Sunday, September 16, 2012

अतीत का हिस्सा बनते जा रहे हैं सिनेमाघर



 हावड़ा जिले के शिवपुर थाना इलाके में  किसी जमाने में धर्मेंद्र की फिल्म जुगनू देखने के लिए मायापुरी सिनेमाहाल के सामने दर्शकों की  लंबी कतार लगी रहती थी। लोग सिनेमाहाल का अग्रिम टिकट कटाने के लिए मारपीट तक करते थे, इस दौरान किसी का पर्स गायब हो जाता तो किसी की घड़ी। यही हाल धर्मेंद्र की फिल्म आजाद के लिए नवभारत सिनेमा हाल में थी। कोलकाता के ज्योति सिनेमाहाल में सन्नी देवल की पहली फिल्म बेताब का अग्रिम टिकट कटाने वालों की लंबी कतार बारिश में भी टस से मस नहीं हो रही थी।  सदाबहार फिल्म शोले भले ही सफलता के सर्वकालीन कीर्तिमान कायम करने में कामयाब रही हो उसे शुरूआती दर्शक नहीं मिले थे। इसके बावजूद नई फिल्म लगने के बाद कई लोग आराम से फिल्म देखते थे कि महीना-दो महीना तो चलेगी, बाद में देखलेंगे।  लेकिन यह सारी बातें अब जहां सपने की तरह लगती हैं क्योंकि सिनेमाहाल के दर्शक तो  गायब होते ही  जा रहे हैं, वहीं सिनेमाहाल भी दर्शकों के साथ गुम होते जा रहे हैं।
इन दिनों सिनेमा हाल में जाकर फिल्म देखने वाले  दर्शकों की पुरानी पहचान बदलती जा रही है। पारंपरिक सिनेमाहाल बंद हो रहे हैं और उनकी जगह बहुमंजिला इमारतें, शापिंग माल बनते जा रहे हैं। महानगर कोलकाता का प्रसिद्ध सिनेमाहाल ओरिएंट मलबे में बदल चुका है। बदलते जमाने के साथ नहीं बदलने के कारण सिनेमाहाल से दर्शक दूर होते जा रहे हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि सिनेमाघरों की हालत में सुधार नहीं करने के कारण ही दर्शक मल्टीप्लेक्स की ओर जा रहे हैं।
हावड़ा में जोगमाया सिनेमाहाल में एक राजनीतिक दल का कार्यालय बन चुका है। इसके अलावा मायापुरी, अलका समेत बंद होने वाले सिनेमा घरों की एक लंबी सूची है। कोलकाता में हाथीबगान में पूर्णश्री, रुपबानी, खन्ना, धर्मतला का लोटस, लाइटहाउस, चैप्लिन, ओपेरा, न्यु सिनेमा, ज्योति, जेम, टाईगर इस सूची में शामिल हैं। दक्षिण कोलकाता में बंद सिनेमाघरों की सूची में उज्जला, कालिका, रुपाली, पूर्णा, भारती शामिल है। इस ताजा सूची में ओरिएंट का नाम शामिल हो गया है, अचानक वहां जाकर देखा कि हाल मलबे में बदल गया है। पता चला है कि वहां बहुमंजिला इमारत बनाई जाएगी।
ईस्टर्न इंडिया मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन (इंपा) से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि किसी जमाने में राज्य में कुल मिलाकर 700 से ज्यादा सिनेमाघर थे। बीते पांच साल में लगभग 250 सिनेमाहाल बंद हो गए हैं। जो हाल चल रहे हैं, उनकी हालत भी दयनीय बनी हुई है। कितने दिनों तक वे चलते रहेंगे, इस बारे में कोई नहीं बता सकता।
मालूम हो कि महानगर कोलकाता और हावड़ा में अभी भी कई सिनेमाघर चल रहे हैं लेकिन कब वहां हाउसफुल का बोर्ड लगा था , यह सवाल किसी ईनामी प्रतियोगिता में पूछा जाए तो शायद ही कोई जबाव दे सके। आखिर क्या कारण है कि लोग सिनेमाहाल से दूर जा रहे हैं और मल्टीप्लेक्स में दर्शकों की भीड़ बढ़ती जा रही है। जबकि वहां टिकटों की भारी कीमत रहती है, नई और चर्चित  फिल्म  के टिकट की कीमत तो इतनी रहती है कि सामान्य परिवार का उसमें हफ्ते का राशन आ जाए। इस बारे में पूछने पर सिनेमा घरों से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि सामान्य सिनेमा हाल में 700-800 दर्शकों के बैठने की जगह रहती है, वहीं मल्टीप्लेक्स में एक हजार-ग्यारह सौ दर्शकों के लिए चार-पांच स्क्रीन रहते हैं। यहां दर्शकों को फिल्म चुनने का मौका रहता है, दूसरे साफ-सुथरे हाल, शानदार साउंड और जबरदस्त एयरकंडीशन केकारण यहां फिल्म देखने का मजा ही कुछ और रहता है। इसलिए अब सामान्य सिनेमाहाल में भी एक दिन में दो-तीन फिल्में दिखाने की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही साउंड सिस्टम और दूसरी सुविधाओं में भी सुधार किया जा रहा है।
हालांकि पारंपरिक सिनेमाघर, जिसे सिंगल स्क्रीन कहा जाता है, उनकी हालत खराब है। यहां कई बार मुश्किल से उंगलियों पर गिने जाने लायक दर्शक दिखते हैं। लगातार बंद होते सिनेमाघरों की हालत देखते हुए ऐसा लगता है कि शायद वे जल्द ही अतीत का हिस्सा न बन जाएं।


No comments:

Post a Comment