Friday, January 11, 2013

रेल किराया तो बढ़ा दिया यात्रियों की सुध कौन लेगा?


 

रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 10 जनवरी । रेल मंत्री पवन बंसल ने रेल किराए में वृद्धि का एलान कर दिया है। लगभग 20 फीसद की  किराया वृद्धि के बाद कहा जा रहा है कि 10 साल बाद यह किराया बढ़ा है, इसके लिए रेलवे मजबूर था। किराया वृद्धि किए जाने पर लोगों में एक राय नहीं है कुछ लोगों का कहना है कि एक साथ इतना अधिक किराया बढ़ाया जाना किसी भी तरीके से उचित नहीं कहा जा सकता। दस साल तक किराया नहीं बढ़ा तो इसके लिए आम लोग नहीं केंद्र सरकार ही जिम्मेवार है जिसने राजनीतिक कारणों से ऐसा होने दिया। जबकि दूसरे कुछ लोगों का कहना है कि जब चावल से लेकर डीजल और रसोई गैस से लेकर बस किराया तो बढ़ता जा रहा है। ऐसे में रेलवे ने कुछ गलत नहीं किया है। हालांकि एक बात पर सारे लोग सहमत हैं कि  माल भाड़े, खान-पान के बाद किराए में भी रेलवे ने वृद्धि कर दी है लेकिन क्या यात्रियों की समस्याओं के बारे में भी रेल प्रबंधन कभी गंभीर होगा? आजादी के 150 साल बाद भी रेलगाड़ियां समय पर बहुत कम ही चलती हैं। दिसंबर में तो 34 घंटे देरी से चलकर एक ट्रेन ने रिकार्ड कायम किया है, जबकि तीन- चार घंटे से लेकर चौबीस घंटे देरी से चलना तो एक सामान्य बात हो गई है।
रेल किराया बढ़ने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक गृहिणी मंजू सिंह ने कहा कि हावड़ा- अमृतसर मेल (3005 अप-3006 डाउन) शायद ही कभी समय पर चलती हो। जबकि जाड़े के दिनों मे तो यह ट्रेन 12 से लेकर 24 घंटे देरी से चलती है। इसके अलावा कालका मेल, हिमगिरी एक्सप्रेस की हालत भी कम खराब नहीं है। अचानक रेलगाड़ी रद्द कर दी जाती है। इसके बाद फरमान जारी किया जाता है कि यात्रियों को पूरा किराया वापस मिल जाएगा लेकिन चार महीने पहले टिकट आरक्षित कराने वाले यात्रियों को न तो चार महीने का ब्याज मिलता है और न ही वैकल्पिक ट्रेन में आरक्षण की व्यवस्था की जाती है। जबकि होना तो यह चाहिए कि ट्रेन रद्द किए जाने पर उस हफ्ते किसी भी ट्रेन में यात्री अपना टिकट रिजर्व कर सके।
इससे पहले ही रेलवे स्टेशन पर या ट्रेन के भीतर यात्रियों को मिलने वाला नाश्ता व भोजन महंगा कर दिया गया था। अमृतसर मेल में 65 रुपए में मिलने वाला भोजन 90 रुपए और पांच रुपए में मिलने वाली चाय सात रुपए की कर दी गई। कीमत बढ़ने के बाद तीन रुपए में मिलने वाली रोटी पांच रुपए, 20 रुपए में मिलने वाला दाल-चावल 23 रुपए और 70 रुपए में मिलने वाली चिकन बिरयानी 84 रुपए की हो गई है। गोविंद रावत के मुताबिक रेलवे ने पैंट्री कार में मिलने वाले खाने के दाम तो बढ़ा दिए लेकिन गुणवत्ता के मामले में अभी भी कुछ सुधार नहीं हुआ है।
कई यात्रियों का कहना है कि सुरक्षा के मामले में देश भर में अभी तक रूट रिले इंटरलाकिंग सिस्टम चालू नहीं हो सका है। दुर्घटना रोकने के लिए एंटी कालिजन डिवाइस नहीं हैं। ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम की बातें सालों से चल रही हैं लेकिन कुछ नहीं हुआ है। रेलवे के विकास का जिक्र करते हुए एक यात्री ने बताया कि 1969 में देश में पहली राजधानी एक्सप्रेस नई दिल्ली से हावड़ा के बीच चली थी। उस समय रोलिंग स्टाक पुराने थे, इंजन भी कम शक्तिशाली थे। उस समय 1450 किलोमीटर की दूरी तय करने में इस गाड़ी को 17 घंटे 10 मिनट लगते थे। अब इस गाड़ी में जर्मन तकनीक वाले डिब्बे हैं जो 150 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं। पांच हजार हार्स पावर वाले शक्तिशाली बिजली के इंजन इसे खींचते हैं तब भी इसे यह दूरी तय करने में 16 घंटे 55 मिनट लगते हैं। सालों बाद इतने तामझाम के बाद  महज 15 मिनट की बचत हुई है।
रेल मंत्री के एलान पर नाराजगी प्रकट करते हुए मंजीत कौर ने कहा कि मंत्री ने अचानक किराया वृद्धि का एलान कर दिया जबकि रेलवे बजट आने वाला है। पहले किसी भी तरह का एलान बजट में किया जाता था। अब केंद्रीय बजट की तरह की रेलवे बजट भी अप्रासंगिक हो गया है। ऐसे में बजट पेश करने का क्या औचित्य है? गठजोड़ की सरकार ने किसी सहयोगी से किराया बढ़ाने के बारे में विचार-विमर्श किया,देशके  लोगों को विश्वास में लिया? एक अल्पमत की सरकार मनमाने फैसले कैसे कर सकती है? इसी तरह रेणू वर्मा ने कहा कि रेलवे में चोरी-लूट और डकैती आमतौर पर होती रहती है, इसलिए जब तक गंतव्य स्थल पर नहीं पहुंच जाते खुद और घर वाले दहशत में ही रहते हैं। क्या रेलवे इस बारे में कुछ करेगा कि लोग सुरक्षित अपने स्टेशन तक पहुंच सकें।
हावड़ा रेलवे स्टेशन के गोदाम में बीते दो दिनों से अपना सामान तलाशते एक व्यक्ति ने बताया कि यहां कुछ पता ही नहीं चल रहा है कि सामान कब पहुंचेगा। एक कर्मचारी ने बताया कि रेलगाड़ियां देरी सेचल रही हैं इसलिए हो सकता है कि आपका सामान दूसरे दिन वाली ट्रेन में चढ़ा दिया गया हो। इसलिए एक दिन और यहां देख लें , फिलहाल कुछ बताना संभव नहीं है। इसी तरह कई लोग सामान की तलाश में परेशान रहते हैं। लेकिन यहां किसी के पास सटीक जानकारी नहीं मिलती कि आपका सामान कब पहुंचने वाला है।

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