Thursday, June 6, 2013

ममता अग्निपरीक्षा तो सफल हुई पर संकट टला नहीं


रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 6   जून । भाजपा और कांग्रेस के बगैर  हावड़ा लोकसभा उपचुनाव सीट पर चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी  एक अग्निपरीक्षा में सफल हो गई हैं । दल के वोट भी नहीं घटे हैं। लेकिन इसके बावजूद सत्ताधारी दल के लोगों के चेहरे पर सफलता मिलने पर  खुशी की झलक नहीं दिख रही है। जबकि तृणमूल कांग्रेस अकेले दम पर सफल ही नहीं रही है, अपने मतदाताओं को भी साथ रखने में कामयाब हुई है। इस दौरान बाहरी उम्मीदवार, अंदरुनी गुटबाजी, शारदा चिट फंड घोटाले  और कांग्रेस की ओर से तृणमूल कांग्रेस को पराजित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने का भी विरोधियों को फायदा नहीं मिला । इसका सबसे बड़ा कारण माकपा के वोट प्रतिशत में वृद्धि है। बीते दो साल में पहली बार वाममोर्चा किसी उपचुनाव में अपने वोट बढ़ाने में सफल रही है। चार फीसद से ज्यादा वोट बढ़ने के साथ ही दो विधानसभा केंद्रों पर भी लीड हासिल करने में सफल रही, जिससे तृणमूल समर्थक हैरान-परेशान हैं।
तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि सप्तरथी षडयंत्र के खिलाफ अभिमन्यु की तरह ममता बनर्जी ने माकपा,कांग्रेस, भाजपा, तीन बांग्ला टीवी चैनलों, तीन बांग्ला दैनिक समाचार पत्रों और एक श्रेणी के बुद्धिजीवियों से संघर्ष किया, जिन्होंने सरकार से जो हासिल करने की उम्मीद की थी, वह सफल नहीं हुई। इसके बाद वे लोग विरोधी बन गए। इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस के वोट घटे नहीं बल्कि बढ़ गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस को 2006 के विधानसभा में 12.25 फीसद मत मिले थे। जबकि 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठबंधन को 49.94 फीसद वोट मिले थे। इसमें कांग्रेस के वोट निकाल दिए जाएं तो तृणमूल के वोट 37.69 फीसद होते हैं जबकि 2013 के लोकसभा उपचुनाव में तृणमूल ने लगभग सात फीसद ज्यादा 44.68 फीसद मत प्राप्त किए हैं। इतना ही नहीं 2009 के लोकसभा की बात करें तब भी कांग्रेस-तृणमूल गठजोड़ को 48.04 और माकपा को 44.27 फीसद वोट मिले थे। इसमें कांग्रेस के वोट निकालने पर भी तृणमूल के वोट ज्यादा ही दिखते हैं। जबकि माकपा के वोट 44.27 फीसद से घट कर 41.85 फीसद रह गए हैं।
विधानसभा नतीजों में भी ज्यादा हेरफेर नहीं हुआ है। पिछले लोकसभा की तरह ही इस बार भी विधानसभा इलाकों का नतीजा 5-2 रहा है। हालांकि तब  माकपा ने तब बाली और उत्तर हावड़ा में बढ़त हासिल की थी जबकि इस बार दक्षिण हावड़ा और सांकराईल में बढ़त मिली है। इस तरह विधानसभा इलाकों की स्थित, वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही तृणमूल ने प्रतिष्ठा की सीट पर जीत हासिल की है। लेकिन समस्या यह है कि वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही जीत का फर्क बहुत ज्यादा घट गया है। इसमें एक बड़ा कारण कांग्रेस के वोट माने जा रहे हैं भले ही वह कहीं भी सफल नहीं हो सकी। इसके अलावा भाजपा के वोट वाले इलाके उत्तर हावड़ा, मध्य हावड़ा, पांचला में वोट बढ़े हैं। विधानसभा (2011) में माकपा सभी सात जगह पिछड़ रही थी लेकिन इस बार 37 फीसद से 41.85 फीसद वोट हासिल करने के साथ ही पांच विधानसभा केंद्रों में प्रतिशत बढ़ा जबकि एक जगह यथास्थिति रही है। विधायक अशोक घोष के उत्तर हावड़ा में जीत का फर्क 19608 से घट कर 6952, मंत्री अरुप राय के मध्य हावड़ा में 50670 से 6952, जटुलहिरी के शिवपुर में 46404 से 7047, ब्रजमोहन मजुमदार के दक्षिण हावड़ा में तो माकपा ने 31422 से पिछड़ने के बाद 2519 की बढ़त हासिल की। यही हाल सांकराईल का रहा, यहां माकपा ने शीतल सरदार की बढ़त 17859 को लांघ कर 6602 बढ़त प्राप्त की। पांचला में गुलशन मल्लिक भी 12118 को नहीं संभाल सके और यह महज 9960 रह गई।
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भले ही तृणमूल कांग्रेस के वोट 2006 और 2009 की तुलना में ज्यादा इधर-उधर नहीं हुए हैं। लेकिन उनके चार फीसद वोट माकपा की झोली में गए हैं और भाजपा के लगभग चार फीसद वोट तृणमूल को मिले हैं। इस तरह माकपा के वोट बढ़ गए लेकिन तृणमूल के वोट कुल मिलाकर पहले की तरह ही रहे हैं। सांकराईल और दक्षिण हावड़ा की हार तृणमूल के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि दोनों विधानसभा केंद्र ग्रामीण इलाके में हैं और अगले महीने पहले चरण के पंचायत चुनाव यहां होने वाले हैं। दोनों इलाकों में 20 से 25 फीसद मुसलमान मतदाता भी हैं, चिट फंड घोटाले के पीड़ित लोगों की यहां भारी संख्या भी है। कांग्रेस का मानना है कि सांकराईल में उनके लगभग 32 हजार वोट हैं। तृणमूल कांग्रेस को 61737, माकपा को 68339 और कांग्रेस को यहां 20608 वोट मिले हैं। दक्षिण हावड़ा में तृणमूल कांग्रेस को 70049, माकपा को 72568 और कांग्रेस को 11013 वोट मिले हैं। हालांकि पांचला में भी कांग्रेस ने 17659 वोट हासिल करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तृणमूल कांग्रेस 69612, माकपा को 59652 वोट मिले।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हावड़ा की जीत के बाद साफ तौर पर कहा है कि हमें कांग्रेस की नहीं उन्हें हमारी जरूरत है। लेकिन उपचुनाव के नतीजों से लगता है कि अकेले चुनाव लड़ने के कारण जहां कांग्रेस का सफाया हो सकता है वहीं वाममोर्चा को भारी सफलता मिलने की उम्मीद है। इसका खामियाजा सत्ताधारी दल को ही भुगतना होगा क्योंकि हावड़ा में 2008 के पंचायत चुनाव में वाममोर्चा को 62.16, तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस को 17.16 और भाजपा को 1.09 फीसद सफलता मिली थी।  भाजपा-कांग्रेस के बगैर पंचायत चुनाव की वैतरणी पार करना ममता के लिए आसान नहीं होगा।

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