Wednesday, November 23, 2011

मातृभाषा विकास में रोड़ा नहीं तरक्की की सीढ़ी


मातृभाषा विकास में रोड़ा नहीं बल्कि तरक्की की सीढ़ी बन सकती है। ताजा शोध से इस बात का पता चला है कि अपनी भाषामें पारंगत व्यक्ति दूसरी भाषाको ज्यादा अच्छी तरह और गहराई से सीख सकता है। एक दिवसीय पंजाबी सम्मेलन में वक्ताओं की बातों में यह विचार उ•ार कर सामने आया। पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की ओर से यह आयोजन किया गया था। दूसरी पूर्वी
भारतीय पंजाबी कांफ्रेंस नेशनल लाइब्रेरी के भाषा भवन आडीरोटियम में आयोजित की गई। इस मौके पर पूर्वी भारत के सात राज्यों से लगभग 200 प्रतिनिधि शामिल हए। राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह समरोह में मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा विश्वविद्यालस के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह, डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। मालूम हो कि पहला पूर्वी भरत सम्मेलन धनबाद में पिछले साल आयोजित किया गया था।
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि मातृ भाषा दूसरी
भाषा सीखने में रुकावट बन सकती है। बीते दिनों यूनेस्को की ओर से किए गए शोध से इस बात का पता चलता है कि अपनी
भाषा में समृद्ध व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है। इसलिए अपने बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह से अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो पहले उसे अपनी
भाषा के बारे में ज्ञान दें।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच, जजबात को मातृ•ााषा में जितनी अच्छी तरह से प्रकट कर सकता है, उसे वह दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता। कुछ लोग अपनी मातृ
भाषा से कट जाते हैं लेकिन ऐसा करके वह जैसे खो जाते हैं, गुम हो जाते हैं।
उन्होेंने कहा कि प्रसिद्धा पंजाबी फिल्म अ•ि भनेता बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे अपनी एक पुस्तक लेकर कवि गुरू रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए गए थे। टैगोर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी माृत•ााषा क्या है तो जवाब मिला कि पंजाबी, तब उन्होंने कहा कि अपनी •
भाषा में क्यों नहीं लिखते? जो व्यक्ति अपनी
भाषा में अच्छी तरह से मन के विचार प्रकट कर सकता है किसी दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता है। स्वंय टैगोर ने •ाी सारा काम अपनी मातृ•
भाषा में ही किया है। इसके बाद साहनी ने पंजाबी में लिखना शुरू किया। उनके
भाई
भीष्म साहनी ने
भी पंजाबी के बारे में लिखा है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी का विरसा (संस्कृति) बहुत अमीर है लेकिन हम गरीब हो जाते हैं। अपने इतिहास, परंपरा से कटते जा रहे हैं। हमारा गुरू गुरू नानक हर मामले में अमीर है, पर हम उनके बताए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। पंजाबियों का सबसे बड़ा गुण उनका चरित्र है। खुश मिजाज और दिल खोल कर व्यवहार करने वाला पंजाबी होता है, तंग दिल पंजाबी नहीं हो सकता । किसी मेहमान से जो यह पूछे कि चाय पिएंगे या नहीं , वह पंजाबी नहीं हो सकता। पंजाबी तो वह है जो चाय, बिस्कुट और दो चार मिठाईयां परोस कर पूछे कि बताएं और क्या खाना है?
महानगर कोलकाता में पंजाबियों के बारे में लोगों के विचार के बारे में उन्होंने कहा कि वायसराय की बेटी कोलकाता आई थी तो उसे कहा गया था कि जब
भी किसी टैक्सी में सवार होना पगड़ी वाले पंजाबी की टैक्सी में सवार होना। इस तरह लोगों की नजर में पंजाबियों की पहचान रक्षक के तौर पर है, यह कायम रहनी चाहिए। यूपी में सुना कि वहां पंजाबी की गवाही को दो लोगों की गवाही के बराबर माना जाता था क्योंकि लोग मानते थे कि सरदार
भूठ नहीं बोल सकता।
विश्वविद्यालय के डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने की नोट (कुंजीगत)
भाषण में कहा कि व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास जरुरी है लेकिन यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। स•
भयता-संस्कृति के साथ राजनीतिक जगह की
भी जरूरत है।
भाषा के विकास के लिए शिक्षा में सहायक होना चाहिए, वह रोजगार के साधन मुहैया करवा सके और सरकारी
भाषा बने जिससे उसके फलने-फूलने में मदद मिले।
उन्होंने कहा कि
भाषा रीढ़ की हड््डी की तरह है। शब्दों के बगैर सारा कुछ बेरंग है। लेकिन आने वाली पीढ़ी
भाषा से जुड़े इसके लिए जरुरी है कि लिपि का विकास निरंतर जारी रहे। लोग
भाषा लिखना नहीं जानते तो दूसरी पीढ़ी उसे सीख नहीं सकेगी। वह सिमटती जाएगी और एकदिन समाप्त हो जाएगी। किसी जमाने में फ्रांसीसी
भाषा पहले स्थान पर थी लेकिन अब अंग्रेजी आगे आ गई है।
उन्होेंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुलीन वर्ग
भाषा और धर्म के मामले में हीनता बोध से ग्रस्त है। वे लोग धन के मामले में तो आगे हैं लेकिन
भाषा के प्रति जागरुक नहीं है। इसलिए दूसरी
भाषा के प्रति मोह दिखाते हैं। बच्चों को मम्मी, डैडी तो बोलना सिखाते हैं लेकिन अपनी
भाषा के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं। अ•ाी कनाडा में प्रवासियों के बारे में
भाषा के बारे में गणना हुई तो उसमेंं 100 में 34 फीसद बच्चों ने पंजाबी को अपनी मातृ
भाषा बताया , उनका जन्म वहीं हुआ जबकि जर्मन के छह और पूर्तगाल के तीन फीसद बच्चों ने अपनी मातृ भाषा को बताया।
राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पद संभालते ही उन्होंने पंजाबी को भाषायी मान्यता प्रदान की। रेल मंत्री के तौर पर सिखों के धार्मिक स्थल हुजूर साहिब (महाराष्ट्र), आनंदपुर साहिब (पंजाब), स्वर्णमंदिर(अमृतसर) समेत स•ाी स्थानों के लिए रेलगाड़ियां चलाई हैं । अब वे राज्य में पंजाबियों के लिए कोई स्मारक स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने गुरू नानक जयंती पर मु­ासे कहा था कि नानक की मूर्ति स्थापित करनी है तो बताएं लेकिन मैने बताया कि सिख धर्म में मूर्ति पूजा की मनाही है। इस मौके पर वि•िभान्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम
भी पेश किए गए।
भाषा विकास में रोड़ा नहीं बल्कि तरक्की की सीढ़ी बन सकती है। ताजा शोध से इस बात का पता चला है कि अपनी
भाषा में पारंगत व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह और गहराई से सीख सकता है। एक दिवसीय पंजाबी सम्मेलन में वक्ताओं की बातों में यह विचार उभर कर सामने आया। पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की ओर से यह आयोजन किया गया था। दूसरी पूर्वी
भारतीय पंजाबी कांफ्रेंस नेशनल लाइब्रेरी के
भाषा
भवन आडीरोटियम में आयोजित की गई। इस मौके पर पूर्वी
भारत के सात राज्यों से लग
भग 200 प्रतिनिधि शामिल हए। राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह समरोह में मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा विश्वविद्यालस के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह, डाक्टर जसविंदर सिंह ने
भी अपने विचार व्यक्त किए। मालूम हो कि पहला पूर्वी
भारत सम्मेलन धनबाद में पिछले साल आयोजित किया गया था।
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के उप कुलपति डाक्टर जसपाल सिंह यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि मातृ
भाषा दूसरी
भाषा सीखने में रुकावट बन सकती है। बीते दिनों यूनेस्को की ओर से किए गए शोध से इस बात का पता चलता है कि अपनी
भाषा में समृद्ध व्यक्ति दूसरी
भाषा को ज्यादा अच्छी तरह से सीख सकता है। इसलिए अपने बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह से अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो पहले उसे अपनी
भाषा के बारे में ज्ञान दें।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच, जजबात को मातृ
भाषा में जितनी अच्छी तरह से प्रकट कर सकता है, उसे वह दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता। कुछ लोग अपनी मातृ
भाषा से कट जाते हैं लेकिन ऐसा करके वह जैसे खो जाते हैं, गुम हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रसिद्धा पंजाबी फिल्म अ•िभनेता बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे अपनी एक पुस्तक लेकर कवि गुरू रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए गए थे। टैगोर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी मात
भाषा क्या है तो जवाब मिला कि पंजाबी, तब उन्होंने कहा कि अपनी
भाषा में क्यों नहीं लिखते? जो व्यक्ति अपनी
भाषा में अच्छी तरह से मन के विचार प्रकट कर सकता है किसी दूसरी
भाषा में नहीं कर सकता है। स्वंय टैगोर ने
भी सारा काम अपनी मातृ•ााषा में ही किया है। इसके बाद साहनी ने पंजाबी में लिखना शुरू किया। उनके
भाई
भीष्म साहनी ने
भी पंजाबी के बारे में लिखा है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी का विरसा (संस्कृति) बहुत अमीर है लेकिन हम गरीब हो जाते हैं। अपने इतिहास, परंपरा से कटते जा रहे हैं। हमारा गुरू गुरू नानक हर मामले में अमीर है, पर हम उनके बताए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। पंजाबियों का सबसे बड़ा गुण उनका चरित्र है। खुश मिजाज और दिल खोल कर व्यवहार करने वाला पंजाबी होता है, तंग दिल पंजाबी नहीं हो सकता । किसी मेहमान से जो यह पूछे कि चाय पिएंगे या नहीं , वह पंजाबी नहीं हो सकता। पंजाबी तो वह है जो चाय, बिस्कुट और दो चार मिठाईयां परोस कर पूछे कि बताएं और क्या खाना है?
महानगर कोलकाता में पंजाबियों के बारे में लोगों के विचार के बारे में उन्होंने कहा कि वायसराय की बेटी कोलकाता आई थी तो उसे कहा गया था कि जब
भी किसी टैक्सी में सवार होना पगड़ी वाले पंजाबी की टैक्सी में सवार होना। इस तरह लोगों की नजर में पंजाबियों की पहचान रक्षक के तौर पर है, यह कायम रहनी चाहिए। यूपी में सुना कि वहां पंजाबी की गवाही को दो लोगों की गवाही के बराबर माना जाता था क्योंकि लोग मानते थे कि सरदार ­
भूठ नहीं बोल सकता।
विश्वविद्यालय के डाक्टर जसविंदर सिंह ने अपने की नोट (कुंजीगत)
भाषण में कहा कि व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास जरुरी है लेकिन यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। स
भयता-संस्कृति के साथ राजनीतिक जगह की
भी जरूरत है।
भाषा के विकास के लिए शिक्षा में सहायक होना चाहिए, वह रोजगार के साधन मुहैया करवा सके और सरकारी
भाषा बने जिससे उसके फलने-फूलने में मदद मिले।
उन्होंने कहा कि
भाषा रीढ़ की हड््डी की तरह है। शब्दों के बगैर सारा कुछ बेरंग है। लेकिन आने वाली पीढ़ी
भाषा से जुड़े इसके लिए जरुरी है कि लिपि का विकास निरंतर जारी रहे। लोग
भाषा लिखना नहीं जानते तो दूसरी पीढ़ी उसे सीख नहीं सकेगी। वह सिमटती जाएगी और एकदिन समाप्त हो जाएगी। किसी जमाने में फ्रांसीसी
भाषा पहले स्थान पर थी लेकिन अब अंग्रेजी आगे आ गई है।
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुलीन वर्ग
भाषा और धर्म के मामले में हीनता बोध से ग्रस्त है। वे लोग धन के मामले में तो आगे हैं लेकिन
भाषा के प्रति जागरुक नहीं है। इसलिए दूसरी
भाषा के प्रति मोह दिखाते हैं। बच्चों को मम्मी, डैडी तो बोलना सिखाते हैं लेकिन अपनी
भाषा के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं। अ
भी कनाडा में प्रवासियों के बारे में
भाषा के बारे में गणना हुई तो उसमें 100 में 34 फीसद बच्चों ने पंजाबी को अपनी मातृ
भाषा बताया , उनका जन्म वहीं हुआ जबकि जर्मन के छह और पूर्तगाल के तीन फीसद बच्चों ने अपनी मातृ
भाषा को बताया।
राज्य के पर्यटन मंत्री रछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पद सं
भालते ही उन्होंने पंजाबी को
भाषायी मान्यता प्रदान की। रेल मंत्री के तौर पर सिखों के धार्मिक स्थल हुजूर साहिब (महाराष्ट्र), आनंदपुर साहिब (पंजाब), स्वर्णमंदिर(अमृतसर) समेत स
भी स्थानों के लिए रेलगाड़ियां चलाई हैं । अब वे राज्य में पंजाबियों के लिए कोई स्मारक स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने गुरू नानक जयंती पर मु­ासे कहा था कि नानक की मूर्ति स्थापित करनी है तो बताएं लेकिन मैने बताया कि सिख धर्म में मूर्ति पूजा की मनाही है। इस मौके पर वि
भान्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम
भी पेश किए गए।

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