Wednesday, December 19, 2012

औचित्य है? फेयर प्राइस शाप का खोलने का क्या औचित्य?


 एक कहावत है कि नई बोतल में पुरानी शराब भरने से कुछ नहीं होता, क्या राज्य सरकार की ओर से शोर-शराबे के साथ खोली गई छह ‘फेयर प्राइस शाप’ की दुकानें भी महज दिखावा है? पुरानी शराब नई के मुकाबले महंगी होती है, इसी तरह सरकारी अस्पतालों में ‘जनौषधी’ की दुकानें बंद करके यह दुकानें खोली जा रही हैं, जिनकी कीमत पुरानी दुकानों के मुकाबले ज्यादा है।
गौरतलब है कि सरकारी अस्पताल में गरीब मरीजों को महंगी दवा खरीदने में परेशानी होती थी इसलिए केंद्र सरकार की परियोजना से सस्ती दवाई की ‘जनौषधी’ दुकाने खोली गई थी। इन दुकानों में बहुत कम कीमत पर दवाएं मिलती थी। लेकिन परियोजना के नाकाम बताते हुए इन दुकानों को बंद कर दिया गया। अब राज्य में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत राज्य में कुल मिलाकर ‘फेयर प्राइस शाप’ की छह दुकानें खोली गई हैं। इस बारे में प्रचारित किया गया है कि यहां 66 फीसद तक खुदरा विक्रय मूल्य से कम कीमत पर यहां दवाईयां मिल सकेंगी।  लेकिन कई डाक्टरों का कहना है कि इन दुकानों की उपयोगिता ही सवालों के घेरे में है। इसकाकारण बताते  हुए एक डाक्टर का कहना है कि राजस्थान, पंजाब और दक्षिण के राज्यों में सफल ‘जनौषधी’ दुकानों की परियोजना पश्चिम बंगाल में नाकाम हो गई थी ,राज्य सरकार की नाकामी इसकी मुख्य वजह थी।
सूत्रों ने बताया कि मेटफर्मिन नामक 500 एमजी (10 टैबलेट) राज्य में 50 रुपए में बिक रही है, जबकि फेयर प्राइस शाप में इसकी कीमत साढ़े सोलह रुपए है। यह दवा राजस्थान में एक रुपए 89 पैसे में बिकती है। इसी तरह एक ग्राम मेरोपेनेम (सिंगल डायल) का मूल्य 2490 रुपए और 821 रुपए 70 पैसे में मिल रही है, राजस्थान में इसकी कीमत 227 रुपए है। इसी तरह सिप्रोफ्लेससिन 67 फीसद छूट देने के बाद 19 रुपए 47 पैसे, राजस्थान में 10 रुपए 44 पैसे, को-एमक्सिक्रेव 87.45 रुपए के बजाए 26.31 रुपए, एलबेंडाजोल 7.26 व राजस्थान में 6.30 रुपए में उपलब्ध है।
सूत्रों का कहना है कि सस्ती दवाएं गरीबों को देने के लिए 2008 में शुरू हुई ‘जनौषधी’ परियोजना राजस्थान में सबसे ज्यादा सफल रही है। राज्य में इसे 2010 में खोला गया था। मांग कम होने के कारण सिर्फ तीन जगह दुकानें खोली गई थी, जिसे बंद करना पड़ा। इसका कारण बताया जाता है कि वहां दवाई कंपनी से सीधे दवा खरीद ली जाती है। इसके साथ ही छोटी-बड़ी गैर सरकारी संस्थाओं की दवाएं भी खरीदी जाती हैं। महज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भरोसे नहीं रहा जाता। तीसरा कारण दवा की गुणवत्ता पर लगातार कड़ी नजर रखी जाती है। राजस्थान में दवाएं सीधे कंपनी से खरीदी जाती हैं लेकिन यहां  ‘जनौषधी’ की बात हो या ‘फेयर प्राइस शाप’ दुकानों की दवाएं राज्य सरकार सीधे तौर पर नहीं खरीदती है। इसलिए राजस्थान में 461 प्रकार की दवाएं मिलती हैं लेकिन यहां महज 142 दवाएं रखने की बात की गई है। जबकि जनौषधी तो 50 प्रकार की दवाइयों का आंकड़ा पार नहीं कर सकी थी। भले ही राज्य सरकार की ओर से सस्ती दवाएं देने का दावा किया जा रहा हो लेकिन लोगों का कहना है कि जब दवा की कीमत कम नहीं है तो ऐसी दुकानें खोलने का क्या

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