Thursday, December 22, 2011

अमीरों का केक अब हर दिल अजीज

हावड़ा जिले के शिवपुर थाना इलाके के तहत बंगाल जूट मिल हिंदी हाई स्कूल में पढ़ने वाले धनंजय मिश्रा को केक खाने के चाहत के बावजूद मायूस रहना पड़ा था। भले ही उसके पिता प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक थे लेकिन पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले बेटे की ख्वाहिश पूरी करना उनके बस में नहीं था। ऐसा नहीं है कि उनके पास रुपए नहीं थे । बालक ने स्कूल में एक धनाढ्य के बेटे को केक खाते देख कर केक खाने की जिद की थी जिसे पिता ने पूरा करना चाहा था। लेकिन जेब में रुपए रहने के बावजूद बाजार में नहीं मिलता था केक। यह फिल्म शोले के प्रदर्शन के दौरान की बातें हैं।
जी हां, यह कोई कथा-कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है कि कभी केक सिर्फ अमीरों के शौक की वस्तु हुआ करता था। सामान्य लोग तो बस ललचाते हुए दूसरों को केक खाते देखा करते थे। इसका कारण यह था कि जिले में केक बनाए नहीं जाते थे, कुछ खास इलाके की गिनी-चुनी दुकानें में ही केक रखा जाता था, वह भी कोलकाता से यहां लाया जाता था। हालांकि तब तक हावड़ा जिले में न्यू हावड़ा बेकरी (बापुजी) ने केक बनाने शुरू कर दिए थे। यह 1973 का साल था, तब बहुत सीमित मात्रा में केक बनाए जाते थे। एक कीक की कीमत 20 पैसे हुआ करती थी, हालांकि तब बस का न्यूनतम भाड़ा इससे कम था और 18 पैसे का टिकट कटा कर लोग 18-20 किलोमीटर का सफर आसानी से करते थे। केक महंगा था और लोगों की जेब में उतने पैसे नहीं थे।
अब ऐसा नहीं है, एक तो बेकरी की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है दूसरे सभी केक बनाने में जुटे हुए हैं। गरीब और सामान्य लोगों के लिए नाश्ते के लिए सबसे अच्छा और सस्ता केक ही रह गया है। तीन रुपए का केक और डेढ़-दो रुपए की चाय के साथ पांच रुपए में नाश्ता हो जाता है। जिले के बने हुए केक स्कूलों में दोपहर के भोजन में भी छात्र-छात्राओं को दिए जाते हैं। इसके साथ ही 37 साल पहले शुरू हुई बापुजी कंपनी अब भी केक बनाने के काम में जुटी हुई है और 20 पैसे से शुरू हुआ केक महंगा होकर चार रुपए तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद बड़ी कंपनियों के मुकाबले में टिका हुआ है। सालों पहले की पैकेजिंग में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। पुराने दिनों की याद करते हुए गोविंद मिश्रा कहते हैं कि उन दिनों जिले के मुस्लिम बहुल इलाके में ही बेकरी हुआ करती थी। लेकिन सिर्फ पावरोटी और बिस्कुट बनाए जाते थे। बेकरियां भी बेलिलियस रोड, पीलखाना, लीचू बगान, आंदुल, ट्रामडिपो इलाके में हुआ करती थी। लेकिन उनका अपना-अपना इलाका था। बापुजी ने केक बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं, केक हर घर की चाहत ही नहीं लोगों के पसंद की चीज बन गया है। कोई किसी भी समुदाय का हो, स्कूल-कालेज की छुट्टयां होते ही सर्द मौसम में केक के साथ चाय या कॉफी का आनंद उठाने से नहीं चूकते। क्रिसमस के मौके पर महानगर कोलकाता समेत सभी जिलों में दुकानों अलग तरह से सजी हुई हैं।
मौड़ीग्राम स्टेशन के नजदीक एक दुकानदार रानू ने बताया कि क्रिसमस के मौके पर लोग केक के अलावा कुछ नहीं मांगते। इसलिए दस दिन पहले से ही केक की बिक्री शुरू हो गई थी, जैसे-जैसे 25 दिसंबर करीब आती जा रही है वैसे -वैसे बिक्री बढ़ती जा रही है। इसी तरह के विचार चूनाभाटी इलाके के दूसरे दुकानदार के हैं। दक्षिण हावड़ा हो या मध्य और उत्तर हावड़ा, ज्यादातर इलाकों में सांताक्लाज पांच रुपए से लेकर 50 रुपए तक बिक रहे हैं। चमकदार सितारे भी आठ रुपए से बीस रुपए तक बिक रहे हैं। जबकि बड़े तारे 50-60 रुपए कीमत के हैं। सबसे बड़ा सांताक्लाज 450 रुपए का है। बड़े दिन के मौके पर बिकने वाले केक में भी ज्यादा ग्राहक 40 रुपए से लेकर 70 रुपए तक की कीमत के हैं। हालांकि 170-250 रुपए तक के केक भी बिक रहे हैं लेकिन उनकी तादाद बहुत कम है। बड़े दिन की पूर्व संध्या पर केक दुकानों के घेरे से निकल कर बाहर सज गए हैं लेकिन कई लोगों को अब भी बचपन की याद सता रही है, जब केक एक सपना हुआ करता था।

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