Thursday, September 22, 2011

सिर्फ 32 रुपये की कमाई पर गुजर-बसर

क्या महानगर में कोई रोजाना सिर्फ 32 रुपये की कमाई पर गुजर-बसर कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को दाखिल हलफनामे में योजना आयोग ने गरीबी रेखा की जो नई परिभाषा तय की है, उसमें कहा गया है कि महानगरों में अगर चार लोगों का परिवार महीने में 3,860 रुपये से ज्यादा खर्च करता है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा। चार लोगों के लिए 3,860 रुपये का मतलब है एक आदमी पर महज 32 रुपये प्रतिदिन। इसी तरह योजना आयोग के मुताबिक अगर ग्रामीण क्षेत्रों में कोई शख्स हर रोज 26 रुपये से ज्यादा खर्च करता है तो वो गरीब नहीं कहलाएगा। उसे गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए चलने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलेगा। सब्जी की कीमतों में आग लगी हुई है। दूध के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। खाने-पीने की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं। महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है, लेकिन योजना आयोग की दलील है कि जो हर रोज 32 रुपए खर्च कर सकता है, वो भला गरीब कैसे हो सकता है! आम जनता ने योजना आयोग की इस रिपोर्ट को कड़वा मजाक करार दिया है। पंकज ढनढनिया ने कहा कि आज 32 रुपये में ठीक से प्यास नहीं बुझती तो भला एक दिन का खर्च चलाने के बारे में कैसे सोचा जा सकता है? आज अगर तीन लीटर स्वच्छ पेयजल खरीदने जाएंगे तो इसमें 36 रुपये लग जाएंगे। बांधाघाट में रहने वाले पवन अग्रवाल ने कहा कि गरीबी की इस नयी परिभाषा का कोई मतलब नहीं है। एक व्यक्ति जब घर से निकलता है तो उसका सुबह से शाम तक बस, आटो और रिक्शा का किराया ही 50 रुपए से ज्यादा लग जाता है। कभी-कभी तो सिर्फ रिक्शा का किराया ही 30 रुपये से ज्यादा देना पड़ता है। यमुना प्रसाद ने कहा कि आये दिन नून-तेल के दाम आसमान छूते जा रहे हैं। वहां 32 रुपये में गुजारा करने वालों को गरीबी की श्रेणी से बाहर रखने का फैसला आम जनता के साथ कड़वा मजाक है। हमारे नेता करोड़ों की संपत्ति रखे हुए हैं और आम जनता 32 रुपये में अपना खर्च चलाए। अहिरीटोला के शंकर साव का कहना है कि उनके परिवार का गुजारा बाटी-चोखा की दुकान से चलता है। उनके दिनभर का खर्च ही 100 है। मुट्ठी मिस कर खर्च करने पर भी एक दिन का खर्च 100 रुपया पड़ जाता है। वे यूपी के मिर्जापुर के रहने वाले हैं। वर्षों पहले उनके दादा जी ने यह दुकान लगायी थी और इसी से उनके पूरे परिवार का खर्च चलता है हावड़ा के नंदीबगान में रहने वाले गुड्डू राय ने कहा कि सरकार ने 32 रुपया खर्च करने वालों को खुशहाल की श्रेणी में रखने का फैसला करके देश की जनता की गरीबी का मजाक उड़ाया है। आज जिस तरह से महंगाई मुंह बाए खड़ी है, उसमें उनके जैसे मध्यम श्रेणी के लोगों की तो दूर की बात है, अच्छे वेतन वाले लोगों को भी गुजारा करना कठिन हो रहा है

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