Tuesday, December 20, 2011

नागरिक अधिकार पत्र

सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया जिसके कानून का रूप लेने के बाद हर प्राधिकरण और विभाग के लिए सिटीजन चार्टर (नागरिक अधिकार पत्र) का प्रकाशन और शिकायतों का 30 दिन के भीतर निपटारा अनिवार्य होगा। इसमें नाकाम रहने पर संबंधित अधिकारी को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। नागरिक माल और सेवाओं का समयबद्ध परिदान और शिकायत निवारण अधिकार विधेयक 2011 कार्मिक राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सदन में पेश किया। प्रत्येक विभाग के एक सिटीजन चार्टर का प्रकाशन अण्णा हजारे की एक प्रमुख मांग है। हालांकि वे इसे लोकपाल विधेयक के ही हिस्से के रूप में चाहते थे।
सरकार ने विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अलग से विधेयक पेश किया है और यह विधेयक इसका हिस्सा है। चार्टर में सरकारी अधिकारियों के लिए यह भी अनिवार्य किया गया है कि वे जनता से शिकायत मिलने के दो दिन के भीतर उसका संज्ञान लेंगे। विधेयक में प्रशासन में निचले स्तर के रिश्वत संबंधी मामलों को निपटाने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान किया गया है। यह कदम टीम अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की पृष्ठभूमि में उठाया गया है। यह विधेयक सभी योजनाओं और केंद्र सरकार के सभी विभागों को कवर करेगा और राज्यों को अपने यहां भी इसी प्रकार की प्रणाली को स्थापित करने के लिए एक मंच देगा। विधेयक में सभी मंत्रालयों के लिए 30 दिनों में लोगों की शिकायतों पर कार्रवाई करना जरूरी किया गया है। ऐसा करने में नाकाम रहने पर उच्च प्राधिकार के समक्ष शिकायत की जा सकती है। इस प्राधिकार को 30 दिनों के भीतर अपील पर सुनवाई करके इसका निपटारा करना होगा।
अगर समयसीमा के भीतर शिकायतों का निपटारा नहीं किया जाता है तब शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी पर जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित कानून के तहत हर सार्वजनिक प्राधिकार को केंद्र स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक शिकायत की सुनवाई करने वाले अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतकार्ता को इस बारे में की गई कारर्वाई की लिखित में जानकारी दिया जाए। अगर अधिकारी दोषी पाया जाता है तब उसे नागरिक को मुआवजा देना होगा। अगर शिकायतकर्ता फैसले से असंतुष्ट हो तब वह केंद्र और राज्य स्तर पर स्थापित लोक शिकायत निपटारा आयोग के समक्ष जा सकता है।

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