Friday, December 14, 2012

275 साल पुरातन हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब


  रंजीत लुधियानवी
कोलकाता, 14 नवंबर  । राज्य के लोगों के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब के तीन दुर्लभ स्वरुप के दर्शन  डनलप से हावड़ा पहुंच रहे हैं। इनमें एक पौने तीन सौ साल पुराना तो दूसरा सवा दो सौ साल पुराना है। तीसरा ग्रंथ तो महज एक इंच की आकृति का है।  हावड़ा में 275 साल पुरातन हस्त लिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब स्वरुप के शनिवार को दर्शन किए जा सकेंगे। आलमपुर स्थित गुरुद्वार सिख संगत में यह रहेंगे। यह जानकारी श्री गुरु सिंह सभा, मायथान (आगरा) उत्तर प्रदेश के मुख्य प्रचारक भाई ओंकार सिंह ने शुक्रवार को एक विशेष बातचीत के दौरान दी। उन्होंने बताया कि सिख धर्म के नौंवे गुरु श्री गुरु तेग बहादुर उत्तर प्रदेश के इस गुरुद्वारे में पहुंचे थे। यहां पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब के तीन दुर्लभ स्वरूप मौजूद हैं। सिख धर्म के प्रचार-प्रसार और लोगों को इस दुर्लभ स्वरुप के दर्शन कराने के लिए पश्चिम बंगाल में इन्हें लाया गया है।
उन्होंने बताया कि इनमें पहला स्वरुप 1730 ईसवी से लेकर 1737 ईसवी तक लगातार पांच साल के कठिन परिश्रम के बाद 275 साल पुराना हस्तलिखित स्वरुप तैयार किया गया था। जपुजी साहिब से प्रथम  शब्दों  सोना, नीलम और मानिक की स्याही बनाकर कलात्मक चित्रकारी से लिखा गया है। इसके साथ ही 225 साल पुरातन एक स्वरुप भी है। इसे पत्थर के ब्लाक से तैयार किया गया था। लाहौर के दो मुसलमान भाईयों ने संपूर्ण गुरुवाणी की पत्थर की डाइयों से इसे छापा गया था। इसलिए इसे लोगों की ओर से पत्थर छाप स्वरुप माना जाने लगा।
उत्तर प्रदेश से यहां लाए गए तीन प्राचीन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में एक स्वरुप महज एक इंच का है। सौ साल पुराने ग्रंथ को पढ़ने के लिए मैग्नीफाइंग ग्लास की आवश्यकता पड़ती है। मालूम हो कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सिख सैनिक भारी संख्या में ब्रिटिश सरकार में शामिल थे। लेकिन जब उन्हें युद्ध में जाने के लिए कहा गया तो उन्होंने इंकार कर दिया। उनका कहना था कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब के बगैर हमलोग कहीं नहीं जा सकते। जब तक हम अपने गुरु के सामने अरदास नहीं करते, कोई काम नहीं करते। सिखों को युद्ध में जोश के लिए भी गुरू की मौजूदगी जरुरी है। इसके बाद अंग्रेज सरकार ने योजना बनाई और जर्मन की एक प्रिंटिंग प्रेस में मौजूदा श्री गुरु ग्रंथ साहिब की फोटो करवा कर एक इंच के आकार का ग्रंथ तैयार करवाया ।इस तरह के कुल मिलाकर 13 स्वरुप तैयार किए गए। इसके बाद सिख सैनिक युद्ध के लिए रवाना हुए।
 गुरुद्वारा सिख संगत,डनलप ब्रीज से भाई सोहन सिंह, कुलविंदर सिंह , सुंदर सिंह, महंगा सिंह, केवल सिंह, बलवंत सिंह समेत कई लोग दुर्लभ स्वरुप लेकर यहां पहुंचे हैं। लुधियाना के रास्ते उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़, झारखंड और ओडिसा के बाद यहां पहुंचे ग्रंथ को देखने  के लिए बीते तीन दिन डनलप गुरुद्वारा में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहा।

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