Sunday, March 24, 2013

सोशल नेटवर्किंग साइट बदल रहे हैं जिंदगी की डगर



पीछे की बेंच पर बैठने वाले बड़ी कक्षा के दादाओं की दहशत के कारण सुमन अब मैदान में ही नहीं जा रहा है। इसके बजाए वह शुन्य में निहारता रहता है और मनोचिकित्सकों के कक्ष में देखा जाता है।
इसी तरह दोस्तों के साथ प्रशांत ने फोटो खिंचवाई थी, लेकिन कंप्यूटर पर उसके साथ वाले सभी मित्रों की तस्वीर काट कर सिर्फ एक लड़की की फोटो जोड़ कर अपलोड कर दी गई। गुस्से में पेपर कटर से ऐसा करने वाले छात्र की ऊंगली ही प्रशांत ने काट दी थी। एक और प्रताड़ना की शिकार नुपूर हालांकि अभी इस सबसे दूर चली  गई है। नेट दुनिया में मित्र बने एक युवक के साथ चैटिंग के माध्यम से पहली बार प्रेम का स्वाद चखा था। परीक्षा के दबाव में व्यस्त होने के कारण वह चैटिंग में टाइम नहीं दे रही थी। नाराज प्रेमी ने धमकी दी कि आपसी बातचीत की सारी बातें जगजाहिर कर देखा। आखिर परिवार और समाज के डर से उसने आत्महत्या कर ली।
उपर की तीन कहानियों में नाम काल्पनिक हैं लेकिन घटनाएं सच्ची है। इन सभी मामलों में अभिभावकों का आरोप है कि नेट बुलिंग या नेट पर प्रताड़ना के कारण ऐसा हो रहा है। आंकड़ों की बात करें तो भारत में इस तरह आन लाइन प्रताड़ना, परेशानी या शर्मिंदगी का शिकार होने वालों में 53 फीसद नेट का प्रयोग करने वाले शामिल हैं। कोलकाता महानगर में ही यह समस्या हर साल 30 फीसद की दर से बढ़ रही है। कुल मिलाकर 32 फीसदी अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चे नेट के कारण परेशानी का सामना करते हैं। ज्यादातर (55 फीसदी) अभिभावकों का मानना है कि नेटवर्किंग साइट के लिए ऐसा हो रहा है। मेट्रो शहरों में कुल मिलाकर 40 फीसद टीन एजर्स मोबाइल फोन पर नेट चलाते हैं। इस तरह हर मिनट नेट अपराध का शिकार होने वालों की संख्या 80 व्यक्ति है।
मालूम हो कि इंटरनेट पर छात्र-छात्राओं में खास तौर पर फेसबुक, आर्कुट, हाई फाइव या अपना सर्कल जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट छात्र-छात्राओं को जमकर लुभा रहे हैं। दिन-रात वक्त मिलते ही वे लोग इस पर जुट जाते हैं। इस चक्कर में यार-दोस्त , पढ़ाई-लिखाई सब पीछे छुटती जा रही है। लेकिन इससे ही मानसिक परेशानियां बढ़ रही हैं यह आरोप नया नहीं है। इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि स्कूल में विवाद हो या खेल के मैदान में किसी तरह की बात लोग सीधे नेट पर जा पहुंचते हैं औरदिल की भड़ास निकाल देते हैं। सामने जुबान बंद रहकर मौका मिलते ही ऐसा कुछ अपलोड करने से विरोधी की इमेज देश-दुनिया में तबाह हो जाती है। इस मामले में कोई तस्वीर को खराब करके पेश करता है तो कोई नाराज लोगों का हेट समूह ही बना डालता है। कोई जिससे नाराजगी है उसके बारे में ऐसी -ऐसी बातें लोगों को बताता है कि बेचारे का सिर शर्म से झुकता ही चला जाता है।
एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के आंकड़ों के मुताबिक नेट प्रताड़ना में चीन और सिंगापुर के बाद भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। यह समस्या सबसे ज्यादा आठ साल  से लेकर 17 साल के छात्र-छात्राओं में देखी जा रही है। कोलकाता जैसे शहर से निकल कर यह समस्या छोटे शहरों तक फैलने लगी है।
मानसिक अवसाद,हिंसक विचारधारा, निष्ठुर मनोभाव से लेकर आत्महत्या तक की घटनाएं नेट पर बेइज्जत होनेके बाद हो रही हैं। कोलकाता के एक अध्यापक का कहना है कि किशोर मन पर इस तरह का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। लेकिन नेट दुनिया में प्रवेश करने से पहले बच्चों को दुनिया के कायदे-कानून की जानकारी हासिल करनी जरुरी है। इसके साथ ही जिम्मेवारी की भी जरुरत है। इसके बजाए होता यह है कि नेट एक नशे की तरह कम उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। मेरा मानना है कि दसवीं कक्षा से पहले किसी भी नेटवर्किंग साइट का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। इसके बजाए बच्चों को पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने, गीत-संगीत के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
जबकि महानगर के एक दूसरे अध्यापक का कहना है कि रैगिंग रोकने के लिए जिस तरह कानून बने हुए हैं, नेट पर प्रताड़ना करने वालों के लिए भी वैसे ही कानून की जरुरत है। कई स्कूलों में नेटवर्किंग साइट पर रोक लगाई गई है, हालांकि यह बहुत कम जगह है। शिक्षा विभाग को इस बारे में जागरुक होने की जरुरत है।
लेकिन क्या इसके लिए जागरुकता की कमी है या दोस्तों के चक्कर में फंस कर युवा मन नेट के जाल में फंसता चला जाता है। शिक्षा जगत से जुड़े एक व्यक्ति का मानना है कि जिस तरह दोस्तों के चक्कर में लोग शराब-सिगरेट की लत का शिकार होते हैं,ठीक वैसा ही नेट के मामले में भी हो रहा है। इसके साथ ही सस्ते मोबाइल और पांच रुपए में नेट का प्रयोग जैसी सुविधाएं मिलने के कारण कोई भी आसानी से नेट के चंगुल में फंस जाता है। पहले परिवार वालों की ओर से बच्चों को नशे से दूर रहने के लिए कहा जाता था लेकिन अब अभिभावक खुद ही नेट में व्यस्त रहते हैं तो बच्चों से क्या कहें?
हालांकि खुशी की बात यह है कि समस्या बढ़ने के साथ ही अभिभावक भी जागरुक हो रहे हैं। एक साफ्टवेयर बनाने वाली संस्था की समीक्षा के मुताबिक शहरों में रहने वाले ज्यादातर अभिभावकों को समस्या के बारे में जानकारी है। स्कूलों में भी जागरुकता बढ़ रही है। जिससे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हालात बिगड़ने के बजाए सुधरना शुरू करेंगे।

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