कितने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया ।

हैरत है कि गृह सचिव ने पुलिस आयुक्त की तारीफ की : वर्मा
सामूहिक बलात्कार घटना के बाद दिल्ली के पुलिस आयुक्त नीरज कुमार की तारीफ करने वाले केन््रदीय गृह सचिव आर के सिंह को आडे हाथ लेते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस वर्मा ने आज कहा कि जब माफी मांगे जाने की उम्मीद थी, उस समय यह : आयुक्त की पीठ थपथपाना : सुनकर काफी हैरत हुई ।
महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में कानूनों में सुधार के उपाय सुझाने वाली रपट सौंपने के बाद वर्मा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि पुलिस आयुक्त की पीठ थपथपायी गयी । वह भी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो गृह सचिव के पद पर हो । ‘‘ मुझे यह देखकर काफी हैरत हुई । ’’
उन्होंने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा की ड्यूटी में विफलता के लिए कम से कम उन्हें माफी मांगनी चाहिए थी ।
दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की सामूहिक बलात्कार घटना के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में आर के सिंह ने दिल्ली पुलिस की सराहना की थी । चलती बस में सामूहिक बर्बर बलात्कार की शिकार बनी 23 वर्षीय युवती ने 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड दिया था ।

Tuesday, January 22, 2013

रेलवे किराया 40 फीसद तक बढ़ने से लोग परेशान


   रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, रेलवे का किराया बढ़ गया है लेकिन इससे मंगलवार दिन भर लोग परेशान रहे। रेलवे स्टेशनों और लोकल रेलगाड़ियों में बढ़े हुए किराए को लेकर ही लोग चर्चा में व्यस्त रहे। मालूम हो कि आज से ही केंद्र सरकार की ओर से किराया वृद्धि की गई है। हावड़ा, सियालदह, मौड़ीग्राम, बाली समेत सभी जगह दिन भर लोग किराए को लेकर ही परेशान दिखाए दे रहे थे। हालांकि ज्यादातर नित्ययात्रियों ने पहले से मासिक टिकट ले रखा है, इसलिए उन्हें नए किराए का स्वाद बाद में चखने को मिलेगा जबकि जिन लोगों ने आज मासिक टिकट लिया उनमें से कई लोग अलग-अलग बातें करते दिखे। जबकि लोकल ट्रेन का टिकट लेने वाले कई यात्री बढ़े किराए को लेकर हैरत और नाराज भी दिखे। कई लोगों का कहना था कि दस साल बाद किराया बढ़ा है तो इसके लिए साधारण लोग नहीं कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी ही जिम्मेवार हैं। जब रसोई गैस से लेकर डीजल की कीमतों में वृद्धि करने की बात हो या खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश को हरी झंडी दिखानी हो तो यूपीए सरकार में शामिल लोगों की नहीं सुनी जाती। जबकि रेलमंत्री रहने के दौरान लालू प्रसाद यादव ने किराए में एक रुपए की कमी की थी लेकिन कें द्र सरकार ने इसके खिलाफ मौन धारण कर रखा।
रेलवे किराया बढ़ने के बाद शुन्य किलोमीटर से लेकर 25 किलोमीटर तक का यातायात करने वालों को भले ही राहत मिली है लेकिन ज्यादा दूर का सफर करने वालों की परेशानी बढ़ गई है। इसके साथ ही कुछ ही दूरी वाले यात्रियों का मासिक किराया भी  अस्वाभाविक तौर पर बढ़ गया है। प्रणव बनर्जी नामक एक यात्री के मुताबिक कहा गया था कि प्रति किलोमीटर दो पैसे किराया वृद्धि की जाएगी लेकिन कई मामलों में यह 30 से लेकर 40 फीसद तक बढ़ गया है। यात्रियों का आरोप है कि दो पैसे का एलान करके चार रुपए वाला किराया पांच रुपए, छह रुपए का किराया दस रुपए, ग्यारह रुपए का किराया 15 रुपए हो गया है। हालांकि कई मामलों में छह रुपए का किराया घट कर पांच रुपए भी हुआ है।
सौभिक घोष नामक एक यात्री ने बताया कि उसका मासिक किराया (एसएमटी)175 रुपए था अब वह 245 रुपए हो गया है। इसी तरह सात रुपए का टिकट दस रुपए हो गया है। डानकुनी से सियालदह का किराया पहले सात रुपए था अब 10 रुपए हो गया है। जबकि डानकुनी-हावड़ा का किराया पहले की तरह पांच रुपए ही है।
कविता गांगुली ने बताया कि हावड़ा-बर्दवान (मेन लाइन) का किराया सुबह 25 रुपए लगा, यह पहले 21 रुपए था जबकि लौटते हुई उसी दूरी का कार्डलाइन का टिकट लिया तो 20 रुपए लगे पहले किराया 18 रुपए था। उनका कहना है कि एक ही दूरी पर कहीं किराया घट गया तो कहीं बढ़ गया। यह वृद्धि 10 फीसद से लेकर 40 फीसद तक हुई है।
सलीम नामक एक यात्री के मुताबिक उनका मासिक किराया पहले की तुलना में घट गया है जबकि उनके एक साथी ने बताया कि उसका किराया बढ़ गया है। इस तरह दिन भर लोग किराए को लेकर चर्चा करते रहे कि बागनान से हावड़ा का कितना किराया है तो उलबेड़िया से हावड़ा का क्या किराया हो गया है।
एक यात्री ने गुस्से से कहा कि रेलवे का कहना है कि 10 साल बाद किराए बढ़ाए जा रहे हैं तो इसके लिए क्या हम रेल यात्री जिम्मेवार हैं या केंद्र सरकार जिम्मेवार है। सरकार कौन चला रहा है, यह सभी लोगों को पता है। दूसरे एक यात्री का कहना था कि किराया तो अब बढ़ ही गया है रेलवे बजट का क्या औचित्य है। बजट पेश करने से लेकर चर्चा करने तक जहां कागज की बरबादी होगी वहीं संसद चलने पर करोड़ों रुपए का खर्च होगा। इसका बोझ भी आम लोगों पर ही पड़ना तय है।

Thursday, January 17, 2013

उषा गांगुली निर्देशित रंगकर्मी का नया नाटक ‘हम मुख्तारा’



प्रसिद्ध  नाट्य निर्देशिका उषा गांगुली के निर्देेशन में तैयार रंगकर्मी के नए हिंदी नाटक ‘हम मुख्तारा’ का मंचन आगामी 23 जनवरी को रवींद्र सदन प्रेक्षागृह में शाम सात बजे होगा। यह नाटक पाकिस्तान की एक महिला मुख्तारा माई के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और इंसाफ के लिए लड़ी जा रही उसके संघर्ष पर केंद्रित है। रंगकर्मी के इस नए नाटक में कुल 31 कलाकार हैं। जिनमें 17 महिलाएं हैं। उषा गांगुली ने एक प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को  बताया कि भारत की तरह पाकिस्तान में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर महिलाओं के साथ जो हो रहा है उसे ही इस नाटक में केंद्रित किया गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में भी इस नाटक का मंचन किया जाएगा।

Monday, January 14, 2013

बरफी और पान सिंह तोमर की बल्ले -बल्ले


    19वें सालाना कलर्स स्क्रीन अवार्ड में पैनी, प्रयोगधर्मी और लीक से हटकर फिल्मों को तरजीह देने की  पुरस्कारों की परंपरा इस बार भी कायम रही और ज्यादातर शीर्ष पुरस्कार पान सिंह तोमर, बर्फी और कहानी की झोली में गए। पान सिंह तोमर सर्वश्रेष्ठ फिल्म आंकी गई जबकि सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार बर्फी के अनुराग बसु को मिला।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पान सिंह तोमर में अपनी भूमिका के लिए इरफान और बर्फी में शानदार अभिनय के लिए रणबीर को साझा तौर पर दिया गया। विद्या बालन का दबदबा कायम रहा और उन्हें लगातार चौथी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया। इस बार यह पुरस्कार उन्हें कहानी में अपने लापता पति की तलाश कर रही एक गर्भवती महिला के किरदार के लिए दिया गया।

सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का पुरस्कार तलाश में अपनी भूमिका के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी को दिया गया जबकि डाली अहलूवालिया को विकी डोनर में उनके किरदार के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया। नकारात्मक किरदार के लिए गैंग्स आफ वासेपुर के तिगमांसु धूलिया को सर्वश्रेष्ठ कलाकार के पुरस्कार से नवाजा गया। अन्नू कपूर (विकी डोनर) और अभिषेक बच्चन (बोल बचन) को संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Sunday, January 13, 2013

हजारों लोग गुलाबी मौसम में ठिठुरने के लिए मजबूर


  रंजीत लुधियानवी
कोलकाता,  महानगर कोलकाता,हावड़ा समेत पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में बीते कुछ दिनों से तापमान पांच डिग्री से लेकर 10 डिग्री सेल्सीयस के बीच घुम रहा है। कहीं पारा गिर कर 10 साल पुराने रिकार्ड तोड़ रहा है तो कहीं 22 साल पुराने रिकार्ड टूट रहे हैं। कभी-कभार तापमान में कुछ वृद्धि होती है तो गुलाबी मौसम में लोग पिकनिक के लिए निकल पड़ते हैं। मौज-मस्ती करने वाले स्वेटर, मफलर समेत तमाम गर्म कपड़ों और सूट-बूट में लैस होते हैं। वहीं महानगर में कुछ लोग ऐसे भी हैं कि पारा गिरते ही उनकी हालत बिगड़ जाती है। आनंद मनाने वालों का गुलाबी मौसम उनके लिए काली अंधेरी और ठिठुरती हुई रात में बदल जाता है। अकसर तन ढकने में नाकाम लोग किसी तरह कड़ाके की सर्दी में जीवन यापन करते हैं।
मौसम की मार झेलने वाले ऐसे गरीब और बेसहारा लोगों  में कोई कागज बिनता है तो कोई ठेला-रिक्शा  चलाता है। जबकि कुछ लोग महज भीख मांग कर ही गुजारा करते हैं। ऐसे  ज्यादातर लोगों को मतदान का भी अधिकार नहीं है। उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है। तापमान में गिरावट की खबर सूनकर जहां लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाती है वहीं इनके लिए बोरे में ठिठुरन भरी सर्दी में रात गुजारने की सोच कर रगों में सिहरन दौड़ जाती है। इसके बावजूद आम लोग जहां सर्दी-खांसी बुखार में छुट््टी लेकर कंबल में दुबके रहते हैं वहीं ये लोग बीमारी में भी काम पर निकलते हैं। भले ही शरीर साथ न तो कहीं फुटपाथ का सहारा लेकर सुस्ता लेते हैं।
महानगर कोलकाता मेंफुटपाथ पर रहने वाले  लोगों को  दूसरे दर्जे का नागरिक कहा जा सकता है क्योंकि इनके पास सुख-सुविधा का कोई सामान मौजूद नहीं है। यहां  के नागरिकों में  90 फीसद लोगों  को सर्दी में महज राज्य सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं का ही सहारा रहता है। इसका कारण यह है वहां से उन्हें कुछ राहत की सामग्री मिल जाती है। कई सभा-संगठनों की ओर से हर साल कंबल और गर्म कपड़ा वितरण समारोह का आयोजन किया जाता है। इसमें स्वेटर से लेकर चादर तक बांटी जाती है।
हावड़ा स्टेशन, सियालदह स्टेशन, बड़ाबाजार, पोद्दार कोर्ट, बीबी गांगुली स्ट्रीट, धर्मतला ट्राम डिपो समेत महानगर के विभिन्न इलाकों में फुटपाथ पर ऐसे लोगों को देखा जा सकता है। कुहासे ढंके रास्तों पर सड़क के किनारे दोनों ओर काले फटे बोरे या प्लास्टिक की आड़ में ऐसे परिवार निवास करते हैं। राज्य में सबसे ज्यादा फुटपाथ पर रहने वाले कोलकाता की सड़कों पर ही रहते हैं। गैर सकारी सूत्रों से मिले आंकड़ों के मुताबिक यहां 10-12 हजार लोग फुटपाथ पर गुजर-बसर करते हैं। हर साल दर्जनों संगठनों की ओर से कंबल, स्वेटर और गर्म कपड़े गरीब और जरुरतमंद लोगों में बांटे जाते हैं। लेकिन फुटपाथ पर रहने वाले ज्यादातर लोगों के पास फ टे कंबल और बोरे ही जीवन यापन का सहारा होते हैं। स्ट्रैंड रोड पर एक महिला अपने शराबी पति से झगड़ रही थी क्योंकि उसने नए गर्म कपड़े कुछ रुपयों के लालच में बेच दिए थे और रुपयों की शराब लाकर पी गया था। ऐसे कपड़े ज्यादातर नशे की लत में बेच दिए जाते हैं। रविवार धर्मतला ट्राम डिपो में एक महिला और दामाद की इसी लिए जमकर झड़प हुई।
बीबी गांगुली स्ट्रीट पर हाथ रिक्शा चालक अजीम भाई ने बताया कि पहले तो किसी तरह जाड़ा आसानी से कट जाता था। लेकिन इस साल हद हो गई है। शनिवार तो कुछ हद तक राहत थी। इसी तरह शबीना का भी कहना था कि इस साल तो सर्दी गुजर ही नहीं रही है। पता नहीं ऐसा माहौल कब तक रहेगा। हाल तक कोलकाता में सर्दी से ज्यादा परेशानी नहीं होती थी।
फुटपाथ वालों के लिए प्रशासन की ओर से भी राहत प्रदान की जाती है। लेकिन प्रशासनिक नियमों के मुताबिक किसी बीमार और असहाय व्यक्ति को पहले कोलकाता पुलिस की एनफोर्समेंट ब्रांच के तहत शाखा में भेजा जाता है। उनका प्राथमिक इलाज करने के बाद सरकारी नियमानुसार न्यायधीश के सामने पेश करना पड़ता है। अदालत के निर्देश के बाद ही बीमार फुटपाथी को सरकारी होम या आश्रयस्थल में भेजा जाता है। हालांकि कई जगह पुलिस ने शार्टकट रास्ता भी अपना रखा और थाने के साथ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ तालमेल कायम है। थानों से सीधे मरीज को उनके होम में भेज दियाजाता है। संलाप, नवदिशा समेत कई इस तरह की संस्थाएं पुलिस के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
राज्य की समाज कल्याण विभाग की मंत्री सावित्री मित्र का कहना है कि फुटपाथ पर रहने वाले और गरीब लोगों के लिए राज्य में कुल मिलाकर 27 होम बनाए गए हैं। यहां रास्ते के किनारे रहने वालों के इलाज और रहने की व्यवस्था की गई है।

बिग बॉस-6 की विजेता बनीं उर्वशी ढोलकिया




 टीवी अभिनेत्री उर्वशी ढोलकिया रियलिटी शो बिग बॉस के छठे संस्करण की विजेता बन गयीं. उन्होंने अपने नजदीकी प्रतियोगी इमाम सिद्दीकी को हराकर शो के विजेता का खिताब जीत लिया.
उर्वशी के जीतने के साथ बिग बॉस में लगातार यह तीसरा मौका है जब टीवी की एक ‘बहू’ ने यह शो जीता. छोटे पर्दे की ‘वैंप’ के रुप में पहचानी जाने वाली उर्वशी ने कम अंतर से ही शो का खिताब जीता.
इससे पहले श्वेता तिवारी और जूही परमार ने भी बिग बॉस के विजेता का खिताब जीता था. उर्वशी को विजेता के रुप में 50 लाख रुपये की पुरस्कार राशि मिली है. हालांकि कलर्स चैनल ने दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए इमाम सिद्दीकी को भी दस लाख रुपये का इनाम दिया. इमाम को शो के दौरान भी पांच लाख रुपये दिये गये थे.
इस रियलिटी शो में 19 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिन्हें 97 दिनों तक कैमरों से घिरे एक घर में साथ रहना था.

Friday, January 11, 2013

रेल किराया तो बढ़ा दिया यात्रियों की सुध कौन लेगा?


 

रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 10 जनवरी । रेल मंत्री पवन बंसल ने रेल किराए में वृद्धि का एलान कर दिया है। लगभग 20 फीसद की  किराया वृद्धि के बाद कहा जा रहा है कि 10 साल बाद यह किराया बढ़ा है, इसके लिए रेलवे मजबूर था। किराया वृद्धि किए जाने पर लोगों में एक राय नहीं है कुछ लोगों का कहना है कि एक साथ इतना अधिक किराया बढ़ाया जाना किसी भी तरीके से उचित नहीं कहा जा सकता। दस साल तक किराया नहीं बढ़ा तो इसके लिए आम लोग नहीं केंद्र सरकार ही जिम्मेवार है जिसने राजनीतिक कारणों से ऐसा होने दिया। जबकि दूसरे कुछ लोगों का कहना है कि जब चावल से लेकर डीजल और रसोई गैस से लेकर बस किराया तो बढ़ता जा रहा है। ऐसे में रेलवे ने कुछ गलत नहीं किया है। हालांकि एक बात पर सारे लोग सहमत हैं कि  माल भाड़े, खान-पान के बाद किराए में भी रेलवे ने वृद्धि कर दी है लेकिन क्या यात्रियों की समस्याओं के बारे में भी रेल प्रबंधन कभी गंभीर होगा? आजादी के 150 साल बाद भी रेलगाड़ियां समय पर बहुत कम ही चलती हैं। दिसंबर में तो 34 घंटे देरी से चलकर एक ट्रेन ने रिकार्ड कायम किया है, जबकि तीन- चार घंटे से लेकर चौबीस घंटे देरी से चलना तो एक सामान्य बात हो गई है।
रेल किराया बढ़ने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक गृहिणी मंजू सिंह ने कहा कि हावड़ा- अमृतसर मेल (3005 अप-3006 डाउन) शायद ही कभी समय पर चलती हो। जबकि जाड़े के दिनों मे तो यह ट्रेन 12 से लेकर 24 घंटे देरी से चलती है। इसके अलावा कालका मेल, हिमगिरी एक्सप्रेस की हालत भी कम खराब नहीं है। अचानक रेलगाड़ी रद्द कर दी जाती है। इसके बाद फरमान जारी किया जाता है कि यात्रियों को पूरा किराया वापस मिल जाएगा लेकिन चार महीने पहले टिकट आरक्षित कराने वाले यात्रियों को न तो चार महीने का ब्याज मिलता है और न ही वैकल्पिक ट्रेन में आरक्षण की व्यवस्था की जाती है। जबकि होना तो यह चाहिए कि ट्रेन रद्द किए जाने पर उस हफ्ते किसी भी ट्रेन में यात्री अपना टिकट रिजर्व कर सके।
इससे पहले ही रेलवे स्टेशन पर या ट्रेन के भीतर यात्रियों को मिलने वाला नाश्ता व भोजन महंगा कर दिया गया था। अमृतसर मेल में 65 रुपए में मिलने वाला भोजन 90 रुपए और पांच रुपए में मिलने वाली चाय सात रुपए की कर दी गई। कीमत बढ़ने के बाद तीन रुपए में मिलने वाली रोटी पांच रुपए, 20 रुपए में मिलने वाला दाल-चावल 23 रुपए और 70 रुपए में मिलने वाली चिकन बिरयानी 84 रुपए की हो गई है। गोविंद रावत के मुताबिक रेलवे ने पैंट्री कार में मिलने वाले खाने के दाम तो बढ़ा दिए लेकिन गुणवत्ता के मामले में अभी भी कुछ सुधार नहीं हुआ है।
कई यात्रियों का कहना है कि सुरक्षा के मामले में देश भर में अभी तक रूट रिले इंटरलाकिंग सिस्टम चालू नहीं हो सका है। दुर्घटना रोकने के लिए एंटी कालिजन डिवाइस नहीं हैं। ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम की बातें सालों से चल रही हैं लेकिन कुछ नहीं हुआ है। रेलवे के विकास का जिक्र करते हुए एक यात्री ने बताया कि 1969 में देश में पहली राजधानी एक्सप्रेस नई दिल्ली से हावड़ा के बीच चली थी। उस समय रोलिंग स्टाक पुराने थे, इंजन भी कम शक्तिशाली थे। उस समय 1450 किलोमीटर की दूरी तय करने में इस गाड़ी को 17 घंटे 10 मिनट लगते थे। अब इस गाड़ी में जर्मन तकनीक वाले डिब्बे हैं जो 150 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं। पांच हजार हार्स पावर वाले शक्तिशाली बिजली के इंजन इसे खींचते हैं तब भी इसे यह दूरी तय करने में 16 घंटे 55 मिनट लगते हैं। सालों बाद इतने तामझाम के बाद  महज 15 मिनट की बचत हुई है।
रेल मंत्री के एलान पर नाराजगी प्रकट करते हुए मंजीत कौर ने कहा कि मंत्री ने अचानक किराया वृद्धि का एलान कर दिया जबकि रेलवे बजट आने वाला है। पहले किसी भी तरह का एलान बजट में किया जाता था। अब केंद्रीय बजट की तरह की रेलवे बजट भी अप्रासंगिक हो गया है। ऐसे में बजट पेश करने का क्या औचित्य है? गठजोड़ की सरकार ने किसी सहयोगी से किराया बढ़ाने के बारे में विचार-विमर्श किया,देशके  लोगों को विश्वास में लिया? एक अल्पमत की सरकार मनमाने फैसले कैसे कर सकती है? इसी तरह रेणू वर्मा ने कहा कि रेलवे में चोरी-लूट और डकैती आमतौर पर होती रहती है, इसलिए जब तक गंतव्य स्थल पर नहीं पहुंच जाते खुद और घर वाले दहशत में ही रहते हैं। क्या रेलवे इस बारे में कुछ करेगा कि लोग सुरक्षित अपने स्टेशन तक पहुंच सकें।
हावड़ा रेलवे स्टेशन के गोदाम में बीते दो दिनों से अपना सामान तलाशते एक व्यक्ति ने बताया कि यहां कुछ पता ही नहीं चल रहा है कि सामान कब पहुंचेगा। एक कर्मचारी ने बताया कि रेलगाड़ियां देरी सेचल रही हैं इसलिए हो सकता है कि आपका सामान दूसरे दिन वाली ट्रेन में चढ़ा दिया गया हो। इसलिए एक दिन और यहां देख लें , फिलहाल कुछ बताना संभव नहीं है। इसी तरह कई लोग सामान की तलाश में परेशान रहते हैं। लेकिन यहां किसी के पास सटीक जानकारी नहीं मिलती कि आपका सामान कब पहुंचने वाला है।

Monday, January 7, 2013

महिलाओं पर बढ़ा पतियों का अत्याचार


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राष्ट्रीय राजधानी में महिलाएं केवल घर के बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी असुरिक्षत हैं। वर्ष 2011 में पतियों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार के करीब डेढ़ हजार मामले दर्ज किए गए।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा हिंसा के मामलों में बढोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2011 में राजधानी में इस तरह के 1498 मामले दर्ज हुए जबकि 2010 और 2009 में यह आंकड़ा क्रमश: 1273 और 1177 रहा था।

महानगरों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों के आंकड़े से यह खुलासा हुआ कि जनवरी से दिसंबर 2011 तक हैदराबाद में इस तरह के 1355,कोलकाता में 557, बेंगलुरू में 458, मुंबई में 393 और चेन्नई में 229 मामले दर्ज किए गए।

वर्ष 2010 में पति या किसी रिश्तेदार द्वारा अत्याचार के संबंध में हैदराबाद में 1420, कोलकाता में 400, बेंगलुरू में 398, मुंबई में 312 और चेन्नई में 125 मामले दर्ज हुए।

गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध आंकड़े ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2009 में इस तरह के अपराध के हैदराबाद में 1363, मुंबई में 434, कोलकाता में 411, बेंगलुरू में 367 और चेन्नई में 154 मामले दर्ज हुए।

इसके अलावा वर्ष 2011 में छेड़छाड़ के दिल्ली में 556 मामले, मुंबई में 553 और कोलकाता में 254 मामले दर्ज हुए, वहीं बेंगलुरू में इस तरह के 250 मामले, हैदराबाद में 157 और चेन्नई में 73 मामले दर्ज किए गए।

जनवरी से दिसंबर 2011 तक यौन उत्पीड़न के चेन्नई में 162, दिल्ली में 149, कोलकाता में 144, चेन्नई 121, हैदराबाद में 93 और बेंगलुरू में 40 मामले दर्ज किए गए। (भाषा)

Thursday, January 3, 2013

राज्य की 63 फास्ट ट्रैक अदालतें बंद होंगी?


  पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की घटनाएं लगातार जारी हैं और एक लाख 32 हजार 824 मामले अदालतों में चल रहे हैं, ऐसे में जल्दी फैसला सुनाने वाली फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या घटाई जा रही है। मौजूदा 2013 साल में राज्य में कम से कम 63 फास्ट ट्रैक अदालतों का काम बंद होने जा रहा है। अभी यहां कुल मिलाकर त्वरित फैसला लेने के लिए 151 अदालतें मौजूद हैं। राज्य सरकार की ओर से मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला किया गया है कि 88 फास्ट ट्रैक अदालतों को स्थायी किया जाएगा। जबकि बाकी बची 63 अदालतों का भविष्य अधर में लटक गया है।
मालूम हो कि इस बारे में राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने पत्रकारों को बताया कि केंद्र सरकार फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के बारे में उदासीन रवैया अपना रही है, ऐसे में राज्य सरकार की ओर से 88 फास्ट ट्रैक अदालतों कोे स्थायी करने का फैसला किया गया है।
इधर राज्य सरकार के फैसले का भारी विरोध किया जा रहा है। वेस्ट बंगाल जूडिसियल सर्विस एसोसिएशन की ओर से राज्य सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा गया है कि मंत्रिमंडल की बैठक में 151 अदालतों में सिर्फ 88 फास्ट ट्रैक  अदालतों को स्थायी करने का फैसला किया गया है। इससे न्याय की गुहार लगाकर बैठे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न, बलात्कार जैसी घटनाओं का फैसला फास्ट ट्रैक अदालतों में किया जाता रहा है। सरकार के फैसले के कारण न्याय प्रक्रिया और ज्यादा शिथिल हो जाएगी।
मालूम हो कि दिल्ली में एक युवती के साथ बस में हुई बलात्कार की सनसनीखेज घटना के बाद देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सजा देने की मांग जोरदार तरीके से उठाई जा रही है। इसके लिए तेजी से फैसला करने वाले फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन की मांग की जा रही है। ऐसे हालात में राज्य सरकार की ओर से फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या घटाए जाने पर लोग हैरान हैं।
गौरतलब है कि 13 वें वित्त आयोग और केंद्र सरकार की आर्थिक मदद से राज्य में अस्थायी तौर पर चलने वाली 151 फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया था। देश की अदालतों में चल रहे मामलों को जल्द निपटाने के लिए इस तरह की अस्थायी अदालतों का गठन किया गया था। इसके लिए 31 मार्च 2011 तक केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक मदद दी गई थी। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से दो चरणों में अदालतों के लिए रकम आबंटित करने सभी 151 अस्थायी फास्ट ट्रैक अदालतों का काम चालू रखा गया। इस तरह आगामी 31 मार्च 2013 तक यह अदालतें अपना काम करती रहेंगी। मंत्रिमंडल के ताजा फैसले के बाद आगामी वित्त वर्ष में राज्य में 88 फास्ट ट्रैक अदालतें ही काम करेंगी। इस मामले में एक मंत्री का कहना है कि फास्ट ट्रैक अदालतों के लिए 94 न्यायधीशों के पद बनाए जा रहे हैं, हालांकि उन्होंने 63 अदालतों के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा।
दूसरी ओर वेस्ट बंगाल जूडिसियल सर्विस एसोसिएशन के सूत्रों का कहना है कि 2011 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि कोई भी राज्य सरकार अस्थायी तौर पर फास्ट ट्रैक अदालत नहीं चला सकती। इसका मतलब यह है कि सभी अस्थायी अदालतों को स्थायी करना होगा।

Wednesday, January 2, 2013

 महिलाओं के खिलाफ  अपराध के मामलों में हावड़ा भी पीछे नहीं 

   कोलकाता और उत्तर चौबीस परगना जिले के बारासात इलाके में महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। बीते सालों के दौरान हावड़ा और हुगली भी इ स मामले में पीछे नहीं हैं। ऐसे मामलों में ज्यादातर दोषी पुलिस के शिकंजे में ही नहीं फंसते। जबकि कई मामलों में पकड़े जाने के बाद भी सबूत नहीं मिलने के कारण अभियुक्तों को अदालत से जमानत मिल गई। ऐसे भी मामले हुए हैं जब पुलिस वाले बलात्कार की शिकायत ही दर्ज करने के लिए तैयार नहीं हुए। कई मामलों में राजनीतिक और समाजिक दबाव केकारण पुलिस ने शिकायत दर्ज की लेकिन दोषी गिरफ्तार नहीं हुए। इससे हावड़ा और हुगली जिले में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और उत्पीड़न के मामलों में भारी वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध के मामलों में इसलिए राज्य के शीर्ष जिलों में हावड़ा का नाम शामिल है। 
मालूम हो कि 2007 में हावड़ा शहर के आठ पुलिस थाना इलाके में महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध की 257 घटनाएं हुई थी। इसमें बलात्कार की छह घटनाएं शामिल हैं। जबकि 2011 में अपराध की घटनाएं बढ़ कर 614 हो गई। इसमें बलात्कार की 24 घटनाएं हुई। पुलिस कमिशनरेट बनाने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि हावड़ा शहर में अपराध की घटनाओं में कमी होगी। लेकिन इस दौरान घटनाएं बढ़कर 1029 हो गई। गत जनवरी से नवंबर तक महिलाओं के खिलाफ अपराध की 1029 घटनाओं में बलात्कार की 31 घटनाएं शामिल हैं। 
दूसरी ओर हुगली जिले के गोघाट, खानाकूल, पुरशुड़ा, आरामबाग, धानखाली, जंगीपाड़ा समेत कई इलाकों में महिलाओं  के खिलाफ अपराध की घटनाएं हुई है। एक राजनीतिक दल की ओर से आरोप लगाया गया कि दूसरे दल कीओरसे इलाके में हिंसा फैलाई, जिससे उनके दल के समर्थक इलाका छोड़कर पलायन कर गए। इसके बाद उनकी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार की कई घटनाएं हुई। आरोप है कि 2001 में इस तरह की घटनाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई थी। इस दौरान गोघाट में तृममूल समर्थक की हत्या के बाद बलात्कार किया गया। पुलिस ने दोषियों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की। कांग्रेस अध्यक्ष तपन दास ने आरोप लगाया है कि 2001 से लेकर 2009 तक आरामबाग महकमे में सौ से ज्यादा बलात्कार की घटनाएं हुई। 
हावड़ा शहर के सांतरागाछी में 25 जुलाई तड़के एक नौकरानी के साथ बलात्कार की घटना हुई थी। इसके विरोध में जिले में कई जगह प्रदर्शन किए गए। गोलाबाड़ी थाना इलाके में कल इस घटना के खिलाफ मौन जुलूस निकाला गया। उस महिला की बहन ने कुछ दिन पहले एक मंच पर खड़े होकर आरोप लगाया था कि पहले जगाछा थाने में किसी तरह की शिकायत दर्ज नहीं की गई। उसे अस्पताल भेजने के बजाए घर भेज  कर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की गई। उसकी खराब हालत देख कर हमलोग अस्पताल लेकर गए तो  अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। बाद में मीडिया के दबाव में उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। पुलिस ने बलात्कार का मामला तो दर्ज किया लेकिन लगभग छह महीने बाद भी किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। 
इसी तरह 15 अप्रैल उलबेड़िया थाना इलाके में एक विकलांग युवती से बलात्कार किया गया था। तीन दिन बाद दबाव के कारण पुलिस ने इसका केस तो दर्ज किया। मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार का प्रमाण नहीं मिला इसलिए तीन दिन में पकड़े गए युवक की जमानत हो गई। गत सात सितंबर को उलबेड़िया में पांच साल की एक बच्ची से बलात्कार किया गया था। बच्ची की मां ने दोषी को पकड़ कर पुलिस से सुपुर्द कर दिया था। बलात्कार का सबूत नहीं मिलने के कारण वह जमानत पर छूट गया। इसके बाद पांच नवंबर आमता थाना इलाके में कक्षा नौ  की एक छात्रा के साथ बलात्कार के बाद हत्या  की घटना हुई थी। इस मामले में बलात्कार के बजाए पुलिस ने सिर्फ हत्या का मामला दर्ज किया। दो युवकों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया और दोनों जेल में कैद हैं।