Monday, February 18, 2013

ममता बनर्जी की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद




कोलकाता। ममता बनर्जी की कविताओं का पहली बार अंग्रेजी में अनुवाद और उनकी पेंटिंग को किताब की शक्ल देने के साथ ही उनमें छिपा कलाकार अब उनके गृह राज्य से बाहर निकलने के प्रयास में है। अपनी कविताओं में ममता बनर्जी राजनीति के इतर पक्षों को उजागर कर रही हैं। बांग्ला से अंग्रेजी में नंदिनी सेनगुप्ता द्वारा अनूदित 56 कविताओं के संग्रह के साथ ही उनकी नवीनतम पेंटिंग को भी किताब की शक्ल दी जा रही है।

पहली बार उनकी कविताओं का अनुवाद हो रहा है । ममता नियमित रूप से लेखन और पेंटिंग करती हैं और अपनी कला के लिए उन्हें व्यापक प्रशंसकों की तलाश है। उनकी पेंटिंग की सभी चारों प्रदर्शनियां अभी तक कोलकाता में हुई हैं लेकिन पिछले वर्ष अक्टूबर में उनकी कलाकृतियां विदेशों में गईं। ‘फ्लावर पावर’ की कृति न्यूयॉर्क में 3 हजार डॉलर में बिकी।

उनकी कविताओं और पेंटिंग में दिखता है कि किस तरह उनका दिल न केवल देश के लोगों के लिए धड़कता है बल्कि प्रकृति पर भी उनकी निगाह बनी रहती है। प्रकृति प्रेम का इजहार करते हुए ममता बनर्जी ने पूर्णिमा की खूबसूरती, मौसम, नदियों, समुद्र एवं फूलों पर लिखा है। उनकी कविता की हर पंक्ति उन्हें दर्द से ऊपर उठने और मानवता, स्वतंत्रता एवं समानता के नए युग की तरफ देशवासियों को ले जाने की ओर इशारा करती है।  

Sunday, February 17, 2013

इक स्कूल बना न्यारा




कोलकाता,  (रंजीत लुधियानवी)। कई सालों से पति-पत्नी का देखा गया  सपना आखिर पूरा हो गया। इसके लिए दोनों ने सालों अनथक लगन और मेहनत से काम किया।  पुड़ियां  बेच कर जुगाड़ की गई पूंजी से एक स्कूल खड़ा हो ही गया। एक पति के काम में मदद और दूसरी ओर बच्चों को पढ़ाने में मन लगाकर एक महिला ने लोगों में अपना लोहा मनवा लिया है। सुबह वि•िान्न इलाकों में घुम-घुम कर सब्जी-पूड़ी बेचने के बाद दोपहर को दंपति स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं। लेकिन इलाके में यह दंपति मास्टरजी और बहनजी के तौर पर ही प्रसिद्ध है।
उत्तर चौबीस परगना जिले में बारासात-हसनाबाद शाखा में कड़वा कदंबगाछी रेलवे स्टेशन है। इसके नजदीक हेमंत बसु कालोनी में गरीबों की बस्ती है। स्टेशन उतर कर कन्हाई मास्टरजी या आलो बहनजी के बारे में पूछते ही अंधा •ाी आपको उनके घर का रास्ता बता देगा, साहा दंपति इलाके में इतने ज्यादा मशहूर हो चुके हैं। सुबह उठते ही पति-पत्नी काम में जुट जाते हैं। एक कड़ाही में पूड़ियां तलने लगता है तो दूसरा पूड़ी के लिए गोले बनाता है। आठ बजे तक दोनों यह काम करते हैं। मौका निकालकर कन्हाई कपड़े बदल लेते हैं और एक हाथ में पुड़ियों की बाल्टी और दूसरे हाथ में आलू की सब्जी की बाल्टी लेकर काम के लिए निकल पड़ते हैं। इस बीच पत्नी बेलने और तलने दोनों काम करती हैं। स्टेशन के आसपास के इलाके में लोगों में नाश्ते का सामान बेचते हैं। एक घंटे में एक बाल्टी सामान बेच कर पति दोबारा घर लौटते हैं। तब तक एक बाल्टी तैयार रहती है। दोबारा निकलते हैं । बीस साल से परिवार इसी तरह से गुजर -बसर कर रहा है।
पति बारहवीं कक्षा और पत्नी नौंवी कक्षा तक पढ़ सकी थी। दोनों शिक्षक बनना चाहते थे लेकिन शैक्षणिक योग्यता नहीं थी क्योंकि आर्थिक तंगी के कारण उनका उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना अधुरा ही रह गया था। तब उन्होंने तय किया कि दोनों मिलकर इलाके में एक स्कूल बनाएंगे। इस सोच ने उनके जीवन का दूसरा अध्याय शुरू कर दिया। अब पत्नी बनाती और  पति शाम ढलते ही हसनाबाद लोकल ट्रेन में समोसे, गजा और खाने का दूसरा सामान लेकर रास्ते पर निकल पड़ते, जिससे रोजगार को और बढ़ाया जा सके। इस तरह दोनों ने मिलजुल कर सुख-दुख, सर्दी-गर्मी की परवाह छोड़कर पाई-पाई इकट्ठा करनी शुरु कर दी। कुछ रुपए इकट्ठा हुए तो 2004 में रेलवे स्टेशन के नजदीक दो कट्ठा जमीन खरीद ली। इसके बाद वहां कमरा बनाया और लिटिल प्लानेट केजी स्कूल शुरू कर दिया।
पति-पत्नी को शिक्षा के बारे में कोईजानकारी नहीं थी। बच्चे कहां से आएंगे, यह •ाी एक कठिन सवाल था। इस बीच कन्हाई ने मोंटेशरी प्रशिक्षण हासिल किया। गरीब बस्ती के लोगों ने सपने में •ाी बच्चों को स्कूल •ोजने के बारे में नहीं सोचा था, इसलिए बच्चे मिलना एक समस्या बन गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और घर-घर जाकर लोगों को प्रेरित करना शुरू किया। पहले साल किसी तरह 42 बच्चे मिल गए। यह सारे बच्चे मुफ्त पढ़ाए जा रहे थे क्योंकि फीस मांगते ही अ•िा•ाावक बच्चों को स्कूल •ोजना बंद कर देते। इसके बाद धीरे-धीरे 25 रुपए महीना फीस रखी गई। तब तक अ•िा•ाावकों को •ाी साहा दंपति की अनथक मेहनत और शिक्षा के महत्व के बारे में कुछ-कुछ जानकारी होने लगी थी। लेकिन यह फीस •ाी स•ाी अ•िा•ाावक नहीं देते थे।
सालों बाद स्कूल में कुल मिलाकर 200 छात्र-छात्राएं हो गए हैं और नर्सरी से लेकर चौथी कक्षा तक छह शिक्षिकाएं पढ़ाने के लिए मौजूद हैं। लेकिन अ•ाी •ाी साहा दंपति स्कूल से परिवार चलाने के योग्य नहीं हो सके हैं। बच्चों के अ•िा•ाावक •ाी अनपढ़ हैं इसलिए पति-पत्नी को मिल कर बच्चों को शाम को होम वर्क करवाना पड़ता है। अब उन्होंने अ•िा•ाावकों को शिक्षित करने की योजना बनाई है जिससे स्कूल का काम बच्चे घर पर कर सकें। इलाके में शिक्षा की मसाल जला रहे साहा दंपति एक मिसाल बन गए हैं। लेकिन अ•ाी •ाी घर चलाने के लिए पहले की तरह पति-पत्नी सुबह उठकर पुड़ियां तलना शुरू करते हैं।



Friday, February 1, 2013

डनलप को नीलाम करने का निर्देश

 कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार टायर निर्माण की बंद पड़ी विख्यात कंपनी डनलप इंडिया लिमिटेड को नीलाम करने का निर्देश सरकारी लिक्विडेटर (परिसमापक) को दिया। उल्लेखनीय है कि हुगली के निकट शाहागंज में 1936 में कंपनी की स्थापना की गयी थी जो 80 के दशक तक टायर निर्माण की प्रमुख कंपनी थी। बंद पड़ी कंपनी की समस्त चल अचल सम्पत्ति को जब्त कर उसे बेचने का फैसला जारी करते हुए न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी ने गुरुवार सरकारी परिसमापक को कंपनी की सभी परिसंपत्तियों के कागजात तुरंत अपने नियंत्रण में लेने का निर्देश दिया है। ईवी मथाई, ए के कुंडू एंड कंपनी सहित 15 अन्य ऋणदाताओं ने संयुक्त रूप से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बंद कंपनी की सम्पत्ति नीलाम कर अपने पैसे का भुगतान चाहा था जिसे न्यायाधीश ने मान लिया। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने यह बात स्वीकार की आश्वासन के बावजूद कि डनलप अब बकाएदारों से लिया गया कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है, लिहाजा उनके डूबते हित को बचाने का एक मात्र यही विकल्प है। वहीं डनलप कंपनी के वकीलों का तर्क था कि वे उधार चुकाने में लगे हैं लिहाजा कंपनी को कायम रहने दिया जाए। पर कोर्ट ने उनकी दलील ठुकरा दी। डनलप 1990 के दशक में डांवाडोल होने लगी थी और कुछ सालों बाद ही बीमार और तालाबंदी का शिकार हो गई। कंपनी की वित्तीय जटिलता के दौरान 2005 में पवन कुमार रुइया के नेतृत्व में रुइया समूह ने इसका संचालन प्रत्यक्ष तौर पर अपने हाथ में लिया था। इसी बीच रुइया समूह ने कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। समूह के एक प्रवक्ता ने कहा कि हमने अभी फैसले को देखा नहीं है, कोर्ट के निर्देश की कापी आने के बाद हम आगे की कार्रवाई तय करेंगे।