Sunday, January 13, 2013

हजारों लोग गुलाबी मौसम में ठिठुरने के लिए मजबूर


  रंजीत लुधियानवी
कोलकाता,  महानगर कोलकाता,हावड़ा समेत पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में बीते कुछ दिनों से तापमान पांच डिग्री से लेकर 10 डिग्री सेल्सीयस के बीच घुम रहा है। कहीं पारा गिर कर 10 साल पुराने रिकार्ड तोड़ रहा है तो कहीं 22 साल पुराने रिकार्ड टूट रहे हैं। कभी-कभार तापमान में कुछ वृद्धि होती है तो गुलाबी मौसम में लोग पिकनिक के लिए निकल पड़ते हैं। मौज-मस्ती करने वाले स्वेटर, मफलर समेत तमाम गर्म कपड़ों और सूट-बूट में लैस होते हैं। वहीं महानगर में कुछ लोग ऐसे भी हैं कि पारा गिरते ही उनकी हालत बिगड़ जाती है। आनंद मनाने वालों का गुलाबी मौसम उनके लिए काली अंधेरी और ठिठुरती हुई रात में बदल जाता है। अकसर तन ढकने में नाकाम लोग किसी तरह कड़ाके की सर्दी में जीवन यापन करते हैं।
मौसम की मार झेलने वाले ऐसे गरीब और बेसहारा लोगों  में कोई कागज बिनता है तो कोई ठेला-रिक्शा  चलाता है। जबकि कुछ लोग महज भीख मांग कर ही गुजारा करते हैं। ऐसे  ज्यादातर लोगों को मतदान का भी अधिकार नहीं है। उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है। तापमान में गिरावट की खबर सूनकर जहां लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाती है वहीं इनके लिए बोरे में ठिठुरन भरी सर्दी में रात गुजारने की सोच कर रगों में सिहरन दौड़ जाती है। इसके बावजूद आम लोग जहां सर्दी-खांसी बुखार में छुट््टी लेकर कंबल में दुबके रहते हैं वहीं ये लोग बीमारी में भी काम पर निकलते हैं। भले ही शरीर साथ न तो कहीं फुटपाथ का सहारा लेकर सुस्ता लेते हैं।
महानगर कोलकाता मेंफुटपाथ पर रहने वाले  लोगों को  दूसरे दर्जे का नागरिक कहा जा सकता है क्योंकि इनके पास सुख-सुविधा का कोई सामान मौजूद नहीं है। यहां  के नागरिकों में  90 फीसद लोगों  को सर्दी में महज राज्य सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं का ही सहारा रहता है। इसका कारण यह है वहां से उन्हें कुछ राहत की सामग्री मिल जाती है। कई सभा-संगठनों की ओर से हर साल कंबल और गर्म कपड़ा वितरण समारोह का आयोजन किया जाता है। इसमें स्वेटर से लेकर चादर तक बांटी जाती है।
हावड़ा स्टेशन, सियालदह स्टेशन, बड़ाबाजार, पोद्दार कोर्ट, बीबी गांगुली स्ट्रीट, धर्मतला ट्राम डिपो समेत महानगर के विभिन्न इलाकों में फुटपाथ पर ऐसे लोगों को देखा जा सकता है। कुहासे ढंके रास्तों पर सड़क के किनारे दोनों ओर काले फटे बोरे या प्लास्टिक की आड़ में ऐसे परिवार निवास करते हैं। राज्य में सबसे ज्यादा फुटपाथ पर रहने वाले कोलकाता की सड़कों पर ही रहते हैं। गैर सकारी सूत्रों से मिले आंकड़ों के मुताबिक यहां 10-12 हजार लोग फुटपाथ पर गुजर-बसर करते हैं। हर साल दर्जनों संगठनों की ओर से कंबल, स्वेटर और गर्म कपड़े गरीब और जरुरतमंद लोगों में बांटे जाते हैं। लेकिन फुटपाथ पर रहने वाले ज्यादातर लोगों के पास फ टे कंबल और बोरे ही जीवन यापन का सहारा होते हैं। स्ट्रैंड रोड पर एक महिला अपने शराबी पति से झगड़ रही थी क्योंकि उसने नए गर्म कपड़े कुछ रुपयों के लालच में बेच दिए थे और रुपयों की शराब लाकर पी गया था। ऐसे कपड़े ज्यादातर नशे की लत में बेच दिए जाते हैं। रविवार धर्मतला ट्राम डिपो में एक महिला और दामाद की इसी लिए जमकर झड़प हुई।
बीबी गांगुली स्ट्रीट पर हाथ रिक्शा चालक अजीम भाई ने बताया कि पहले तो किसी तरह जाड़ा आसानी से कट जाता था। लेकिन इस साल हद हो गई है। शनिवार तो कुछ हद तक राहत थी। इसी तरह शबीना का भी कहना था कि इस साल तो सर्दी गुजर ही नहीं रही है। पता नहीं ऐसा माहौल कब तक रहेगा। हाल तक कोलकाता में सर्दी से ज्यादा परेशानी नहीं होती थी।
फुटपाथ वालों के लिए प्रशासन की ओर से भी राहत प्रदान की जाती है। लेकिन प्रशासनिक नियमों के मुताबिक किसी बीमार और असहाय व्यक्ति को पहले कोलकाता पुलिस की एनफोर्समेंट ब्रांच के तहत शाखा में भेजा जाता है। उनका प्राथमिक इलाज करने के बाद सरकारी नियमानुसार न्यायधीश के सामने पेश करना पड़ता है। अदालत के निर्देश के बाद ही बीमार फुटपाथी को सरकारी होम या आश्रयस्थल में भेजा जाता है। हालांकि कई जगह पुलिस ने शार्टकट रास्ता भी अपना रखा और थाने के साथ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ तालमेल कायम है। थानों से सीधे मरीज को उनके होम में भेज दियाजाता है। संलाप, नवदिशा समेत कई इस तरह की संस्थाएं पुलिस के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
राज्य की समाज कल्याण विभाग की मंत्री सावित्री मित्र का कहना है कि फुटपाथ पर रहने वाले और गरीब लोगों के लिए राज्य में कुल मिलाकर 27 होम बनाए गए हैं। यहां रास्ते के किनारे रहने वालों के इलाज और रहने की व्यवस्था की गई है।

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